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Sensex ने 80,000 के पार जाकर इतिहास बनाया, लेकिन इससे लोगों को क्या फायदा होगा?

1986 में SENSEX शुरू हुआ था. तब ये 550 पॉइंट्स पर खुला था. आज ये 80,000 पॉइंट्स पार कर चुका है. मगर ‘SENSEX उछल गया’, ‘NIFTY गिर गया’ जैसे वाक्यांशों का मतलब क्या है? शेयर मार्केट का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है?

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SENSEX की इस रफ़्तार के पीछे HDFC के शेयरों में आई गति है. (फ़ोटो - PTI)

‘SENSEX उछल गया’, ‘NIFTY गिर गया’ – जिन मित्रों ने बाज़ार में पैसा फंसाया हुआ है, उनके सुखी या उदास चेहरों के अलावा इन वाक्यों के मायने क्या हैं? इस अनिवार्यतः नश्वर जीवन में इस एक ख़बर से बहार कैसे आ जाती है? या मायूसी क्यों पसर जाती है? यही बूझेंगे आज, क्योंकि महीने और हफ़्ते के तीसरे दिन घरेलू शेयर मार्केट ग़ज़ब उछला है. पहली बार SENSEX 80 हज़ार के पार पहुंचा और NIFTY 24,300 के स्तर के क़रीब.

तो इससे होगा क्या?

ये समझने के लिए पहले बेसिक्स क्लियर कर लेने होंगे.

# सेंसेक्स बना है दो शब्दों को जोड़कर: Sensitive और Index. सेंसेटिव माने संवेदी (संवेदनशील). इंडेक्स माने सूचकांक. जमा किया तो संवेदी सूचकांक. ये इंडेक्स ‘सेंसेटिव’ है, क्योंकि ये अंदर-बाहर के कारकों, प्रभावी तत्वों की वजह से घटता-बढ़ता रहता है. यही आंकड़े स्टॉक मार्केट में आए उतार-चढ़ाव को बताते हैं. तेज़ी और मंदी के बारे में बताते हैं.

# जैसे सब्ज़ी की मंडी होती है, जहां कोई किसान प्याज उगाकर बेचता है. उसी तरह शेयर्स की भी मंडी होती है. स्टॉक की इस मंडी को कहते हैं, स्टॉक एक्सचेंज. भारत में दो बड़ी मंडियां हैं. माने दो बड़े स्टॉक एक्सचेंज: नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और बंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE). कोई व्यक्ति दोनों जगह शेयर ख़रीद-बेच सकता है. BSE और NSE के अलावा कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज, अहमदाबाद स्टॉक एक्सचेंज, इंडिया इंटरनेशनल एक्सचेंज, मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया जैसी अन्य मंडियां भी हैं.

# तो ‘बंबई स्टॉक एक्सचेंज’ का इंडेक्स है SENSEX. BSE में लिस्टेड 30 मुख्य कंपनियों की परफॉर्मेंस के आधार पर तय होता है कि सेंसेक्स का हाल क्या है. इन्होंने अच्छा किया, तो SENSEX अच्छा. बुरा परफ़ॉर्म किया, तो सेंसेक्स बुरा.

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# ये 30 कंपनियां इंडस्ट्री के अलग-अलग सेक्टर्स की सबसे बड़ी, सबसे मज़बूत और साख वाली कंपनियां होती हैं. लिस्ट में 30 ही कंपनियां होती हैं, मगर समय-समय पर परफ़ॉर्मेंस के आधार पर नाम बदलते रहते हैं. इन 30 कंपनियों को चुनने के लिए बाक़ायदा एक इंडेक्स कमिटी है.

# ऐसे ही 'नैशनल स्टॉक एक्सचेंज' (NSE) का सूचकांक है, NIFTY. इसका 'संधि विच्छेद' है: National और Fifty. कुल 50 कंपनियों के कामकाज और उनकी परफ़ॉर्मेंस से तय होता है कि निफ़्टी उठा या गिर गया.

Sensex का उछलना-गिरना कैसे तय होता है?

सीधा-सीधा डिमांड-सप्लाई वाला गणित चलता है. अगर कंपनी का प्रदर्शन अच्छा है, कंपनी बढ़िया बिज़नेस कर रही है. तो ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग उसके शेयर ख़रीदना चाहेंगे. चुनांचे शेयर के दाम बढ़ेंगे. परफॉर्मेंस ख़राब हुआ, तो लोग शेयर बेचना शुरू कर देते हैं. इससे शेयर के भाव गिरने लगते हैं. शेयर के भाव बढ़ने का मतलब सेंसेक्स में उछाल. भाव गिरने का मतलब गिरावट.

कंपनी की परफ़ॉर्मेंस के अलावा और भी कई कारण हैं, जिनका 'भाव' चढ़ता-उतरता है. जैसे, मॉनसून, मौद्रिक नीति, देश-विदेश का घटनाक्रम, चुनाव, स्थिर सरकार, आदि.

ये कारक सेंसेक्स को कैसे प्रभावित करते हैं? ये पढ़ने के लिए सितंबर, 2019 में लिखे इस लेख को पढ़ लें.

Sensex का अर्थव्यवस्था में क्या अर्थ?

उत्तर प्रदेश के (मगर दिल्ली से ज़्यादा क़रीब) नोएडा के फ़िल्म-सिटी में लल्लन की चाय की दुक़ान है: लल्लन टी शॉप. सीधा-सादा आदमी है. चाय में ज़्यादा शक्कर और कम दूध के अलावा किसी और तरह की बेईमानी नहीं करता. चार लोगों का परिवार है, जिनका गुज़ारा चाय से हो जाता है. लल्लन की दुकान पर ऐसे कई आते हैं, जो स्टॉक मार्केट और सेंसेक्स की बातें करते हैं. किसी दिन ख़ुशफ़हमी में ख़राब चाय की तारीफ़ कर देते हैं, किसी दिन अच्छी चाय भी झल्ला कर गिरा देते हैं.

लल्लन सोचता है कि ये दूर देश की बातें हैं. पैसा बढ़ाने की कोई टेकनीक है, जिसमें ‘रिक्स’ रहता है. लल्लन के पास रिक्स की गुंजाइश नहीं है, सो वो इनसे दूर भला. 

लेकिन क्या Sensex की उठा-पटक लल्लन पर कोई असर रखती है? देखिए, लल्लन देश के असंगठित क्षेत्र में है, लेकिन अर्थव्यवस्था का हिस्सा है. NIFTY और SENSEX अर्थव्यवस्था का मीटर है. कौन सा स्टॉक कैसा परफ़ॉर्म कर रहा है? ये बताते हैं. हालांकि, बड़े केनवास पर शेयर बाज़ार का व्यापार और उद्योग के विकास पर बहुत ज़रूरी असर पड़ता है.

सेंसेक्स और अर्थव्यवस्था का रिश्ता क्या कहलाता है? ये समझने के लिए एक मिसाल: 
2010 में भारत की GDB ~1.68 लाख करोड़ थी. साल 2019 में GDP की गिनती ~2.87 लाख करोड़ तक पहुंच गई. माने लगभग 1.5 गुना की बढ़त. वहीं, 2010 के अंत में सेंसेक्स 18,000 था और 2019 में 40,000. यानी फिर से डेढ़ गुना की बढ़त. COVID प्रकोप के चलते अर्थव्यवस्था गिरी, तो शेयर मार्केट भी धड़ाम हो गया था.

जब शेयर बाज़ार अच्छा चल रहा होता है, तो इससे एक सकारात्मक भावना पैदा होती है. फिर क्या होता है? निवेश बढ़ता है, रोज़गार पैदा होता है, आर्थिक तरक्की होती है. और जब बाज़ार गिरता है, तो निवेश भी गिरने लगता है, नौकरियां जाने लगती हैं और आर्थिक मंदी की घंटी बजने लगती है.

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अब अर्थव्यवस्था अच्छी हुई, तो दूध, चीनी और चाय की पत्तियों की क़ीमतें स्थिर रहती हैं. लल्लन को मार्जिन अच्छा मिलेगा. फिर अर्थव्यवस्था अच्छी होगी, तो जनता के पास ख़र्चने को पैसा भी ज़्यादा होगा. मतलब ज़्यादा ग्राहक. 

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