घटना के दिन का हाल सुनिए,
लोकेश को स्कूल ले जाने के लिए एक नौकर कोठी के अंदर घुसता है. सुबह के 8 बजे का वक्त है और घर में कोई नहीं है. रात पार्टी थी. इसलिए सब देर से सोए होंगे. ये सोचकर नौकर पहली मंज़िल पर जाता है. वहां का मंजर देखकर उसके होश उड़ जाते हैं. वो दौड़कर वॉचमैन अमर सिंह को बुला लाता है. चारों तरफ़ सिर्फ़ खून ही खून है. घर में रहने वाले 8 लोगों की हत्या हो चुकी है. सिर्फ़ घर की सबसे बड़ी बेटी सोनिया की नब्ज चल रही है. वो दरवाज़े के आगे बेहोश पड़ी है. अमर सिंह डॉक्टर और पुलिस को फ़ोन करता है. कुछ ही देर में भीड़ इकट्ठा हो जाती है. पुलिस सोनिया को अस्पताल ले जाती है. और उसे वहां भर्ती कर तहक़ीक़ात शुरू कर देती है. तहक़ीक़ात से जो पता चलता है. उससे पुलिस के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
घर में जब कोई घुसा ही नहीं तो हत्या कैसे हुई? 8 लोगों की हत्या हो गई और किसी की चीख-पुकार की आवाज़ तक ना आई! ये सब कैसे और क्यों हुआ?
पूर्व MLA की कोठी
जगह - हरियाणा का हिसार ज़िला. शहर के बिलकुल नज़दीक एक मकान है. मकान क्या, बिलकुल आलीशान कोठी समझिए. इतनी भव्य कि आसपास के लोग सिर्फ़ उसे देखने के वास्ते वहां आते. घरवालों के ठाट ऐसे कि सड़क से होकर कोठी की पहली मंज़िल तक कार का रैम्प जाता.
ये मकान कभी पूर्व MLA रेलू राम पूनिया का हुआ करता था. जिनकी शुरुआत कभी एक ट्रक क्लीनर के काम से हुई थी. आगे जाकर उन्होंने तेल का धंधा शुरू किया और अपनी ‘मेहनत’ के बल पर अकूत धन-सम्पदा जोड़ी. जिसमें शामिल थी 163 एकड़ ज़मीन. 25 एकड़ में फैला हुआ एक फार्म हाउस. इसके अलावा दिल्ली और फ़रीदाबाद में कई दुकानें और प्लॉट भी उनके नाम पर थे. ये सब रेलूराम की ‘मेहनत’ का फल था. हालांकि इस फल को पकाने में कितना ‘पोटाश’ लगा, ये आप बिना कहे ही समझ सकते हैं.
1995 का चुनाव जीतने के बाद रेलू राम ने हरियाणा विकास पार्टी की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री बंसी लाल की सरकार का समर्थन किया (फ़ाइल फोटो)
उनकी कुल सम्पत्ति क़रीब-क़रीब 50 करोड़ की थी. मुम्बई या बंगलुरु में होते तो फ़िल्म प्रोड्यूस कर सकते थे. या फिर कोई कैलेंडर-वैलेंडर भी छपवा सकते थे. लेकिन वो थे हरियाणा के ठेठ देसी आदमी. पैसा खूब था. अब चाहिए थी फ़ुल इज्जत. और वो एक ही तरीक़े से मिल सकती थी- राजनीति में. सो रेलू राम बन गए नेताजी. 1996 में स्वतंत्र रूप से बरवाला विधानसभा से चुनाव में खड़े हुए. और जीत भी गए. हालांकि इसके आगे चुनाव में उनकी हार हुई. लेकिन नाम के साथ ‘पूर्व MLA’ का तमग़ा लग गया.
नेताजी का परिवार भी काफ़ी लम्बा चौड़ा था. उन्होंने दो शादियां की थी. पहली पत्नी ओमी देवी से उनको एक बेटा हुआ था. सुनील. और दूसरी पत्नी कृष्णा देवी से दो बेटियां- सोनिया और प्रियंका उर्फ़ ‘पम्मी’. आगे जाकर सुनील की शादी शकुंतला से हुई. उसके तीन बच्चे हुए. बेटा लोकेश और दो बेटियां- शिवानी और प्रीति. भरापूरा परिवार था और खूब धन-दौलत. साथ में पूर्व MLA का रुतबा भी. 2001 तक आते-आते रेलू राम हिसार के सबसे रईस और रुतबेदार लोगों में शामिल हो चुके थे.
गठरी में लागे चोर
घर-संसार सब एकदम मस्त चल रहा था. बड़ी बेटी सोनिया ताइक्वांडो की प्रैक्टिस किया करती. और स्पोर्ट्स इवेंट्स में भी भाग लेती थी. इसी दौरान उसकी मुलाक़ात हुई संजीव कुमार से. संजीव खुद जूडो का बहुत अच्छा खिलाड़ी था. खेल के मैदान में ही दोनों को प्यार हुआ और शादी भी कर ली. संजीव एक मध्यम-वर्गीय परिवार से आता था. और सोनिया ठहरी नगर सेठ की बेटी. इसलिए रेलू राम ने हर तरह से इस शादी की मुख़ालफ़त की. बस एक कमी रह गई कि फिल्मी स्टाइल में संजीव को ब्लैंक चेक काट कर नहीं दिया रेलू राम ने. हालांकि ऐसा कर पाने की पूरी हैसियत थी.
स्पोर्ट्स में भारत का हाल तब और भी बुरा था. संजीव का जूडो बस कुछ साल ही चल पाया. फिर कोई नौकरी-वौकरी नहीं लगी तो वो काम की तलाश करने लगा. ससुर रसूख़ वाला था, पर कहीं कोई बात बन नहीं पा रही थी. नतीजतन सोनिया ने पिता से कहा कि फार्म हाउस की ज़मीन बेच दें. जिससे संजीव कोई धंधा कर सके.
ज़मीन के मामले में भाई-भाई की लड़ाई आपने सुनी होगी. यहां मामला भाई-बहन के बीच था. स्त्री अधिकारों के हिसाब से ये अच्छी बात थी. अगर लड़ाई सिर्फ़ बातों तक रहती. सोनिया के सौतेले भाई सुनील को जब ये बात पता चली तो वो बुलेरो लेकर सोनिया के पास पहुंच गया. दोनों के बीच ज़मीन को लेकर कहा-सुनी होने लगी. कुछ ही देर में बात इतनी बड़ गई कि सोनिया ने अपने पति का रिवॉल्वर निकाल लिया.
शुक्र की बात कि उस दिन कोई अनहोनी नहीं हुई. लेकिन ये अच्छा हुआ या ग़लत, ये आने वाले भाविष्य को तय करना था.
ख़ैर इस कहा-सुनी के बाद सुनील वापस घर चला गया. उधर सोनिया ग़ुस्से से बिलबिला उठी थी. उसे लगा कि अब सीधी उंगली से काम नहीं चलेगा. और अब जायदाद पाने का एक ही रास्ता है. वो ये कि पूरे परिवार को ही रास्ते से हटा दिया जाए. ये बात उसने अपने पति संजीव को बताई. जिसे सुनकर पहले तो सुनील ने आनाकानी की. लेकिन अंततः वो तैयार हो गया.
8 लोग और 6 गोलियां
इस काम को अंजाम देने के लिए 23 अगस्त यानी आज ही का दिन चुना गया. इसी दिन सोनिया की बहन पम्मी का जन्मदिन होता था. साल था 2001. दोनों ने सोचा इससे अच्छा मौक़ा उन्हें दुबारा नहीं मिलेगा. उन्होंने बिना रेलू राम को बताए, एक पार्टी का इंतज़ाम किया. पम्मी स्कूल के हॉस्टल में रहती थी. इसलिए सोनिया हॉस्टल गई और उसे फार्म हाउस ले आई. रात को खूब आतिशबाजी की गई. खूब गाना बजाना हुआ. देर रात खाने के बाद सोनिया की फ़रमाइश पर खीर बनवाई गई. खीर खाने के बाद सब सोने चले गए. लेकिन उन्हें पता नहीं था कि सोनिया ने खीर में अफ़ीम मिलाई थी. जिससे सभी लगभग बेहोश से हो गए.