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कारगिल में जब 'नींबू साहब' ने अपना जूता उतारा!

नागा फ़ौजी ने जब नंगे पांव पाक फ़ौज पर धावा बोला!

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कैप्टन नीकेजाको केंगुरुसे को उनकी वीरता और सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया (तस्वीर- Wikimedia/Indiatoday)

अंग्रेज़ी की एक कहावत है, जिसका हिंदी में तर्जुमा कुछ इस प्रकार है, अगर ज़िंदगी आपको नींबू दे, तो उस नींबू का शरबत बना लीजिए. कहने का मतलब खट्टे नींबू मिले तो चीनी घोल के शरबत बना लो. लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि आपको नींबू मिलता है, और आप कचूमर बना देते हैं. कचूमर दुश्मन का. बात समझ आएगी जब कहानी सुनेंगे नींबू साहब की. ( Neikezhakuo Kenguruse)

इंडियन आर्मी में थे नींबू साहब. कारगिल(Kargil War) में द्रास पर चढ़ना था. 16 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई. माइनस दस डिग्री का टेम्प्रेचर. जवानों को दिक़्क़त आ रही थी. लेकिन क़िस्मत की बात थी. सबसे आगे नींबू साहब थे. वो जिस कबीले से आते थे, वहां युद्ध सिर्फ़ लड़ा नहीं जाता था. जीतने के बाद दुश्मन का सिर उतार कर ले आते थे. नींबू साहब कुछ लेकर तो नहीं आए. बल्कि खुद को वहीं छोड़ आए. लेकिन वो काम कर गए जो शायद कोई दूसरा नहीं कर सकता था.

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Neikezhakuo Kengurüse
कैप्टन नीकेजाकुओ कैंगुरूसे का जन्म नगालैंड के कोहिमा जिले के नरहेमा में 15 जुलाई, 1974 के दिन हुआ था (तस्वीर- Indiatoday)

नागा योद्धा जो दुश्मन का सर उतार लेते थे 

भारत के पूर्वोत्तर में बसा है नागालैंड. यहां की राजधानी कोहिमा से 22 किलोमीटर दूर उत्तर में एक गांव है. नाम है नेरहेमा. नेरहेमा का हिंदी में मतलब होता है, "योद्धाओं का घर". पहले इस गांव का नाम पेरहेमा हुआ करता था. पेरहेमा का मतलब, 'उन लोगों का घर जो हमेशा युद्ध में रहते हैं.' इस गांव में रहता था, नागा जनजाति का एक क़बीला. जो जाना जाता था हेड हंटिंग के लिए. हेड हंटिंग यानी जब भी लड़ाई होती, ये लोग दुश्मन को मार कर उसका सर उतार लाते थे. 19 वीं शताब्दी के अंत में जब पहली बार अंग्रेज इस इलाक़े में पहुंचे, वो भी इस क्रूर तरीके को देखकर घबरा गए थे. इसी गांव में साल 1974 में 15 जुलाई के रोज़ पैदाइश हुई, नीकेजाको केंगुरुसे की. घरवाले प्यार से नेंबु कहकर बुलाते थे.

नेंबु ने सेंट ज़ेवियर में पढ़ाई की, और फिर कोहिमा साइंस कॉलेज से ग्रैजूएशन पूरा किया. साल 1994 में नेंबु कोहिमा गवर्मेंट हाई स्कूल में टीचर के तौर पर पढ़ाने लगे. इसी दौरान CDS पास किया, और जून 1997 में उन्हें इंडियन मिलिट्री अकैडमी, देहरादून से बुलावा आ गया. 12 दिसंबर, 1998 की तारीख़ को नीकेजाको, IMA से पास हुए और आर्मी सर्विस कोर में कमीशन हो गए. उन्होंने सेकेंड राजपूताना राइफल्स जॉइन की. उत्तर भारत के उनके साथी उनका नाम बोलने में दिक़्क़त महसूस करते थे. जब पता चला कि उनका घर का नाम नेंबु है. सब उन्हें नींबू कहकर बुलाने लगे. दोस्त नींबू कहते थे, तो उनके जूनियर, नींबू साहब. आर्मी में कमीशन होने के महज़ 4 महीने हुए थे, जब नींबू साहब को बैटल फ़ील्ड से बुलावा आ गया. कारगिल की लड़ाई शुरू हो चुकी थी.

Atal Bihari Vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी कारगिल युद्ध के समय भारत के प्रधानमंत्री थे (तस्वीर- Indiatoday)

घर जाना था लेकिन… 

हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकार, राहुल करमाकर से बात करते हुए कैप्टन नीकेजाको के पिता बताते हैं, "नेंबु जब अकादमी में ट्रेनिंग कर रहा था, यहां नेरहेमा में हालात तनावजनक थे. लेकिन जब 1998 में सीज फ़ायर का ऐलान हुआ, नेंबु ने बताया वो एक बार घर आना चाहता है". लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. कारगिल की लड़ाई के दौरान कैप्टन नीकेजाको को घातक प्लैटून का कमांडर बनाया गया. घातक प्लैटून यानी बटालियन के 20 सबसे फिट और जुझारू सैनिकों का दल. इंडियन आर्मी में घातक प्लैटून को ये नाम पूर्व चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ जनरल बिपिन जोशी ने दिया था. कारगिल के दौरान ऐसी कई घातक पलटनों ने सबसे क्रूशियल ऑपरेशंस को अंजाम दिया था.

28 जून 1999 को कारगिल में आर्मी के सामने ऐसा ही एक मिशन आया. द्रास सेक्टर में लोन हिल नाम की पीक पर क़ब्ज़ा करना था. लेकिन रास्ते में पड़ती थी ब्लैक रॉक नाम की एक चट्टान, जिस पर पाकिस्तानी आर्मी ने एक मशीन गन पोस्ट बना रखी थी. काफ़ी ऊंचाई पर बनी इस पोस्ट से लगातार भारतीय सैनिकों पर गोली बारी हो रही थी. और ट्रूप्स का मूवमेंट मुश्किल हो रहा था. आगे बढ़ने के लिए इस पोस्ट को नष्ट करना ज़रूरी था.

इस काम की ज़िम्मेदारी घातक प्लैटून को दी गई. जवानों को लीड करते हुए कैप्टन नीकेजाको ऊपर की ओर बढ़े. चढ़ाई मुश्किल थी. हड्डियां जमा देने वाला मौसम और ऐसे में ऊपर से नीचे की ओर चलती दुश्मन की गोलियां. ऐसी ही एक गोली कैप्टन नीकेजाको के पेट में लगी. उनके पीछे चल रहे जवान ने पूछा, क्या हुआ नींबू साहब? नींबू साहब ने जवाब दिया, कुछ नहीं, बढ़ते रहो.

Neikezhakuo Kengurüse's parents
कैप्टन नीकेजाकुओ कैंगुरूसे के माता-पिता (तस्वीर- EastMojo)

कुछ देर में नींबू साहब और उनकी पलटन पाकिस्तानी पोस्ट के काफ़ी नज़दीक पहुंच गई. लेकिन अभी एक आख़िरी चढ़ाई बाक़ी थी. एक सीधी चट्टान जिस पर बिना रस्सियों के नहीं चढ़ा जा सकता था. रस्सी बांधने के लिए नींबू साहब ने चट्टान में एक क़ब्ज़ा फ़ंसाने की कोशिश की. लेकिन बार-बार ट्राई करने के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली. जब भी वो ऊपर चढ़ने की कोशिश करते, बर्फीली चट्टान में उनका पैर फिसल जाता. गोली लगी होने के कारण पेट से खून बह रहा था, और आगे बढ़ने के आसार अच्छे नहीं लग रहे थे. नींबू साहब चाहते तो पीछे हट सकते. लेकिन पीछे हटना उनके कबीले ने कभी सीखा ही नहीं था. उनके परदादा अपने जमाने के सबसे खूंखार हेडहंटर नागा थे . और उनके दादा ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी से लोहा लिया था. अब जज़्ज दिखाने की बारी नींबू साहब की थी.

माइनस 10 डिग्री पर जूता उतारा 

चट्टान पर उनका जूता बार बार फिसल रहा था. कुछ सोचकर अचानक उन्होंने अपने जूते उतारने शुरू कर दिए. उनके साथी देख रहे थे. इतनी ठंड में जूते उतारना ख़तरनाक था. फ़्रॉस्ट बाइट हो सकता था. लेकिन इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, नींबू साहब ने अपने मोज़े भी उतार दिए. और नंगे पैर चट्टान पर ऊपर चढ़ गए. ये सब हो रहा था 6 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई और माइनस दस डिग्री तापमान में. फिर भी कंधे पर RPG रॉकेट लांचर लिए नींबू साहब को किसी चीज़ की चिंता नहीं थी. वो खुद भी चट्टान पर चढ़े और अपने साथियों को भी चढ़ाया.

ऊपर चढ़ने के बाद नींबू साहब ने रॉकेट लांचर से फ़ायर किया और एक के बाद एक, सात पाकिस्तानी बंकरों को नष्ट कर दिया. जवाब में दूसरी तरफ़ से भी गोलियों की बारिश हुई. दो पाकिस्तानी फ़ौजी नींबू साहब की ओर बढ़े. उन्होंने अपना कमांडो नाइफ़ लिया और हैंड टू हैंड कॉम्बैट में दोनों को ढेर कर दिया. अपनी राइफ़ल से उन्होंने दो और पाकिस्तानी सैनिकों को निशाना बनाया. लेकिन इस दौरान खुद भी गोलियों से बच नहीं पाए. कुछ देर बाद नींबू साहब के साथियों ने पोस्ट को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. जीत की ख़ुशी में एक सिपाही ने देखा, नींबू साहब एक खाई में गिरे पड़े थे. जवानों की आंखो से आंसू गिरे और मुंह से ये आवाज़ निकली.

“ये आपकी जीत है नींबू साहब, ये आप की जीत है"

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हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है. यह दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों को समर्पित है (तस्वीर- Facebook/Heroes in Uniform)

कैलेंडर की तारीख़ों से उम्र मापें तो महज़ 25 बरस के नींबू साहब वीरगति को प्राप्त हो चुके थे. अदम्य साहस का परिचय देने के लिए के लिए उन्हें महावीर चक्र से समानित किया गया. कैप्टन नीकेजाको के पिता बताते हैं,

“नेंबु ने हमारे मन में आर्मी की जो छवि थी वो हमेशा के लिए बदल दी.”

दरअसल आज़ादी के बाद नागालैंड एक लंबे अरसे तक विद्रोह की आग में झुलसता रहा था. नींबू साहब का खुद का गांव दो बार इस आग की भेंट चढ़ चुका था. इसलिए नागालैंड के कुछ हिस्सों में सुरक्षाबलों और सेना को कभी दोस्त की तरह नहीं देखा गया. लेकिन जब कैप्टन नीकेजाको का पार्थिव शरीर नागालैंड पहुंचा, तो पूरा नागा समाज उनके सम्मान में सर झुकाए खड़ा था. उनकी अंतिम यात्रा में हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया. जब उनकी पार्थिव देह को उनके गांव ले ज़ाया जा रहा था. सड़क के मुहाने पर हज़ारों लोग भीगी आंखो से उन्हें अंतिम प्रणाम करने के लिए खड़े थे.

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