60 का दशक, भयंकर भू-राजनीतिक तनाव से घिरे मिडिल ईस्ट में दुनिया के दो सुपर पावर अपना प्रभाव बढ़ाने की होड़ में लगे थे. दूसरी ओर, इजरायल अपनी सैन्य शक्ति में इजाफा कर रहा था. सामने चुनौती बन कर खड़ा था सोवियत संघ का सबसे मजबूत सुपरसॉनिक फाइटर जेट MIG-21. 'फिशबेड' या 'The Flying Coffin' जो भी कह लीजिए, सब इसी के नाम है. लगभग 2.1 मैक यानी 2,175 किलोमीटर/घंटा की रफ्तार, वजन में उस वक्त इजरायली सेना में मौजूद फ्रांस के Mirage III की तुलना में काफी कम जो दुश्मन को पल भर में भून दे. सोवियत संघ का अरब देशों की तरफ लाड़ ऐसा था कि वो ये एयरक्राफ्ट मुहैया कराने के साथ उनके पायलट्स को ट्रेनिंग भी दे रहे थे. ऐसी वैसी बात तो थी नहीं. मसला उस समय के सबसे मारक फाइटर जेट को उड़ाने का था.
इजरायल को क्यों करनी पड़ी फाइटर जेट की चोरी?
ये वही जेट है जिससे अभिनंदन ने पाकिस्तानी जेट को मारा था. Israel किसी भी हाल में MIG-21 फाइटर जेट को हासिल करना चाहता था. ये वही जहाज है जिससे भारत के फाइटर पायलट विंग कमांडर Abhinandan Varthaman ने पाकिस्तान के F-16 को मार गिराया था.
इस नीति ने अमेरिका और इजरायल दोनों के कान खड़े कर दिए. क्योंकि MIG ने इजरायली एयरफोर्स की नाक में दम कर रखा था. किसी भी हाल में इजरायल इस फाइटर जेट को हासिल करना चाहता था लेकिन ये मुमकिन नहीं हो पा रहा था. अंतिम में इजरायल ने ब्रह्मास्त्र निकाला. माने खुफिया एजेंसी मोसाद की एंट्री हुई और तैयार किया गया प्लान. कैसा प्लान? चोरी का.
चोरी का प्लान25 मार्च, 1963. मेर आमेत इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के चीफ बनाए गए. स्वभाव में दृढ़ और जिद्दी लेकिन गर्मजोशी से भरे. अपने खुशमिजाज अंदाज के लिए उन्हें यारों का यार कहा जाता था. सेना से आए मेर को जंग लड़ने का भी तजुर्बा था. उस दौर में इजरायली एयरफोर्स के चीफ थे एज़ेर वाइज़मन. दोनों की आपस में अक्सर मुलाकात होती थी. सुबह का नाश्ता कई बार एक साथ किया करते थे. एक दिन मेर आमेत ने वाइज़मन से पूछा, बताइए मोसाद, इजरायली वायुसेना के लिए क्या सेवा कर सकता है? जवाब में एयरफोर्स चीफ ने कहा कि एक ऐसी चीज जिसे हासिल करना मुश्किल है. इस बार मोसाद चीफ ने सीरियस होकर पूछा और वो क्या है? वाइज़मन ने संजीदगी से आगे बढ़कर जवाब दिया MIG. अगर आपसे ये मुमकिन हो तो हमें MIG चाहिए.
मेर आमेत ने फौरन कहा ये तो पूरे पश्चिम के पास नहीं है. फिर.... इससे पहले वो आगे कुछ और बोलते वाइज़मन ने तपाक से कह दिया हमें MIG दिलाने में आपको कोई भी कसर नहीं छोड़नी चाहिए. मोसाद के लिए ये किसी चैलेंज से कम नहीं था. जिम्मेदार ऑफिसर्स की लिस्ट खंगाली जाने लगी. एक नाम सामने आता है रहविया वर्डी का. जानकारी मिली कि वो पहले ही अरब देशों से MIG चुराने की नाकाम कोशिश कर चुके थे.
Michael Bar-Zohar और Nissim Mishal अपनी किताब 'Mossad The Greatest Missions Of The Israeli Secret Service' में लिखते हैं-
“रहविया वर्डी पर भरोसा जताते हुए उन्हें नए सिरे से MIG चुराने की जिम्मेदारी मिली. यकीनन वो काम में लग गए. जांच के दौरान उन्हें ईरान में इजरायली मिलिट्री ऑफिसर याकोव निमरादी से एक रिपोर्ट मिलती है. इस रिपोर्ट में कहा गया कि एक इराकी यहूदी है योसेफ शिमिश, जो एक ऐसे पायलट को जानते हैं, जो मिग-21 विमान को इजरायल ला सकता है.”
दरअसल, इराक की राजधानी बगदाद में शिमिश की महिला मित्र रहा करती थीं. महिला मित्र की बहन ने इराकी वायुसेना के एक क्रिश्चियन पायलट कैप्टन मुनीर रेड्फा से शादी की थी. शिमिश को इस बात की पूरी जानकारी थी कि रेड्फा बहुत परेशान रहा करता था. वजह ये थी कि एक बेहतरीन मिग-21 पायलट होने के बावजूद उसे कभी भी प्रमोशन नहीं मिल सकता था. अधिकारियों ने साफ बता दिया था कि क्रिश्चियन होने की वजह से वो कभी स्क्वाड्रन लीडर नहीं बनेगा. वजह, इराक में क्रिश्चियन अल्पसंख्यक हैं. उसे एक पुराना मिग-17 फाइटर जेट दिया गया था. वो भी कुर्द गांवों में बम गिराने के लिए. उस समय इराक के उत्तरी इलाके में बसे कुर्द लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान और अधिकार की मांग कर रहे थे. इसे इराक की एकता और अखंडता के लिए खतरा माना जा रहा था.
ये तमाम बातें रेड्फा को इराक छोड़ने के लिए मजबूर करती थीं. बस इसी का फायदा उठाते हुए शिमिश ने उससे करीबी बढ़ाई और किसी तरह ग्रीस ले चलने को राजी किया. अब एक फाइटर पायलट के लिए अचानक देश छोड़ना इतना आसान तो था नहीं. इसके लिए शिमिश ने इराकी अधिकारियों को ये भरोसा दिलाया कि रेड्फा की पत्नी गंभीर बीमारी से गुजर रही है और इलाज ग्रीस में ही मुमकिन है. चूंकि घर में सिर्फ रेड्फा को ही इंग्लिश आती थी, इसलिए उसका जाना जरूरी है.
सब कुछ प्लान के हिसाब से होता है. और रेड्फा ग्रीस की राजधानी एथेंस पहुंच जाते हैं. यहां रेड्फा की मुलाकात Colonel Ze’ev Liron नाम के शख्स से होती है. जिसने बताया कि वो पोलैंड का पायलट है और गैर सामाजिक संगठन के लिए भी काम करता है. Liron और रेड्फा की आपस में दोस्ती हो गई. वो आपस में इराक में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में बाते करते थे. एक दिन Liron ने रेड्फा से पूछा कि अगर तुम अपने फाइटर प्लेन के साथ इराक छोड़ दो तो क्या होगा? रेड्फा ने कहा, वो मुझे मार डालेंगे. इसके अलावा, ऐसा कोई देश नहीं है जो मुझे शरण देगा. लिरॉन ने कहा, एक देश है जो तुम्हें खुली बांहों से अपनाएगा. Liron ने सच्चाई सामने लाते हुए बताया कि वो पोलैंड नहीं बल्कि इजरायली पायलट हैं.
कुछ पल के लिए बिल्कुल सन्नाटा छा गया. लेकिन अगली सुबह रेड्फा समझ चुका था कि उसे क्या करना है. उसके हाथ में इजरायल जाने के ऑफर था जिसके लिए उसने हामी भर दी. पर इसकी कीमत भी चुकानी थी. कितने पैसे मिलेंगे? क्या करना होगा? और कब प्लान को अंजाम देना है? ये सब बताने के लिए उसे रोम ले जाया गया.
रेडियो के गाने से सिग्नलमोसाद ने रेड्फा को कोड नेम दिया- डायमंड. साथ ही पूरे ऑपरेशन की जानकारी दी. उसे बताया गया कि जब वो इजरायल के रेडियो स्टेशन से मशहूर अरबी गाना ‘मरहबतें मरहबतें’ सुने तो समझ जाए कि अब इराक छोड़ना है. इजरायल के लिए ये ऑपरेशन इतना जरूरी था कि अलग अलग हैंडलर्स से चल रही रेड्फा की मीटिंग को खुद मोसाद चीफ नोट कर रहे थे. उन्हें इस मिशन से पहले रेड्फा से पर्सनली मिलना था. ब्रीफ़िंग के लिए उसे इजरायल बुलाया गया. बातचीत हुई बढ़िया खाना-वाना खिलाकर उसे ग्रीस रवाना कर दिया गया, जहां से वो वापस इराक पहुंचा.
किताब में इस बात का जिक्र है कि एक पल के लिए मोसाद चीफ की जान हथेली में आ गई थी जब उन्हें मालूम हुआ कि रेड्फा इजरायल छोड़ने से पहले अपने सारे फर्नीचर बेच रहा था. उन्हें शक था कि इराकी सिक्योरिटी सर्विस को इस बात की जरा भी भनक लगी तो वो जांच के बाद उसे गिरफ्तार कर सकते थे. हालांकि वो बाल-बाल बच गया.
पायलट का परिवारप्लान तैयार था, बस इजरायल से हरी झंडी मिलना बाकी था. पर इससे पहले रेड्फा के परिवार को इजरायल लाना था. उसने अपनी पत्नी को सिर्फ ये बताया कि वे यूरोप छुट्टियां मनाने जा रहे हैं. रेड्फा के परिवार को पहले एम्सटर्डम फिर पेरिस ले जाया गया. यहां से इजरायल जाने से पहले उसकी पत्नी को पूरा सच बताया गया कि वो हमेशा के लिए इजरायल जा रही हैं. ये सुनकर वो झल्ला गईं. उन्होंने अपने पति को गद्दार बताकर कहा कि अगर ये बात उनके भाई को पता चलेगी तो वो रेड्फा को मार डालेंगे. इजरायली ऑफिसर को उन्हें संभालना मुश्किल हो गया था. इतना कि उन्हें धमकी दी गई कि अगर अपने पति को देखना चाहती है तो इजरायल जाना ही होगा.
इधर मोसाद से हिंट मिलते ही 14 अगस्त को मुनीर रेड्फा ने मिग-21 विमान से उड़ान भरी. लेकिन तकनीकी खराबी होने की वजह से उसे दोबारा एयरबेस लौटना पड़ा. मोसाद के ऑफिसर्स के लिए अब एक एक पल दुश्वार हो रहा था. इस बात को दो दिन बीत जाते हैं. रेड्फा दोबारा उड़ान भरता है. उड़ान की डायरेक्शन में गड़बड़ी और सीमा के करीब जाते ही उसे इराकी एयरबेस से वापस लौटने का आदेश मिलता है. कई बार वार्निंग मिलने के बाद रेड्फा ने अपना रेडियो कंट्रोल बंद कर दिया. अब इराकी एयरबेस से उसका कम्युनिकेशन खत्म हो चुका था. इससे पहले इराक अपने फाइटर जेट्स भेजता इजरायल के एस्कोर्ट तैयार थे. बगदाद से उड़ान भरने के 65 मिनट बाद, रेड्फा इजरायल में हत्ज़ोर एयर बेस पर लैंड कर चुका था. इसके बाद एक प्रेस ब्रीफिंग हुई जिसमें उसने इराक में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बताया.
मिग 21, जिसने पश्चिम को परेशान कर रखा था, जो उस दौर का सबसे मारक फाइटर जेट था, वो अब इजरायल के हाथ लग चुका था. लैंडिंग के बाद रेड्फा ने सबसे पहले अपने परिवार की सुध ली. ऑपरेशन डायमंड सक्सेसफुल हो चुका था. इजरायली ऑफिसर्स ने जमकर पार्टी भी की. लेकिन इस खुशी में रेड्फा खुद को बेहद अकेला महसूस कर रहा था.
उड़ाएगा कौन?MIG 21 अब इजरायल के हाथ में था. इसे फ्लाई करने के लिए एयरफोर्स चीफ ने अपने अपने सबसे होनहार पायलट डैनी शपीरा को चुना. रेड्फा ने उन्हें सभी तकनीकी जानकारी दी जो अरेबिक और रूसी भाषा में थी. केवल एक घंटे में शपीरा ने पूरे कॉन्फिडेंस से कह दिया कि वो ये एयरक्राफ्ट उड़ाने के लिए तैयार है. सभी इस बात से भौंचक्के थे. रेड्फा ने उन्हें आगाह किया कि बिना कोर्स कंपलीट किए MIG 21 उड़ाना खतरे से खाली नहीं होगा. लेकिन इस बात का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा. इस नजारे को देखने के लिए इजरायली सेना के आला अधिकारी पहुंच चुके थे. और कुछ ही घंटे बाद शपीरा MIG 21 उड़ाने वाले पहले इजरायली बन गए. उन्होंने बखूबी विमान को उड़ाया और लैंड भी कराया. रेड्फा के लिए ये यकीन कर पाना भी मुश्किल हो रहा था. उसने शपीरा से कहा कि
“जब तक तुम जैसे पायलट हैं अरब देश इजरायल को कभी हरा नहीं पाएंगे.”
ये घटना दुनियाभर के अखबारों की हेडलाइन्स में शुमार थी. अमेरिका ने खबर मिलते ही अपनी टीम को स्टडी के लिए भेजा. लेकिन इजरायल को ये मंजूर नहीं था. उसने MIG 21 के फीचर के बदले मिसाइल सैम-2 की तकनीक साझा करने की शर्त रखी. अब अमेरिका के सामने कोई ऑप्शन तो था नहीं लिहाजा उन्हें इजरायल की बात माननी पड़ी. इजरायल की ये चालाकी अरब देशों के लिए ताबूत के आखिरी कील की तरह साबित हुई. आगे चलकर 1967 में Six Days War में MIG 21 ने अपना लोहा मनावाया. इस युद्ध में इराक की नाक के नीचे से चुराए गए विमान को उसी के खिलाफ इस्तेमाल किया गया.
इजरायल तो मकसद में कामयाब हो गया. लेकिन मुनीर रेड्फा की कहानी दूसरे देश में भी जाकर नहीं बदली. अब वो पहले से भी ज्यादा डिप्रेस था. इराक से बाहर निकलकर नए देश में उसे कभी भी अपनापन महसूस नहीं हुआ. उसे रिफ्यूजी की पहचान दी गई थी. रेड्फा की पत्नी कैथोलिक ईसाई थीं जो कभी भी यहूदियों से दोस्ती नहीं कर पाईं. पहचान छिपाकर उन्होंने पश्चिम के देशों में भी गुजर बसर किया. अगस्त, 1988 में मुनीर रेड्फा की हार्ट अटैक से मौत हो गई. रेड्फा ने इराक से जो मिग-21 चुराया था, वो आज भी इजरायल के हातेज़रिन वायुसेना म्यूज़ियम में रखा हुआ है.
वीडियो: तारीख: मोसाद ने इराक को चकमा दिया और Mig-21 चुरा लिया, ऑपरेशन डायमंड की पूरी कहानी जान लीजिए