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‘बैंगनी पेशाब’ से कैसे पकड़ा गया जासूस?

दो शब्दों से 20 साल के जासूसी खेल का कैसे हुआ पर्दाफाश?

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रॉबर्ट हैंसन जासूसी स्कैंडल अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा जासूसी कांड था लेकिन ९/11 हमलों के बाद ज्यादा लोगों ने इसकी परवाह नहीं की (तस्वीर: Wikimedia Commons)

कोल्ड वॉर के दौर का किस्सा है. अमेरिकी एजेंसी FBI ने वाशिंगटन स्थित सोवियत दूतावास के नीचे पूरी सुरंग खोद दी थी. जासूसी के लिए. सुरंग बनाने में करोड़ो डॉलर का खर्च आया और 10 साल की मेहनत लगी. हालांकि इतने तामझाम के बाद भी FBI के हाथ आया सिर्फ ठेंगा. (Robert Philip Hanssen). फिर शुरू हुआ हंगामा. तहकीकात हुई. इतना बड़ा ऑपरेशन फेल कैसे हो गया. अंत में FBI ने निष्कर्ष निकाला कि हो न हो, ये काम किसी अंदर के आदमी का है. FBI का शक सही था. उनके ही अपने एजेंट ने सोवियत संघ तक सुरंग की जानकारी पहुंचाई थी. लेकिन वो एजेंट था कौन. ये एक दशक तक पता नहीं चल पाया. आखिर में खेल खुला दो शब्दों से- ‘बैंगनी पेशाब’.

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साल 1987 की बात है. रॉबर्ट हैंसन FBI के न्यू यॉर्क वाले ऑफिस में पोस्टेड थे. एक रोज़ सुबह-सुबह उन्हें बॉस का बुलावा आया. खबर बड़ी थी. सोवियत ख़ुफ़िया एजेंसी KGB के तीन एजेंट रातों रात गायब हो गए थे. FBI चिंता में थी क्योंकि ये तीनों उनके लिए काम कर रहे थे. अंदाज़े के अनुसार तीनों को मॉस्को में गिरफ्तार किया गया था. और जल्द ही उनकी मौत नजदीक थी. तीनों FBI के बड़े काम के थे और तीनों का एक साथ पकड़ा जाना, एक खास संकेत दे रहा था. संकेत ये FBI का कोई अपना ही KGB को जानकारियां दे रहा था. ये आदमी कौन था, ये ढूंढ निकालने की जिम्मेदारी हैंसन के बॉस ने उन्हें दी. (Russian spy)

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Robert Hanssen
FBI एजेंट रॉबर्ट हैंसन (तस्वीर-wikimedia commons/fbi.gov)

पकड़ा गया जासूस लेकिन….  

कुछ 5 साल की तहकीकात के बाद वो शख्स पकड़ा गया. उसका नाम अल्ड्रिक एम्स था. एम्स ने CIA और FBI के लिए काम कर रहे सोवियत एजेंट्स की जानकारी KGB तक पहुंचाई थी. एम्स खुद CIA का एजेंट था. उसे और उसकी पत्नी को इस मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई. और केस फौरी तौर पर बंद कर दिया गया. हैंसन अपनी जिम्मेदारी से फारिग हुए और FBI के दूसरे डिपार्टमेंट में ट्रांसफर कर दिए गए. उनके लिए मामला यहीं ख़त्म था. लेकिन इस केस का एक दूसरा पहलू भी था, जिससे हेंसन बेखबर थे.

KGB एजेंट्स के खुलासे के अलावा दो और मसले थे, जिसे लेकर FBI पेरशान थी. 
पहला- करोड़ों डॉलर और तमाम तामझाम के बाद सोवियत दूतावस के नीचे जो सुरंग बनाई गई थी. उससे उन्हें कुछ भी जानकारी नहीं मिली. ये सुरंग 1978 में बनना शुरू हुई थी. वाशिंगटन DC में मौजूद सोवियत दूतावास एक नई बिल्डिंग में शिफ्ट होना था. मौका देखकर FBI ने सोचा क्यों न जासूसी के लिए एक सुरंग तैयार की जाए, दूतावास की बिल्डिंग के ठीक नीचे। बिल्डिंग और सुरंग बनने में 10 साल का समय लगा, लेकिन अंत में यहां से FBI को एक भी जानकारी नहीं मिल पाई. मानों सोवियत अधिकारियों को इस सुरंग की जानकारी पहले से ही लग गई हो.

दूसरा मसला था, एक और जासूस का. 1989 में FBI, फेलिक्स ब्लॉक नाम के एक सरकारी अधिकारी पर नजर रख रही थी. उस पर शक था कि वो KGB को जानकारी मुहैया करा रहा है. FBI कोई सबूत हासिल कर पाती, इससे पहले ही KGB को इस इन्वेस्टिगेशन का पता लग गया, और उन्होंने ब्लॉक से सारे कांटेक्ट तोड़ लिए. नतीजा हुआ कि ब्लॉक पर कोई इल्जाम साबित नहीं हो पाया और वो बच गया. इन दोनों केसों में साफ़ पता लग रहा था कि FBI या CIA का कोई आदमी KGB को ये जानकारी दे रहा था. ये आदमी अल्ड्रिक एम्स नहीं हो सकता था. क्योंकि इन दोनों घटनाओं के वक्त वो रोम में तैनात था.

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KGB तक ख़ूफ़िया जानकारी पहुंचाने के लिए रॉबर्ट हैंसन लकड़ी के इसी पुल का इस्तेमाल करता था (तस्वीर- wikimedia commons)

फिर असली आदमी था कौन?

1994 में FBI और CIA ने तहकीकात के लिए एक जॉइंट टीम बनाई. ऐसे सभी एजेंट्स की लिस्ट बनाई गई जिनका ब्लॉक केस, सुरंग वाले मामले और जासूसों की पहचान से जुड़े केसों से कुछ भी लेना देना था. इस ऑपरेशन को नाम दिया गया- ‘ग्रे सूट’. कई सालों तक तहकीकात चली लेकिन कोई सुराग हाथ नहीं आया क्योंकि इन्वेस्टिगेशन टीम सिर्फ CIA एजेंट्स पर नजर रख रही थी. किसी ने सोचा ही नहीं कि FBI का कोई बंदा भी ये काम कर सकता है.

1998 में FBI ने ‘ग्रे सूट’ की एक क्रिमिनल प्रोफाइल तैयार की. इस प्रोफ़ाइल से वो ब्रायन केली नाम के एक सरकारी कर्मचारी तक पहुंचे. FBI ने केली के घर की तलाशी थी. उसका फोन टैप किया. और उसे गिरफ्तार कर लिया. बावजूद इसके कि केली बेगुनाह था. KGB ने एक बार उसे हायर करने की कोशिश की थी. लेकिन उसने इंकार कर दिया था और FBI को इसकी सूचना भी दे दी थी.

केली की गिरफ्तारी से ‘ग्रे सूट’ के कुछ सदस्य सहमत नहीं थे. उन्हें अब भी लग रहा था इस काम में किसी और का हाथ है. इसी बीच इन्वेस्टिगेशन टीम के हाथ एक सुराग लगा. CIA ने किसी KGB एजेंट को 56 करोड़ देकर एक फ़ाइल हासिल की थी. इस फ़ाइल मे एक सीक्रेट एजेंट का जिक्र था. जिसे KGB ने ‘B’ कोडनेम दिया था. फ़ाइल के साथ एक ऑडियोटेप भी था. जिसमें B और KGB एजेंट के बीच बातचीत रिकॉर्ड थी. इन्वेस्टिगेशन टीम के एक सदस्य, माइकल वेगस्पैक को B की आवाज कुछ जानी पहचानी लगी, लेकिन काफी सोचने के बाद भी वो याद नहीं कर पाए कि ये आवाज किसकी है. फ़ाइल के पन्ने पलटते हुए वेगस्पैक की नजर दो शब्दों पर गई. ये दो शब्द थे- ‘पर्पल पिसिंग’ यानी ‘बैंगनी पेशाब’. ये देखते ही वेगस्पैक को कुछ याद आया.

'बैंगनी पेशाब'

‘पर्पल पिसिंग’- अमेरिकी सेना के एक जनरल, जॉर्ज एस पैटन इस विशेषण का इस्तेमाल जापानियों के लिए करते थे. WW2 के दौरान जापान अमेरिका का सीधा दुश्मन था. और पैटन अक्सर उन्हें ‘वे बैंगनी पेशाबी करने वाले जापानी’ कहकर बुलाते थे. इस टर्म के पीछे कहानी ये है कि जापानी लोग अक्सर एक बैंगनी रंग की डाई का इस्तेमाल फंगल इंफेक्शन के इलाज के लिए करते थे. और पैटन के अनुसार इसलिए उनकी पेशाब का रंग बैंगनी हो जाता था.

Hanssen in Jail
10 मई 2002 के दिन हैंसन को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई (तस्वीर- wikimedia commons)

बहरहाल ‘पर्पल पिसिंग’ को देखते ही वेगस्पैक को याद आया कि कोई और भी था जो इन शब्दों का अक्सर इस्तेमाल करता था. ये और कोई नहीं, उनका ही साथी रॉबर्ट हैंसन था. वही रॉबर्ट हैंसन जिसे 1987 में KGB एजेंट को ढूढ़ने की जिम्मेदारी दी गई थी. यानी हैंसन खुद अपनी ही तहकीकात कर रहा था. दो दशकों तक हैंसन ने अमेरिकी ख़ुफ़िया जानकारी KGB तक पहुंचाई थी. ऐसे KGB एजेंट जो, CIA के लिए काम कर रहे थे, उनके नाम उसने KGB को दिए. और साथ ही सोवियत संघ के सर्विलांस से जुड़े एक प्रोग्राम की फाइल्स भी KGB को दे दी थी. 

हैंसन ने ये सब पैसों के लालच में किया था. वो बहुत शातिर तरीके से अपना काम करता था, ताकि पकड़ा न जाए. हालांकि दो बार ऐसे मौके आए थे, जब उसकी पोल खुलते-खुलते बची थी. एक बार उसके कंप्यूयर की जांच में पासवर्ड क्रैक करने वाला सॉफ्टवेयर मिला था. पूछताछ में उसने बताया कि वो प्रिंटर जोड़ने के लिए पासवर्ड क्रैक करने की कोशिश कर रहा था. और अधिकारियों ने उसकी इस बात पर विश्वास भी कर लिया.

दूसरी बार उसकी पत्नी के भाई ने FBI से कांटेक्ट कर उसकी शिकायत की थी. उसके बिस्तर के नीचे नोटों की गड्डी मिली थी. और अक्सर वो पोलेंड में बसने की बातें किया करता था. जो 1991 तक सोवियत संघ के प्रभाव में था. इन दोनों मामलों में लापरवाही के चलते वो बच निकला था और इसी कारण साल 2000 तक उसका कॉन्फिडेंस आसमान तक पहुंच गया था. साल 2000 में उसे एक खुशखबरी मिली. उसका प्रमोशन हुआ. साथ ही नया ऑफिस और एक असिस्टेंट भी मिला. असिस्टेंट का नाम था, एरिक ओ नील. नील का असली काम हालांकि हैंसन पर नजर रखना था. KGB से मिले ऑडियोटेप में उसकी आवाज सुनने के बाद से ही शक की सुई उस पर थी. अधिकारियों को बस अब उसे रंगे हाथ पकड़ना था.

20 साल बाद रंगे हाथ 

FBI में अपने आख़िरी दिनों में हैंसन को शक होने लगा था कि उस पर नजर रखी जा रही है. KGB को लिखे अपने आख़िरी खत में उसने लिखा,

”मुझे एक फालतू काम दे दिया है, जिसमें काम की कोई जानकारी मुझसे होकर नहीं गुजरती, कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है”.

FBI Team
रॉबर्ट हैंसन की गिरफ़्तारी के मिशन को अंजाम देने वाली FBI की टीम जिसे मिशन पूरा होने के बाद ‘अटॉर्नी जनरल अवार्ड’ दिया गया (तस्वीर- jerriwilliams.com)

गड़बड़ होनी हालांकि अभी बाकी थी. 18 फरवरी, 2001 की तारीख. हैंसन अपने घर से कार में निकला और कुछ मील सुनसान जगह पर उसने एक पार्किंग साइन के ऊपर सफ़ेद टेप का टुकड़ा चिपकाया. ये सिग्नल था. KGB के लिए. कुछ रोज़ हेंसन फिर उस जगह पर गया. अबकि बार उसके हाथ में एक पैकेट था. कूड़े की थैली में बंधा हुआ. इस पैकेट को उसने लकड़ी के पुल के नीचे बांध दिया. ये उसका हमेशा का रूटीन था. लेकिन उसे खबर नहीं थी कि उस रोज़ FBI उसका पीछा कर रही थी. जैसे ही उसने पैकेज ड्राप किया, उसे गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के वक्त उसने अधिकारियों से पूछा,

“तुम्हें इतनी देर कैसे लग गई?”

हैंसन की गिरफ्तारी अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा जासूसी स्कैंडल था. उसे सजा-ए-मौत देने की बात हुई. लेकिन फिर सोवियत जासूसी प्रोग्राम की जानकारी साझा करने के एवज में उसकी सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई. फैसले का दिन था 10 मई 2002. इतना बड़ा मामला होने के बावजूद तब इस बात का ज्यादा हंगामा नहीं हुआ था. इसकी वजह एक दूसरी तारीख थी. 9/11 हमलों के बाद अमेरिका की प्राथमिकता बदल चुकी थीं. रूस ने अमेरिका के समर्थन का ऐलान कर दिया था. पुराने सोवियत जासूसों में अब किसी की रूचि नहीं रह गई थी.

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