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देश के नए AG मुकुल रोहतगी, गुजरात दंगों में की थी सरकार की पैरवी, मनमोहन सरकार ने दिया था अवॉर्ड

मुकुल रोहतगी एक बार फिर से देश के अटॉर्नी जनरल होंगे. एक केस के लिए एक करोड़ से भी ज्यादा की फीस लेने वाले रोहतगी को महंगी कारों का शौक है.

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मुकुल रोहतगी फिर से देश के अटॉर्नी जनरल होंगे. (फाइल फोटो- पीटीआई)

देश के दिग्गज वकीलों में से एक मुकुल रोहतगी (Mukul Rohtagi) एक बार फिर से देश के अटॉर्नी जनरल होंगे. मौजूदा अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल का कार्यकाल 30 सितंबर को खत्म हो रहा है. केके वेणुगोपाल पिछले 5 साल से इस पद पर हैं. उनसे पहले रोहतगी ही अटॉर्नी जनरल थे. साल 2017 में मुकुल रोहतगी के इस्तीफे के बाद केंद्र सरकार ने केके वेणुगोपाल को तीन साल के लिए नियुक्त किया था. बाद में दो बार उनके कार्यकाल को बढ़ाया गया था. इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि अब एक बार फिर सरकार ने रोहतगी से संपर्क किया, तो वे पद संभालने को तैयार हो गए.

मुकुल रोहतगी के बारे में जानने से पहले अटॉर्नी जनरल के पद की अहमियत समझते हैं. अटॉर्नी जनरल देश का सबसे बड़ा लॉ ऑफिसर होता है. साथ ही भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार. केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति करते हैं. ये एक संवैधानिक पद है. संविधान के अनुच्छेद 76(1) के तहत अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति होती है. अटॉर्नी जनरल का मुख्य काम कानूनी मसलों में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना है. अब आते हैं मुकुल रोहतगी की कहानी पर.

हाई कोर्ट जज के बेटे रोहतगी

मुकुल रोहतगी आखिरी बार सबसे ज्यादा चर्चा में तब रहे, जब पिछले साल अक्टूबर में वो शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान के केस में पेश हुए थे. ड्रग्स केस में आर्यन खान आरोपी थे. 26 अक्टूबर 2021 को रोहतगी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में आर्यन का पक्ष रखा था. दो दिन बाद 28 अक्टबूर को आर्यन को जमानत मिल गई थी. आर्यन की जमानत के बाद मुकुल रोहतगी की काफी चर्चा हुई थी. लेकिन 67 साल के रोहतगी की पहचान और करियर में लड़े गए उनके दूसरे मामले कहीं ज्यादा बड़े हैं.

17 अगस्त 1955 को बॉम्बे (अब मुंबई) में मुकुल रोहतगी का जन्म हुआ. उनके पिता अवध बिहारी रोहतगी सीनियर वकील थे और बाद में दिल्ली हाई कोर्ट के जज भी बने. स्कूली पढ़ाई के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से कॉमर्स से स्नातक किया. मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून (LLB) की डिग्री ली. LLB की पढ़ाई पूरी होने के बाद 1978 में दिल्ली बार काउंसिल में वकील के तौर पर रजिस्टर्ड हुए. उन्‍होंने उस वक्त के मशहूर वकील योगेश कुमार सभरवाल के जूनियर के तौर पर अपनी प्रैक्‍ट‍िस शुरू की. ये वही वाईके सभरवाल हैं, जो देश के 36वें चीफ जस्‍ट‍िस बने थे.

मुकुल रोहतगी (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

लंबी प्रैक्टिस के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 1993 में उन्हें सीनियर वकील का दर्जा दिया. उस वक्त रोहतगी 38 साल के थे. शुरुआती दौर में भी रोहतगी कुछ खास मामलों तक सीमित नहीं रहे. उन्होंने सिविल और क्रिमिनल, हर तरह का केस लड़े. फिर धीरे-धीरे नेता, एक्टर्स और कॉरपोरेट दिग्गज भी उनके क्लाइंट बन गए. रोहतगी के बारे में कहा जाता है कि उनका कॉन्फिडेंस काफी आला दर्जे का है. वो कुछ मिनटों के ब्रीफ पर कोर्ट में घंटों बहस कर सकते हैं.

वाजपेयी सरकार में ASG बने

साल 1999 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने मुकुल रोहतगी को एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बनाया. रोहतगी ने वाजपेयी सरकार के साथ पूरे 5 साल काम किया. इस तरह उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी एक अलग जगह बना ली. साल 2002 में गुजरात में दंगे हुए. दंगों से जुड़े मामलों में रोहतगी ने राज्य की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार का बचाव किया था. इससे वो तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के भी करीबी बने. रोहतगी खुद कबूल चुके हैं कि उनके सरकार के साथ अच्छे रिश्ते हैं. रोहतगी की दोस्ती पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ भी काफी अच्छी थी.

साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. सरकार बनते ही जून में उन्हें देश का 14वां अटॉर्नी जनरल बना दिया गया. उन्होंने पूर्व अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती की जगह ली थी. वाहनवती ने केंद्र में सरकार बदलने के साथ ही पद से इस्तीफा दे दिया था. अक्सर ऐसा ही होता है कि सरकार बदलने पर अटॉर्नी जनरल भी इस्तीफा दे देते हैं.

एक करोड़ से भी ज्यादा फीस

पिछले 10 सालों को देखें तो सुप्रीम कोर्ट में आए लगभग सभी बड़े और चर्चित मामलों में मुकुल रोहतगी मौजूद रहे हैं. कहा जाता है कि रोहतगी कोर्ट रूम में अपने विपक्षी पर हावी रहते हैं और उन्हें चुप तक करा देते हैं. जब सामने वाला विरोध दर्ज कराता है तो वे तुरंत कह देते हैं, "ये मेरा नॉर्मल तरीका है. जोर से बोलने का मतलब आपका अपमान करना नहीं है." हालांकि, कोर्ट रूम के बाहर वो काफी शांत माने जाते हैं. रोहतगी देश के सबसे महंगे वकीलों में एक हैं. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि रोहतगी एक केस के लिए एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा की फीस लेते हैं.

मुकुल रोहतगी (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

रोहतगी उन वकीलों में हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो जिस केस में खड़े हो गए वहां फैसला उनके हक में होना तय है. हालांकि, एक व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर सफल ही हो, ऐसा नहीं होता. साल 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को लेकर साल भर न्यायपालिका और सरकार के बीच चली लड़ाई को रोहतगी की सबसे बड़ी हार कहा जा सकता है.

जून 2017 में उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए अटॉर्नी जनरल के पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, उनके इस्तीफे के बाद कई अटकलें लगीं कि सरकार के साथ कुछ मसलों पर उनका तालमेल बिगड़ा है. लेकिन वो महज अटकलें ही थीं. इस्तीफे के तुरंत बाद ही उन्होंने प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. उनके इस्तीफे के बाद केके वेणुगोपाल ने पद संभाला था.

एक नजर मुकुल रोहतगी के बड़े मामलों पर

# रोहतगी साल 2018 में जज लोया की मौत मामले में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए थे. अप्रैल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत की जांच पर रोक लगा दी थी. इस फैसले की रोहतगी ने बहुत तारीफ की थी. इकनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, इस केस में सरकार की तरफ से पेश होने के लिए उन्होंने लगभग सवा करोड़ रुपये की फीस ली थी.

# मुकुल रोहतगी ने अपने करियर के दौरान कोर्ट में भ्रष्टाचार के मामलों में कई नेताओं का बचाव किया है. उन्होंने कॉमनवेल्थ घोटाले और 2जी केस के आरोपियों की अदालत में पैरवी की है. तमिलनाडु की पूर्व सीएम दिवंगत जयललिता के खिलाफ जब भ्रष्टाचार का मामला कोर्ट पहुंचा, तो मुकुल रोहतगी उनके बचाव में कोर्ट में खड़े हुए थे.

# उद्योगपति अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी के बीच हुई कानूनी तकरार में अनिल अंबानी की तरफ से मुकेश रोहतगी पेश हुए थे. वहीं मुकेश अंबानी की ओर से उनके सामने देश के एक और बड़े वकील हरीश साल्वे खड़े हुए थे.

# पिछले साल रोहतगी दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में पेश हुए थे. मामला था उनकी नियुक्ति का. एक जनहित याचिका में अस्थाना की नियुक्ति को नियम के खिलाफ और गलत बताया गया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और राकेश अस्थाना की नियुक्ति को सही ठहराया था.

राज्यों में संवैधानिक संकट में पैरवी

इन मामलों के अलावा कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड सहित जिन राज्यों में सरकार बनाने या गिरने की स्थिति बनी, रोहतगी ने हमेशा केंद्र या राज्य सरकारों की पैरवी की है.

UPA सरकार के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 में रोहतगी को नेशनल लॉ डे अवार्ड से सम्मानित किया था. मुकुल रोहतगी कई जगहों पर बता चुके हैं कि वो महंगी और लग्जरी कारों का शौक रखते हैं. उनके पास बेंटले और BMW जैसी कार हैं. उन्होंने कई मौकों पर खुलकर कहा है कि उन्हें दुनिया घूमने और महंगे होटल में रहना पसंद है.

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