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पहली इंडियन एक्ट्रेस, जिसने एक्ट्रेस बनने की हिम्मत दिखाई और बाकियों के लिए रास्ता खोला

ये तब की बात है जब मर्द ही नायिका का रोल करते थे.

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बचपन में रविवार का दिन आज से ज्यादा खास होता था. सुबह सुबह दूरदर्शन पर रंगोली आया करती थी. अब भी आती है पर देखने का मौका नहीं. नए और पुराने दोनों तरह के गाने देखने को मिलते थे. फिर प्रोग्राम खत्म होने के टाइम पर एक सेशन श्रद्धांजलि का आता था. इसमें केएल सहगल के गाने दिखाते थे. नोजल टोन वाले गाने. गाने उतने पसंद तो नही थे पर आज भी इनकी कुछ लाइने दिमाग में बैठी हुई है.

इन गानों में केएल सहगल के साथ एक महिला दिखाई देती थी. उनका नाम कानन देवी है. कानन शब्द का मतलब होता है खूब बड़ा घना जंगल. कानन देवी उस शख्सियत का नाम है जिसने अगर फिल्मों में नायिका का रोल न किया होता, तो क्या पता आज भी इसमें हीरोइनें न होतीं. नायिका का किरदार दाढ़ी मूछ साफ करके, ढेर सारे मेकअप के सहारे हीरो लोग ही कर रहे होते. तो साहब कानन देवी इंडियन सिनेमा की पहली महिला स्टार है. 17 जुलाई को इनकी बरसी होती है. कानन देवी की जिंदगी से जुड़ी कुछ और बातें, किस्से पढ़िए.
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आज देखो हर तरफ कितनी ग्लैमर की दुनिया है. हर फिल्म और हर फैन के पसंद की हीरोइन है. किसी की एक्टिंग के लोग दीवाने हैं. किसी के सेंस ऑफ ह्यूमर के, किसी के खूबसूरत जिस्म के कायल हैं. बिपाशा, प्रियंका, रानी मुखर्जी, सनी लियोनी से लेकर राखी सावंत तक. हर जॉनर की, कॉन्फिडेंस और स्किल्स से लबरेज़ हीरोइनें हैं. लेकिन हम तब की बात कर रहे हैं जब फिल्मों में हीरोइने नहीं होती थीं.

दूसरे वर्ल्ड वार के खत्म होते दिनों में बंगाल में फीचर फिल्म प्रोडक्शन की शुरुआत हो रही थी. ये तो पता ही होगा. कि पहले आदमी ही औरत का रोल करते थे. फिल्मों में लेडीज का काम करना गलत समझा जाता था. संस्कृति और परंपरा के नाम पर उनका घर से निकलना दूभर था. फिल्म में एक्टिंग करने का तो सपना ही छोड़ दो. इसलिए हमारी फिल्मो में शुरूआती औरतें या तो एंग्लो-इंडियन होती थी या फिर रेड लाइट एरिया से आती थी.

कानन देवी 10 साल की उम्र से फिल्मों में आ गई थीं. मजबूरी भी थी. बचपन में पिताजी की मौत हो गई. घर की फाइनेंशियल स्थिति डांवाडोल हो गई. उनकी पहली फिल्म 'जयदेव' आई थी. 1926 में. इस फिल्म में काम करने पर उन्हें 5 रूपए या 50 पैसे मिले थे. चाइल्ड अर्टिस्ट के तौर पर उन्होंने काफी फिल्में की. उन्हें बचपन में कानन बाला के नाम से जाना जाता था.

फिल्मों में काम करने के साथ उन्होंने उस्ताद अल्ला रखा से संगीत सीखना शुरू किया. अब उन्होंने फिल्मो में एक्टिंग के साथ गाना भी शुरू कर दिया. 'ज़रा नैनो से नैना' और 'हमारी नगरियां में' उनके बड़े हिट गाने है.
https://www.youtube.com/watch?v=UQl82p4JZh0
'देवदास' फिल्म के लिए डायरेक्टर पीसी बरुआ ने पारो का रोल पहले कानन देवी को दिया था. पर राधा फिल्म कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट होने की वजह से वह ये फिल्म नही कर पाईं. इस बात का उनको सबसे ज्यादा अफ़सोस था. फिर बाद में उन्होंने राधा फिल्म्स को छोड़ दिया.
कुछ दिनों तक दूसरे प्रोडक्शन में काम करने के बाद उन्होंने श्रीमती पिक्चर नाम का प्रोडक्शन हाउस बना लिया. यहां उन्होंने शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय की कहानियों पर फिल्में बनाईं.
दूसरों के नजरिए को बदला
दूसरों के नजरिए को बदला

कानन देवी की पहली शादी 1940 में अशोक मित्रा से हुई थी. अशोक कट्टर ब्राह्मण परिवार से थे. उनके पिताजी को कानन का फिल्मो में काम करना पसंद नही आया. शादी सिर्फ 5 साल तक चली. इसके बाद 1949 में उनकी शादी हरिदास भट्टाचार्य से हो गयी. फिल्मों से रिटायरमेंट लेने के बाद कानन देवी ने महिला शिल्पी महल नाम की एक संस्था बनाई. यह संस्था बूढ़ी महिला कलाकारों की मदद करती थी. 70 के दशक में बंगाल में नक्सल और माओवादी मूवमेंट के दिनों उनके घर पर बम से हमला हुआ. उनके पति ने सारे बम डीफ्यूज कर दिए. वो नेवी में थे. लेकिन वह बंगाल छोड़ कर कभी नहीं गई.

1968 में कानन देवी को पद्म श्री और 1976 में दादासाहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया. कोलकाता के बेले व्यू हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली थी उन्होंने. तारीख थी 17 जुलाई 1992. कुल 76 साल की उम्र थी. ढेर सारे अवॉर्ड तो हैं ही उनके नाम. 2011 में सरकार ने उनकी डाक टिकट जारी की.

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स्टोरी दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रहे निखिल विजय ने की है.




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