आज 26 फरवरी है. और इस तारीख़ का ताल्लुक़ है, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से. 9/11 वाला नहीं. उससे पहले वाला. जिसके कुछ तार 9/11 से भी जुड़े थे और जिसमें 6 लोग मारे गए थे.
अमेरिका की न्यूयॉर्क सिटी के सबसे पॉश इलाक़ों में से एक है लोअर मैनहैटन. यहां पर हुआ करती थी 1973 में बनकर तैयार हुई, दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग्स में से एक ‘वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’. वैसे ‘वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ एक नहीं, सात बिल्डिंग्स का कंपाउंड था. इसके दो टावर सबसे ऊंचे थे. इसलिए ही उन्हें ट्विन टॉवर भी कहते थे. इन ट्वीट टॉवर्स में से एक कहलाता था नॉर्थ टॉवर और दूसरा साउथ टॉवर.
हम ‘वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ और इसके ट्विन टॉवर्स के बारे में हर चीज़ पास्ट टेंस में क्यूं कह रहे हैं, इसका कारण तो आप जानते ही होंगे. इसलिए, कि 11 सितंबर, 2001 को हुए एक कुख्यात आतंकवादी हमले में ये दोनों बिल्डिंग्स गिर गई थीं. लेकिन ये WTC पर हुआ पहला आतंकवादी हमला नहीं था. पहला हमला हुआ था आज से ठीक अट्ठाईस और 9/11 से क़रीब साढ़े आठ साल पहले.
तस्वीर 9/11 की है. लेकिन आगे जिस हमले की बात हम स्टोरी में करेंगे वो होगा इन टावर्स में 1993 में हुआ हमला.
01 सितंबर, 1992 को रामज़ी यूसुफ़ और अहमद अजाज नाम के दो आतंकवादी अमेरिका आए. फ़ेक पासपोर्ट के साथ. एक ही प्लेन में मगर अलग-अलग सीटों पर बैठकर. दोनों के फ़ेक पासपोर्ट अमेरिका एंट्री के वक्त ही पकड़ में आ गए. अहमद अजाज को तो जेल भेज दिया गया क्यूंकि उसके पास से कुछ संदिग्ध चीज़ें मिली थीं. लेकिन यूसुफ़ को जाने दिया गया और अगली सुनवाई में आने को कहा गया.
अफ़ग़ानिस्तान के अल क़ायदा ट्रेनिंग कैंप में आतंकवादी प्रशिक्षण ले चुके यूसुफ़ की योजना थी कि नॉर्थ टॉवर के निचले हिस्से को बम से उड़ा दिया जाएगा. फिर ये बिल्डिंग गिरते वक्त अपने साथ-साथ इस ट्विन टॉवर्स की दूसरी बिल्डिंग, ‘साउथ टॉवर’ को भी गिरा देगी.
मगर यूसुफ़, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को गिराना क्यूं चाहता था? क्यूंकि, जैसा उसने बाद में बताया कि, इन ट्विन टॉवर्स में बहुत से यहूदी काम करते थे. और वो उनसे बदला लेना चाहता था. क्यूंकि ये यहूदी फ़िलिस्तीन में मुस्लिमों पर अत्याचार कर रहे थे.
फ़िलिस्तीन और इसराइल का म’असला सालों पुराना है. जिसने लाखों लोगों को प्रभावित किया है.
अपने इस प्लान पर काम करते हुए उसने अमेरिका में रह रहे कुछ स्लीपर सेल्स से संपर्क किया. स्लीपर सेल्स बोले तो ऐसे आतंकवादी जो कई सालों तक शांत या अंडरग्राउंड रहते हैं, सामन्य जीवन बिताते हैं लेकिन जब किसी घटना को अंजाम देने का वक्त आता है तो तुरंत सक्रिय हो जाते हैं. स्लीपर सेल को किक स्टार्ट करने के साथ ही यूसुफ़ ने विस्फोट के लिए आवश्यक चीज़ें, जैसे यूरिया नाइट्रेट वग़ैरह इकट्ठा करना भी शुरू कर दिया.
जब सारी तैयारियां यूसुफ़ की संतुष्टि वाले लेवल को छू चुकीं, तो आया हमले का दिन. 26 फरवरी, 1993 को, यूसुफ़ अपने जॉर्डेनियन साथी, आयद इस्माइल के साथ एक ट्रक में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आया और उसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के बेसमेंट में पार्क कर दिया. ट्रक में विस्फोटक भरा हुआ था. यूसुफ़ ने इस विस्फोटक को एक्टिवेट किया और पैदल बाहर की ओर भाग गया. बारह मिनट बाद, दिन के बारह बजकर सत्रह मिनट पर विस्फोट हो गया. धमाके को सुनकर शुरुआत में लोगों को लगा कि शायद ट्रांसफ़ॉर्मर फटा है.
विस्फोट का धुआं दोनों टावरों की 93 वीं मंजिल तक पहुंच गया था. सीढ़ियों में धुएं के भरने के चलते लोगों का बाहर निकलना मुश्किल हो रहा था. पॉवर कट होने के चलते कई लोग लिफ्ट में फंस गए थे. हमले में कुल छह लोग मारे गए. इनमें से एक 7 माह की गर्भवती महिला भी थी. विस्फोट और भगदड़ के दौरान 1,000 से अधिक लोग घायल हुए.
वो 6 लोग, जो हमले में मारे गए.
हालांकि यूसुफ़ का प्लान टॉवर गिराने का था जो सफल नहीं हुआ लेकिन फिर भी विस्फोट बहुत नुक़सान कर गया. बाद की जांच से निष्कर्ष निकला कि यदि ट्रक को WTC की नींव के करीब पार्क किया गया होता, तो यूसुफ़ की योजना सफल हो जाती.
यूसुफ़ ने बाद में माना कि ये एक आतंकवादी घटना थी. लेकिन साथ में जोड़ा कि, अमेरिका द्वारा समर्थित इजरायल के आंतकवाद को उसी की भाषा में जवाब देना ज़रूरी है.
विस्फोट के कुछ घंटों बाद यूसुफ़ पाकिस्तान भाग गया था और फिर 7 फ़रवरी, 1995 को पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर में पकड़ा गया. 8 जनवरी, 1998 को अमेरिका की अदालत ने उसे 1993 के हमलों का दोषी मानते हुए 240 वर्षों की सज़ा सुनाई.
1993 के इस वर्ल्ड ट्रेड हमले में उसके साथ कुछ अन्य लोग भी शामिल थे. जैसे, महमूद अबूहलिमा, मुहम्मद सलमेह, निदाल अय्यद वग़ैरह. इन सभी को यूसुफ़ के चाचा खालिद शेख मोहम्मद, का समर्थन प्राप्त था. इस समर्थन का मेन पार्ट था ‘आर्थिक मदद’. इसके अलावा वो यूसुफ़ को हमले और उसकी तैयारी के दौरान भी फोन पर इन्स्ट्रक्शन देने में लगा था. बाद में खालिद शेख मोहम्मद, 9/11 हमले का मास्टरमाइंड बना.
विस्फोट के आस-पास का एरिया.
उधर ओसामा बिन लादेन इन इमारतों के न गिरने से दुखी था और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर एक और हमले का प्लान सोचने लगा. जो 9/11 के रूप में मूर्त हुआ. 9/11, जिसने पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया था. उस हमले की बात फिर कभी या फिर संभव हुआ तो 11 सितंबर की तारीख़ में. अभी के लिए विदा.