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जब बाल ठाकरे की ज़िद के चलते CM को छुपना पड़ा!

बाल ठाकरे और बाक़ी नेताओं से जुड़े कुछ दिलचस्प क़िस्से!

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बाला साहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की थी. वो देश के उन नेताओं में थे जो अपने पद के कारण नहीं बल्कि क़द के कारण लोगों के बीच माने जाते थे (तस्वीर- indiatoday)

ये बात है साल 1995 की. मुम्बई में शिवसेना भाजपा गठबंधन की सरकार बनी और मुख्यमंत्री बने मनोहर जोशी. जीत के जश्न में कुछ दिन बाद एक पार्टी हुई. चंद ही मेहमान बुलाए गए थे. और पार्टी बिलकुल शांति से चल रही थी. तभी पार्टी में एंट्री हुई शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे(Bal Thackeray) की. ठाकरे ने देखा, खाने का तो अच्छा ख़ासा इंतज़ाम है, लेकिन पीने को कुछ नहीं है. ठाकरे ने एकदम बिफरते हुए कारण पूछा तो पता चला, CM की मौजूदगी में शराब पीना ठीक नहीं. ठाकरे फिर ठाकरे थे. उन्होंने तुरंत एक शैम्पेन की बोतल मंगाई.

गिलास में शैम्पेन के बुलबुले छूटने लगे तो सबने CM की ओर नज़र फिराई. CM साहब अब नदारद थे. ठाकरे को ना कहने की हिम्मत उनमें थी नहीं. सो कैमरामैन की नज़र से बचने के लिए वो एक कोने में जाकर बैठ गए. उसी दिन से सबको पता चल गया, सत्ता पर चाहे कोई बैठे, रिमोट कंट्रोल बाल ठाकरे के हाथ में है. (Balasaheb Thackeray)

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Leaders, Politicians and Citizens: Fifty Figures Who Influenced India's Politics किताब के लेखक राशीद किदवई (तस्वीर- Amazon/rolibooks)
बाल ठाकरे का ज्ञान और केमिस्ट की आफ़त! 

राशीद किदवई अपनी किताब, 'Leaders, Politicians and Citizens: Fifty Figures Who Influenced India's Politics' में बाल ठाकरे से ही जुड़ा एक और किस्सा बताते हैं. बात दरअसल ऐसी थी कि दोस्त हों या दुश्मनों, ठाकरे किसी को भी आड़े हाथ लेने से नहीं चूकते थे.पूर्व प्रधानमंत्री मोररजी देसाई(Morarji Desai) की मौत पर उन्होंने कहा,

"देसाई की एकमात्र उपलब्धि ये है कि वो सौ साल ज़िंदा रहे".

इसी तरह 1989 में एक बार जब वो कोंकण में एक रैली में भाषण दे रहे थे, शरद पवार(Sharad Pawar) उनके निशाने पर आ गए. शरद पवार तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. रैली में ठाकरे पवार के बारे में बोले,

“वो हर रात अपने उद्योगपति दोस्तों के साथ मिलकर पूरी स्कॉच गटक जाते हैं”

इसके बाद खुद से तुलना करते हुए ठाकरे ने कहा,

“मैं पक्का राष्ट्र्वादी हूं, जो बस भारत में बनी बीयर पीता हूं”

आगे बोले,

“बीयर तो पेट के लिए अच्छी होती है, लेकिन स्कॉच पीने से एक दिन पवार का लिवर ख़राब हो जाएगा”

भाषण ख़त्म हुआ. सब बोरा बिस्तर बंद कर लौटने लगे लेकिन असली ड्रामा होना अभी बाक़ी था.

ठाकरे के भाषण सुनने के बाद दो लड़के सीधे पास की केमिस्ट की दुकान पर पहुंच गए. उन्होंने केमिस्ट से बीयर की मांग की. पूछा तो बोले पेट में दर्द है. केमिस्ट को दर्द और बीयर का रिलेशन तो समझ नहीं आया. हां वो इतना ज़रूर बोला कि  बीयर लेने के उन्हें शराब की दुकान में जाना होगा. केमिस्ट का जवाब सुनकर भी दोनों टस से मस ना हुए. केमिस्ट ने पूछा, पेट में दर्द है तो बीयर क्यों मांग रहे हो. दोनों ने जवाब दिया, बाला साहेब ने बताया है, बीयर पीने से दर्द ठीक हो जाता है. बेचारा केमिस्ट क़ई देर तक समझाता रहा. फिर अंत में उसने बड़ी मुश्किल से पेट के दर्द की एक गोली देकर दोनों को रवाना किया. दोनों चले तो गए लेकिन तब भी इस बात को लेकर ख़फ़ा थे कि असली दवा तो उन्हें मिली ही नहीं.

मराठा टाइगर और रॉयल बंगाल टाइगर 

साल 2007 में UPA ने श्रीमती प्रतिभा पाटिल को राष्ट्र्पति का उम्मीदवार घोषित किया. ठाकरे UPA के विरोधी ख़ेमे में थे. लेकिन फिर भी उन्होंने पाटिल को मराठी मानुस बताते हुए उनका समर्थन किया. इसके बाद 2012 में प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति के उम्मीदवार बने. सबको उमीद थी, इस बार ठाकरे विरोध करेंगे. लेकिन इस बार उन्होंने नया जुमला दे मारा. बोले, ये स्वाभाविक है की मराठा टाइगर , रॉयल बंगाल टाइगर को सपोर्ट करे.

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महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार के साथ शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे (तस्वीर- Deccan Herald)

अपनी आत्मकथा के तीसरे अंक, 'The Coalition Years, 1996-2012" में मुखर्जी लिखते है कि जब वो  मुंबई आए, शरद पवार ने उनसे ठाकरे से मिलने जाने के लिए कहा. सोनिया गांधी इस बात से नाराज़ थी. लेकिन फिर भी प्रणव ठाकरे के घर मातोश्री में उनसे मिलने गए. प्रणब पहुंचे तो देखा ठाकरे ने स्वागत का भव्य इंतज़ाम किया था. आत्मकथा में वो लिखते हैं, बाद में मुझे अहसास हुआ, मुम्बई आकर मैं उनसे मिलने ना जाता तो ये बात ठाकरे को अपनी निजी तौहीन लगती.

चाय की तौहीन 

अब किस्सा उस कांग्रेसी नेता का जिसे सब सब कुछ मंज़ूर था लेकिन चाय की तौहीन मंज़ूर नहीं थी. हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा की. किदवई अपनी किताब में बताते हैं कि वोरा कांग्रेस के प्रति इतने समर्पित थे कि पार्टी की बातें अपने परिवार से साथ भी शेयर नहीं करते थे. वोरा 18 साल तक ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के कोषाध्यक्ष रहे थे. और इसी के चलते उन्हें पाई-पाई का ध्यान में रहता था. उनके सामने अगर कोई अगर कप में चाय छोड़ने की हिमाक़त करता, वोरा तुरंत टोकते हुए कहते,

"आठ रुपए की आती है चाय".

किदवई लिखते हैं, इसके बावजूद घर हो या ऑफ़िस, दिन हो या रात. उनके पास से कोई भी चाय पिए बिना नहीं जाता. एक बार ऐसा हुआ कि एक मानसिक रूप से बीमार आदमी उनके कमरे के अंदर घुस गया. और बोलने लगा, मैं प्रियंका गांधी का हसबेंड हूं. वोरा ने उसे भी चाय पिलाई और सिक्योरिटी बुलाने के बजाय उसे नमस्ते बोलकर आदर से रवाना किया.

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भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ बाल ठाकरे (तस्वीर- PTI)

वोरा 1985 में मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री बने थे. वोरा के मुख्यमंत्री बनने का दिलचस्प क़िस्सा भी बड़ा दिलचस्प है. हुआ यूं कि 1980 से 1985 तक अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री रहे थे. उस साल हुए चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. और अर्जुन सिंह एक बार फिर मुख्यमंत्री की शपथ लेने पहुंच गए. शपथ ग्रहण समारोह के बाद अर्जुन सिंह दिल्ली गए, ताकि कैबिनेट की लिस्ट पर प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मुहर लगा दें. राजीव ने यहां एक उल्टी चाल चल दी. उन्होंने अर्जुन सिंह से पंजाब का राज्यपाल पद स्वीकार करने को कह दिया. अर्जुन सिंह ना नहीं कह सकते थे. उन्होंने राज्यपल का पद स्वीकार कर लिया.

वोरा और 'वो रहा' का कन्फ्यूजन  

अब सवाल था अगला मुख्यमंत्री कौन होगा. रेस में माधव राव सिंधिया, श्याम शरण शुक्ल और विद्या चरण शुक्ल जैसे दिग्गज थे. लेकिन आख़िर में इन सबको नकारते हुए राजीव ने मोतीलाल वोरा का नाम फ़ाइनल कर दिया. वोरा को क्यों चुना गया, इसके अलग-अलग वर्जन हैं. विरोधियों के अनुसार जब राजीव ने अर्जुन सिंह से उनके उत्तराधिकारी के बारे में पूछा, वोरा भी वहीं खड़े थे. अर्जुन नाम फ़ाइनल करने के लिए वोरा की भी राय लेना चाहता थे. राजीव के एक सवाल पर उन्होंने कहा, 'वो रहा'. बाद में अर्जुन सिंह को अहसास हुआ कि राजीव ने 'वो रहा' को वोरा समझ लिया है.

किदवई अपनी किताब में वोरा के मुख्यमंत्री बनने की एक और थियोरी बताते हैं. इसके अनुसार राजीव , माधव राव सिंधिया को CM बनाना चाहते थे. दिल्ली में डिसीजन फ़ाइनल हुआ. और माधवराव एक चार्टर प्लेन लेकर भोपाल लौट गए. इसी प्लेन में वोरा भी मौजूद थे. बातों-बातों में सिंधिया ने वोरा से मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी और दिनचर्या के बारे में जानना चाहा. वोरा ने उन्हें क्या बताया ये तो पता नहीं, लेकिन जैसे ही प्लेन भोपाल में लैंड हुआ. सिंधिया भागे-भागे फ़ोन के पास पहुंचे और राजीव को फ़ोन कर वोरा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कह दिया. इस तरह वोरा पहली बार मुख्यमंत्री बने.

साल 2004 से 2014 तक जब UPA की सरकार थी, गुरुद्वारा रकाबगंज मार्ग पर कांग्रेस का वॉर रूम हुआ करता था. यहां मोतीलाल वोरा का एक अलग कमरा हुआ करता था. जहां उनकी एक अलग कुर्सी रखी रहती थी. पी चिदम्बरम, प्रणब मुखर्जी और सुशील कुमार शिंदे जैसे दिग्गज भी जब वॉर रूम में आते, उन्हें बाबूजी यानी मोतीलाल वोरा की कुर्सी पर बैठने की इजाज़त नहीं होती थी.

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मोतीलाल वोरा  1985 से 1988 और 1989 में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे थे (तस्वीर- Indiatoday)

कोषाध्यक्ष की दुछत्ती  

किदवई लिखते हैं, वोरा का सेंस ऑफ़ ह्यूमर काफ़ी कमाल का था. एक बार 24 अकबर रोड पार्टी कार्यालय में एक बड़ा पेड़ गिर गिया. ये वो दौर था, जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार चल रही थी, और कांग्रेस के दिन ख़राब चल रहे थे. टूटे हुए पेड़ को देखकर किसी ने कहा, इस पेड़ का हाल भी कांग्रेस की तरह हो गया है. शायद जड़ें सड़ने लगी हैं. वोरा ने ये सब सुना लेकिन कोई बहस नहीं की. बल्कि कुछ देर बाद बोले,

"पर देखो तो, कितनी ख़ाली जगह निकल आई है".

ऐसी ही ख़ाली जगह का एक और क़िस्सा है, जब सीताराम केसरी ने AICC के कोषाध्यक्ष का पद छोड़ा. केसरी के ऑफ़िस ख़ाली करने के बाद जब वोरा वहां से काम करने लगे. कुछ रोज़ बाद एक दिन छत का एक हिस्सा टूटकर नीचे गिर गया. तब मोतीलाल वोरा ने देखा कमरे में एक फॉल्स सीलिंग यानी दुछत्ती बनी हुई है. ऐसी दुछत्ती पहले से पैसा और क़ीमती सामान छुपाने के लिए बनाई जाती थी.

दुछत्ती देखकर किसी ने वोरा से कहा, चलिए देखते हैं, क्या पता कुछ रखा हो.वोरा ने जवाब दिया, तुम्हें क्या लगता है सीताराम ऐसे की कुछ छोड़कर चला जाएगा. सीताराम ये बात तंज़ में कह रहे थे, जिसका आशय था, कि सीताराम केसरी भी कोषाध्यक्ष रह चुके थे. और पैसों के मामलों में उनका भी कोई सानी नहीं था.

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