वो कौन सा दान है जो शायद सबसे बड़ा दान होकर भी आपको उसके लिए एक नया पैसा नहीं खर्च करना?अंगदान!
यानी अपने शरीर को या शरीर के एक हिस्से का दान कर देना. ये जीते-जी भी हो सकता है और मृत्योपरांत भी. मृत्योपरांत अंग दान करने के लिए आपको अपने जीते जी ही ये विल लिखवानी पड़ती है.
एक अनुमान के अनुसार दुनिया में आज तक 107 अरब लोग जी के मर चुके हैं. हम शायद एक्सेप्शन हों. और यदि आप और हम अमरत्व की बूटी लेकर आए हैं तो हमें ये पोस्ट आगे पढ़ने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है.
इंसान के शरीर से केवल गुर्दा या लीवर का एक हिस्सा ही कोई जीवित व्यक्ति दान कर सकता है. ज्यादातर ट्रांसप्लांट जैसे हृदय, फेफड़े, पैंक्रियाज और आंतों को तो मृत शरीर से ही लिया जा सकता है.
# अंगदान कैसे कर सकते हैंकिसी भी उम्र, लिंग, जाति का व्यक्ति अंगदान कर सकता है. यदि आप 18 वर्ष से कम उम्र के हैं तो मम्मी-पापा को कन्विंस करना ज़रूरी है.
यदि किसी ने अपनी मृत्यु से पहले ऑर्गन डोनेशन की विल लिखवाई है तो ऐसा करने के लिए उसे दो गवाहों की ज़रूरत होगी. उनमें से कोई भी एक व्यक्ति डोनेटर की मृत्यु के बाद उसके अंगों को दान करने का अधिकार रखता है. यदि ऐसी कोई विल नहीं बनी है तो किसी की मृत्यु के बाद नज़दीकी परिजन अंगदान का निर्णय ले सकते हैं.
अंगदान से कई ‘लाइलाज बीमारियां’ ठीक हो सकती हैं. जैसे कि हार्ट फेल की लास्ट स्टेज, फेफड़ों की बीमारियां, आंखों की कुछ बड़ी बीमारियां (जैसे पुतलियों के ख़राब होने के चलते अंधापन), गुर्दों व जिगर की लास्ट स्टेज की बीमारियां, अग्नयाशय की बिमारी, जली हुई स्किन.
और हां, डोनेटर के अंतिम संस्कार में (फिर चाहे वो किसी भी धर्म का हो) डोनेशन से कोई अंतर नहीं आता. क्यूंकि प्रत्यारोपण के लिए बहुत कुशल टीम का चुनाव होता है.
भारत सरकार ने फ़रवरी 1995 में 'मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम' पास किया था. जिसके अन्तर्गत अंगदान और मस्तिष्क मृत्यु को क़ानूनी वैधता प्रदान की गई है. लेकिन 'मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994' के अनुसार अंगों व ऊतकों की बिक्री पूर्णत: प्रतिबंधित है. और यदि ऐसा पाया जाता है तो दोषियों को दंड या/और जुर्माना देना होगा.
देहदान के लिए आवेदन करना बहुत आसान है. आपको एक संकल्प-पत्र भरना होता है. और निम्न चीज़ें चाहिए होती हैं:-
आपकी 2 फोटो, फोटो पहचान-पत्र, स्थायी निवास प्रमाण-पत्र, दो गवाह, जिनमें से एक डोनर का नज़दीकी रिश्तेदार हो और अंततः गवाहों के फोटो, फोटो पहचान-पत्र एवं स्थायी निवास प्रमाण-पत्र.
स्क्रीनशॉट - इंडिया टुडे मैगज़ीन
# दी गुड, दी बैड एंड दी अगली –दी गुड – देश में अंगदान को लेकर जागरूकता बढ़ी है. और पिछले वर्षों की तुलना में अधिक लोग जीते जी या मृत्योपरांत अपने अंग दान कर रहे हैं.
दी बैड – 13 अगस्त यानी विश्व अंगदान दिवस आने वाला है. उस दिन बहुत से भारतीय दूसरों का जीवन बचाने के लिए अंगदान की शपथ लेंगे. फिर भी मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर ज्यादा बना रहेगा. ज़रा कुछ आंकड़े देखिए -
# भारत में .0001 % से भी कम लोग अंगदान करते हैं. मतलब दस लाख में से एक आदमी से भी कम (0.86). प्रति 10 लाख की आबादी में से अमेरिका में 26 और स्पेन में 36 अंगदान होते हैं.एंड दी अगली – अंगदान का सबसे पहला फायदा एक भारतीय को उसके बाद एक एनआरआई को और सबसे अंत में एक विदेशी व्यक्ति को मिलना चाहिए. लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि हो उल्टा रहा है. और इसके पीछे करप्शन और रैकेट से इंकार नहीं किया जा सकता.
# पिछले 13 सालों में तीस लाख लोग वेटिंग लिस्ट में से कम हुए. लेकिन इसलिए नहीं कि उनका अंग प्रत्यारोपण हो चुका था, बल्कि इसलिए क्यूंकि अंग मिलने से पहले ही ज़रूरतमंद चल बसे.
# कुछ ऐसे तथ्य जो उदास करते हैं लेकिन मोटिवेट भी -नोट्टो (राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संस्थान)
के निदेशक प्रो. विमल भंडारी ने हताशा में एक बार संस्थान के आधिकारिक व्हॉट्सऐप ग्रुप पर एक मैसेज पोस्ट किया था -
यह विश्वास करना मुश्किल है कि भारतीयों के दिल भारत के मरीजों के साथ प्रत्यारोपण के लिए मेल नहीं खाते लेकिन विदेशियों के साथ मेल खा जाते हैं. भला ऐसा कैसे संभव है?
ऐसा लगता है कि भारतीयों का पैसा विदेशी मरीजों के पैसे से मेल नहीं खा पाता. दुख के साथ लिख रहा हूं कि हम इतने लालची हैं कि हम किसी गरीब भारतीय मरीज की सहायता नहीं करना चाहते और प्रतीक्षा सूची में हेर-फेर करके अंग किसी भी तरह विदेशियों को दे देने को आतुर हैं.
उन्होंने ऐसा तब किया जब उन्हें पता चला कि ब्रेन-डेड मरीजों से प्राप्त हृदय और फेफड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में भर्ती विदेशी मरीजों को दे दिए गए. आरोप ये भी थे कि ब्रेन-डेड मरीज के शरीर से ये अंग विदेशी मरीजों में प्रत्यारोपित करने के लिए परिजनों की अनुमति के बगैर निकाल लिए गए थे.
उन्होंने बताया कि कोई भी राज्य अपनी प्रतीक्षासूची को पारदर्शी बनाने के लिए नवंबर 2015 में शुरू हुए प्रस्तावित राष्ट्रीय अंग रजिस्ट्री का हिस्सा बनने के नियमों का पालन नहीं कर रहा है.
प्रत्यारोपण कानून सभी अस्पतालों के लिए अपनी वेबसाइटों पर प्रतीक्षासूची अपलोड करना अनिवार्य बनाते हैं. इसे राज्यों की प्रतीक्षा सूची से जोड़ा जाता है और इस तरह यह क्षेत्रीय प्रत्यारोपण संगठन की प्रतीक्षा सूची में जुड़ता है और अंततः ये नोट्टो से जुड़ते हैं और इस तरह राष्ट्रीय रजिस्ट्री तैयार होती है. इनमें से अधिकांश कागजों पर ही अस्तित्व में हैं.
अंगदाता से अंग के प्राप्तकर्ता तक पहुंचने में समय सबसे बड़ा घटक है. एक गुर्दे को 12 से 18 घंटे तक संरक्षित किया जा सकता है जबकि 8 से 12 घंटे के लिए लीवर का संरक्षण हो सकता है. प्रत्यारोपण सफल होने के लिए जरूरी है कि छह घंटे के भीतर दिल और फेफड़ों को ट्रांसप्लांट कर दिया जाए.
इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर डिजीज ऐंड ट्रांसप्लांटेशन, ग्लोबल हॉस्पिटल्स ग्रुप के निदेशक और किंग्स कॉलेज हॉस्पिटल लंदन में लिवर सर्जरी के प्रोफेसर मोहम्मद रेला कहते हैं -
हो सकता है कि कभी-कभार व्यवस्था में कोई हेर-फेर हो जाए फिर भी यहां गौर करने की बात है कि भारतीय मरीजों के लिए उचित न पाए जाने पर अंग को प्रत्यारोपण के लिए विदेशी मरीजों को दे दिए जाने की मौजूदा व्यवस्था के बावजूद कुल दान में मिले हृदय और फेफड़े में से एक तिहाई का 'उपयुक्त' प्राप्तकर्ता के अभाव्य में इस्तेमाल ही नहीं हो पाता.होने को कुछ लोग कहते हैं कि पैसे के बदले अंग को लीगल ही क्यूं न कर दिया जाए. ईरान ने किडनी दान करने वालों को बदले में पैसे देने की प्रथा 1988 में बना ली थी और यही एकमात्र देश है जहां प्रत्यारोपण की कोई प्रतीक्षा सूची नहीं है.
# उधर प्रोसेसिंग में दिक्कत है, इधर जागरूकता का अभाव -अंगदान को प्रोत्साहित करने वाले चेन्नै के एक एनजीओ मोहन फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. सुनील सर्राफ कहते हैं –
प्रत्यारोपण कार्यक्रम को जितने उत्साह से आगे बढ़ाने की जरूरत है वह दिख नहीं रहा और बिना इसकी चुनौतियों को अच्छी तरह से समझे मीडिया में इसकी आलोचना से समस्याएं और बढ़ रही हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बहुत से अन्य देशों में प्रत्यारोपण के लिए अंग प्राप्त करने वालों में भारतीय भी होते हैं.श्रॉफ अमृतसर के मनमोहन सिंह महाल का उदाहरण देते हैं जो हृदय प्रत्यारोपण के बाद सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति हैं. 26 जून को उन्होंने प्रत्यारोपण की 25वीं सालगिरह मनाई.
इंडिया टुडे मैगज़ीन की ख़ास रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र स्तर पर नीतियां और कार्यक्रम तो हैं लेकिन उन्हें लागू करना और सुचारू रखना राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है. और राज्य सरकार इसमें ढुलमुल रवैया अपनाती है.
तमिलनाडु अंगदान में अग्रणी है और महाराष्ट्र नई नीति के लागू होने की प्रतीक्षा कर रहा है. 2018 की शुरुआत में इसने कई कदम उठाए जिनमें से एक था आपातकालीन अंगदान और अंग प्राप्ति की स्थितियों से निपटने के लिए एक व्यवस्था बनाना.
तमिलनाडु और महाराष्ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का भी अंगदान के क्षेत्र में प्रदर्शन अच्छा है. नोट्टो अब दिल्ली, जयपुर और इंदौर सहित देश के अन्य हिस्सों में प्रत्यारोपण कार्यक्रम के विस्तार में मदद कर रहा है.
भारत में हर साल करीब 5 लाख सड़क हादसे होते हैं जिसमें लगभग 1,48,000 लोगों की जान जाती है और इससे तिगुनी संख्या में लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं.
प्रत्यारोपण कानूनों में परिवर्तन करते हुए अगर ब्रेन स्टेम डेथ की घोषणा हर अस्पताल के लिए अनिवार्य कर दी जाती है तो मृत डोनर पूल में काफी वृद्धि हो सकती है. यदि जन्म और मृत्यु अधिनियम के पंजीकरण में ब्रेन डेड को मृत्यु के तरीके के रूप में पहचाना जाता है, तो इससे जीवन और मौत के बीच झूल रहे मरीजों के लिए संभावित दाताओं की संख्या में में वृद्धि होगी, साथ ही साथ ऑर्गन पूल भी बढ़ेगा.
# क्या कहते हैं प्राप्तकर्ता –मनमोहन सिंह महाल, जिनका उदाहरण ऊपर डॉ. सुनील सर्राफ ने दिया था, कहते हैं -
अंगदान महादान है जो कोई व्यक्ति किसी की जिंदगी बचाने के लिए कर सकता है. सिर्फ परिवार के लोगों के लिए रक्तदान या अंगदान करना ही काफी नहीं है. परिवार के आगे भी सोचना चाहिए. अगर मुझे किसी का अंग न मिला होता तो आज मैं दुनिया में न होता और न ही लोगों को अंगदान के लिए प्रोत्साहित कर रहा होता.
मैं कोलोरेडो के एक युवा और उसके परिवार की दरियादिली के लिए जीवनभर ऋणी रहूंगा. उनके ही कारण आज मैं ज़िंदा हूं.
महाल को इन वर्षों में बेहिसाब रक्त और प्लाज्मा भी दान में मिले हैं. वे कहते हैं -
दुनिया को वापस देने की भावना इस सतत बदलती यात्रा को अमूल्य बनाती है.
सभी चित्र या तो ऑर्गन इंडिया के एफ बी पेज
से लिए गए हैं या फिर एनएचएस ऑर्गन डोनेशन के ट्विटर हैंडल
से.