#1. स्पर्श (1980)
आंखों से देख न सकने वाले बच्चों का स्कूल चलाने वाले एक प्रिंसिपल अनिरुद्ध यानी नसीर. उनकी आंखों की रोशनी भी नहीं है. इन्हें प्यार हो जाता है ख़ूबसूरत आवाज़ वाली कविता यानी शबाना आज़मी से. मगर अंधेरी आंखें उन्हें देखने नहीं देती कविता का प्यार. देख न पाने वालों की ज़िन्दगी को बखूबी जिया है नसीर ने इस फ़िल्म में. छोटी-छोटी बारीकियां और ये कि कितना आम है उनका जीवन भी हमारी ही तरह. सई परांजपे की लिखी और उन्हीं के निर्देशन में बनी ये फ़िल्म सर्वकालिक महान फिल्मों में जरूर शामिल होती है. मस्ट वॉच!#2. जूनून (1978)
रस्किन बॉन्ड के नॉवेल 'ए फ्लाइट ऑफ पिजन्स' पर बनी श्याम बेनेगल की फिल्म 'जुनून' का प्लॉट 1857 की गदर क्रांति था. इस फिल्म में प्रेम, सनक और मौत को बेहद करीब से दिखाने वाली कहानी थी. हालांकि फ़िल्म में शशि कपूर अहम किरदार में थे लेकिन एक गुस्सैल लड़ाके के तौर पर नसीर ख़ूब जंचे. सिर पर साफ़ा, हाथ में तलवार और ख़ुद घोड़े पर सवार वे जंग की तासीर को पूरा करते हैं. 'जुनून' नसीर की शुरुआती फ़िल्मों में से है लेकिन उनकी अदायगी में ज़ोर तब भी नज़र आता है. 1980 में श्याम बेनेगल को इसी फ़िल्म के लिए फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का ख़िताब मिला.फ़िल्म-जुनून Photo: Indian express
#3. अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है (1980)
अपनी दुनिया में ख़ुश एक नौजवान. गाड़ियों की स्टेयरिंग के साथ झूमता. अपनी गर्लफ्रेंड को दूसरों की 'आंखों' से बचाता. हड़ताल को बेमतलब की चीज़ बताने वाला. नाम है, अल्बर्ट पिंटो. उसे गुस्सा क्यों आता है? इसी की कहानी है ये फ़िल्म. सईद अख्त़र मिर्ज़ा के निर्देशन में बनी ये फ़िल्म उस दौर के हालात बयां करती है जब मजदूरों की सुनने वाला कोई नहीं था. उनकी हड़ताल पर कोई एक्शन नहीं लिए जा रहे थे. हमेशा पॉजिटिव सोच रखने वाला युवक कैसे इतना परेशान हो जाता है कि लोगों से भरे हॉल में चिल्ला पड़ता है. बहुत अच्छी और सच्ची फिल्म.फिल्म-अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है. Photo: Youtube
#4. कथा (1980)
शरीफ़, कमाऊ, बाल में तेल लगाकर कायदे से कंघी करने वाला मुलगा यानी लड़का. मन ही मन अपनी चाल (मुंबई में बने घर जिसमें कई परिवार रहते हैं) में रहने वाली एक लड़की पर मरता है. अपनी शराफ़त की वजह से कुछ कह नहीं पाता. दोस्त के हाथ ठगा जाता है. प्यार को भी खो ही देता है. लेकिन आखिर में जीतती है शराफ़त. उन्हें मिल जाती है अपनी महबूबा. यही कहानी है कथा की. वो लड़का है नसीर. लड़की हैं दीप्ति नवल. फारुख शेख ने ठग के रोल में भी जान डाली है. सई परांजपे ने ही इस फ़िल्म का निर्देशन भी किया है.फ़िल्म-कथा Photo: Youtube
#5. मानसून वेडिंग (2001)
निर्देशक मीरा नायर. बहुत कुछ यहीं समझ आ जाता है. लेकिन उनकी कहानी को परदे पर जिंदा करने वाले एक्टर्स भी फिल्म में एक से बढ़कर एक हैं. सबसे पहले नसीर. उन्होंने फिल्म में ललित वर्मा का किरदार निभाया है जिसकी बेटी की शादी हो रही है और सारे रिश्तेदार आ रहे हैं. लेकिन कुछ ऐसा हुआ था जिस वजह से उसे न्याय या अपने देवता समान बड़े भाई में से किसी एक को चुनना होगा. फ़िल्म के आखिर तक ये किरदार दर्शकों का दिल जीत लेता है. बेहद जोरदार फिल्म.फ़िल्म-मानसून वेडिंग Photo: Youtube
#6. फ़िराक़ (2008)
2002 में गुजरात के दंगों से कई ज़िंदगियां बदलीं. किसी का परिवार छूटा तो किसी की औलाद. लाशों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ने लगी. हर तरफ चीख-पुकार थी. लेकिन उसके बाद क्या हुआ? जो दंगे में मरे नहीं उन्हें क्या-कुछ झेलना पड़ा? इसी पर नंदिता दास ने बनाई फ़िल्म 'फ़िराक़'. एक वृद्ध मुस्लिम संगीतकार का किरदार निभाने वाले नसीरुद्दीन शाह इस फ़िल्म में 'इनसान' की मौत से आहत दिखाई देते हैं. कई सवाल छोड़ जाने वाली ये फ़िल्म देखने के बाद नसीर का किरदार आपके दिमाग से नहीं उतर पाएगा.विडियो: पहली बार Naseeruddin Shah से कहां मिले Sanjay Mishra?