बढ़ते शिकार और जंगलों के आस-पास अतिक्रमण करती मानव आबादी ने जंगल की इस बड़ी बिल्ली की बढ़त को रोक दिया था. कैंपेन चलाए गए. विज्ञापनों की झड़ी लग गई. बाघ बचाओ. शिकार रोको. एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट भी उतर आए मैदान में. कवायद का नतीजा ये हुआ कि दस साल बाद देश में इनकी संख्या 2,967 पहुंच गई.

राहत की सांस ली गई. लेकिन जंगली जानवरों के अवैध शिकार की कहानी यहीं ख़त्म नहीं हुई. होनी भी नहीं थी.
कुछ जंगली जानवरों के शिकार की घटनाएं खबरें बनती हैं. उनको लेकर बहसें होती हैं. एक्शन प्लान बनाए जाते हैं. जैसे हाथी, शेर, चीता, बाघ, पांडा, ओरांगुटान, डॉल्फिन, व्हेल मछली. इनका शिकार इनके फर, दांतों, चमड़ी, मांस इत्यादि के लिए किया जाता है. हाल में पैंगोलिन नाम भी इसमें सामने आया. कोरोनावायरस के चलते. पता चला ये चींटीखोर जानवर भी शिकार का मारा है. लेकिन इन्हीं सब जानवरों के बीच एक ऐसा जानवर और है, जिसका शिकार धीरे-धीरे अपने देश में बढ़ता जा रहा है. लेकिन उसके बारे में खबरें पढ़ने को नहीं मिलतीं.
वो जानवर है सियार. अंग्रेजी में इसे jackal कहते हैं. इसका एक नाम गीदड़ भी है.

एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल है- जर्नल ऑफ थ्रेटेंड टैक्सा (Journal of Threatened Taxa). इसमें पूरी दुनिया में जंगली जानवरों को बचाने के लिए चल रही रिसर्च और योजनाओं पर आर्टिकल छपते हैं. इसी में आर्टिकल छपा कि किस तरह पिछले छह सालों में ही सैकड़ों सियारों की चमड़ियां, पूंछ, और उनकी खोपड़ियां जब्त की गईं. ये आंकड़ा सिर्फ भारत का है. लेकिन सियारों को आखिर किस चीज़ के लिए मारा जा रहा है?
जवाब है – सियार सिंगी, या गीदड़ सिंगी.

गधे के सींग सियार के सिर?
सियार के सींग नहीं होते. ये बायोलॉजिकल सत्य है. लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि सियार की नाक के ऊपर एक छोटा-सा सींग होता है. स्टडी करने वालों के अनुसार इसका इस्तेमाल काले जादू में किया जाता है. भारत की बात करें तो कई ऑनलाइन दुकानें भी सियार का सींग बेचने का दावा करती हैं. कई वेबसाइट्स पर ये दावा किया गया है कि सियार सिंगी को सिंदूर से भरी डिबिया में रखना फायदेमंद होता है. इससे काम सिद्ध हो जाते हैं.
काफी पहले एक किताब पढ़ी थी. तंत्र-मंत्र पर. उसमें भी इसका ज़िक्र था. किताब में यहां तक लिखा गया था कि एक ख़ास समय पर जब सियार ‘हुआं-हुआं’ करने पहुंचे, जब देखना चाहिए कि उसकी नाक पर सींग है या नहीं.

ऐसी किताबों में ये भी लिखा होता है कि इस सिंगी के लिए किसी सियार की जान नहीं लेनी चाहिए. किसी मरे हुए सियार का ही ‘सींग’ लेना चाहिए. लेकिन इस अंधविश्वास की वजह से हजारों सियारों की जान आफत में फंस गई है.
इस रिसर्च के मुताबिक़, कई बार सियार की नाक के ऊपर की हड्डी बढ़ जाती है, या बालों का गुच्छा बन जाता है. उसे सियार सिंगी कहते हैं. कई ऑनलाइन वेबसाइट्स गीदड़,कुत्तों, लोमड़ियों के पंजों के नाखून निकाल कर भी उसे सियार सिंगी कहकर बेचती हैं. उत्तर भारत के साथ-साथ ये दक्षिण भारत में भी बेची जाती है, और इसे नरी कोम्बू कहा जाता है. पिछले छह सालों में ऐसे 370 ‘सियार सिंगी’ जब्त किए गए हैं.
कौन कौन से देश इसमें शामिल हैं?
स्टडी कहती है कि दक्षिण एशियाई देशों में जादू-मंत्र करने वाले लोगों द्वारा की गई मांग ही मुख्य रूप से ‘सियार सिंगी’ का व्यापार चला रही है. भारत के अलावा पाकिस्तान भी इसका एक स्रोत माना जाता है. इसके अलावा बिक्री की बात करें तो UK, USA, जर्मनी और सिंगापुर में भी ऑनलाइन इसे बेचा जाता है.
कैसे रोका जा सकता है ये व्यापार?
रिसर्च करने वालों का सुझाव है कि राज्य के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट्स को इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए. जानवरों के शरीर के हिस्सों का व्यापार करने के लिए एक बड़ा तंत्र पहले से मौजूद है. इसमें छिपकलियां, पैंगोलिनन, कस्तूरी मृग के शरीर के हिस्से, उल्लू और कई जलीय प्राणी शामिल हैं. इसी का फायदा उठाकर सियार सिंगी का भी लेन-देन किया जाता है. इन पर कड़ी नज़र बनाए रखने पर ही इस अवैध व्यापार को भी रोका जा सकेगा.
वीडियो: दस लोगों का शिकार करने वाला बाघ