साल 2018 की बात है. 16 लोग एक ख़ुफ़िया अंधेरे रास्ते से जा रहे थे. उनकी मंजिल थी एक ख़ुफ़िया तहखाने का दरवाजा, जिसे 34 साल बाद खोला जाने वाला था. दरवाजे के अंदर क्या था- एक प्राचीन खजाना. इसीलिए वे लोग अपने साथ सांप पकड़ने वालों को लेकर भी आए थे. लेकिन जैसे ही दरवाजे के पास पहुंचे एंटीक्लाइमेक्स हो गया. पता चला कि खजाने की चाभी ही गायब है.
जगन्नाथ पुरी मंदिर के खजाने का रहस्य, आखिरी गिनती में क्या मिला था?
Shri Jagannath Puri Temple के रत्न भंडार को खोले जाने की प्रक्रिया जारी है. रत्न भंडार में मौजूद खजाने की गिनती की जाएगी. इस मौके पर जानिए जगन्नाथ पुरी के रत्न भंडार का इतिहास. वो कहानी जब इस रत्न भंडार को लूटने की कोशिश हुई. आखिर क्या है इस रत्न भंडार के अंदर? और इसे खोले जाने की प्रक्रिया क्या है?

सैकड़ों साल पुराना एक मंदिर, एक ख़ुफ़िया कक्ष, सोने चांदी के आभूषणों और सिक्कों का अकूत भंडार, और एक खोई हुई चाभी. ये कहानी है उड़ीसा के पुरी जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Puri Temple) के रत्न भंडार की. 2024 लोकसभा और उड़ीसा विधानसभा चुनावों के दौरान इस रत्न भंडार को लेकर खूब राजनीति हुई थी. भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था.
वर्तमान में इसे खोले जाने की प्रक्रिया जारी है. जिसके तहत रत्न भंडार में मौजूद खजाने की गिनती की जाएगी. इस मौके पर हमने सोचा आपको बताएं जगन्नाथ पुरी के रत्न भंडार का इतिहास. वो कहानी जब इस रत्न भंडार को लूटने की कोशिश हुई. साथ ही जानेंगे कि क्या है इस रत्न भंडार के अंदर? और इस खोले जाने की प्रक्रिया क्या है?
श्री जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार मंदिर के उत्तरी तरफ बना है. इसकी लंबाई 8.79 मीटर, चौड़ाई 6.74 मीटर और ऊंचाई 11.78 मीटर है. इस रत्न भंडार में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के वस्त्र और आभूषण रखे हुए हैं. साथ ही सालों से मंदिर में चढ़ाए जाने वाले रत्न और जवाहरात, सोना चांदी आदि भी इसी भंडार में रखे जाते हैं. रत्न भंडार में दो चैंबर हैं. एक - बाहरी चैंबर और दूसरा - भीतरी चैंबर. दोनों में आभूषण और रत्न हैं. लेकिन खोले जाने के नियम में अंतर है.

1960 में बनाए गए रूल्स के तहत रत्न भंडार की चीजों को तीन भागों में बांटा गया है. कैटेगरी 1 में वो रत्न आभूषण आते हैं, जो भीतरी भंडार में रखे गए हैं. चूंकि ये पुराने वस्त्र और आभूषण हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल नहीं होता. कैटेगरी 2 में वो रत्न जो खास मौकों पर इस्तेमाल होते हैं. मसलन स्वर्ण वस्त्र जिन्हें रथ यात्रा जैसे खास मौकों पर ही बाहर निकाला जाता है. इसके बाद आती है कैटेगरी 3, इसमें वो रत्न-आभूषण हैं जो रोज भगवान को पहनाए जाते हैं. कैटेगरी 2 और 3 के रत्न बाहरी भंडार में रखे जाते हैं. और कैटेगरी 1 के भीतरी भंडार में. भीतरी भंडार में डबल लॉक के साथ मंदिर प्रबंधन कमिटी की सील लगी रहती है. और चाभी राज्य सरकार के पास जमा रहती है. जबकि बाहरी भंडार की चाबियां मंदिर प्रबंधन के पास रहती हैं.
अब जैसा इस सिस्टम में जाहिर है, बाहरी भंडार को समय-समय पर खोला जाता है. लेकिन भीतरी भंडार को साल 1985 से 2024 तक नहीं खोला गया. इस कारण भीतरी भंडार को लेकर लोगों को कौतुहल रहता है. भीतरी भंडार में है क्या, ये जानने के लिए हमें जाना होगा थोड़ा पीछे.

इतना तो जाहिर है कि भीतरी भंडार में आभूषण रत्न आदि रखे हुए हैं. लेकिन सवाल ये कि ये सब आए कहां से. कहानी शुरू होती है 12वीं सदी से. कलिंग जिसे हम उड़ीसा के नाम से जानते हैं, यहां तब गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोड़गंगा का राज था. जगन्नाथ मंदिर का वर्तमान रूप इन्होंने ही बनवाया था. साथ ही मंदिर को सोने के हाथी, घोड़े, फर्नीचर, बर्तन, बहुमूल्य रत्न आदि दान दिए थे. जिसके चलते ये मंदिर 12वीं सदी से ही धन धान्य से भरा रहा. आगे कई राजाओं ने मंदिर को ढेर सारा अनुदान दिया. कुछ उदाहरण आपको बताते हैं.
जगन्नाथ मंदिर के ऐतिहासिक दस्तावेज़ मदलापंजी के अनुसार, राजा अनंगभीम देव ने श्री जगन्नाथ को लगभग साढ़े चौदह लाख ग्राम सोना दान में दिया था. जिनसे भगवान की मूर्तियों के आभूषण बनाए गए. इनके पुत्र और गंगा वंश के अगले राजा का नाम था नरसिंह देव. जिन्हें मध्य काल के सबसे ताकतवर राजाओं से एक माना जाता है. बख्तियार खिलजी का नाम सुना होगा आपने. जिसने बिहार में कई विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया था. बख्तियार खिलजी के बाद तुर्क और अफगान हमलावर लगातार बंगाल पर हमला कर रहे थे. ऐसे में नरसिंह देव ने बंगाल पर आक्रमण कर इनका सफाया कर दिया था. इनके वक्त में कई मंदिरों का निर्माण भी हुआ. मसलन कोणार्क का फेमस सन टेम्पल इन्होंने ही बनवाया था. इतना ही नहीं नरसिंह देव ने घोषणा करवाई थी कि भगवान जगन्नाथ इनके साम्राज्य के असली राजा हैं. और वे खुद उनके रिप्रेज़ेंटेटिव हैं.

आगे बढ़ें तो गंगा वंश के बाद कलिंग पर सूर्यवंशी राजाओं का शासन शुरू हुआ. इन्हें गजपति के नाम से भी जाना जाता है. गजपति साम्राज्य की स्थापना राजा कपिलेन्द्र देव ने की थी. ये साम्राज्य बंगाल से लेकर दक्षिण में कावेरी तक फैला हुआ था. राजा कपिलेन्द्र के बारे में एक शिलालेख में जिक्र मिलता है कि दक्षिण के अभियान के बाद जब वो वापिस लौटे, तो वो अपने साथ 16 हाथियों में लादकर सोना लाए थे. ये सारा सोना उन्होंने श्री जगन्नाथ को दान कर दिया था. 14वीं और 18वीं सदी के बीच इस रत्न भंडार में इतना सोना जमा हो गया था कि इसे 18 बार लूटने की कोशिश हुई.
Jagannath Temple रत्न भंडार को कौन लूटने आया?रत्न भंडार को लूटने की कोशिशों में सबसे मुख्य नाम आता है काला पहाड़ का. ये कौन थे? साल 1568 की बात है. बंगाल पर तब कर्रानी वंश का राज था. इसकी शुरुआत शेर शाह सूरी के एक मुलाजिम ने की थी. कर्रानी वंश के राजा सुलतान सुलेमान ने उड़ीसा पर आक्रमण किया. ये जिम्मेदारी दी उन्होंने आपने बेटे बायजीद को. और उनके साथ भेजा एक मिलिट्री जनरल जिसे आगे चलकर काला पहाड़ के नाम से जाना गया. कालापहाड़ ने श्री जगन्नाथ के रत्न भंडार में भी लूटपाट मचाई थी.

औरंगज़ेब के दौर में भी एक फरमान का जिक्र मिलता है, जिसमें औरंगज़ेब ने जगन्नाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था. ये फरमान पूरा तो नहीं हुआ, लेकिन औरंगज़ेब की मृत्यु तक मंदिर को बंद रखना पड़ा था. इसके अलावा भी मंदिर पर आक्रमण की कई कोशिशें हुईं. कई बार मूर्तियों को दूसरे स्थानों पर छिपाना पड़ा. और रत्न भंडार को भी नुकसान हुआ.
रत्न भंडार के अंदर क्या क्या रखा है. ये हमें समय-समय पर बनाई गई लिस्ट्स से पता चलता है. रत्न भंडार में कितना खज़ाना?
अंग्रेज़ों के वक्त में पहली बार रत्न भंडार के कोष का एक डिटेल्ड सर्वेक्षण हुआ था. साल 1805 में पुरी के कलेक्टर ने रत्न भंडार का लेखा-जोखा तैयार करवाया था. जिसके अनुसार तब इसमें सोने और चांदी के 64 आभूषण, 124 सोने के सिक्के, 1297 चांदी के सिक्के, 106 तांबे के सिक्के, 24 सोने ही मुहरें, और 1333 वस्त्र थे. 1952 में एक और बार इन्वेंटरी तैयार की गई. तब रत्न भंडार में 146 चांदी के आइटम और 180 प्रकार के सोने के आभूषण थे. जिनमें से कई तो 100 तोले से भी ज्यादा भारी थे.

रत्न भंडार की चीजों को सुरक्षित रखने के लिए साल 1954 में सरकार ने Shri Jagannath Temple Act पास किया, जिसमें कुछ नियम बनाए गए. ये वही नियम हैं, जो हमने आपको पहले बताए थे. इन नियमों के तहत ही समय-समय पर भंडार को खोले जाने और आभूषणों के रख रखाव की व्यवस्था बनाई गयी थी. लेकिन, ये काम सही से नहीं हुआ. इसलिए साल 1978 में उड़ीसा सरकार ने गवर्नर BD शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई. जो मंदिर के उचित प्रबंधन के सुझाव दे सके. इसी कमिटी ने आख़िरी बार रत्न भंडार के रत्नों की इन्वेंट्री बनाई थी. इस आखिरी इन्वेनट्री से पता चलता है कि भीतरी रत्न भंडार में 43.64 किलो के 367 सोने के जेवर, और 148.78 किलो के 231 चांदी के जेवर थे. भीतरी रत्न भंडार को आगे दो बार और खोला गया था. साल 1982 और 1985 में. हालांकि तब इन्वेंटरी नहीं की गई थी. इसके बाद भीतरी भंडार खोला नहीं गया.
चाभी गायबजैसा हमने अभी बताया 1984 के बाद भीतरी रत्न भंडार खोला नहीं गया था. इसलिए साल 2018 में उड़ीसा हाई कोर्ट ने भंडार को खुलवाने का आदेश दिया. ताकि कमरे की मरम्मत आदि की जा सके. ASI को कमरे का सर्वे भी करना था, ये देखने के लिए कि भीतरी भंडार के आभूषणों को रखरखाव या मरम्मत की जरुरत तो नहीं. ASI कमरे को खोलने जा रही थी, तभी पता चला चाभी गायब है. अब नियम के हिसाब से चाभी गवर्मेंट ट्रेजरी के पास होनी चाहिये थी. लेकिन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की तरफ से कहा गया कि चाभी गायब है. हो हल्ला मचा ही था कि अचानक एक दिन कहा गया कि जिले के रिकॉर्ड रूम में डुप्लीकेट चाभी सीलबंद लिफाफे में पाई गई है.

नियमों के हिसाब से डुप्लीकेट चाभी होनी नहीं चाहिए थी. यहां से मामले ने तूल पकड़ना शुरू किया. काफी हंगामे के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने जांच के आदेश दिए. रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटियां भी बनाई गईं. वो भी एक नहीं दो बार. एक कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी भी, लेकिन उसे पब्लिक नहीं किया गया. दूसरी कमेटी की जांच पूरी होती, इससे पहले ही 2024 उड़ीसा विधानसभा चुनावों का रिजल्ट आ गया. और नवीन पटनायक सरकार की रुखसती हो गई.
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नई सरकार में भीतरी भंडार को खोले जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जिसके तहत और नए सिरे से रत्नों की गिनती होगी. और एक नई इन्वेंट्री बनाई जाएगी. इसके बाद ही पता चल सकेगा कि वर्तमान में रत्न भंडार के अंदर क्या-क्या रखा हुआ है.
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