‘कामीक़ाज़ी’ के अलावा आपने वो स्टोरी तो सुनी ही होगी, जिसमें बर्मा में अंग्रेज़ी सैनिक जापानियों से लाउडस्पीकर्स में कहते रहे आत्मसमर्पण कर दो, लेकिन जापान इंपीरियल आर्मी के सैनिकों ने आत्मसमर्पण करने के बजाय मगरमच्छ वाले दलदल में शरण लेना बेहतर समझा. इसके चलते मगरमच्छों के हमले से इतने जापानी सैनिक मरे कि ये किस्सा गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज़ हो गया. अगर आपने ये किस्सा नहीं सुना तो ये रहा स्टोरी का लिंक: मगरमच्छों का 'नर्क' जिसने 980 सैनिकों को मारने का गिनीज़ रिकॉर्ड बनाया
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लब्बोलुआब ये कि जापानी सैनिक आत्मसमर्पण और आत्महत्या में से दूसरे विकल्प को चुनने के लिए विख्यात थे. लेकिन हमारी स्टोरी के नायक के पास आत्महत्या का भी विकल्प नहीं था.
हिरो ओनोडा. 19 मार्च, 1922 को जन्मे हिरो 18 साल की उम्र में जापान इंपीरियल आर्मी में भर्ती हुए. और प्रमोशन पाते हुए, इंटेलिजेंस ऑफ़िसर बन गए. इंटेलिजेंस ऑफ़िसर मतलब आर्मी और स्पाई के बीच का कुछ. इस दौरान उनकी ट्रेनिंग हुई, एक स्पेशल एकेडमी में. नाम था नकानोस्कूल. यहां उन्हें गुरिल्ला युद्ध लड़ने और विकट परिस्थितियों के दौरान ज़िंदा रहने की तकनीक सिखाई गई. हालांकि हिरो की ज़िंदगी में आगे ऐसी विकट परिस्थिति आने वाली थी कि कोई भी ट्रेनिंग, कोई भी मॉक-ड्रिल उनके लिए पर्याप्त नहीं होती. एक ऐसी परिस्थिति जिसके बारे में सुनकर ही बेयर ग्रिल्स को पसीने आ जाएं.
तो, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, 26 दिसंबर 1944 को, हिरो और उसके कुछ साथियों को फ़िलिपींस के लुबांग द्वीप पर छोड़ दिया गया. अमेरिकी सेना से लड़ने के वास्ते, जो कभी भी उस द्वीप पर उतर सकती थी. लेकिन लुबांग पर लैंड करने के पहले उनके कमांडर ने हिरो और उनके साथियों से कहा-
ये तो हमें पता है तुम सरेंडर नहीं करोगे, लेकिन तुम्हें सुसाइड भी नहीं करना है. हम तुम्हें लेने आएंगे, दस दिन बाद, एक साल बाद, पांच साल बाद, हम आएंगे. तब तक तुमको युद्ध में लगे रहना है, और छुपकर रहना है. जानकरियां इकट्ठी करते रहनी हैं.

# उनके लिए युद्ध ख़त्म नहीं हुआ था द्वीप पर उतरने के बाद ये सैनिक, पहले से ही बंकर बनाकर बैठी जापानी सैनिकों की दूसरी टुकड़ी से जा मिले. जैसी आशंका थी, कुछ ही दिनों बाद अमेरिकी आर्मी ने जापानी सेना पर हमला बोल दिया. चार दिनों तक चली इस लड़ाई में पहले तो इस टुकड़ी ने अमेरिकन आर्मी के साथ जमकर युद्ध लड़ा, लेकिन फिर अपना पलड़ा हल्का देख, ये टुकड़ी तीन-चार लोगों के ग्रुप में बंट गए. क्यूंकि ‘ऑर्डर इज़ ऑर्डर’, न आत्महत्या करनी थी न सरेंडर. हिरो ओनोडा अपने चार लोगों के ग्रुप में सबसे सीनियर थे. उनके ग्रुप के अन्य तीन साथी थे: किंशिची कोज़ुका, यूची अकाटसू और शोईची शिमाडा.
कुछ महीनों बाद, हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिरा दिए गए. इसके बाद 15 अगस्त, 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण की बात की और 02 सितंबर, 1945 को आधिकारिक रूप से जापान का आत्मसमर्पण हुआ. यूं द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था.

लेकिन ये इंटरनेट और स्मार्टफोन का दौर नहीं था. टीवी तो छोड़िए रेडियो भी इक्का दुक्का लोगों के पास थे. और जहां हिरो और उनके साथी फ़ंसे पड़े थे, वो एक गरीब देश का जंगली इलाक़ा था. यूं अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि वहां ख़बर पहुँचना दुरूह था. और वो भी तब, जब अव्वल तो आपको पता ही न हो कि किसी को ख़बर पहुँचाई भी जानी है. और तिस पर आप अभी-अभी युद्ध हारे हैं, तो आपके पास अपने देश में ही बहुत से अन्य काम हैं, करने के वास्ते. तो हिरो और उनके साथी 02 सितंबर, 1945 बीत जाने के बाद भी जंग लड़ते रहे. इस उम्मीद से कि आएगा, कोई आएगा, जापान से, जापानी सेना से, उन्हें वापस ले जाने. हालांकि ये भी एक मज़ेदार बात है कि दुनिया के कई कोनों में हारी हुई सेना की कई टुकड़ियाँ जानकारी के अभाव में या ज़िद के चलते आत्मसमर्पण नहीं कर रही थीं. ऐसे सैनिकों में सबसे ज़्यादा संख्या जापानियों की थी. इसलिए ही एक नया नाम रखा गया इन सैनिकों के वास्ते, ‘जापानी होल्डआउट’.
बहरहाल, ऐसा नहीं था कि दुनिया इन चारों को भूल गई थी. जब इनके वहां होने का पता चला तो लोकल पुलिस से लेकर फ़िलिपींस और जापान की सेना तक ने जंगलों में कई सर्च ऑपरेशन चलाए. लेकिन ये जंगल में और अंदर, और अंदर घुसते जाते. और ज़्यादा होस्टाइल होते जाते. कोई मनाने जाता तो उसका क़त्ल हो जाता. इनके लिए ऊपर से पैंफलेट फैंके गए, जिसमें लिखा होता-
युद्ध 15 अगस्त को ख़त्म हो चुका है. पहाड़ों से नीचे उतर जाओ.

मगर उसे पढ़कर इन्हें लगता कि ये दुश्मन सेना की चाल है. बाद में परिवार वालों के लिखे लैटर और उनकी तस्वीरें भी नीचे फेंकी गई. 1959 में एक बार हिरो के भाई ने भी हिरो से सरेंडर करने को बोला. मगर गोया इन चारों को अब किसी पर विश्वास नहीं था. अविश्वास के कई कारण भी थे. जैसे, जहां इन्होंने अपना ठिया बनाया था, वहां आसपास ही फ़िलिपींस का एयर फ़ोर्स ट्रेनिंग बेस था. जहां से धमाकों की आवाज़ें लगातर आती रहती थीं. इसके चलते भी इनका ये मानना मुश्किल था कि युद्ध ख़त्म हो गया है. दिक्कत ये भी थी कि हिरो या उस वक्त कोई भी जापानी सैनिक मान ही नहीं सकता था कि जापान सरेंडर भी कर सकता है. साथ ही उनके लिए किसी ऐसे बम की कल्पना करना जिससे पूरा शहर बर्बाद हो जाए, ऐसा ही था गोया गेब्रियल मार्ख़ेस के किसी नॉवेल का प्लॉट. कुछ लेटर्स जो हिरो को भेजे गए थे, या ऊपर से ड्रॉप किए गए. उनमें कुछ अशुद्धियाँ थीं. जैसे एक लेटर में नाम ‘हिरो ओनोडा’ के बजाय ‘ओनोडा सन’ लिखा गया था. इसके चलते भी शक बढ़ता गया और, ‘जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया है’, इस बात पर इनका विश्वास घटता गया. # हिरो या हीरो? ये चारों जंगली केले और नारियल खाकर ज़िंदा रहते थे. कभी-कभी नज़दीक के गांव में हमला कर देते. वहां की फसलों को चुराने के वास्ते या फिर ऐसे ही. दुश्मन देश की सेना से लड़ना जो था. इसी दौरान जब वो गांव वालों से भिड़ रहे थे, उन्हें गांव के लोगों ने भी बताया कि जंग ख़त्म हो चुकी है, अब तुम भी आत्मसमर्पण कर दो. लेकिन हर बार की तरह उन्होंने गांव वालों की इस बात को भी अनसुना कर दिया. बल्कि इसके बाद ये चारों, गांववालों को और भी शक की नज़र से देखने लगे. उनपर हमले भी बढ़ा दिए. ऐसे ही एक हमले के दौरान जब इनका एक साथी किंशिची कोज़ुका अनाज जलाने के लिए गांव में गए तो पुलिसवालों की बमबारी का शिकार बने और मारे गए. ये बात जंग ख़त्म होने के 27 साल बाद 1972 की थी.

दरअसल किंशिची कोज़ुका हिरो से बिछड़ने वाले तीसरे और अंतिम सैनिक थे. दो साथी तो कबके बिछड़ चुके थे. सबसे पहले यूची अकाटसू ने फ़िलिपींस की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया. वो बाकी तीन लोगों से बिछड़ गए थे. ये 1949 की बात थी. इसके बाद बाकी के तीनों और अधिक सचेत हो गए. कुछ गांववालों से भिड़ंत के दौरान दूसरे साथी कोर्परल शोईची शिमाडा के पांव में गोली लगी, लेकिन हिरो ने उनका ऑपरेशन करके उन्हें स्वस्थ कर दिया. पर फिर भी शोईची ज़्यादा समय तक ज़िंदा न रह सके, और फिर से पुलिस की गोलियों का शिकार बने. 1954 में.
अब हिरो जंगल में अकेले बचे थे. वही पुरानी हो चुकी आर्मी ड्रेस पहने हुए. दशकों बीते. इस दौरान कई बार गांववालों और लोकल पुलिस से सामना हुआ, कुछ को हिरो ने मार डाला, कुछ से ख़ुद बचकर निकलने में कामयाब रहे. और रहे कहां? एक गुफा में. यही वो गुफा थी, जहां पर शोईची शिमाडा के पांव से गोली भी निकाली थी.

# येती, पांडा और हिरो- नोरियो सुज़ुकी. एक कॉलेज ड्रॉपआउट जापानी नागरिक. वर्ल्ड टूर पर निकले. एक उद्देश्य के साथ. कि तीन चीज़ों को खोजना है: येती को (बर्फ़ में रहने वाला एक बड़े आकार का मानव या स्नोमैन), पांडा को और हिरो ओनोडा को. उनकी लिस्ट में सबसे टॉप पर हिरो ही थे. मुलाक़ात भी हो गई.
जहां इस मुलाक़ात के साथ एक अच्छी बात ये हुई कि इस दौरान हिरो ने सुज़ुकी को मारा नहीं, वहीं बुरी बात ये हुई कि हिरो ने अबकी भी आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया. हालांकि अब उन्हें काफ़ी हद तक लगने लगा था कि वाक़ई में जापान ने आत्मसमर्पण किया है. सुज़ुकी ने उनसे पूछा कि तुम ही बता दो क्या किया जाए कि तुम आत्मसमर्पण कर दो. हिरो ने कहा कि जब उनके कोई सीनियर ऑफ़िसर उन्हें आदेश देंगे, तभी वो आत्मसमर्पण करेंगे. क्यूंकि शुरुआत में शर्त यही थी, बात यही तय हुई थी और ऑर्डर भी यही थे. कि जंग कितनी भी लंबी चले, हम आएंगे तुम्हें लेने.

सुज़ुकी वापस जापान आए और हिरो के सीनियर्स की खोज में लग गए. एक सीनियर मिल भी गए. मेजर तानीगुची. तानीगुची अब रिटायर हो चुके थे और किताबों की दुकान चलाते थे. वो फ़िलिपींस चलने को राज़ी हो गए. हिरो जब अपने सीनियर से मिले और पूरी घटनाओं को सुना तो वो समर्पण करने को राज़ी हो गए. लेकिन उससे पहले वो खूब रोए. उन्होंने बताया भी बाद में कि-
30 सालों तक मैं रोज़ अपनी राइफ़ल चमकाता था. किस चीज़ के लिए? मैं अब अपने को कोसता हूँ. 30 सालों तक मैं सोचता रहा कि मैं देश के लिए कुछ कर रहा हूँ. लेकिन अब लगता है कि मैं कई लोगों के वास्ते परेशानी का सबब बना रहा.फिर आया आज से ठीक 47 साल पहले का दिन, 09 मार्च, 1974. इस दिन हिरो ने फ़िलिपींस के तत्कालीन राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. हालांकि हिरो ने कम से कम 9 और अधिक से अधिक 30 फ़िलिपीनोज़ को क़त्ल किया था लेकिन फर्डिनेंड ने उन्हें अभयदान दे दिया. ये कहकर कि हिरो के अनुसार, ‘वो एक युद्ध लड़ रहे थे. हिरो की वो समुराई तलवार भी वापस कर दी, जो उन्होंने आत्मसमर्पण के दौरान प्रधानमंत्री को दी थी. इसके अलावा इंटेलिजेंस ऑफ़िसर सेकेंड ल्यूटिनेंट हिरो ओनोडा के पास .25 कैलेबर राइफ़ल, 500 राउंड गोलियां और कुछ हैंड ग्रेनेड भी मिले थे. # ये वो सहर तो न थी हिरो को जापान वापस लाया गया. जंग में गए 22 साल के हिरो अब 51 साल के हीरो बनकर लौटे थे. जब जापान पहुंचे तो मीडिया सेंसेशन बन गए. नेशनल फ़िगर. अर्बन लीजेंड. हर जगह उन्हीं के चर्चे थे. जापान की सरकार ने पिछले तीन दशकों की पूरी तनख़्वाह भी उन्हें दी थी. कई लोगों और संस्थाओं ने उन्हें ढेरों पुरस्कार और पैसे दिए. इस सब में से हिरो ने कुछ हिस्सा फ़िलिपींस के लुबांग द्वीप के उस गांव को दान कर दिया, जिसके आसपास के जंगल में वो रहते थे. बाकी हिस्सा भी जापान की कई चेरिटेबल संस्थाओं और यासुकुनी श्राईन को दे दिया.

लेकिन इस बदले हुए जापान को देखकर हिरो थोड़ी हताश हुए. अगर फ़ैज़ को सुना होता तो ज़रूर कहते-
ये वो सहर तो न थी.इसके अलावा सर्वाइवल इंस्टिंक्ट के बादशाह के लिए, हर सुविधा आ चुकने के बावज़ूद, जापान की तेज़ ज़िंदगी में सर्वाइव करना मुश्किल हो रहा था. वो ब्राज़ील चले गए. वहां की जापानी कम्यूनिटी के साथ रहने लगे. एक लड़की से शादी की, जो उन्हें नए जापान के नए तौर तरीक़े सिखाती. वहां हिरो खेती-बाड़ी करने लगे. ये ज़िंदगी फिर भी एक शांत ज़िंदगी थी. एक किताब लिखी: नो सरेंडर. ये किताब बेस्ट सेलर बन गई थी. लेकिन फिर एक दिन उन्होंने ख़बर पढ़ी कि जापान के एक 13 साल के बच्चे ने अपने पिता पर चाकू से वार कर दिया. तब उन्हें लगा कि आजकल के बच्चे बहुत ज़ल्दी टूट जा रहे हैं, हार जा रहे हैं. वापस जापान गए और वहां बच्चों को सर्वाइवल टेक्निक्स सिखाने लगे. इसमें वो पारंगत थे. 1996 में वो फ़िलिपींस के लुबांग द्वीप भी वापस लौटे. वहां के नागरिकों से क्षमा याचना करने. 17 जनवरी, 2014 को 91 वर्ष की उम्र में हार्ट फ़ेलियर के चलते उनका देहांत हो गया.

उधर हिरो को खोज चुकने के बाद सुज़ुकी ने पांडा को भी खोज लिया था, लेकिन 1986 में येती को खोजने के दौरान एक एवलांच के नीचे दबकर मारे गए.