साल था 1991. बारूद का साल. वही बारूद जो पहले राजीव गांधी को निगल गया. और फिर राजनीति में सुलगने लगा. सुलगती राजनीति नई करवट ले रही थी. बम्बई से उड़े एक हवाई जहाज़ ने जब 45 डिग्री करवट ली तो नाक की सीध में खाड़ी मुल्क मंज़िल थे. और भीतर अपनी दाहिनी बांह का तकिया बनाए सीट पर सुबक रही थी एक बच्ची. 11 साल की बच्ची अकबकाई हुई थी. पहली बार हवाई जहाज़ में बैठने पर कोई भी क्या करता है? खिड़की से ज़मीन निहारता है. लेकिन बच्ची की आंख में बम्बई का समंदर उतर आया था. और ये समंदर फ्लाइट अटेंडेंट अमृता अहलूवालिया भांप गईं. सुबकती बच्ची का माथा सहलाया अमृता ने, नाम पूछा. अमीना. उसके साथ बैठे शेख ने पूरा नाम बताया अमीना बेग़म. अमृता सीधे कैप्टन के पास गईं. तस्करी का अंदेशा जताया. जो सही निकला. अधेड़ शेख ने कहा कि बम्बई से अपनी नई दुल्हन ले जा रहा था. लेकिन 11 साल की अमीना ने राज़ फ़ाश किया. सरकारों के माथे पर बल पड़े. अगले दिन अमीना अखबारों की सुर्खियां थी.
कौन था वो डॉन जिसने दाउद को भी सड़कों पर दौड़ाकर पीटा था
जब दाउद क्राइम की नर्सरी में था और करीम लाला था प्रिंसिपल.

सुर्ख़ियों में फ़िलहाल कुछ नाम और हैं. करीम लाला और शिवसेना सांसद संजय राउत. वजह? 15 जनवरी, 2020 को संजय राउत ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर बड़ा बयान दिया. एक इंटरव्यू में संजय राउत ने दावा किया कि, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला से मिलने के लिए मुंबई आया करती थीं. ये सिर्फ़ एक बयान था. जिसे बाद में संजय राउत ने वापस भी ले लिया. लेकिन करीम लाला और वक़्त, दोनों ने कभी एक दूसरे को वापस नहीं लिया.

करीम लाला का पठानी सूट इतना फ़ेमस था कि उस दौर में रिक्शे वाला भी पठानी कुर्ता पहनकर ख़ुद को करीम लाला का जानने वाला बताता था
# सऊदी अरब टू बम्बई
अमीना की वापसी हो गई. अमीना पहली और आख़िरी बच्ची नहीं थी. बस पहली बार किसी अमीना को कोई अमृता मिली थी. लेकिन पचास के दशक की बम्बई किसी अमृता पर राज़ी नहीं थी. हालिया आज़ादी मिली थी. नक़्शे में एक दिखती बम्बई तीन हिस्सों में बंटी हुई थी. हाजी मस्तान, वरदराजन मुदलियार और करीम लाला. ये वही तीन लोग थे जिन्होंने आज़ाद हिंदुस्तान में डॉन और माफ़िया जैसे शब्दों को नए मानी दिए. तब दाउद और छोटा शकील जैसे थे क्राइम की नर्सरी में.
हाजी मस्तान और करीम लाला में बम्बई का पहला डॉन कौन था? ये अब भी सवाल ही है. लेकिन चालीस के दशक में बम्बई के बंदरगाह पर मजदूरी करते करीम लाला ने अपनी शुरुआत जवाबों से की थी. जुर्म का कोई भी सवाल हो, जवाब होता था करीम लाला. धारावी से दहानू तक, डोम्बीवली से ग्रांट रोड तक. औरतों से लेकर देसी दारू तक, ब्लैक टिकट से लेकर मर्डर तक. करीम लाला सब कुछ करता था.
करीम लाला ने सऊदी के शेखों के लिए लड़कियों के रेट बांध रखे थे. हज़ार रुपए में कोई भी लड़की. पांच हज़ार में कुंवारी. और अगर लड़की को नकली बीवी बनाकर मुल्क से बाहर ले जाना हो तो दस हज़ार.
# डॉन और डॉन की छड़ी
करीम लाला. असल नाम अब्दुल करीम शेर खान. अफगानिस्तान की पैदाइश. लेकिन परिवार आकर बस गया बम्बई के भिंडी बाज़ार में. बम्बई को हाजी मस्तान ने महबूबा कहा और करीम लाला ने अपनी बीवी बताया. करीम लाला अक्सर कहता था कि बम्बई से जो लिया ‘हक़ से लिया’. बम्बई का ‘पठान गैंग’.
अपने उफ़ान के दौर में करीम लाला की तूती बोलती थी बम्बई में. सात फुट का करीम लाला सफ़ेद पठान सूट पहनकर निकलता था तो रास्ते में वही आता था जिसे बदनसीबी खींच लाए. एक वक़्त वो भी आया जब करीम को अपने मंसूबे पूरे करने के लिए बाहर निकलने की ज़रूरत भी नहीं थी. करीम लाला अपने साथ रखता था एक काली छड़ी. उसका मानना था कि छड़ी से उसकी शख्सियत में और रुआब आता है. बाद में वो छड़ी ही करीम लाला मानी जाने लगी. जब कहीं किसी जगह को कब्ज़ा करना होता था तो करीम लाला के गुर्गे उसकी छड़ी ले जाकर वहां रख देते थे. करीम लाला को मालूम था कि छड़ी को हाथ कोई लगाएगा नहीं. पचास के दशक से अस्सी के दशक तक बम्बई पर करीम लाला ने राज किया. कोई सामने नहीं आया. हाजी मस्तान अपने धंधों में मस्त था. बाद में राजनीति की ओर चल पड़ा हाजी मस्तान. लेकिन हाजी मस्तान की ग़ैर मौजूदगी में कुछ नए गिरोह खड़े हुए. दाउद इब्राहिम कास्कर उनमें से एक था. दाउद ने बार-बार करीम लाला का रास्ता रोका. हर वो कोशिश की जिससे करीम लाला के सामने लोग दाउद का नाम लें. और यही कोशिशें बम्बई में गैंग वॉर लेकर आईं. करीम लाला और दाउद के बीच हुई ख़ूनी लड़ाइयों को ही पुलिस ने पहली बार गैंग वॉर कहा.
# जब दाउद को सड़क पर दौड़ाया करीम लाला ने
बम्बई में नए गिरोह पनपने लगे थे. करीम लाला जानता था कि दाउद से सीधे टकराना, मतलब दाउद का फ़ायदा. डाउन का ही नाम बढ़ना था. करीम तो पहले से बादशाह था. लेकिन दाउद ने एक वक़्त करीम की नाक में दम कर दिया. दाउद माफ़ियाओं के किसी नियम क़ानून को नहीं मानता था. चाहे परिवार की औरतों पर गोली न चलाने का नियम ही क्यों न हो. लेकिन ‘पठान गैंग’ तब भी परिवार को आपसी रंजिश और धंधे से इतर मानता था. दाउद ने ये क़ायदा तोड़ दिया. और फिर करीम ने दाउद को क़ायदे से तोड़ा. कहते हैं कि दाउद को सड़क पर दौड़ाकर पीटा. बम्बई का अंडरवर्ल्ड आज भी इस बात की गवाही देता है.

ये तब की तस्वीर है जब दाउद के पास ना महंगी घड़ी थी ना क़ायदे के सूट, अंकुरित होता डॉन दाउद
करीम लाला से दुश्मनी दाउद को महंगी पड़ी. 1981 में करीम लाला के पठान गैंग ने दाऊद इब्राहिम के भाई शब्बीर की हत्या कर दी . शब्बीर के कत्ल से दाऊद इब्राहिम तिलमिला उठा. दाऊद गैंग और पठान गैंग के बीच आख़िरी लड़ाई शुरू हुई. दाऊद अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था. शब्बीर की मौत के ठीक पांच साल बाद 1986 में दाऊद इब्राहिम के गुर्गों ने करीम लाला के भाई रहीम खान को मार डाला.

और ये तब का दाउद जब करीम लाला अपना क़ारोबार समेट चुका था, डी कंपनी की बादशाहत
# करीम लाला का जनता दरबार
हाजी मस्तान नेता बनना चाहता था, और करीम को लोगों ने नेता मान लिया था. बम्बई में हर शाम करीम लाला के घर लगता था उसका दरबार. तख़्त पर बैठे करीम लाला के सामने होते थे फरियादी. हर धर्म और ज़ात से. करीम को इससे फ़र्क नहीं पड़ता था कि दिक्कत लेकर कौन आया है. करीम तबीयत से सुनता था और मामला निपटाता था. कहा जाता है कि करीम लाला से मदद मांगने आम लोग ही नहीं, नेता, अभिनेता, मंत्री, पुलिसवाले और यहां तक कि जज भी पहुंचते थे. हर किस्म के मामले सुनता था करीम लाला. और जिस दिन करीम लाला अपने घर नहीं होता था उस दिन करीम की जगह होती थी उसकी छड़ी.
# करीम लाला और शेर खान
लाला ने बम्बई में धाक पक्की कर ली. फिर शामें महफ़िलों के साथ आने लगीं. करीम लाला के यहां बैठने वाली इन महफ़िलों में नामी लोग शामिल होते थे. बम्बई की फ़िल्म इंडस्ट्री भी होती थी. बाद में जब फ़िल्म ज़ंजीर आई और सुपरहिट हुई, तो लोग कहने लगे कि प्राण का किरदार ‘शेर खान’ करीम लाला पर आधारित है. करीम लाला को बम्बई ने शेर मान लिया था. और शेर वक़्त के साथ बूढ़ा भी हुआ.

कहने वाले जो कहें लेकिन मानने वाले यही मानते हैं कि शेर खान का किरदार था करीम लाला पर सोचा हुआ
# और फिर दी एंड
मुंबई अंडरवर्ल्ड में 1981 से 1985 के बीच करीम लाला गैंग और दाऊद के बीच जमकर गैंगवार होती रही. दाऊद की ‘डी कंपनी’ ने धीरे-धीरे करीम लाला के ‘पठान गैंग’ का मुंबई से सफाया ही कर दिया. इस गैंगवार में दोनों तरफ के दर्जनों लोग मारे गए. हाजी मस्तान और करीम लाला की दोस्ती भी लोगों के बीच मशहूर रही. हाजी मस्तान ख़ुद करीम लाला को ‘असली डॉन’ मानता था. 90 साल की उम्र में 19 फरवरी, 2002 को मुंबई में ही करीम लाला की मौत हो गई.
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