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'अगर उनके पास दाउद इब्राहिम है, तो हमारे पास अरुण गवली है'

क्या हुआ जब बाल ठाकरे के हाथ में मुंबई का रिमोट आया?

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बाल ठाकरे.

एक शिवसैनिक कहता है: मंत्री हमारे हैं. पुलिस हमारे हाथ में है. दंगों में लोगों ने हमारी मदद की थी. अगर हम लोगों को कुछ होता है तो मंत्री हमें फोन करते हैं. हमारे पास 'पॉवरटोनी' है.

-सुकेतु मेहता की किताब 'मैक्सिमम सिटी' से

(सुकेतु मेहता लिखते हैं कि 'पॉवरटोनी' का मतलब बाद में समझ आया. 'पॉवरटोनी' मतलब 'पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी'. मतलब शिवसैनिक ऐसा मानते थे कि उनको वहां पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी मिली हुई थी.) शिवसेना सड़क से सत्ता में 1995-1999 1995 बड़ा साल था.
1.महाराष्ट्र में शिवसेना सत्ता में आई. बॉम्बे मुंबई हो गया.
2.1995 में ही मधु सप्रे और मिलिंद सोमन की फोटो आई थी जिसने 'भारतीय संस्कृति' और 'नैतिकता' को 'आहत' कर दिया.
3.1995 में ही गणेश भगवान दूध पी रहे थे.
4.1995 में ही 'दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे' रिलीज हुयी और तब से अब तक 'मराठा-मंदिर' में शिवसेना के हर कदम की साक्षी बनी हुई है.
5.उसी साल बाल ठाकरे ने कहा था: मैंने कसम खाई है कि मैं सत्ता को टच नहीं करूंगा. मैं मुख्यमंत्री नहीं बनूंगा.

शिवसेना-बीजेपी के हज़ार वादे

सत्ता में आने से पहले शिवसेना-बीजेपी ने हज़ार वादे किए थे. गुजरात के चुनाव प्रचार में बीजेपी ने कहा था कि गेहूं 2 रुपये किलो बेचेंगे. महाराष्ट्र के प्रचार में दो कदम आगे चलकर दोनों ने कहा: जरुरत की चीजों के दाम फिक्स कर दिए जायेंगे. जरुरत मतलब पांच चीजें: चावल, ज्वार, दाल, चीनी और तेल.
एक जगह ठाकरे ने कहा: चावल दो रुपये किलो बिकेगा. एक जगह बीजेपी की डिमांड थी: विदर्भ को राज्य बनाएंगे. दोनों चीजें मैनिफेस्टो से बाहर थीं.
मैनिफेस्टो में था: बीजेपी का भूखे लोगों को एक रुपये में खिलाने का वादा. एक रुपये में मिलेगा झुनका-भाकर. झुनका-भाकर यानी बेसन को घोल के सब्जी और ज्वार की रोटी. वहीं शिवसेना ने कहा: मुंबई के स्लम वालों को घर दिया जायेगा.
सरकार में आने के बाद पहली घोषणा हुई: भारत सरकार के प्राइवेटाईजेशन वाली पॉलिसी को फुल सपोर्ट. ये जरूरी था. उसके बाद बम्बई में बहुत सारा विदेशी इन्वेस्टमेंट हुआ. पर ये घोषणा ठाकरे के 'मराठी मानुस' पॉलिटिक्स के उलटी थी.
उसके बाद फिर दौर शुरू हुआ जुमलों का: 27 लाख नौकरियां देंगे. फिर इसको बढ़ा के 32 लाख किया गया.
जब सरकार सत्ता में आई तब एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में रजिस्टर्ड बेरोजगार लोगों की संख्या थी: 34 लाख. जब 1999 में सरकार सत्ता से गई तब एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में रजिस्टर्ड बेरोजगार लोगों की संख्या थी: 42 लाख.

ठाकरे के टॉयलेट में माइकल जैक्सन

रोजगार पैदा करने के लिए युवा नेता राज ठाकरे ने 'शिव उद्योग सेना' बनाया. फिर मुंबई में बहुत सारे कॉन्सर्ट करवाए. कहा गया कि इससे बहुत लोगों को नौकरी मिलेगी. माइकल जैक्सन को भी बुलाया गया. लोग कहते हैं कि माइकल जैक्सन ने ठाकरे का टॉयलेट इस्तेमाल किया और उसपे ऑटोग्राफ भी दे दिया था!
Michael Jackson

फिर जब ऑडिट हुआ तब राज ठाकरे को इन सारे कॉन्सर्ट में घाटा हुआ था. तो अब रोजगार कैसे पैदा होगा? बड़ा बवाल हुआ था. घाटा हो भी सकता है और नहीं भी.

वादों का गुब्बारा फूट गया

फिर स्लम वालों को घर देने के नाम पर बिल्डर्स को बुलाया गया. उस पॉलिसी की आज तक आलोचना होती है. कहा जाता है कि स्लम वालों को घर देने के नाम पर बिल्डर्स ने प्राइम लोकेशन पर जमीनें हड़प लीं. स्लम वालों के लिए बहुत ही कम घर बनाये गए थे. 40 लाख आबादी थी, 2 हज़ार घर बने थे.
'ज़ुनका भाकर' को प्रमोट करने के लिए मुंबई की प्राइम जगहों पर स्टाल लगाए गए. आरोप लगे कि स्टाल लगाने वाले शिवसेना-बीजेपी के ही लोग थे. आरोप और लगे: 'धीरे-धीरे इन स्टालों को रेस्टोरेंट और दारु के ठेकों में भी बदल दिया गया है'. बाद में शिवसेना के नए मुख्यमंत्री नारायण राणे ने इस स्कीम को बंद कर दिया. फिर नए आरोप लगे: 'जमीनें वापस नहीं ली गई हैं'.
खाने की चीजों के दाम फिक्स करने के लिए कड़े कदम उठाये गए. कई जगहों पर इसको लागू करने के लिए राशन की दुकानें जब्त कर ली गईं. वहां लोगों को सामान मार्किट से ज्यादा दामों में खरीदना पड़ा. सरकारी निर्णयों की कमजोरी जाहिर हुई. नई सरकार से नए तरीकों की उम्मीद थी.

बाल ठाकरे का ड्रीम प्रोजेक्ट

एनरॉन डाभोल पॉवर कंपनी प्रोजेक्ट के फेज-1 को कांग्रेस की सरकार ने अप्रूव कर दिया था. शिवसेना-बीजेपी ने इसको आगे बढ़ाया और 1999 में ये प्रोजेक्ट पूरा भी हो गया. फेज-2 पूरी तरह शिवसेना-बीजेपी का वादा था. नेता इसको लेकर डींगें हांकते रहते थे. पर ये दूसरा फेज कई तरह के भ्रष्टाचार और तीन-पांच के आरोपों से घिर गया.
उसके बाद सरकार ने चीजों के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए. पेट्रोल, डीजल, किराया, रेंट, टोल सबके दाम बढ़ गए. 5 स्टार होटलों को कई चीजों में छूट दी गई. आरोप लगा कि मुख्यमंत्री का अपना एक फाइव स्टार होटल था. इसीलिए ऐसा किया गया है.
हाईवे, ब्रिज, फ्लाईओवर में पैसा लगाया गया और करप्शन के चार्जेज भी लगे. इसमें मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाईवे भी था. ये बाल ठाकरे का ड्रीम प्रोजेक्ट था. विपक्ष ने कहा कि मराठी मानुस की अस्मिता का ख्याल ना करते हुए टेक्सटाइल मिलों की जमीन को बेचा भी जाने लगा है.
हालांकि मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाईवे और बम्बई में 55 फ्लाईओवर शिवसेना-बीजेपी की सरकार की उपलब्धियां हैं.

शिवसेना का दुर्भाग्य, किसानों की आत्महत्याएं

फिर बारी आई खेती की. विदर्भ और मराठावाड़ा में किसानों ने आत्महत्याएं की. कारण था: कर्जा और ख़राब फसल. हजारों किसानों ने अपनी जमीनें बेच दीं. आज़ादी के बाद महाराष्ट्र में पहली बार ये घटनायें शुरू हुई थीं. अब तो ये हर साल का ट्रेंड बन गया है.
इसमें नेचुरल वजहें तो थी हीं, सरकार का रिस्पांस भी उतना ही ख़राब था. न तो ये फसलों की कीमतें निश्चित कर पाए न ही किसानों को ढंग से कोई मुआवजा दे पाए.
और तो और, सरकार ने अब विदेशी कंपनियों को महाराष्ट्र में आने का मौका दिया. एग्रो-एडवांटेज नाम की स्कीम लायी गयी. लैंड लॉज़ बदले गए. फंड्स इकठ्ठा किए गए. 'मोंसांटो' नाम की अमेरिकी कंपनी इसी दौर में महाराष्ट्र आई और उसने सारे वर्ल्ड-क्लास नियमों को धता बताकर अपना फील्ड-ट्रायल शुरू कर दिया. Bt ब्रिंजल और Bt कॉटन उसी की देन है. उस कंपनी पर बहुत आरोप हैं.
फिर सरकार ने बहुत सारे कर्जे लिए. सैलरी देने के लिए, प्रोजेक्ट चलाने के लिए. बहुत सारे प्रोजेक्ट बंद हो गए. सरकार कोई भी काम ठीक से कर ही नहीं पा रही थी. बांड पर बांड निकाले जा रहे थे. बांड निकालना भी तो कर्जा लेना है. पैसा वापस तो करना ही पड़ेगा ब्याज के साथ.
1994-95 में महाराष्ट्र सरकार पर कर्ज था: 16020 करोड़ रुपये. 1999-00 में था: 37226 करोड़.

नई सरकार पर नए तरह के करप्शन के चार्ज

फिर ये सरकार नए वादों के साथ आई थी. उसके ऊपर ठाकरे थे. जो किसी भी तरह का करप्शन बर्दाश्त करने वाले नहीं थे. पर करप्शन का आलम ये था कि सरकारी लोगों के साथ क्रिमिनल्स को भी रेगुलर पैसा देना पड़ता था. इसी दौर में अन्ना हजारे, नारायण सुर्वे, जुलियो रिबेरो, जी आर खैरनार जैसे लोग सामने आये. जिन्होंने करप्शन के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़ी.
जिनके खिलाफ इन लोगों ने चार्ज लगाया था वो थे: बाल ठाकरे, प्रमोद महाजन, मनोहर जोशी, नारायण राणे नितिन गडकरी, गोपीनाथ मुंडे, किरीट सोमैया और राज ठाकरे. दो मंत्रियों सुत्तर और गोलाप को रिजाइन भी करना पड़ा.
कई घोटालों के आरोप लगे: कोल माइन स्कैम, सहारा एम्बी वैली स्कैम, कैपिटल मार्किट स्कैम, को-ऑपरेटिव बैंक स्कैम, दाल खरीद स्कैम. एक अखबार ने छापा था: बाल ठाकरे का जन्मदिन मनाने के लिए शिवसैनिकों ने वसूली भी की थी.

माफिया, 'भाई' लोग और साहेब

आरोप थे कि सत्ता में आने से पहले से ही शिवसेना के नेताओं और BMC के कॉर्पोरेटर्स के सम्बन्ध माफिया से हो गए थे. ये सम्बन्ध मेनली लैंड और एक्सटार्शन से जुड़े थे. इसी में शिवसेना के रामदास नायक का मर्डर हो गया. बाद में पता चला कि नायक ने बड़े पैसे उगाहे थे अपने लिए और पार्टी के लिए.
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ये भी कहा गया कि बाल ठाकरे ने क्राइम को कम्युनल रंग देकर एक तरह से कानूनी मान्यता दे दी थी. ठाकरे ने कहा था: 'अगर उनके पास दाउद इब्राहिम है तो हमारे पास अरुण गवली है'. छगन भुजबल के जाने के बाद अरुण गवली का शिवसेना से मनमुटाव हो गया. फिर आरोप लगे कि शिवसेना ने गवली के दुश्मन गैंग अमर नायक और आश्विन नायक को बढ़ावा देना शुरू किया. दोनों की बीवियों को BMC के चुनाव में टिकट भी दिया गया. बाद में जब अमर नायक का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया तो सामना में छपा था: पुलिस चुन-चुन के खाली हिन्दू डॉन को ही मार रही है.

क्या राज ठाकरे ने खून करवाया था?

उसके बाद एक घटना हुई जिसने शिवसेना पर आरोपों का रंग और गाढ़ा कर दिया. रमेश किनी मुंबई के एक मिडिल क्लास आदमी थे. उनके पास एक फ्लैट था. शिवसेना के लोग वो फ्लैट चाहते थे. रमेश किनी को धमकाया जाने लगा. 'सामना' के ऑफिस में भी बुलाया जाता था उनको. एक दिन उनकी लाश एक सिनेमाहॉल में मिली. उनकी पत्नी शीला ने राज ठाकरे पर सीधा आरोप लगाया. तब तक पुलिस अपना काम अपने तरीके से कर चुकी थी. सबूत इधर-उधर हो गए थे. कोई पकड़ा नहीं गया.
शिवसेना पर आरोप लगने लगे. बाल ठाकरे ने फिर अपने अंदाज़ में कहा: 'मैं शिवसेना छोड़ रहा हूं.' उनके सारे मिनिस्टर उनको मनाने आये. उनके घर मातोश्री के बाहर शिवसैनिकों ने चिल्लाना शुरू किया:'सरकार नहीं, हमें साहेब चाहिए'. कुछ मिनिस्टर पिट भी गए.

श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट और ठाकरे के तीखे जवाब

फिर अगस्त 1998 में श्रीकृष्ण कमीशन की दंगों के ऊपर रिपोर्ट आई. इसमें बाल ठाकरे को सर्वोच्च स्थान दिया गया था. शिवसेना परिवार ने 'सामना' में जज श्रीकृष्ण के ऊपर जहरीले लेख लिखे. जज श्रीकृष्ण को पागल-सनकी बताया गया. इनको गिरफ्तार करने की भी मांग की गयी. ये कहा गया कि वन्दे मातरम कहनेवालों के साथ श्रीकृष्ण इतना खराब व्यवहार कर रहा है.
विधानसभा में कई दिन तक मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने जज श्रीकृष्ण पर लगातार ख़राब से ख़राब बयान दिए. ये भी कह डाला कि मैं रिजाइन कर दूंगा और साहेब के लिए सड़कों पर घूमूंगा. उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. पर ऐसा लगता था कि ये महाराष्ट्र का 'इंटरनल मैटर' है. किसी ने कुछ नहीं कहा.
फिर एक कदम आगे आकर कांग्रेस शासनकाल में ठाकरे के ऊपर लगाए गए 24 केस ख़त्म कर दिए गए.
फिर स्टेट माइनॉरिटीज कमीशन, उर्दू अकादमी, हज कमिटी को ख़त्म किया गया. 'गो-हत्या' पर प्रतिबंध लगाने के लिए बिल लाया गया पर गिर गया. 2015 में बीजेपी-शिवसेना ने फिर ये बिल पास कर दिया. आरोप लगा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर करने के नाम पर पश्चिम बंगाल के लोगों को भी भगा दिया गया.

फिर हुआ जालियांवाला बाग़

1997 में मुंबई में एक अजीब घटना हो गई. 11 जुलाई को रमाबाई अम्बेडकर नगर में दलित समाज के लोग बाबा साहब अम्बेडकर की मूर्ति तोड़ने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. शांतिपूर्ण ढंग से. कहा जाता है कि बिल्कुल ही जालियांवाला बाग़ के अंदाज में पुलिस ने बिना किसी वार्निंग के फायर शुरू कर दिया. 10 लोग मारे गए. बहुत लोग घायल हुए. सरकार ने इस मामले की जांच करने के बजाय फायरिंग को सही साबित करना शुरू कर दिया! लीपा-पोती.
अखबारों में आया कि इसी मुद्दे पर जब देश के तत्कालीन गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्ता हाथ में डंडा लेकर बम्बई पहुंचे तो बालासाहेब और शिव सेना को पहली बार राजनीतिक पसीने छूटे.
ठोकशाही का मतलब पहली बार सबको समझ में आया. धारा 356 लगाए जाने के आसार थे. पर बाल ठाकरे ने इन्द्रजीत गुप्ता को पता नहीं क्या समझाया कि गुप्ता ने कहा: चिंता की कोई बात नहीं. सब ठीक हो जायेगा.

इस दौर में शिवसेना की उपलब्धियां

1.1991 में वानखेड़े और 1999 में फिरोजशाह कोटला की पिच शिवसेना के लोगों ने खोद दी. क्योंकि भारत-पाकिस्तान का मैच होनेवाला था. 1999 में तो BCCI के ऑफिस में तोड़-फोड़ भी की गई और 1983 वाले वर्ल्ड कप को तोड़ दिया गया. 1991 पिच-कांड के मुखिया शिशिर शिंदे को MLC बनाया गया था. शिंदे ने कहा: 1999 में दिल्लीवाली हमारी परफॉरमेंस ज्यादा अच्छी थी.
2.1998 में दीपा मेहता की 'फायर' के खिलाफ शिवसेना ने उत्पात मचाया.
3.बरसों पहले विजय तेंदुलकर समेत कई लोगों के नाटकों के खिलाफ नाटक करनेवाली शिवसेना ने 1997 में 'मी नाथूराम गोडसे बोलतोय' नाटक का मंचन करवाया. ये नाटक महात्मा गांधी के खिलाफ है.
4.1996 के बाद भारत में लोकसभा डगमगा रही थी. 1996 में शिवसेना-बीजेपी ने लोकसभा की महाराष्ट्र में 48 में से 33 सीटें जीती थीं. 39% वोट शेयर था. पर 1998 में मात्र 10 सीटें मिलीं.

फिर मिलेनियम बदला, शिवसेना की राजनीति उलट गई

मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को हटा दिया गया. और एक 'मराठा' नारायण राणे को मुख्यमंत्री बना दिया. उसी साल इलेक्शन कमीशन ने बाल ठाकरे पर छः साल का कम्युनल स्पीच के लिए चुनाव लड़ने और वोट देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया.
1999 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव फिर हुए. अबकी शिवसेना-बीजेपी की स्थिति ख़राब थी. तभी शरद पवार ने कांग्रेस से टूटकर अपनी पार्टी NCP बना ली. नतीजा हुआ कि शिवसेना-बीजेपी ने लोकसभा में 28 और विधानसभा में 125 सीटें जीत लीं. पर कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बना ली.
1999 से 2014 तक कांग्रेस-एनसीपी की सरकार रही. 2004 में विधानसभा चुनावों में शिवसेना को 62 सीटें मिलीं. 2009 में 45 और 2014 में 63 सीटें मिलीं. 2014 में शिवसेना ने पहली बार 286 कैंडिडेट उतारे. इसके पहले 1990 में सबसे ज्यादा 183 कैंडिडेट उतारे गए थे.

आंखों में रहनेवाले भतीजे ने दिल तोड़ा चाचा 'चौधरी' का

2005 में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली. कहा जाता है कि यहीं पर राज बाल ठाकरे का आधा करिश्मा ले गए. 1991 के बाद से राज को बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था. बचपन से ही राज अपने चाचा के बेहद करीब थे. बचपन में एक बार स्कूल में राज को किसी टीचर ने डांट दिया था. बाल ठाकरे खफा होकर स्कूल पहुंच गए. राज ठाकरे पूरी बात नहीं बताते पर कहते हैं कि इमेजिन कर लीजिये, क्या हुआ होगा.
राज ने भी आर्ट्स की पढ़ाई की. फिर चाचा के चलने, बोलने हर चीज का अंदाज अपने व्यक्तित्व में उतार लिया. 1988 में राज भारतीय विद्यार्थी सेना के प्रेसिडेंट बने. और कॉलेजों में शिवसेना की मौजूदगी को बहुत बढ़ाया. राज ने भारतीय विद्यार्थी सेना को बेहद आक्रामक बनाया और निश्चित किया कि टाइम-टू-टाइम बाकी संगठनों से भिड़ंत होती रहे. 1988 में ही 'सामना' लांच हुआ और राज इसके लिए कार्टून बनाने लगे. ऑफिस में भी काम करने लगे. उद्धव ठाकरे परदे के पीछे काम करते थे. पॉलिटिक्स में उतने सक्रिय नहीं थे. 1990 और 1995 के चुनाव में चाचा के साथ राज ने बहुत मेहनत की.
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Hindustan Times

1996 में बाल ठाकरे की वाइफ मीना ताई का निधन हो गया. फिर उनके बड़े बेटे बिंदुमाधव जो फिल्म 'अग्निपरीक्षा' के प्रोड्यूसर थे एक सड़क हादसे में मारे गए. एक बेटे से पहले से ही ठाकरे की नहीं बनती थी. ऐसे वक़्त में उद्धव ठाकरे अपने पिताजी के संबल बने. फिर पॉलिटिक्स में उनका इंटरेस्ट बढ़ने लगा. पार्टी में उनकी अपनी पहुंच होने लगी. फिर राज के साथ टकराव शुरू हो गए. माइकल जैक्सन वाले कॉन्सर्ट का उद्धव ग्रुप ने विरोध भी किया था. फिर कई कांडों में राज का नाम भी आया. 1999 में चुनाव में हार के बाद उद्धव और राज के दो घोषित ग्रुप बन चुके थे. एक ग्रुप राज को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी बताता था और दूसरा उद्धव को.
दोनों के काम करने का तरीका बिलकुल ही अलग था. राज बाल ठाकरे की तर्ज पर 'करारे तीखे वचनों' पर भरोसा करते थे. उद्धव चुपचाप रहनेवाले दृढ कार्यकर्ता की तरह थे. पार्टी के राजनीतिक नेता जो राजनीति को पहचानते थे वो शुरू से उद्धव के साथ रहे. उनको 'पुत्र-मोह' का कांसेप्ट पता था. 2000 के बाद से राज अपने चाचा से लगातार उद्धव की शिकायत करते रहे कि अब पार्टी में कोई मेरी सुनता नहीं. 2002 में BMC इलेक्शन में राज ने पहली बार खुल के कहा: मेरे किसी कैंडिडेट को इस बार टिकट नहीं मिला है. बाल ठाकरे ने दोनों भाइयों के बीच सुलह कराने की पूरी कोशिश की.
2003 में महाबलेश्वर में एक मीटिंग की गयी. वहां एकदम ओमकारा के लंगड़ा त्यागी वाले स्टाइल में राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे का नाम पार्टी के एग्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट के लिए प्रस्तावित किया. बाल ठाकरे ने एक बार फिर अपने अंदाज में कहा: 'राज, तुमने मेरी जानकारी के बगैर ये कैसे कर दिया? मुझसे पूछ तो लेते'. बाद में राज ठाकरे ने अपनी इस हरकत को 'अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती' कहा.
2003 में उद्धव ठाकरे ने 'मी मुंबईकार' के नाम का कैंपेन शुरू किया. ये शिवसेना के पिछले स्टांस से बिलकुल अलग था. पहली बार शिवसेना ने बाहरी लोगों के समर्थन में कैंपेन किया था. चाहे ये वोटों के लिए ही क्यों न था. पर इससे पार्टी के सारे नेता खुश नहीं थे. 2004 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद ये नाखुशी जाहिर हो गयी. पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने उद्धव पर पैसे लेकर सीटें देने का आरोप लगाया. राणे को पार्टी से बाहर किया गया.
PTI
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27 नवम्बर 2005 को राज ठाकरे ने अपने घर के बाहर अपने समर्थकों के सामने घोषणा की: मैं आज से शिवसेना के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे रहा हूं. पार्टी क्लर्क चला रहे हैं. मैं नहीं रह सकता. राज के समर्थकों ने इसके बाद तोड़-फोड़ मचा दी. राज की राजनीति का पहला नमूना यही था. बाल ठाकरे ने कहा: ये तोड़-फोड़ नारायण राणे के खिलाफ की जाती तो मुझे अच्छा लगता.
चुनावों में राज को ज्यादा सफलता नहीं मिली. तब उन्होंने उत्तर भारतीय लोगों के खिलाफ तांडव शुरू किया. सबसे आयरनिकल है कि उनके सबसे अच्छे मित्रों में से कई लोग उत्तर भारत के ही हैं. इसी लह में राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन पर भी हमला बोला. फिर एक दिन मुंबई के सारे बिजनेसवालों को धमकी दी: कल से हर साइनबोर्ड पर इंग्लिश रहे न रहे, मराठी जरूर होना चाहिए. आज्ञा का पालन भी किया गया. पर वोट नहीं मिले.
उस समय उद्धव ठाकरे 'उत्तर भारतीय सम्मेलन' कर रहे थे. अब बड़ी दिक्कत हो गई थी. शिवसेना ने हमेशा 'मराठी मानुस' की राजनीति खेली थी. अब जब उसे छोड़कर सबके वोट लेने की बात हो रही थी तब राज ठाकरे ने वो स्पेस लेना शुरू कर दिया था. शिवसेना से कन्फ्यूज़न वाले बयान आते रहे.
तभी पता नहीं किसकी कृपा से 2012 के BMC चुनाव में शिवसेना को जीत मिल गई. राज को घंटा मिला. शिवसेना के जिन्दा रहने के लिए ये बहुत जरूरी था.

टाइगर को कभी इतना इमोशनल नहीं देखा था किसी ने

फिर वो वक़्त आया. जब बाल ठाकरे की बिगड़ती तबीयत ने शिव सैनिकों को चिंतित करना शुरू किया. साहेब के बाद कौन? उद्धव थे पर बाल ठाकरे का हाथ था उनके ऊपर. उनके बाद क्या उद्धव जगह ले पाएंगे? शिवसैनिक रोज 'मातोश्री' के चक्कर लगाते थे. वहां से यही बताया जाता कि साहब ठीक हैं. फिर एक दिन वो वक़्त आया. मौत ने आखिरी धावा बोला. शिवसैनिकों में दर्द और दुःख तो, एक आम मुंबईकार में डर फैल गया. जब ठाकरे की शव-यात्रा निकली तो पूरे देश के न्यूज़ चैनल पूरे दिन यही दिखाते रहे. कहा जाने लगा कि नेहरु के अलावा किसी की शवयात्रा में इतने लोग नहीं आये कभी.
उसी बीच सबकी निगाहें राज ठाकरे पर भी जमीं रहीं. लोगों को लगता था कि शायद इस वक़्त भाई एक हो जाएं. पर राज ने ये भी क्लियर कर दिया. शव-यात्रा को बीच में छोड़कर अपने घर लौट गए. बाद में शिवाजी पार्क में लाश रखे जाने के बाद आये.
अपनी मौत से पहले बाल ठाकरे ने एक विडियो जारी किया था: मैं 86 का हो गया. थक गया हूं. चल भी नहीं पाता. मेरे बेटे और पोते को आप लोग देखना जैसे इतने सालों तक मेरी चिंता की है आपने.
टाइगर जो हमेशा दहाड़ता रहा. जो अस्सी साल की उम्र में भी बेधड़क कुछ भी बोलने के बाद कातिलाना मुस्कुराता था. अब इतना कमजोर! इतना टूटा हुआ! प्रार्थना कर रहा है? शिवसैनिकों को ये बात अन्दर तक बेध गई. ठाकरे की एक आवाज पर वो मरने-मारने के लिए तैयार थे. अब क्या करेंगे? उद्धव के पास वो करिश्मा नहीं था. अगर बाल ठाकरे राज को अपनी जगह रखते तो शायद ये मुमकिन था. पर अब तो वो कहानी 'क्या होता तो क्या होता' वाले जोन में चली गई है.

क्या मुंबई शिव सेना मुक्त हो जाएगी?

2014 में बीजेपी ने मोदी-लहर में 122 सीटें जीत लीं. बीजेपी को शिवसेना सपोर्ट करती तो है, पर कई मुद्दों पर तकरार भी होती है. सीट बंटवारे को लेकर दोनों का गठबंधन टूट गया. चुनाव के बाद पहले शिवसेना ने कहा कि हम अपोजिशन में रहेंगे. पर बाद में साथ आ गए. बीजेपी को शिवसेना के सपोर्ट की जरूरत नहीं है. क्योंकि NCP के शरद पवार शिवसेना को नीचा दिखाने से नहीं चूकेंगे. अब बीजेपी की प्रजेंट पॉलिटिक्स है- 'शिव सेना मुक्त मुंबई'.
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आदित्य ठाकरे

2012 में बाल ठाकरे की मौत के बाद उद्धव ठाकरे पार्टी के लीडर तो बन गए पर 'शिवसेना प्रमुख' टाइटल लेने से मना कर दिया. बोले ये साहेब का था और उन्हीं का रहेगा. उद्धव ठाकरे के पास पिताजी वाली लक्ज़री नहीं है कि पॉलिटिक्स और पॉलिटिशियंस को गरियाते रहें और रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाते रहें. बालासाहेब ठाकरे का बोलने का कातिलाना अंदाज़ राज ठाकरे ले गए. उस अंदाज़ को पसंद करने वाली जनता अब रही नहीं. क्योंकि बोल-बोल के पेट नहीं भरता. नौकरी तो चाहिये ही. उद्धव की भी बाईपास सर्जरी हो चुकी है. अब वो अपने बेटे आदित्य ठाकरे को हर जगह प्रमोट करते हैं. आदित्य यूथ लीडर बनने की ख्वाहिश रखते हैं. पब, बार, जिम खुलवाने में उनकी दिलचस्पी है. पर राजनीति के लिए ये पर्याप्त नहीं है. राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं है. शायद इसीलिए उद्धव ठाकरे शिवसेना को एक परंपरागत पॉलिटिकल पार्टी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.


 

ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के लिए ऋषभ ने की थी.