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योगी आदित्यनाथ के ये चाचा न होते, तो वो सीएम न बनते

जानिए, क्यों हज़ारों संन्यासियों में आदित्यनाथ को ही उन्होंने अपना उत्तराधिकारी चुना.

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22 साल के अजय सिंह बिष्ट 1994 में दीक्षा लेते हुए. बाएं से दूसरे हैं उनके गुरू महंत अवैद्यनाथ. दूसरी तस्वीर में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के पद की शपथ ले रहे हैं. (फोटोःट्विटर/रॉयटर्स)
अजय सिंह बिष्ट. योगी आदित्यनाथ बने. वाया गोरखनाथ पीठ. मगर इस पीठ में तो हजारों संन्यासी हैं. फिर महंत अवैद्यनाथ ने आदित्यनाथ को ही अपना उत्तराधिकारी क्यों चुना. पहले मठ की गद्दी का वारिस बनाया और फिर चार साल में ही लोकसभा की अपनी सीट दे दी. ये सिर्फ योग्य युवा के पक्ष में लिया फैसला था या इसमें रिश्तेदारी का भी एंगल था.
शुरुआत करते हैं 23 साल पीछे से. साल 1994. ऋषिकेश का ललित मोहन शर्मा पीजी कॉलेज. यहीं पर मैथ्स में एमएससी कर रहे थे अजय. साथ में पिता आनंद सिंह का ट्रांसपोर्ट का काम भी संभाल रहे थे. साल 1986 में वन विभाग की नौकरी छोड़ने के बाद आनंद ने तीन बसें और एक ट्रक बना लिया था. सब ठीक चल रहा था. लेकिन फिर पिता को अजय की खोज खबर मिलनी बंद हो गई. कुछ महीनों बाद पता चला कि अजय गोरखपुर में है. और अब वह अजय नहीं रहा. योगी बन गया है. और उसे योगी बनाया है महंत अवैद्यनाथ ने. जो खुद आनंद के ममेरे भाई थे.
 
महंत अवैद्यनाथ
महंत अवैद्यनाथ


 
अजय से पहले कृपाल की कहानी
महंत अवैद्यनाथ. बचपन का नाम कृपाल सिंह बिष्ट. जन्म 28 मई, 1921. माता-पिता का जल्दी देहांत हो गया. और फिर कृपाल ने घर छोड़ दिया. घर जो गांव में था. कांदी नाम था गांव का. गांव ने कृपाल को याद किया. उसके जाने के दशकों बाद. अपने स्वार्थ के लिए. क्योंकि कांदी का कृपाल अब महंत अवैद्यनाथ बन गया था. माननीय विधायक, मणिराम विधानसभा. गांव वाले पहुंच गए और अपने यहां पानी की खराब स्थिति का रोना रोने लगे. महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें 40 हजार रुपये की मदद दी. इसके बाद अवैद्यनाथ का अपने गांव और इलाके से नए सिरे से संबंध बना.
कृपाल का अजय कनेक्शन
कांदी के पास ही था पंचूर गांव. जहां रहते थे आनंद सिंह बिष्ट. आदित्यनाथ के पिता. जो रिश्ते में अवैद्यनाथ के मामा के लड़के थे. और सरल ढंग से समझें. आनंद सिंह के पिता यानी आदित्यनाथ के बाबा की बहन के बेटे थे अवैद्यनाथ. उस हिसाब से गोरखपुर के महंत अजय सिंह बिष्ट के चाचा हुए. और इन्हीं महंत चाचा के संसर्ग में अजय सिंह बिष्ट आए ग्रेजुएशन के दिनों में. और फिर पीजी अधूरा छोड़ उनके पास चले गए. उसी साल अवैद्यनाथ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
 
सरकार ने महंत अवैद्यनाथ पर 2015 में डाक टिकट जारी किया था
सरकार ने महंत अवैद्यनाथ पर 2015 में डाक टिकट जारी किया था


 
ये सब अचानक नहीं हुआ. नब्बे के दशक की शुरुआत में अवैद्यनाथ अपनी हिंदू महासभा वाली टेक छोड़ बीजेपी में आ चुके थे. बीजेपी ने भी उन्हें राम जन्मभूमि का एक अहम चेहरा बनाने से गुरेज नहीं किया. नतीजतन 1989 में वह हिंदू महासभा से गोरखपुर सांसद बने, मगर दो ही साल बाद 1991 में बीजेपी के टिकट पर चुने गए. इस दौरान वह देश के कई इलाकों में प्रवचन और मंदिर आंदोलन के प्रचार के लिए जाते. उत्तराखंड में उनके कई कार्यक्रम चलते. जाहिर सी वजहों से. और इन्हें पर्दे के पीछे से संघ करवाता. उन दिनों ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे अजय सिंह बिष्ट इन सबमें खूब सक्रिय रहते. और यहीं से उनका महंत चाचा से स्नेह बढ़ता गया. अवैद्यनाथ को भी उनमें अपना वारिस नजर आया.
संन्यास के फौरन बाद महंत ने अजय से लगातार कहा. अपने माता-पिता को खत लिखकर संन्यास के बारे में सूचित करो. पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. चिट्ठी लिखते, मगर पोस्ट नहीं करते. लेकिन आनंद सिंह और उनकी पत्नी सावित्री देवी को इस बारे में पता चल गया था. वह मठ पहुंचे. महंत से मिले. बेटे को देखा और लौट आए. और फिर लौटकर आज तक नहीं गए हैं. बेटे से मिलते तो अभी भी हैं, मगर दिल्ली वगैरह में. मठ नहीं जाते. उधर अजय भी संन्यासी बनने के चार साल बाद घर लौटे. मगर संन्यास के ही एक विधान के कारण.
 
22 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने महंत अवैद्यनाथ की मूर्ति का अनावरण किया. साथ में हैं योगी आदित्यनाथ. (फोटोःनरेंद्र मोदी डॉट इन)
22 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने महंत अवैद्यनाथ की मूर्ति का अनावरण किया. साथ में हैं योगी आदित्यनाथ. (फोटोःनरेंद्र मोदी डॉट इन)


 
बेटा रोया, मां रोई
आदित्याथ को लौटकर घर आना था. संन्यासी बनने की एक जरूरी प्रक्रिया के पालन के लिए. जिसके तहत किसी भी संन्यासी को भिक्षुक बनने पर अपनी माता से पहली भिक्षा मांगनी पड़ती है. तभी उसका संन्यास सही मायनों में शुरू माना जाता है. और ये हुआ साल 1998 में. तब तक योगी आदित्यनाथ सांसद बन चुके थे. वह घर आए. साथ में उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ थे. माता ने भिक्षा दी. फल, चावल और रुपए. और फिर जोर-जोर से रोनी लगीं. योगी भी रोने लगे. ये सब ब्यौरे उनकी बहन शशी ने एक मैगजीन से बात करते हुए बताए. उनके मुताबिक इसके बाद सब बदल गया. अब उनसे बड़े भाई बहन भी उन्हें महाराज जी कहते हैं. सब उनके पैर छूते हैं. बस माता-पिता को छोड़कर.
योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने की अंदर की कहानी यहां देखेंः



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