क्या आपको भी लगता है बड़े शहरों के मच्छर छोटे शहरों के मुकाबले ज्यादा स्ट्रोंग होते हैं. मने वही मच्छर जो आपके पुश्तैनी शहर-गांव में एक कॉइल जला कर आसानी से भाग जाते थे. बड़े शहरों में उन्हें किसी कॉइल या लिक्विड भरी मशीन से भी फर्क नहीं पड़ता. आपकी इस परेशानी के पीछे है चार्ल्स डार्विन का एक सिद्धांत. जिसे ‘एवल्यूशनरी प्रेशर इन नेचुरल सिलेक्शन’ कहते हैं. इसी सिद्धांत के चलते दुनिया का एक द्वीप ऐसा है, जहां सिर्फ सांप ही सांप रहते है. हर एक वर्ग मीटर में एक सांप. इस द्वीप से जुड़ी हैं कुछ डरावनी कहानियां. क्या है ये कहानियां और खुद इस द्वीप की क्या कहानी है. चलिए जानते हैं. (snake island brazil)
सांप ही सांप, दुनिया का सबसे खतरनाक द्वीप जहां इंसानों का जाना मना है
सांप वाले द्वीप की हैरतंगेज़ कहानी
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ये बात है साल 1920 के आसपास की. ये उस दौर की बात है जब GPS नहीं था. इसलिए समुद्री तटों के पास लाइट हाउस बनाए जाते थे. ताकि आती हुई नावों और समुद्री जहाजों को रास्ता दिखा सकें. और वो किसी चट्टान से टकराएं नहीं. ऐसा ही एक लाइट हाउस बना हुआ था, अटलांटिक महासागर पर बने एक छोटे से द्वीप पर. जिसकी देखरेख एक कर्मचारी किया करता था. बूढ़ा सा वो शख्स लाईट हाउस में बने एक कमरे में अपने परिवार के साथ रहता था. एक रात भयंकर तूफ़ान आया. और अगली सुबह कर्मचारी का पूरा परिवार मरा हुआ मिला. तब से उस लाइट हाउस पर कोई कर्मचारी रहने नहीं गया. लोक कथाएं बताती हैं कि उस बूढ़े के पूरे परिवार को सांपों ने डस लिया था. ऐसी ही और कई कहानियां हैं, उस द्वीप के बारे में, जिसका नाम है, इल्हा दा क्यूइमाडा ग्रांडे.
नक़्शे पर नजर डालिए. दक्षिण अमेरिका का देश ब्राजील. ब्राजील का एक शहर साओ पोलो. साओ पोलो से नीचे की तरफ देखेंगे तो आपको एक छोटा सा द्वीप दिखाई देगा. यही है, इल्हा दा क्यूइमाडा ग्रांडे. हालांकि इसका एक दूसरा नाम है, जो ज्यादा लोकप्रिय है- स्नेक आइलैंड यानी सांपों का द्वीप. बात सिर्फ ये नहीं है कि इस द्वीप पर सांप हैं. बात ये है कि यहां बस सांप ही सांप हैं. इंसान यहां नहीं पाए जाते. बाकायदा बाकी जानवरों का रहना भी मुश्किल है. क्योंकि द्वीप पर इतने जहरीले सांप हैं कि किसी का भी बचना मुश्किल है.

छोटा सा द्वीप महज़, 106 एकड़ एरिया में फैला हुआ है. और इसके बीचों बीच एक लाइट हाउस बना हुआ है. यूं लाइट हाउस अब ऑटोमेटिक काम करते हैं. लेकिन फिर भी साल में एक बार इसके रख रखाव के लिए जाना पड़ता है. और तब आती है बड़ी मुसीबत. क्योंकि इस द्वीप का कोई ऐसा कोना नहीं, जिसमें सांप न हों. अब पहला सवाल ये है कि इस द्वीप पर इतने सांप आए कहां से. पहले किंवदंती की बात. कहानियां चलती हैं कि इस द्वीप पर समुद्री लुटेरे अपना खज़ाना छुपाते थे. और खजाने की रक्षा के लिए उन्होंने द्वीप पर सांप छोड़ दिए. लेकिन असलियत कुछ और है.
दरअसल सवाल ये है ही नहीं कि इस द्वीप पर सांप आए कैसे. सांप लगभग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं. सिवाय न्यूजीलैंड के. हालांकि क्रिकेट वर्ल्ड कप की बात हो तो उनकी टीम भारत की टीम को डसने का कोई मौका नहीं छोड़ती. बहरहाल न्यूजीलैंड में सांप क्यों नहीं होते, ये अपने आप में काफी दिलचस्प सवाल है. लेकिन फिलहाल बात करते हैं, स्नेक आइलैंड की. इस द्वीप की कहानी शुरू हुई थी कुछ 11 हजार साल पहले. क्या हुआ था तब?
तब ये द्वीप दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप से जुड़ा हुआ था. पूरे महाद्वीप पर सांप थे. बाकायदा दक्षिण अमेरिका सर्पों के लिए स्वर्ग हुआ करता था. इसलिए यहां नदी के किनारे अमेज़न के जंगलों में एनाकोंडा जैसे विशाल अजगर विकसित हुए. एनाकोंडा फिल्मों में जैसा दिखाया जाता वैसे नहीं होते लेकिन हां, इनकी लम्बाई 20 फीट तक हो सकती है.
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कुछ 11 हजार साल पहले, आइस एज के आख़िरी चरण में अटलांटिक महासागर का लेवल बढ़ना शुरू हुआ. हुआ ये कि इस चक्कर में स्नेक आइलैंड बाकी महाद्वीप से पूरी तरह कट गया. और इस द्वीप पर रहने वाले सांप यहीं फंस गए. ऐसा कोई जानवर इस द्वीप पर था नहीं जो सांपों का शिकार करता हो. इसलिए सांपों की संख्या में तेज़ी आती गई. लेकिन ये फायदे से ज्यादा दिक्कत की बात थी. क्योंकि एक लिमिटेड जगह में होने के कारण, ऐसे जीव ख़त्म होते गए, जिन्हें ये सांप खा सकते थे. लिहाजा शुरुआत हुई, उस प्रोसेस की जिसे हमने शुरुआत में 'एवल्यूशनरी प्रेशर इन नेचुरल सिलेक्शन’ कहा था.

नेचुरल सिलेक्शन आप जानते हैं. किसी जीव के वे गुण जो उसे जिन्दा रहने, बचे रहने में सहायक होते हैं, वो आगे बढ़ते हैं, और बाकी गुण विलुप्त हो जाते हैं. उदाहरण है जिराफ का. जिराफ के पूर्ववर्ती जो जीव थे. उनमें से जिनकी गर्दन लम्बी थी, वो ऊंची डालों पर लगी पत्तियां खा सकते थे. जिनकी गर्दन छोटी थी, उन्हें कम खाना मिलता था. लिहाजा ऊंची गर्दन वाले जिराफों के जींस आगे बढ़े. और उनकी गर्दन लम्बी होती गई.
ये एवल्यूशन (evolution) की स्वाभाविक प्रक्रिया है. लेकिन कभी कभी कुछ वजहों से इस प्रक्रिया में और ज्यादा तेज़ी आ जाती है, या ये बहुत ही स्लो हो जाती है. इसे ही एवल्यूशनरी प्रेशर' कहते हैं और ऐसा कई कारणों से हो सकता है. सबसे अच्छा उदाहरण है, कुत्ते का. कुत्ते आदिम भेड़ियो के वंशज हैं. जिन्हें इंसान ने पालतू बनाना शुरू किया. और चूंकि हमें भेड़ियो जैसे खूंखार पालतू जीव नहीं चाहिए थे, इसलिए सिर्फ उन प्रजातियों का प्रजनन कराया गया, जिनमें हमारे काम के गुण थे, लेकिन जो कमोबेश कम हिंसक थे.
मच्छर तगड़े क्यों हो रहे?ये बात पालतू कुत्तों के लिए फायदे की थी. इंसानों से भोजन मिलता था आसानी से. इसलिए विकासक्रम में कुत्ते इस तरह विकसित हुए कि उनमें वो गुण बने रहे जो इंसान के काम के थे. और सिर्फ काम के ही नहीं, जो इंसान को पसंद थे. मसलन कुत्तों की आंखें और उनका रंग. हमने ऐसी प्रजातियों का भी प्रजनन कराया, जो हमें अच्छी लगती थी, मसलन हच वाला वो कुत्ता, जो किसी काम का नहीं. उसका कोई फीचर एवल्यूशन के हिसाब से उसके काम का नहीं है. लेकिन चूंकि हमें वो पसंद है. इसलिए उसका प्रजनन होता है. बाकी कई प्रजातियां विलुप्त हो गई. कुत्तों के मामले में इंसानी दखल ने एवल्यूशनरी प्रेशर बनाया. ये हमारे काम का साबित हुआ. लेकिन फिर कई बार मामला उल्टा पड़ जाता है.
जैसे मच्छर. दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें मच्छर से होने वाली बीमारियों से होती हैं. इसलिए हमने मच्छरों को मारने के तमाम उपाय किए. एक से एक केमिकल बनाए. ताकि मच्छर मर जाएं. या कम से कम हमसे दूर रहे. इससे हुआ ये कि मच्छरों की वो प्रजातियां आगे बढ़ गई, जिनमें इन केमिकल्स को सहने की क्षमता ज्यादा थी. लिहाजा और हर साल मच्छर ज्यादा स्ट्रांग होते जाते हैं. और, कॉयल हो या पंप, हर साल उनकी मारक क्षमता बढानी पड़ती है. ये भी एवल्यूशनरी प्रेशर का एक उदाहरण है.

स्नेक आइलैंड के केस में सांपों को शिकार की जरुरत थी. और शिकार कम था. ऐसे में इन सांपों ने उन माइग्रेटरी बर्ड्स का शिकार करना शुरू किया. जो थकान मिटाने के लिए इस द्वीप के पेड़ों पर बैठने आती हैं. इन पक्षियों का शिकार मुश्किल था. इसलिए विकास क्रम ने स्नेक आइलैंड के सांपों का जहर इतना मारक बना दिया कि एक ही बार में काम तमाम हो जाए. स्नेक आइलैंड में सुनहरे रंग का एक सांप पाया जाता है. जिसका नाम है गोल्डन लैंसहेड पिट वाइपर ये सांप बहुत ही जहरीला होता है. कितना ज़हरीला?
सांपों को खतराज़हर की ताकत भी तभी बेहतर समझ आएगी जब पैसों में बात होगी. एक सांप के जहर की कीमत है लगभग 25 लाख रुपये. इस जहर में इतना दम होता है कि इंसानी मांसपेशियों को गला दे. ब्राजील की लोक कथाओं में एक किस्सा है. एक बार एक शख्स नाव चलाते चलाते स्नेक आइलैंड के पास पहुंच गया. उसे इस द्वीप की असलियत पता नहीं थी. वो भूखा था, इसलिए जंगली फलों की खोज में द्वीप में घुस गया. लेकिन एक बार अन्दर गया तो बाहर नहीं आ पाया. उसे ढूंढने के लिए कई लोग गए. लेकिन एक एक कर सभी गायब हो गए. कई दिनों बाद उस शख्स और बाकी लोगों की लाशें मिलीं. उन्हें सांपों ने डंस लिया था.
गोल्डन लैंसहेड की एक खास बात है कि ये सांप केवल इसी द्वीप पर पाया जाता है. इसकी मिलती जुलती प्रजाति के सांप मुख्य महाद्वीप पर मिलते हैं. और इंसानों को काटे जाने की 90 % घटनाएं इन्हीं के द्वारा होती हैं. हालांकि ये प्रजातियां गोल्डन लैंसहेड जितनी जहरीली नहीं होती. गोल्डन लांस हेड के एक्स्ट्रा मारक जहर का कारण ये है कि ये सांप घात लगाकर शिकार नहीं कर सकता. इसलिए विकास क्रम ने इसके जहर को इतना मारक बना दिया कि ये पक्षियों को डसे तो बचने की कोई संभावना न रहे.
गोल्डन लैंसहेड में वैज्ञानिकों की खास रुचि है. इसका जहर दवा आदि के शोध के काम आता है. इसलिए शोधकर्ता इस द्वीप पर जाते हैं. वो भी सिर्फ ब्राजील की नेवी के साथ. इनके अलावा आम लोगों का इस द्वीप पर आना जाना मना है. अब आप सोच सकते हैं, सांपों के ऐसे द्वीप पर कोई क्यों जाना चाहेगा. तो बात ये है कि सांप चाहे जितना जहरीला हो जाए. इंसान को कम्पीटीशन नहीं दे सकता. गोल्डन लैंसहेड के जहर की कीमत बताई हमने आपको. इसी के लालच में लोग इस द्वीप में घुसते हैं और गोल्डन लैंसहेड को अवैध रूप से पकड़ लाते हैं. हालत ये है कि पिछले 7 मिनट से जिस सांप के दंश का डर हम आपको दिखा रहे हैं, वो बेचारा खुद संकट में है. और International Union for Conservation of Nature (IUCN) नाम की अंतर्राष्ट्रीय संस्था, जो संरक्षण का काम करती हैं, उसने इस सांप को क्रिटिकली एनडेंजर्ड जीवों की लिस्ट में डाल रखा है. तो सबक यही है कि स्नेक आइलैंड पर नहीं जाएं. सांप से आपको खतरा हो न हो, सांप को आपसे और हमसे बहुत ज्यादा खतरा है.
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