रमेश देव ने अपने करियर में 450 से ज़्यादा हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया. सैकड़ों ऐड फिल्मों में नज़र आए. वो आखिरी बार सनी देओल की फिल्म 'घायल- वंस अगेन' में दिखाई दिए थे. रमेश ने अपने करियर की शुरुआत मराठी फिल्मों से की थी. उन्हें अपनी पहली फिल्म बाय चांस मिल गई थी. ईगो हर्ट होने के बाद उन्होंने हिंदी फिल्मों में काम करना शुरू किया.

फिल्म 'आनंद' के एक सीन में ललिता पवार और सीमा देव के साथ रमेश देव.
# लड़की को इम्प्रेस करने के चक्कर में एक्टर्स सप्लाई करने लगे
रमेश देव का जन्म 30 जनवरी, 1929 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था. उनकी फैमिली राजस्थान के जोधपुर की रहने वाली थी. उनके परदादा और दादा दोनों ही इंजीनियर थे. छत्रपति शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर शहर बसाने के लिए उन्हें जोधपुर से अपने यहां बुलाया. उसके बाद फैमिली यहीं सेटल हो गई. रमेश के पिता जी जज थे. इसलिए रमेश अपने गैंग के स्टार थे. जब रमेश कॉलेज में थे, तब उन्हें एक लड़की पर क्रश था. मगर वो लड़की इन्हें कभी भाव नहीं देती थी. रमेश को पता चला कि वो लड़की फिल्मों में इंट्रेस्ट रखती है. उन दिनों उनके गांव में एक मराठी फिल्म की शूटिंग चल रही थी. वो जज साहब के लड़के थे, इसलिए उनके लिए कोई रोक-टोक नहीं थी. रमेश ने अपने सूत्रों की मदद से उस लड़की तक ये बात पहुंचा दी कि वो फिल्म की शूटिंग देखने जा रहे हैं. वो लड़की आई. इनसे बात की. फिल्म के सेट पर ले जाने की रिक्वेस्ट की. रमेश मान गए. कुछ दोस्तों के साथ ये लोग फिल्म की शूटिंग देखने गए.
एक कॉलेज सीन की शूटिंग चल रही थी. मगर एक्स्ट्रा एक्टर्स नहीं थे. ऐसे में फिल्म के डायरेक्टर ने रमेश से कहा कि अपने दोस्तों को फिल्म में काम करने के लिए मना लें. इसके बदले उन लड़कों को 8 और लड़कियों को 10 रुपए मिलेंगे. सब लड़के मान गए. रमेश ने कॉलेज सेक्रेटरी का रोल किया, जिसके लिए उन्हें 15 रुपए मिले. ये बात है सन 1945 की. तब ये बड़ी रकम हुआ करती थी. इसके बाद खेल ये हुआ कि जिस प्रोड्यूसर को एक्स्ट्रा एक्टर्स की ज़रूरत पड़ती, वो रमेश को कॉन्टैक्ट करते. रमेश अपने कॉलेज के लड़कों को भेज देते. ये फिल्मी दुनिया से उनका पहला कनेक्शन था.

पत्नी सीमा के साथ रमेश देव. इनकी शादी 1963 में हुई थी.
# पुलिस में भर्ती होने के लिए पैसा मांगने गए, डायरेक्टर ने फिल्म में ले लिया
रमेश के पिता जी चाहते थे कि वो लॉयर बनें. मगर दादाजी की इच्छा थी कि वो पुलिस या मिलिट्री में जाएं. रमेश ने पुलिस रिक्रूटमेंट का फॉर्म भरा और सेलेक्ट हो गए. ट्रेनिंग के लिए नासिक जाना था, मगर पैसे नहीं थे. इसलिए रमेश अपने भाई से पैसे लेने पुणे गए. बड़े भाई साब आर्मी में मेजर थे. उन दिनों पुणे में पोस्टेड थे. जिस दिन रमेश पुणे पहुंचे, उनके भाई उन्हें घोड़ों की रेस दिखाने ले गए. उनकी कई जॉकी लोगों से दोस्ती थी. इसलिए उन्हें पता होता था कि किस घोड़े पर दांव लगाना है. उस रेस के दौरान मशहूर फिल्ममेकर राजा परांजपे भी घोड़ों पर दांव लगा रहे थे. उन्होंने रमेश के भइया से टिप मांगी. उन्होंने कहा कि आप रमेश का ख्याल रखिए कि वो भीड़ में कहीं ग़ुम न हो. फिर वो उन्हें टिप देंगे. राजा इंतज़ार नहीं कर पाए और बेट लगा दी. रमेश उनसे बात करने की कोशिश कर रहे थे. मगर राजा परांजपे उनमें बिल्कुल दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे. फाइनली हुआ ये कि उनका घोड़ा रेस हार गया.
राजा साहब को आइडिया आया कि रमेश से दांव लगवाते हैं. क्योंकि उन्हें 'बिगिनर्स लक' नाम के कॉन्सेप्ट में विश्वास था. उन्होंने रमेश से कहा कि वो अपने मन का कोई भी घोड़ा चुनें, वो उस पर 50 रुपए का दांव लगाएंगे. रमेश की बदौलत उस दिन राजा परांजपे ने 21 हज़ार रुपए जीते. उन दिनों राजा परांजपे एक फिल्म डायरेक्ट करने के लिए तीन हज़ार रुपए फीस लेते थे. यानी 7 फिल्मों की फीस उन्होंने कुछ घंटों में कमा ली. राजा साहब को लगा कि रमेश उनके लिए लकी हैं. इसलिए उन्होंने रमेश को अपनी अगली फिल्म में कास्ट करने का ऑफर दे डाला. घर पर दादा और पिता जी को मनाने के बाद रमेश ने 1956 में आई फिल्म 'आंधळा मागतो एक डोळा' से अपना एक्टिंग डेब्यू किया. फिल्म में उनका रोल विलन का था. फिल्म हिट रही. रमेश के काम की भी तारीफ हुई. इसके बाद उन्होंने विलन के तौर पर 4-5 मराठी फिल्में साइन कर लीं. करियर चल निकला.

रमेश ने अपने करियर की शुरुआत विलन के तौर पर की थी.
# चाय वाले ने इगो हर्ट किया, तो हिंदी फिल्मों में आ गए
रमेश बताते हैं कि उनका मराठी फिल्म करियर सही चल रहा था. वो हीरो और विलन दोनों तरह के रोल्स करते थे. रमेश बताते हैं कि उन दिनों फिल्ममेकर्स पब्लिसिटी के लिए मज़ेदार खेल करते थे. वो फिल्म के पोस्टर पर लिखवाते- 'रमेश देव हीरो आहे कि विलन हे ओळखा'. यानी गेस करिए, इस फिल्म में रमेश देव हीरो हैं, या विलन.
खैर, एक बार रमेश देव, राजा परांजपे, राजा गोसावी और सीमा देव फिल्म की शूटिंग खत्म करके रत्नागिरी से कोल्हापुर लौट रहे थे. कच्ची सड़क थी. कीचड़ होने की वजह से गाड़ी और लोग, दोनों गंदे हो गए थे. तिस पर कोल्हापुर से 80 किलोमीटर पहले उनकी गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया. इधर-उधर घूमते वो लोग पास में चाय की टपरी पर पहुंचे. चाय-पानी मंगवाया गया. चायवाले ने उन्हें एल्यूमिनियम के गिलास में चाय-पानी दिया. जबकि उसकी दुकान पर फैंसी कप भी थे. जब उन लोगों ने इस भेद-भाव की वजह पूछी, तो चायवाले ने बताया कि वो कप बड़े लोगों के लिए है. रमेश ने बताया कि वो लोग फिल्मों के हीरो हैं. वहां पर राज कपूर, दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की एक फिल्म का पोस्टर लगा था. चायवाले ने उस पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये लोग हीरो हैं.
इस चीज़ ने अचानक से रमेश देव को रियलिटी चेक दे दिया. उन्हें लगा कि वो मराठी फिल्मों में काम करते हैं. बावजूद इसके घर से 80 किलोमीटर दूर उन्हें कोई नहीं पहचानता. जबकि दिलीप कुमार और राज कपूर लाहौर से आए और पूरा देश उन्हें जानता है. इसके बाद उन्होंने हिंदी फिल्मों में काम करने का फैसला लिया. घर से 500 रुपए लेकर वो मुंबई आ गए.

रमेश ने हिंदी फिल्मों में अधिकतर मौकों पर हीरो के बेस्ट फ्रेंड का रोल किया. मगर वो नेगेटिव और पॉज़िटिव रोल्स दोनों तरह के रोल्स करते थे. यही चीज़ उन्हें स्टीरियोटाइप होने से बचाती रही.
फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन के बिज़नेस में रही कंपनी राजश्री, अपनी पहली फिल्म बनाने जा रही थी. 1962 में 'आरती' नाम की इस फिल्म से रमेश का हिंदी फिल्म डेब्यू हुआ. मगर पंगा ये हुआ कि इस फिल्म में अशोक कुमार विलन का रोल कर रहे थे. फिल्म आई और सारी वाहवाही अशोक कुमार लूट ले गए. इसके बाद रमेश, फिल्ममेकर देवेंद्र गोयल के पास पहुंचे, जो 'दस लाख' नाम से एक फिल्म शुरू करने जा रहे थे. इस फिल्म में उन्हें काम मिल गया. 'दस लाख' के बाद रमेश का हिंदी फिल्म करियर भी उड़ान भरने लगा. रमेश बताते हैं कि उन्हें हिंदी फिल्मों में काम मिलने की मुख्य वजह ये थी कि वो समय के पाबंद थे. और दूसरी वजह थी कि वो शराब नहीं पीते थे. क्योंकि शराब पीने वाले एक्टर्स लेट-लतीफी से फिल्मों के सेट पर पहुंचते थे, जिससे फिल्म बनने में देर हो जाती थी.
# राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के साथ 'आनंद' में काम किया
हिंदी सिनेमा की ऑल टाइम क्लासिक्स में गिनी जाने वाली फिल्म 'आनंद' रमेश के करियर की सबसे चर्चित फिल्म रही. इस फिल्म में वो सुपरस्टार राजेश खन्ना और न्यूकमर अमिताभ बच्चन के साथ काम कर रहे थे. फिल्म में रमेश ने डॉक्टर प्रकाश कुलकर्णी नाम के डॉक्टर का रोल किया था, जो आनंद का इलाज करता है. रमेश बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी राजेश खन्ना से बहुत नाराज़ रहते थे. क्योंकि राजेश खन्ना कभी टाइम से सेट पर नहीं आते थे. मगर वो जैसे ही अपने सीन की शूटिंग शुरू करते, ऋषिकेश मुखर्जी का सारा गुस्सा धुल जाता था. ऋषिकेश मुखर्जी, राजेश खन्ना की परफॉरमेंस देखकर बहुत खुश हो जाते थे. जबकि अमिताभ बच्चन को फिल्म इंडस्ट्री के लोग 'ऊंट' बुलाते थे. क्योंकि अमिताभ बच्चन काफी लंबे थे और बालों से हमेशा उनके कान ढंके रहते थे.

फिल्म 'आनंद' की शूटिंग के दौरान राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, सीमा देव और डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी के साथ रमेश देव.
रमेश देव की आखिरी फिल्म थी 2013 में आई सुभाष कपूर डायरेक्टेड 'जॉली LLB'. इसमें उन्होंने 'कौल साहब' का किरदार निभाया था. मगर ऑफिशियली उनकी लास्ट फिल्म थी सनी देओल की 'घायल वंस अगेन'. इसमें उन्होंने ओरिजिनल फिल्म वाले रोल को ही आगे बढ़ाया था. रमेश देव ने एक्ट्रेस सीमा देव से शादी की थी. वो अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ मुंबई रहते थे. उनके बेटे अजिंक्य, मराठी फिल्मों के चर्चित एक्टर हैं. उनके दूसरे बेटे अभिनव फिल्ममेकर हैं. अभिनव अपने करियर में 'डेल्ही बेली', 'फोर्स 2' और इरफान स्टारर 'ब्लैकमेल' जैसी फिल्में डायरेक्ट कर चुके हैं.