The Lallantop

क्या है वो मामला जिसमें अडानी को अरबों रुपए का नुक़सान हो गया?

हर्षद मेहता की पोल-पट्टी खोलने वालीं पत्रकार सुचेता दलाल ने भी ट्वीट किया है.

post-main-image
(फोटो साभार- @gautam_adani के ट्विटर हैंडल से)

अडानी. ये एक नाम पिछले कई महीनों से सुर्ख़ियों में बना हुआ है. कई बार अच्छे कारणों से. जैसे एशिया के सबसे बड़े अमीरों में 15वें नंबर पर आ जाने के चलते. या फिर अपने इंवेस्टर्स को कई-कई गुणा रिटर्न्स देने के चलते. और कई बार कुछ कम अच्छे कारणों के चलते, कि जैसा अब हो रहा है. और इन ‘नॉट सो गुड’ कारणों में शामिल हैं, सुचेता दलाल का एक पैसिव ट्वीट, अडानी के कुछ इंवेस्टर्स का अकाउंट ब्लॉक हो जाना और इनके शेयर्स की नोज़डाइव. आइए पूरा मामला आसान भाषा में समझते हैं.


# बात निकलेगी तो-

साल 2020 में जब कोविड पैर पसार रहा था, इसी दौरान एक भूचाल शेयर मार्केट में भी आया. देश के ही नहीं पूरे विश्व के शेयर मार्केट में. शेयर मार्केट के साथ ‘धड़ाम’ और ‘अफ़रातफ़री’ जैसे शब्द जोड़े गए. निवेशकों को बहुत नुक़सान हुआ. इंडिया की बात करें तो, 50 बड़े शेयरों का इंडेक्स निफ़्टी 50, साढ़े बारह हज़ार के क़रीब से गिरकर सीधे साढ़े सात हज़ार के क़रीब पहुंच गया. महज़ चंद दिनों में मतलब पूरे पांच हज़ार पॉइंट्स या क़रीब चालीस प्रतिशत नीचे. यही हाल सेंसेक्स का भी था. ये पिछले साल मार्च एंड और अप्रैल स्टार्ट के दिनों की बात थी.

लेकिन इसके बाद जो हुआ वो अजूबा था. शेयर मार्केट धीरे-धीरे बढ़ने लगा. और 2020 ख़त्म होते-होते कि अपनी सारी गिरावट को पार कर गया. फिर 2021 में देश का बजट आया, पहली वेव से कई गुना ख़तरनाक दूसरी वेव आई. लेकिन शेयर मार्केट था कि बढ़ता रहा.

निफ़्टी 50 भी अपने न्यूनतम स्तर से क़रीब दोगुना हो गया. लेकिन निफ़्टी 50 में कोई एक शेयर तो है नहीं. तो सामान्य गणित लगाकर भी लोगों को अंदाज़ा हो सकता है कि कुछ शेयर्स 50 प्रतिशत से ज़्यादा और कुछ इससे कम बढ़े होंगे. साथ ही निफ़्टी 50 तो 50 बड़े शेयर्स की जानकारी दे पाता है. लेकिन जैसे सितारों के आगे जहां और भी हैं, वैसे ही निफ़्टी 50 और सेंसेक्स के आगे शेयर्स और भी हैं. कहने का मतलब ये कि कई शेयर्स इस रिकवरी में उससे भी तेज़ बढ़े होंगे, जितनी तेज़ी इंडेक्स रूपी स्पीडोमीटर में दृश्य है. और यही हुआ अडानी के शेयर्स के साथ. अच्छा अडानी का कोई एक शेयर तो है नहीं. ग्रुप ऑफ़ शेयर्स हैं. अडानी पोर्ट, अडानी गैस, अडानी ग्रीन, अडानी पावर, अडानी ग्रुप… लेकिन कमाल की बात ये कि अडानी ग्रुप के इन सभी शेयर्स की तेज़ी ऐसी थी कि निफ़्टी 50 की समस्त तेज़ी दिन में चांद जैसी हो गई. उदाहरण? अडानी ग्रुप का शेयर 1,000 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ गया. या कहें कि अगर आपने पिछले साल अप्रैल की शुरुआत में इस शेयर में दस लाख रूपये लगाए होते, आज आप करोड़पति होते.

बहरहाल, जैसा आपको पहले भी बताया कि ये तेज़ी अडानी के एक शेयर में नहीं थी, एक्रोस दी ग्रुप थी. और तेज़ी ऐसी कि अडानी को भारत का दूसरा और एशिया का पंद्रहवां सबसे अमीर आदमी बना डाला.


अडानी के कुछ इंवेस्टर्स का अकाउंट ब्लॉक हो गया है. अडानी के कुछ इंवेस्टर्स का अकाउंट ब्लॉक हो गया है.

# कुछ तो जिसकी पर्दादारी है?

लेकिन क्या ये तेज़ी जस्टीफ़ाइड थी? मतलब किसी शेयर की तेज़ी जस्टीफ़ाइड होने का मतलब ये होता है कि जितनी तेज़ी से कंपनी का शेयर बढ़ रहा है क्या उतनी तेज़ी से कंपनी का कारोबार या फ़्यूचर प्रोसपेक्टिव बढ़ रहा है? क्या कंपनी के फ़ंडामेंटल, आय वग़ैरह भी ऐसी ही चमकदार है. क्या उसकी बैलेंस शीट भी इतनी ही स्ट्रॉन्ग है जितने उसके शेयर्स?

इसका विस्तृत और सटीक उत्तर तो कंपनी की बैलेन्स शीट के अंदर घुसकर ही पता चलेगा. हम आसान भाषा में आपको कुछ तर्क देते हैं, पक्ष और विपक्ष में बाकी आप विश्लेषण कीजिएगा:

# देश भर में लॉकडाउन और उसके बाद बजट के प्रावधान और अब कोविड की दूसरी वेव में कम ही कंपनीज़ हैं जो प्रॉफ़िट में हैं. और हैं भी तो कहीं से भी ये तो नहीं ही संभव है कि प्रॉफ़िट इतना ज़्यादा हुआ हो जितना अडानी के शेयर्स में रिफलेक्ट हो रहा है. ऐसा जानकार कहते हैं.

# हालांकि इसके विपरीत तर्क ये भी हो सकता है कि किसी कंपनी के शेयर्स के दाम फ़्यूचर के प्रॉफ़िट को डिस्काउंट करके चलते हैं. मतलब कंपनी की भविष्य में माली हालत क्या होने वाली है, उसका भविष्य कितना उज्जवल है, इससे भी उसके शेयर्स के दाम घटते बढ़ते हैं. और अडानी ग्रुप का भविष्य उज्जवल है, इसमें कोई दो राय नहीं. अडानी ने पिछले कुछ सालों में जो एयपोर्ट्स मैनेज करने का ठेका लिया है, इनके पोर्ट्स को लेकर जैसी पॉज़िटिव खबरें आती रही हैं, सोलर प्लांट्स को लेकर इनकी जो महत्वाकांक्षी योजनाएँ हैं. तो क्या गुड न्यूज़ इतने गुड हुए कि शेयर हज़ार परसेंट की ऊपर चले गए?

विशेषज्ञ भी ये राय देते रहे हैं कि अव्वल तो शेयर मार्केट और देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति में ही बहुत बड़ा डिस्कनेक्ट है. लेकिन ये डिस्कनेक्ट अडानी के केस में और गहरा हो जाता है. बिज़नेस टुडे के संपादक राजीव दूबे हमसे बातचीत में कहते हैं,


“किसी भी शेयर में इतनी बढ़ोतरी नॉर्मल नहीं होती है. आप इसी समय में सेंसेक्स की बढ़ोतरी देखिए, तो वो 56 प्रतिशत ही है. और उस समय में आप 400 परसेंट या 1400 परसेंट की बढ़ोतरी करें तो वो काफ़ी ऐब्नॉर्मल है. ऐसे में अटकलें लगायी जा रही हैं कि क्या फ़ॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर (FPI) की वजह से अडानी समूह के शेयर में बढ़ोतरी हो रही है?”

NSDL ने अडानी समूह को बताया है कि जिन अकाउंट की ख़बरें चल रही हैं, वो अकाउंट एक्टिव हैं. NSDL ने अडानी समूह को बताया है कि जिन अकाउंट की ख़बरें चल रही हैं, वो अकाउंट एक्टिव हैं.

# फिर आया एक ट्वीट

हर्षद मेहता की पोल-पट्टी खोलने वालीं पत्रकार सुचेता दलाल ने एक ट्वीट किया. हालांकि सुचेता के इस ट्वीट में किसी व्यक्ति या संस्था का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन ट्वीट की तासीर और उसपर आए कमेंट से मार्केट के खिलाड़ी अंदाज़ लगा सकते हैं कि तीर किधर चलाया गया है.

मुश्किल से उनके ट्वीट का अगर हिंदी में तर्जुमा करके उसे आसान बनाया जाए तो मतलब ये निकलता है कि:


“एक बड़े ग्रुप के शेयर्स को आसमान तक पहुंचाने में किसी ऑपरेटर का हाथ है. और ये ऑपरेटर कोई नया नहीं, जाना पहचाना है. जिसकी शेयर मार्केट में दोबारा एंट्री हुई है. साथ ही ये ऑपरेटर अबकी विदेश से ऑपरेट कर रहा है. और ये खेल इतने ऊंचे लेवल का है कि सेबी (यानी शेयर मार्केट की मॉनिटर) का ट्रैकिंग सिस्टम भी शायद ही इसे पकड़ पाए.”

हालांकि ये भी है कि सुचेता के इस ट्वीट को अगर अडानी से जोड़ भी लिया जाए तो भी ऊंगली अडानी या अडानी ग्रुप पर नहीं उठ रही. बात हो रही है एक ऑपरेटर की. ‘ऑपरेटर’ मतलब वो बंदा या समूह जो शेयर ट्रेडिंग के माध्यम से उसके दाम कई गुना बढ़ा या घटा देता है. और सुचेता कहती हैं कि ये ऑपरेटर विदेश से ऑपरेट कर रहा है. शायद वही FPI, जिसको लेकर शेयर मार्केट में अटकलें लगायी जा रही हैं. शायद वही FPI, जिसके खाते फ़्रीज़ होने की ख़बरें सामने आयी थीं.

तो सुचेता की बात कितनी सही है? मतलब लोग कह रहे हैं कि इसी ट्वीट के बाद अडानी ग्रुप के शेयर्स धड़ाम हुए. प्रथम दृष्टया लगता है कि सुचेता की बात बिलकुल सही है. क्योंकि अडानी ग्रुप के शेयर्स गिरे तो हैं. और गिरे भी अच्छे ख़ासे हैं. लेकिन सवाल ये कि क्या वो इस ट्वीट के चलते गिरे हैं या फिर किसी और चीज़ के चलते और दूसरा सवाल ये कि क्या अडानी के शेयर्स के भाव ऊंचे उठाने में वाक़ई किसी ‘विदेशी ताक़त’ का हाथ है. चलिए दोनों सवालों के उत्तर एक-एक कर देते हैं.


#धुआं उठा है, कहीं आग लगी होगी तो पहले दूसरा सवाल लेते हैं. कि “क्या अडानी के शेयर्स के भाव ऊंचे उठाने में वाक़ई किसी ‘विदेशी ताक़त’ का हाथ है?”

प्रारंभिक रिपोर्ट्स के आधार पर ऐसा कहा जा रहा है. लेकिन सबकुछ अभी बहुत पक्का नहीं है. हुआ यूँ कि 13-14 जून को ख़बरें चलीं कि नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) ने अडानी ग्रुप की तीन इंवेस्टर्स के खातों को फ्रीज कर दिया. NSDL यानी वही उपक्रम, जो हमारा और आपका पैनकार्ड बनाता है. ये तीन इंवेस्टर्स थे: अलबुला इन्वेस्टमेंट फंड लिमिटेड, क्रेस्टा इन्वेस्टमेंट फंड लिमिटेड और APMS इन्वेस्टमेंट फंड लिमिटेड. ये सब विदेशी संस्थान हैं. और ऐसे संस्थानों को कहा जाता है FPI. यानी फ़ॉरन पोर्टफ़ोलियो इंवेस्टर्स.


ब्लूमबर्ग के अनुसार इन तीन FPIs ने अडानी ग्रुप में क़रीब 43,000 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट किया हुआ है.

इस सबके बाद इस मंडे यानी 14 जून को जब जब मार्केट खुला तो अडानी ग्रुप के सारे शेयर्स शुरुआती मिनटों में ही अर्श से फ़र्श पर पहुंच चुके थे. कई शेयर्स में तो लोवर सर्किट लग गया था. लोवर सर्किट बोले तो ये शेयर्स इतना गिर चुके थे, जितनी इनके गिरने की एक दिन की लिमिट थी. इसलिए ही इनकी ट्रेडिंग बंद करनी पड़ी.

तो अब आते हैं पहले सवाल पर कि “क्या ये शेयर्स सुचेता के ट्वीट के चलते गिरे?”

इसका उत्तर साफ़ नहीं है. क्योंकि सुचेता दलाल के ट्वीट को सीधे से निशाने पर लिया नहीं जा सकता है क्योंकि नामोल्लेख था नहीं. और रिपोर्ट्स बताती हैं कि NSDL तीन FPIs के खातों को 31 मई, 2021 या उससे पहले ही सील किया जा चुका था.


तीन FPIs ने अडानी ग्रुप में क़रीब 43,000 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट किया हुआ है. तीन FPIs ने अडानी ग्रुप में क़रीब 43,000 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट किया हुआ है.

# फिर आया कहानी में ट्विस्ट

अब रह जाते हैं दो और सवाल. पहला कि क्या ऊपर बताई गई स्टोरी पूरी तरह सही है, मनगढ़ंत या फिर अर्ध सत्य? और दूसरा ये कि हमने आपको 14 जून, 2021 की सुबह तक की बातें बताईं हैं. उसके बाद क्या-क्या हुआ?

तो चलिए फिर से दूसरे सवाल पर ही जाया जाए. तो 14 जून की सुबह को हुआ क्या कि अडानी के शेयर्स औंधे मुंह गिरने लगे. लेकिन फिर वही चमत्कार हुआ जो मार्च के बाद हुआ था. और उसका चमत्कार का नाम था ‘वी शेप रिकवरी’. मतलब जिन शेयर्स में ट्रेडिंग दिनभर के लिए रोक दी गई थी, ख़ैर उनपर तो रौनक वापस नहीं आ सकती थी, लेकिन इनके अलावा अडानी के कई ऐसे शेयर्स थे जिन्होंने यू टर्न ले लिया था. और ट्रेडिंग के ख़त्म होते होते, एकाधे शेयर्स तो हरे निशान पर भी बंद हो गए. साथ ही ट्रेडिंग ख़त्म होते वक्त शेयर मार्केट के दोनों बड़े इंडेक्स, ‘निफ़्टी 50’ और ‘सेंसेक्स’ हरे निशान पर बंद हुए.

और इसके साथ आया अडानी ग्रुप की तरफ़ से आया बयान. जिसमें कहा गया था कि खाते FPI खातों को फ़्रीज़ करने वाली बात “स्पष्ट रूप से गलत है और निवेशक समुदाय को गुमराह करने के लिए जानबूझकर की गई है.”


# फिर अडानी ने NSDL की सफ़ाई पेश की

फिर कुछ देर बाद अडानी समूह ने बताया कि NSDL ने अडानी समूह को बताया है कि जिन अकाउंट की ख़बरें चल रही हैं, वो अकाउंट एक्टिव हैं. NSDL ने तीन अकाउंट तो यकीनन ब्लॉक किए हैं लेकिन अडानी ग्रुप का कहना है कि ब्लॉक किए गए अकाउंट डीमैट अकाउंट नहीं है. डीमैट मतलब वो अकाउंट जिनसे शेयर्स की ख़रीद फ़रोख़्त होती है और जिसमें शेयर्स और बाकी फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स रखे जाते हैं. जैसे बैंक अकाउंट में पैसे. ब्लूमबर्ग के अनुमान के अनुसार, शायद अडानी ग्रुप सही है और, “इन FPIs के ऑफशोर अकाउंट तो ब्लॉक कर दिए गए हैं लेकिन डॉमेस्टिक अकाउंट्स अभी भी चालू हैं.”


(हालांकि ये बात ब्लूमबर्ग कई विशेषज्ञों से बात करके लिखता है, लेकिन फिर भी ‘शायद’ जोड़ते हुए.)

लेकिन एक जिज्ञासा ये कि इन अकाउंट्स को आख़िर फ़्रीज़ किया क्यूं गया? उत्तर है 2016 के एक केस के चलते. ख़बरें बताती हैं कि 2016 के एक केस के चलते SEBI द्वारा एक्शन लिया गया और उसी एक्शन की परिणिति थी इन अकाउंट्स का फ़्रीज़ हो जाना. और 2016 का ये केस Global Depository Receipts (GBR) को लेकर था, जिसका संबंध ऑफशोर अकाउंट से होता है. यूं आसान भाषा में कहें तो इससे भी लगता है कि जो अकाउंट ब्लॉक किए गए वो ऑफशोर अकाउंट थे, डॉमेस्टिक नहीं.

अगर मगर लेकिन…इस सबके बीच NSDL का बयान बरास्ते अडानी आया है. NSDL या रेगुलेटर SEBI ने सीधे से जनता और हज़ारों निवेशकों के बीच कोई बयान जारी नहीं किया है. विशेषज्ञों का मानना है कि मामले से धुंधलका तभी छंट सकेगा, जब NSDL या SEBI सामने आयें और ब्यौरों के साथ बताएं कि कौन-से, किस क़िस्म के अकाउंट किन वजहों से फ़्रीज़ किए गए कि निवेशकों की सांसें अटक गयीं.