सिक्किम में आई बाढ़ (Sikkim flood) से हर तरफ तबाही मची हैै. अब तक 56 लोगों की मौत हो चुकी है. अब इस आपदा के बाद कुछ वैज्ञानिक चेतावनियों की तरफ लोगों ने ध्यान दिया है. पहले ये समझते हैं कि सिक्किम में हुआ क्या. दरअसल, बादल फटने से चुंगतांग इलाके के करीब ल्होनक झील (Lhonak Lake) का जल-स्तर बहुत बढ़ गया. झील ओवरफ्लो हुई तो लाखों लीटर पानी बांध तोड़ते हुए तीस्ता नदी में पहुंचा. नदी में आई बाढ़ से इसके किनारे बने आर्मी के बेस के 23 सैनिकों सहित कुल करीब 150 लोग लापता हो गए हैं. हजारों करोड़ की लागत से बना हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (जलविद्युत परियोजना) नष्ट हो गया है.
सिक्किम में बाढ़ से जो तबाही आई है, उसको लेकर वैज्ञानिकों ने क्या चेतावनी दी थी?
ग्लेशियल लेक के फटने को लेकर वैज्ञानिकों ने कई बार चेतावनी दी. साल 2013 में भी वैज्ञानिकों ने कहा था कि ल्होनक झील के 'अचानक फटने की बहुत अधिक आशंका' है.
हैरानी की बात ये है कि एक-दो नहीं कई सालों से इस झील से जुड़े खतरों के बारे में वैज्ञानिक आगाह कर रहे थे. लेकिन उनकी चेतावनी पर तैयारी या बचाव के लिए कोई ख़ास इंतजाम नहीं किए गए.
पहले झील का भूगोल समझ लीजिए-
सिक्किम की साउथ ल्होनक झील, जिसमें पानी बढ़ने से निचले इलाकों में बाढ़ आई, वो समुद्र तल से करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है. ऐसी झीलों को हिमनद झील या ग्लेशियल लेक कहा जाता है, क्योंकि ये ग्लेशियर के पानी से बनती हैं. ल्होनक झील करीब ढाई किलोमीटर लंबी और आधा किलोमीटर से ज्यादा चौड़ी है. गहराई इतनी है कि एक दस मंजिला बिल्डिंग समा जाए. सिक्किम के ऊंचाई वाले इलाकों में कुल 700 से ज्यादा ग्लेशियल लेक हैं. इनमें से 10 से ज्यादा झीलों को एक्सपर्ट्स कई सालों से बेहद संवेदनशील और खतरनाक बता रहे थे. और इनमें भी सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही साउथ ल्होनक झील के बारे में वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे थे.
कई बार चेतावनी दी गईNDTV की एक खबर के मुताबिक, साल 2001 में सिक्किम ह्यूमन डेवेलपमेंट रिपोर्ट में 'ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड' (GLOF) के 'विनाशकारी प्रभाव की बात कही गई थी. GLOF यानी ग्लेशियर के पानी से बनी झीलों का जलस्तर बढ़ने से झीलों का अचानक फटना. अचानक भूकंप आने या बादल फटने से GLOF की स्थिति बनती है. ऐसे में झील में अचानक पानी बढ़ने से झील के निचले इलाकों में भयंकर बाढ़ आ जाती है. रिपोर्ट में सिक्किम के ओंग्लोक्थांग, राथोंग चू और जेमू जैसे ग्लेशियर्स के घटने की भी बात कही गई थी. साल 2013 में भी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि ल्होनक झील के 'अचानक फटने की बहुत अधिक आशंका' है.
थोड़ा और आगे बढ़ें तो सिक्किम सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट ने साल 2016 में भी एक चेतावनी जारी की. इसके बाद साल 2021 में जर्नल जियोमॉर्फोलॉजी में एक स्टडी छपी. इस स्टडी में सिक्किम की ग्लेशियल लेक, ख़ास तौर पर ल्होनक झील के तेजी से बढ़ने की चेतावनी दी गई थी.
रिसर्च में क्या कहा गया?साल 2013 और साल 2021 में जो स्टडी हुईं, उनमें वैज्ञानिकों ने कहा कि साउथ ल्होनक ग्लेशियर साल 1962 और साल 2008 के बीच 1.9 से 2 किलोमीटर तक पीछे हटा. इसके बाद अगले 11 सालों में यानी साल 2019 तक 400 मीटर और पीछे हटा. ग्लेशियर पीछे हटने का मतलब है क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर पिघलकर घट गया. इसके चलते ल्होनक झील में पानी बढ़ गया.
साल 2013 वाला रिसर्च पेपर तैयार करने वाली लीड साइंटिस्ट SN रम्य कहती हैं कि समुद्र तल से 17,100 फीट ऊपर मौजूद ल्होनक झील को नॉर्थ ल्होनक ग्लेशियर और मुख्य ल्होनक ग्लेशियर से पानी मिलता है. इससे झील का इलाका 500 मीटर तक और इसकी गहराई औसतन 50 मीटर बढ़ गई.
रम्या कहती हैं,
बाढ़ में कितना पानी बह गया?"हमने ये अनुमान लगाया था कि साउथ ल्होनक ग्लेशियर के टूटने की आशंका 42 फीसदी है. सिक्किम में झील के फटने के बारे में हमने भविष्यवाणी की थी कि इससे 1.9 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी रिलीज होगा. हमने कहा था कि ये झील खतरे में है. और जल्दी ही वार्निंग सिस्टम्स लगाने का सुझाव दिया था."
ISRO ने 4 अक्टूबर को सैटलाइट इमेज जारी की थीं. उनसे पता चलता है कि बादल फटने से पहले झील में लगभग 170 हेक्टेयर इलाके में पानी था. और झील के फटने (पानी बह जाने) के बाद सिर्फ 60 हेक्टेयर बचा है.
डॉ. रम्या की स्टडी में भी हर सेकंड लगभग 600 क्यूबिक मीटर पानी बहने की भविष्यवाणी की गई थी.
जबकि साल 2021 वाली स्टडी में करीब 7 गुना ज्यादा पानी बहने का अनुमान लगाया गया था. इस स्टडी में कहा गया था,
"सिक्किम में ग्लेशियर वाली झीलों में तेजी से बढ़ोत्तरी देखी गई है. साउथ ल्होनक ग्लेशियर भी इनसे अलग नहीं है. ये सबसे तेजी से पीछे हटने वाले ग्लेशियर्स में से एक है. और इससे जुड़ी हुई साउथ ल्होनक झील पूरे राज्य में सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती हुई झील हो गई है. इसने खतरे की चिंताएं बढ़ा दी हैं क्योंकि निचले इलाके घनी आबादी वाले हैं."
2021 वाली स्टडी में ये भी कहा गया कि झील के खड़ी ढलानों वाले हिस्से की तरफ बढ़ने के चलते GLOF की आशंका बढ़ जाएगी. तेज ढलानों की तरफ के इलाके हिम-स्खलन (एवेलांच) के लिए भी संभावित क्षेत्र होते हैं. ये एवेलांच, जब झील से टकराते हैं तो एक तेज लहर बनती है, जो GLOF की वजह बनती है.
चेतावनियों के बाद क्या प्रयास हुए?सिक्किम सरकार ने कुछ उपाय किए. दक्षिण ल्होनक झील से कुछ अतिरिक्त पानी भी निकाला गया. बीते महीने, सरकार ने कुछ वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक अर्ली वार्निंग सिस्टम (चेतावनी प्रणाली) लगाने की भी योजना बनाई थी. लेकिन कुछ हो पाता इसके पहले ही ये हादसा हो गया.
वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: हिमाचल में बाढ़-भूस्खलन से मची तबाही का जिम्मेदार कौन?