पुरानी बॉलीवुड फिल्मों में जब कोई बीमार होता था, तो अक्सर फैमली डॉक्टर एक बैग लेकर आया करते थे. तमाम फिल्मों में फैमली डॉक्टर इस आइकॉनिक बैग के साथ ही नजर आते. पर ये मेडिकल बैग और टूलकिट का चलन शुरू कब से हुआ? यही जानने के लिए साल 2016 में रिसर्च गेट में एक स्टडी छपी.
गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी से जुड़ी है पेड़ काटने वाली आरी की कहानी, ये सच दिमाग हिला देगा!
Chainsaw यानी वो आरी, जो बिजली से चलती है. इसका इस्तेमाल आज तो पेड़ और लकड़ी काटने के लिए ज्यादा किया जाता है. लेकिन इसके आविष्कार की कहानी ऑपरेशन करने वाले औजार से जुड़ी है, इसमें एक Nazi कनेक्शन भी है.
इस रिसर्च में जिक्र आता है, मिस्र के प्राचीन कोम ओम्बो (Kom Ombo) मंदिर का. जहां आज से करीब दो हजार साल पहले मेडिकल केयर सेंटर था, जिसकी दीवारों पर मेडिकल किट बनी दिखाई देती है, जहां चाकू, दांत चिमटी, हुक और सर्जरी करने वाले तमाम टूल दीवार पर उकेरे गए हैं.
माने सर्जरी में औजारों का सिलसिला पुराना है. प्राचीन औजारों को देखकर ही सर्जरी से इनके संबंध का अंदाजा लगाया जा सकता है. वहीं कुछ टूल ऐसे भी हैं, जिनका दूर-दूर तक सर्जरी से कोई लेना-देना मालूम नहीं पड़ता. लेकिन इनकी शुरुआत चिकित्सा से ही जुड़ी बताई जाती है. ऐसा ही एक टूल है, चेन-सॉ (Chainsaw). बिजली वगैरह से चलने वाली आरी.
घों-घों कर चलने वाली जिस आरी का इस्तेमाल अक्सर पेड़ और लकड़ी काटने में होता है, असल में इसका आविष्कार बच्चों के जन्म देने में मदद करने और सर्जरी से जुड़े टूल से जुड़ा बताया जाता है.
जब हड्डी काटकर बच्चे को जन्म दिया गयासाल 1777. अक्टूबर का महीना. 40 साल की मैडम सौचौट प्रेग्नेंट थीं. मगर रिकेट्स बीमारी की वजह से उनका पेल्विस (कूल्हे की हड्डी) संकरा था, इस वजह से उनकी ‘नॉर्मल डिलीवरी’ नहीं की जा सकती थी. इससे पहले, इसी वजह से वो चार बच्चों को जन्म से पहले ही खो चुकी थीं. डॉक्टर्स ने कहा कि बिना सिजेरियन सेक्शन (C-section) के बच्चा पैदा करना मुश्किल है. पर ऐसा करने में जान का खतरा था. सिजेरियन सेक्शन एक तरह का ऑपरेशन होता है.
लेकिन फिर एक फ्रेंच डॉक्टर जीन-रेने सिगॉल्ट (Jean-Rene Sigault) ने एक जोखिम भरा रास्ता अपनाया. सिगॉल्ट ने मैडम सौचौट की प्यूबिक जॉइंट (कूल्हे की हड्डी का जोड़) को काटकर बच्चे की डिलीवरी की. इस सर्जरी को आगे चलकर सिंफाइसियोटॉमी (symphysiotomy) नाम दिया गया. बच्चों की डिलीवरी के लिए इस सर्जरी का काफी इस्तेमाल होने लगा.
फिर करीब बीस साल बाद, साल 1785 में दो स्कॉटिश डॉक्टर - जॉन एटकेन और जेम्स जेफ्री - ने एक नया तरीका निकाला. उन्होंने एक तरह की फ्लेक्सिबल सॉ (flexible saw) बनाई. एक लचीली आरी, जो पेल्विक बोन को आसानी से और कम समय में हटा सके. इस बारे में जॉन अपनी किताब, ‘प्रिंसिपल्स ऑफ मिडविफेरी, ऑर पर्पेरल मेडिसिन’ (Principles Of Midwifery, Or Puerperal Medicine) में विस्तार से लिखते हैं.
उनके मुताबिक, जब हड्डी बढ़ने की वजह बच्चे को जन्म देने में दिक्कत होती थी, तब इस आरी का इस्तेमाल किया जाता था.
अब कहानी दस साल के एक बच्चे पर आती है, जो जर्मनी के वर्जबर्ग में अपने अंकल की वर्कशॉप में काम करता था. दरअसल, ये वर्कशॉप एक ऑर्थोपेडिक टेक्नीशियन यानी हड्डियों के उपकरणों का काम करने वाले की थी. जनाब का नाम था, जोहन जी हीन. और, अपने अंकल के साथ काम सीखने वाला दस साल का ये बच्चा था, बर्नार्ड हीन.
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टेक्निकल काम में तो बर्नार्ड का हाथ साफ था. लेकिन उसके पास कोई औपचारिक मेडिकल जानकारी नहीं थी. इसलिए बर्नार्ड ने लेक्चर अटेंड किए. 20 साल की उम्र में मेडिकल की पढ़ाई के लिए दुनिया घूमने निकले और वापस आकर मेडिसिन और सर्जरी की प्रैक्टिस शुरू की.
इस दौरान बर्नार्ड ने कई औजार बनाए. लेकिन एक जो काफी चर्चा में रहा वो था, चेन ऑस्टिओटोम (chain osteotome). ये डिजाइन आज की चेन सॉ से मिलता जुलता था, जो हड्डियों को आसानी और सफाई से काट सकता था.
एक फर्क है. ये मशीन हाथ से चलाई जाती थी, बजाय बिजली के. एक कुशल सर्जन इसे लेकर किसी चाकू से तेज और ज्यादा बेहतर तरीके से हड्डी को काट सकता था. इसके लिए सर्जन इसके हैंडल को हाथों से आगे-पीछे करता, और किसी आरी की तरह हड्डी को काटता.
इसमें आज की चेन सॉ की तरह दांत लगे रहते, जो एक चेन और घूमते गियर से जुड़े रहते थे. यह मरीजों के लिए भी वरदान जैसा था, क्योंकि उस समय अंगों के काटने की सर्जरी में सुन्न करने की दवा कम ही इस्तेमाल की जाती थी. हालांकि, सिंफाइसियोटोमी सर्जरी उस दौर में भी की जाती थीं. लेकिन चेन ऑस्टिओटोम का इस्तेमाल इसमें नहीं किया जाता था.
ऑपरेशन थिएटर से जंगल तकलेकिन चेन सॉ के इस बुनियादी ढांचे से पेड़ काटने तक का सफर लंबा था. शुरुआती डिजाइन बनाए गए. मगर वो न तो एक आदमी के बस के थे, न ही हाथ में लेकर चल सकने वाले. ये भारी-भरकम इंजन वगैरह से चलने वाली मशीनें थीं. लेकिन इनकी प्रेरणा बर्नार्ड की आरी से ही ली गई.
चेन सॉ का नाजी कनेक्शनफिर साल आता है 1926, जब जर्मन मेकैनिक एंड्रियास स्टिहल (Andreas Stihl) ने इसमें अपना योगदान दिया. स्टिहल के जर्मनी की नाजी पार्टी से जुड़े होने की बात भी कही जाती है. इन साहब ने लकड़ी काटने वाली पहली इलेक्ट्रिक चेन सॉ का पेटेंट करवाया. इनको 'Father of the chainsaw' (फादर ऑफ द चेन सॉ) के तौर पर भी जाना जाता है. माने इस आरी के जनक. फिर तीन साल बाद तेल से चलने वाला वर्जन भी बनाया. हालांकि इसे चलाना भी एक आदमी के बस की बात न थी.
फिर जाकर कभी 1950 के दशक के आस-पास आज की मॉर्डन चेन सॉ का रूप लेना शुरू करती है. जिसे एक आदमी चला सकता है. बाकी फिर आगे की कहानी आप जानते ही है. आज अकेले अमेरिका में हर साल करीब 30 लाख नई चेन सॉ बिकती हैं. अगर आप भी किसी ऐसे आविष्कार की कहानी जानते हैं, तो कमेंट्स में हमें बताएं.
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