चंगेज खान. ये नाम किसी पहचान का मोहताज़ नहीं. दुनिया के सबसे खूंखार सम्राटों में से एक जिसने अपने वक्त में दुनिया की 11 % आबादी का खात्मा कर दिया था. चीन के लोग उसे जंगली कहते थे तो यूरोप वाले शैतान. उसने हालांकि किसी में फर्क न किया. जो रास्ते में आया काट डाला गया. मंगोलिया के पठारों में रहने वाला एक कबीलाई लड़का दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य का मालिक कैसे बन गया. ऐसा क्या था उसमें कि सभ्यता की दुहाई देने वाले चीन और पर्शिया उसके सामने टिक नहीं पाए. और ऐसा कैसे हुआ कि दुनिया के डेढ़ करोड़ लोगों में उसका डीएनए मिलता है. (Genghis Khan)
चंगेज खान की कब्र तक जो पहुंचा, मारा क्यों गया?
चंगेज़ खान की कब्र का राज 900 साल बाद भी क्यों नहीं खुल पाया?
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कहानी चंगेज खान की. हालांकि इस कहानी की शुरुआत चंगेज खान से नहीं होती. कहानी शुरू होती है तिमुचिन से (Temüjin). तिमुचिन मंगोलिया के एक कबीले में पैदा हुआ था. तब मंगोलिया में कोई एक साम्राज्य नहीं था. अलग अलग कबीले थे जो आपस में लड़ते मरते रहते थे. इसी लड़ाई के चक्कर में तिमुचिन के पिता ही हत्या हो गई. तिमुचिन का एक सौतेला भाई था. परिवार की कमान संभालने के लिए दोनों भाइयों में तनातनी हुई और तिमुचिन ने भाई को मार डाला. कहानी कहती है कि एक रोज़ शिकार के बाद तिमुचिन का भाई मछली लेकर भाग गया.तिमुचिन को आया गुस्सा. और उसने भी भाई की पीठ पर तीर चला दिया. कहानियां और भी हैं. और होना लाजमी भी है, चूंकि यहां बात हो रही है 12 वीं सदी की. कहा जाता है कि तिमुचिन जब पैदा हुआ उसके हाथ में मांस का एक लोथड़ा था. (Mongol Empire)
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कबीलाई परंपरा में इसका मतलब था कि ये बच्चा एक दिन दुनिया पर राज करेगा. हालांकि दुनिया पर राज करने के लिए जरुरत होती है सेना की. इसके लिए तिमुचिन ने तमाम कबीलों को एक किया. उनमें आपसी रिश्ते जोड़े. कई बार विरोध हुआ. सालों तक कबीलों के बीच आपसी लड़ाई हुई. फिर साल 1206 में तय हुआ कि कबीले आपस में सुलह करेंगे. मंगोलियाई सरदारों ने एक मिलिट्री काउंसिल बुलाई. इस काउंसिल में तिमुचिन को तमाम मंगोलों का सरदार घोषित किया गया. मंगोलों के इतिहास की किताब के अनुसार, 'ओनोंन नदी के किनारे सफेद झंडे के नीचे मंगोलों ने तिमुचिन को कैगन के ख़िताब से नवाज़ा'. (Mongol History)
यहीं से तिमुचिन को एक नया नाम मिला- चंगेज और कैगन आगे जाकर बन गया खान. इस तरह तिमुचिन चंगेज खान कहलाया, जिसका मतलब था, दुनिया का बादशाह. इस नाम को असलियत बनाने के लिए चंगेज खान ने अपने सैन्य मुहीम की शुरुआत की. पहला नंबर आया चीन का. वर्तमान में जिसे हम बीजिंग कहते हैं, तब झोंग्दु के नाम से जाना जाता था. झोंग्दु जिन साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था. और ग्रेट वाल ऑफ चाइना से पूरी तरह सुरक्षित था. बल्कि इसके निर्माण का एक महत्वपूर्ण कारण ये भी था कि चीन के लोग मंगोलियाई लोगों को जंगली समझते थे. और उनसे कोई कांटेक्ट नहीं रखना चाहते थे.
चंगेज खान अपनी सेना सहित ग्रेट वाल के के पास पहुंचा और सीज डाल दी. अन्दर जाने वाली रसद की सारी लाइनें काट दी गई. तीन साल बाद जब लोग भूखे मरने लगे, जिन सम्राट ने हथियार डाल दिए. चीन के बड़े हिस्से पर चंगेज खान का कब्ज़ा हो गया. अगला नंबर आया पर्शिया का. यहां चंगेज खान ने धीरज से काम लिया. उसने अपने कुछ जासूस भेजे. लेकिन उन्हें पकड़कर उनकी हत्या कर दी गई. इसके बाद चंगेज ने एक अधिकारिक राजदूत भेजा. कुछ रोज़ बाद राजदूत का कटा हुआ सिर उसके पास वापिस आया. चंगेज खान ने जंग का ऐलान कर दिया. साल 1219 में लड़ी गई इस जंग का जिक्र रॉबर्ट ग्रीन ने ‘जंग की तैंतीस रणनीतियां’ नाम की अपनी किताब में किया है. रॉबर्ट ग्रीन इसमें मंगोल सेना की रणनीति के बारे में बताते हैं.
शुरुआती युद्ध में मंगोल सेना हारती दिख रही थी. मंगोल सैनिक पीछे हटने लगे. ये देखकर दुश्मन अति आत्मविश्वास से भर गया. पर्शिया के शाह को उम्मीद थी कि चंगेज खान एक और बार हमला करेगा, ऐसा हुआ भी लेकिन चंगेज खान ने इस बार दूसरी तरफ से हमला किया. इस रास्ते में लम्बा रेगिस्तान पड़ता था. शाह को कतई उम्मीद नहीं थी कि मंगोल फौज रेगिस्तान को पार कर पाएगी. कुछ दिनों बाद उसे इस बात का अहसास हुआ लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. मंगोल फौज ने सिर्फ युद्ध ही नहीं जीता, अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को नेत्सोनाबूत कर डाला. यहां तक कि शहर के कुत्ते भी मार डाले. इस तरह युद्ध करते हुई उसकी सेना यूरोप में पोलेंड और यूक्रेन तक पहुंच गई.
साल 1223 तक चंगेज खान क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य का मालिक बन गया. उसकी सेना अति क्रूर थी. इसमें कोई शक नहीं लेकिन फिर भी सवाल बनता है कि बंजारों की एक फौज दुनिया की बड़ी-बड़ी सम्भ्यताओं पर भारी कैसे पड़ गई. इस सवाल का जवाब मंगोलों की युद्ध नीति में छुपा था.
पहली बात- चंगेज खान ने अपनी सेना को मेरिट के आधार पर तैयार किया था. जबकि उसके दुश्मन अक्सर अपने खासमखासों और परिवार वालों को सेना में ऊंचे ओहदे पर रखते थे.
दूसरा कारण - चंगेज खान खुद एक कबीलाई धर्म मानता था जिसमें आसमान की पूजा की जाती थी. लेकिन उसने कभी किसी और धर्म पर रोक टोक नहीं लगाई. इसलिए सभी धर्म के लोग उसकी सेना में शामिल थे.
तीसरा कारण थे उसके घोड़े. मंगोल हल्के बख्तर वाले घोड़ों में चलते थे. जिसकी वजह से उनकी रफ़्तार तेज़ होती थी. मंगोल सैनिक युद्ध करते हुए सिर्फ अपने पैरों से घोड़ों को नियंत्रित करते थे. इस तरह उनके हाथ एकदम फ्री रहते थे, जिनसे वो दौड़ते-दौड़ते तीर कमान का इस्तेमाल करते. एक खास बात ये भी थी कि चंगेज खान की सेना कभी भारी भरकम कारवां के साथ नहीं चलती थी. चंगेज खान खुद साधारण टेंट में रहता था. यहां तक कि मंगोल सेना के पास राशन भी बहुत कम रहता था. मुश्किल आने पर वो बूढ़े, जख्मी और बीमार घोड़ों को मारकर खा लेते थे.
चंगेज खान की जीत का एक कारण और भी था. उसके सैनिकों की निष्ठा. एक किस्सा है. एक बार जब चंगेज खान कबीलों को एक करने के लिए एक युद्ध लड़ रहा था. दुश्मन का एक तीर आकर उसके गले में लगा. सेनापतियों ने ये बात फौज से छुपा दी. कहा गया कि तीर उसके घोड़े को लगा है. युद्ध ख़त्म होने के बाद चंगेज खान ने तीर मारने वाले योद्धा को बुलाया. उसने चंगेज खान से कहा
“मैंने जानता हूं, मेरा तीर आपके गले में लगा था, घोड़े को नहीं. आप चाहें तो मुझे मृत्युदंड दे सकते हैं. लेकिन अगर आप मानते हैं कि मैं सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहा था, मैं आपकी सेवा करने के लिए तैयार हूं.”
कहानी कहती है कि चंगेज खान ने उस योद्धा को माफ़ किया और अपनी सेना में शामिल कर लिया. चंगेज खान के बारे में एक और बात कही जाती है कि वो शहर के शहर नष्ट कर डालता था. इसके भी दो कारण थे.
-पहला - वो अपने साथ युद्ध बंदी नहीं रखना चाहता था. क्योंकि इससे उसकी सेना की स्पीड कम होती थी.
-दूसरा कारण ये था कि शहर वासी मंगोलों को जंगली समझते थे. और इस कारण वो शहरों से नफरत करता था. यहां तक कि उसके शासन काल में कभी बड़े-बड़े शहरों का निर्माण नहीं हुआ. इसमें एक बात और जोड़ने लायक है कि दुश्मन सेना के जो लोग उसके आगे हथियार डाल देते, और यदि वो उन्हें लड़ने लायक समझता तो उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया करता था. ऐसे सैनिक विद्रोह न करें, इसके लिए वो उन्हें अलग-अलग गुटों में बांटकर अपने लॉयल सैनिकों से जोड़ देता था.
एक सवाल जो चंगेज खान के बारे में अक्सर पूछा जाता है, वो ये है कि उसने भारत पर आक्रमण क्यों नहीं किया. ये बात पूरी तरह सही नहीं है. साल 1221 से 1327 तक मंगोलों ने कई बार भारत पर आक्रमण किया लेकिन इसमें वो सफल नहीं रहे. खुद चंगेज खान के वक्त में उसका एक दुश्मन दिल्ली दरबार में पनाह लेने आया था. दिल्ली पर तब इल्तुतमिश का शासन था. उसने मंगोलों के डर से उनके दुश्मन को पनाह देने से इनकार कर दिया. इसके बाद मंगोल फौज लौट गई.
चंगेज खान से 25 साल तक साम्राज्य पर राज किया. मंगोल इतिहास की किताब द सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ मंगोल्स के अनुसार साल 1227 में एक युद्ध अभियान के दौरान घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गई थी. वहीं यूरोपियन यात्री मार्को पोलो के अनुसार वो इन्फेक्शन के कारण मरा था. 2021 में हुई एक स्टडी के अनुसार उसकी मौत संभवतः प्लेग के कारण हुई हुई थी?
इतनी अलग-अलग थियोरी क्यों?
दरअसल चंगेज खान की मौत को लेकर कुछ भी साफ़ नहीं है. इसका कारण ये है कि वो खुद नहीं चाहता था कि उसकी मौत के बाद लोग उसे याद करें. जीते जी उसने अपनी कोई तस्वीर नहीं बनने दी. और मरने से पहले उसने एक फरमान जारी किया कि उसकी कब्र का पता किसी को भी न चले. मंगोल लोक कथाओं के अनुसार जितने लोगों ने उसकी अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया था, उन सभी की हत्या कर दी गई ताकि उसकी कब्र न ढूंढी जा सके. मरने से पहले उसका आख़िरी बयान था, ‘मैं पूरी दुनिया फतह करना चाहता था. लेकिन एक उम्र इसके लिए बहुत कम है’ (Genghis Khan hidden tomb)
मरने के बाद उसके साम्राज्य का क्या हुआ?
वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है की पूर्व मंगोलिया में एक बड़ी जनसंख्या का DNA चंगेज खान से मिलता है. लगभग 8 प्रतिशत पुरुषों की संख्या में वाई क्रोमोज़ोम के अंदर एक ऐसा निशान मौजूद है जिससे पता चलता है कि वो चंगेज खान के ख़ानदान से संबंध रखते हैं. कुल मिलाकर पूरी दुनिया में 1 करोड़ 60 लाख लोग ऐसे हैं जिनके DNA में चंगेज खान का कुछ न कुछ हिस्सा जरुर है. पाकिस्तान में हज़ारा क़बीले के लोगों के DNA में ऐसे निशान मिले हैं. ये लोग भी ख़ुद को मंगोल ही कहते हैं. (Genghis Khan: 16 million descendants)
चंगेज़ ख़ान ने ख़ुद दर्जनों शादियां कीं और उनके बेटों की तादाद 200 बताई जाती है. उसके कई बेटों ने आगे जाकर अपनी हुकूमतें कायम कीं और साथ ही साथ विशाल हरम रखे जहां उनके बड़ी तादाद में बेटे पैदा हुए. तत्कालीन इतिहासकार अता मलिक जुवायनी अपनी किताब 'तारीख़-ए-जहांगुशा' में लिखते हैं,
“चंगेज़ खान के ख़ानदान के 20 हज़ार लोग ऐशो आराम की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. मैं ज्यादा नहीं कहूंगा क्योंकि ऐसा न हो कि इस किताब के पाठक मुझ झूठ फैलाने का आरोप लगा दें और ये कहना शुरू कर दें कि इतने कम समय में एक शख़्स की इतनी अधिक संतानें कैसे पैदा हो सकती हैं?”
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