पर कहते हैं कि ये बातें रियल लाइफ से आई थीं. एक गैंगस्टर के अंदाज को कॉपी किया गया था. इस गैंगस्टर ने कभी एक गोली भी नहीं चलाई थी. अपराध को एथिक्स से कुछ यूं मथ दिया था कि हर अदा पर लोग न्यौछावर होने लगते थे. इमरजेंसी में जेल भी गया था. और जेपी के कहने पर रास्ता भी बदला. एक ऐसा गैंगस्टर जिसकी शराफत मोह लेती थी. जिसने बॉलीवुड के नायकों को नया रास्ता दिया. हैदर मस्तान मिर्जा.
जिसको हाजी मस्तान कहा जाता था. बंबई का पहला डॉन.
हाजी मस्तान
1 मार्च 1926 को तमिलनाडु के कुडलोर में जन्म हुआ था हैदर का. पिता गरीब किसान थे. पैसे नहीं थे घर में. बड़ी मुश्किल से काम चलता था. इतना मुश्किल था कि घर छोड़कर कहीं कमाई करने भी नहीं जा सकते थे. फिर एक वक्त आया कि घर में खाना बनना बंद हो गया. ये 1934 था. पिता ने तय किया कि अब बंबई चलेंगे. आ तो गए. पर काम नहीं मिल रहा था. फिर उन्होंने क्रॉफर्ड मार्केट के पास बंगाली टोला में साइकिल पंचर बनाने की दुकान खोल ली. मस्तान पिता के साथ बैठा देखता रहता. जिंदगी के दो ध्रुव. एक तरफ बंबई की आलीशान भव्यता, जिसकी किस्मत रंग-बिरंगी कूचियों से लिखी होती है. दूसरी तरफ गरीबी की बदनसीबी जिसमें पन्ने सादे छोड़ दिये जाते हैं. कूची खोजने की जरूरत होती है.
हाजी मस्तान
बंबई ने मस्तान को जमीर भी दिया और जमीर को इस्तेमाल करने का तरीका भी
मस्तान को शहर आये 10 साल बीत चुके थे. बंबई अपनी रफ्तार पर थी. भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर बिजनेस सब फल-फूल रहा था यहां पर. देश बदल रहा था. अच्छे दिन आ रहे थे. पर सबके नहीं. मस्तान के तो कतई नहीं आए थे. ये वो दौर था जब मद्रास से बहुत सारे लोग बंबई आए थे. मद्रास, बंबई औऱ कलकत्ता ही तो थे अंग्रेजों के शहर, जहां व्यापार होता था. जहां लोगों को भविष्य दिखता था. उसी वक्त मस्तान की मुलाकात गालिब शेख से हुई. गालिब को एक चालू-पुर्जे लड़के की जरूरत थी. उसने कहा कि अगर मस्तान डॉक पर कुली का काम करे औऱ कुछ सामान कपड़ों में छुपाकर बाहर ला दे तो पैसे मिलेंगे. ये वो दौर था जब अंग्रेज सब कुछ आंखों के सामने भारत से लादकर बाहर ले जाते थे. और हिंदुस्तान के लोग उनसे छुपाकर सामान लाते थे. पोर्ट से चोरी करना अंग्रेजी सिस्टम से चोरी करना था. ये अपराध थोड़ा अलग था. अगर उस वक्त के हिसाब से देखें तो बड़ा दिलचस्प होता होगा ये. मस्तान का मन लगने लगा. मस्तान ने कूची खोज ली थी.
हाजी मस्तान
उस वक्त हिंदुस्तान में इलेक्ट्रॉनिक सामान, महंगी घड़ियां, गहने इन सब चीजों की तस्करी होती थी. क्योंकि हिंदुस्तान में कुछ बनता नहीं था. लीगल तरीके से मंगाने पर टैक्स बहुत ज्यादा देना पड़ता था. तो तस्करी का रास्ता निकाल लिया गया था. लगभग 12 साल बाद मस्तान की मुलाकात हुई गुजरात के कुख्यात तस्कर सुकुर नारायण बखिया से. अब दोनों की खूब जमी. तब तक फिलिप्स के ट्रांजिस्टर भी आ चुके थे. अब तस्करी और बढ़ गई. सोचिए कि घड़ी, रेडियो की तस्करी होती थी. उस वक्त शादियों में यही दहेज में भी चलता था.
हाजी मस्तान दिलीप कुमार के साथ
पैसा खूब मिला. कुली मस्तान अब मस्तान भाई बन गया था. ऐसा नहीं था कि और भाई लोग नहीं निकले थे वहां पर. वरदराजन मुदलियार भी निकले थे. जिन पर रामगोपाल वर्मा फिल्म बना रहे हैं. और भी कई लोग थे. पर मस्तान वाली बात नहीं थी किसी में. क्योंकि मस्तान के पास सिर्फ तस्करी नहीं थी. मस्तान के पास तरीका था. बोलने का, बात करने का, देखने का और वादे पूरे करने का. इंसानी फितरत को भांपने का. कुछ जगहों पर एथिक्स मेनटेन करने का. छिछोरापन नहीं करने. कत्ल नहीं करने का. और अपनी जद जानने का. इस नायाब तरीके के अपराध को काम मानने का. बंबई से प्यार करने का.
हाजी मस्तान सुनील दत्त के साथ
कहानी कुछ यूं है कि मस्तान जब तस्करी कर रहा था तो सोने का एक बिस्कुट उसके हाथ में रह गया. पर बिस्कुट का मालिक जेल चला गया. 3 साल बाद जब वो जेल से छूटा तो मस्तान ने वो बिस्कुट उसे वापस कर दिया. मुंबई के अंडरवर्ल्ड के एथिक्स की नई इबारत लिखी जा रही थी.1970 आते-आते मस्तान हाजी मस्तान बन गया. क्योंकि वो कई बार हज करने जा चुका था. पर वो अब कुलीगिरी नहीं करता था. पैसा खूब मिलता था. इसके साथ डिजाइनर सूट, महंगी गाड़ियां, सिगार, बड़े घर सब आ गए थे. समंदर में इसका जलवा था. सिगार पीते घर की बालकनी से समंदर में चलते जहाजों को देखने का अंदाज हाजी मस्तान ने ही दिया था.
हाजी मस्तान एक सभा में (अजय देवगन भी यूं ही वन्स अपॉन ए टाइम में नजर आए थे)
फिर वो वक्त आया जो हाजी मस्तान ने कभी सोचा भी नहीं होगा, इंदिरा गांधी का वक्त
हाजी मस्तान पत्नी सोना के साथ
बॉलीवुड भी उसी वक्त जवान हो रहा था. इंडिया के लिए वो भी एक किस्म का विद्रोह था. हाजी मस्तान का काम भी सिस्टम के खिलाफ विद्रोह ही था. दो बागी मिले और दिल दे बैठे. मस्तान के बॉलीवुड के लोगों से संपर्क बढ़ते गए. कहते हैं कि वो मधुबाला का दीवाना था. दोनों के बीच दोस्ती भी थी. पर रिश्ता नहीं बन पाया. तो बाद में मधुबाला जैसी दिखने वाली हीरोइन सोना से मस्तान ने शादी कर ली. सोना के लिए बहुत पैसे खर्च किए, पर उनकी फिल्में नहीं चल पाईं. दिलीप कुमार, अमिताभ, राजकपूर, धर्मेंद्र, फिरोज खान से मस्तान की दोस्ती के किस्से हैं बंबई में. ये रसूख इतना था कि मस्तान के कामों पर कोई उंगली नहीं उठाता था. सरकार के कामों के अलावा मस्तान के कामों को भी अलिखित कानून ही मान लिया गया था. इसको एक सिस्टम ही माना जाता था.
सोना जो मधुबाला की तरह दिखती थीं
इस बीच देश में तब्दीली होने लगी थी. इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी. और फिर पुलिस भूल गई कि कौन क्या है. हाजी मस्तान को जेल में डाल दिया गया. बहुत सारे लोग जेल में थे. पर मस्तान को वीआईपी इंतजाम दिया गया था. तमाम अफसरों को उसने महंगे उपहार दे रखे थे. वो किस दिन काम आते. पहले भी उसे गिरफ्तार करने की कोशिश की गई थी. पर अफसर बैकआउट कर जाते थे. इमरजेंसी में कुछ चला नहीं. पर यहां से मस्तान की जिंदगी में तूफान आया. एक गांधीवादी इंसान से मुलाकात हुई. इस इंसान को पैसे और ताकत का चस्का नहीं था. पर उस वक्त इस आदमी के दीवाने हिंदुस्तान के ढेर सारे लोग थे. जयप्रकाश नारायण नाम था इनका. जेपी से मिलने के बाद हाजी को इलहाम हुआ कि वो कितना छोटा है. 18 महीने जेल में गुजारने के बाद हाजी मस्तान ने जुर्म से नाता तोड़ लिया.
ये कहा जाता है कि मस्तान ने इंदिरा गांधी को अपनी रिहाई के लिए पैसों की पेशकश की थी. पर किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. ये भी था कि इमरजेंसी के दौरान हाजी मस्तान ने कई नेताओं को छुपने-भागने में मदद की थी. तो छूटने का सवाल ही नहीं था. इसका फायदा मिला नई सरकार बनने के बाद. मस्तान पर उस तरह से केस नहीं चले.
हाजी मस्तान ने पलटी मारी और जिंदगी के कई किस्से सामने आए
1980 में हाजी मस्तान ने राजनीति में कदम रख दिया. 1984 में एक दलित नेता जोगिंदर कावड़े के साथ मिलकर दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ नाम से पार्टी बना ली. ये कल्पनातीत बात थी. आजादी के वक्त का गैंगस्टर दलित-मुस्लिम की राजनीति कर रहा था. दिलीप कुमार खूब प्रचार करते थे इस पार्टी का. बंबई, कलकत्ता और मद्रास में इस पार्टी का प्रचार हुआ. पर राजनीति तस्करी और फिल्मों से जरा हटकर है. इसका अलग नशा है, अलग तरीका है. हाजी मस्तान हर जगह हारा. पार्टी को सफलता नहीं मिली.
हाजी मस्तान दिलीप कुमार के साथ
हाजी मस्तान ने कभी किसी पर गोली नहीं चलाई. पर अपने अंदाज से अपना रसूख कायम किया था. उसने बहुत सारे लोगों की मदद भी की थी. उसके अंदाज को कई गैंगस्टरों ने अपनाया. पर गोली ना चलाने वाली बात भूल गए. कोई कितना याद रखेगा. 1994 में जब हाजी मस्तान की मौत हुई तब तक बंबई का अंडरवर्ल्ड बदल चुका था. दाऊद इब्राहिम बंबई में ब्लास्ट कर भाग चुका था. उसी बंबई को जिसने उसे अपनी महबूबा कहा था. पता नहीं हाजी मस्तान ने क्या सोचा होगा उस वक्त.
हाजी मस्तान ने सुंदर शेखर को गोद लिया था. सुंदर हिंदू ही रहे. हालांकि मस्तान उनको सुलेमान मिर्जा कहता था. सुंदर आज भी बंबई में रहते हैं. भारतीय माइनॉरिटीज सुरक्षा महासंघ नाम से पार्टी चलाते हैं. सुंदर के मुताबिक संजय गांधी बंबई जब भी आते, डैडी से मिलते. सुंदर ये भी कहते हैं कि एक कस्टम के अफसर ने परेशान कर दिया था डैडी को. तो उसका ट्रांसफर करा दिया गया. जब वो अफसर जा रहा था, तो डैडी एयरपोर्ट पहुंचे. प्लेन में चढ़े. अफसर को गुडबाय बोल के आये. ये चीजें हम फिल्मों में देख चुके हैं. पर उस वक्त जब ये हुआ होगा, बड़ा ही अद्भुत लगा होगा. ये स्टाइल था डॉन का.
हाजी मस्तान राजनीति में
हाजी मस्तान की तीन बेटियां हैं- कमरुनिसा, मेहरूनिसा और शमशाद. दो बंबई में और एक लंदन में रहती है. शमशाद ने सुंदर के खिलाफ जंग छेड़ रखी है. कहती हैं कि सुंदर ने डैडी के नाम पर बहुत पैसा बना लिया है. हमें नहीं पता कि इसे गोद लिया भी गया था कि नहीं.
सोना मिर्जा की बेटी हसीन मिर्जा ने क्लेम किया है कि वो हाजी मस्तान की बेटी हैं. उनका कहना है कि 12 साल की उम्र में उनकी शादी नारिस हुसैन से जबर्दस्ती करा दी गई. वो कहती हैं कि जुहू के पास का एक बंगला उनको दे दिया जाए. डैडी ये बंगला उनको ही देना चाहते थे. सोना के मुताबिक कई बार उनका रेप हुआ है. उनकी मां ने भी उनके साथ अच्छा सुलूक नहीं किया. आरोप है कि मां और पति ने इनको बहुत तबाह किया है. ये मामला कोर्ट में है.
हसीना मिर्जा
ऐसा नहीं है कि हाजी मस्तान को गुड डॉन, बैड डॉन की श्रेणी में लाया जा रहा है. ये बात है इमेज की. जो कि लोग कल्टिवेट कर लेते हैं. सारे गलत कामों पर इमेज परदा डाल देती है. जब तक ये समझ आए कि क्या हुआ था, एक युग बदल जाता है. हाजी मस्तान कभी भी खतरनाक गैंगस्टर नहीं रहा. स्मगलर रहा जिसने अपना रसूख बनाया. पर अंग्रेजी अखबारों ने उसकी गैंगस्टर वाली इमेज बना दी जिसे उसने खूब एंजॉय किया. सफेद झकझक कपड़े, सफेद जूते जो राजकुमार की पहचान थे, वो मस्तान से ही आए थे. मतलब डॉन ऐसा जो फिल्मों को आइडिया देता था.
इन सारी कहानियों के बीच एक और कहानी हुई थी
पर ग्लैमर की इन सारी कहानियों के बीच एक और कहानी हुई थी. जिसने अपराध, बॉलीवुड, राजनीति, हिंदुस्तान-पाकिस्तान की नफरत, किसी काम का मकसद और जिंदगी का मकसद ऐसी सारी चीजों को बदल दिया. नई परिभाषा दे दी. डोंगरी टु दुबई में हुसैन जैदी ने तफसील से इसका जिक्र किया है. दाऊद इब्राहिम का. दाऊद हाजी मस्तान के लिए काम करता था. पर वो काम करने नहीं आया था.
दाऊद का मानना था कि हाजी मस्तान की इमेज ही है गैंगस्टर की. वो गैंगस्टर नहीं है. कभी वो बंबई पर राज नहीं कर सकता. दाऊद के दिमाग में एक प्लान आया. वो 19 साल का था उस वक्त. प्लान डेयरिंग था. हाजी मस्तान की एक अटैची मरीन लाइंस से होकर मालाबार हिल्स तक जानी थी. इसमें 5 लाख रुपये थे. उस वक्त ये बहुत ही ज्यादा बड़ी रकम थी. दाऊद ने इसे लूटने का प्लान बनाया. इसमें उसके साथ आए दो लड़के जिनको हाजी मस्तान ने पिटवाया था. इस प्लान में मिस्टर बंबई भी थे. हैंडसम नौजवान था जिसकी खूबसूरती के चर्चे थे. पर किसी को कोई आइडिया नहीं था. सारा ज्ञान फिल्मों से आया था. जब गाड़ियों को फॉलो करने का काम शुरू हुआ तो नेटवर्क टूट गया. सारे लड़के इधर-उधर हो गये. दाऊद को छोड़कर. किसी तरह वैन को दाऊद ने रोक लिया. और अंदर घुस गया. बोला टाइम नहीं है मेरे पास बात करने को. माल कहां है? उसके चेहरे की वहशियत देखकर बूढ़े लोगों ने पैसा सौंप दिया. इसके पहले दाऊद के साथ के दो लड़के वैन में घुसते डर रहे थे. पर दाऊद ने सबको कह दिया था कि हलक से आवाज निकली तो ये आखिरी आवाज होगी. क्योंकि मैं गला काट दूंगा.
माल लूट लिया गया. पर ये माल हाजी मस्तान का नहीं था. ये मेट्रोपॉलिटन बैंक का था. बंबई में हुई ये पहली बैंक डकैती थी जिसे दाऊद ने अनजाने में अंजाम दिया था. पता तो चल ही जाता. पर इसके पहले दाऊद के घर पर कांड हो गया. दाऊद के पिता इब्राहिम कास्कर कॉन्स्टेबल थे. उनकी ईमानदारी के कायल पुलिसवाले भी थे. कास्कर ने बेटे को रातभर पुलिस वाली बेल्ट से पीटा. पूरा मुहल्ला रात भर दाऊद की चीखें सुनता रहा. इब्राहिम सुबह को उसे थाने ले गए. पुलिस वालों ने दया दिखाई. पर इन सबके बीच दाऊद इब्राहिम का जन्म हो चुका था.