एक दिन कितने घंटे का होता है? 24 घंटे? क्या बच्चों वाला सवाल है! यही सोच रहे हैं न. अच्छा एक दिन में 24 घंटे ही क्यों होते हैं. क्योंकि हमारी धरती अपनी धुरी पर एक चक्कर घूमने में 24 घंटे लगाती है? लगाती है न? पक्का? जी नहीं धरती को अपनी धुरी में एक चक्कर घूमने में लगता है-
हर 4 साल बाद आता है लीप ईयर? जी नहीं, मामला इतना आसान नहीं है
साल 1900 और 2100 का भाग 4 से पूरी तरह दिया जा सकता है लेकिन इन सालों में फरवरी 28 दिन की क्यों थी? बोले तो हर चार साल बाद फरवरी 29 दिन की हो ये जरूरी नहीं है.
23 घंटे और 56 मिनट अब आप कहेंगे कि ये तो बाल की खाल निकालने वाला मामला है. 4 मिनट कम से क्या ही हो जाएगा. 4 मिनट की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू. आज-कल 2 मिनट में तो नूडल्स बन जा रहे. 4 मिनट में तो कितना कुछ हो सकता है. 4 मिनट में 2 नूडल्स बन सकते हैं.( मजाक था) अब आप सोच रहे होंगे कि-
ये बस आपको ये बताने के लिए था कि दिन और घंटे का जो कांसेप्ट है, वो इंसानों ने बनाया है. अपनी सुविधा के लिए. जैसे याद हो अगर तो फिजिक्स के सवालों में गुरुत्वाकर्षण के त्वरण (gravitational acceleration) या ‘g’ को 9.80665 m/s² जगह 10 m/s² मान लिया करते थे. ताकि सवाल हल करने में आसानी हो. लेकिन अगर सच में धरती का गुरुत्वाकर्षण बल थोड़ा सा ज्यादा हो जाए तो पता है क्या होगा? एवरेस्ट थोड़ा छोटा हो जाएगा. रॉकेट चांद में भेजने के लिए और बेहतर रॉकेट बनाने पड़ेंगे. क्रिकेट के छक्के थोड़े कम गगन चुंबी होंगे.
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एक साल आखिर होता क्या है?धरती तो अपनी मर्जी से घूमती है. उसको जितना टाइम लगता है, लगेगा ही. लेकिन सुविधा के लिए हमने इन नंबर्स को राउंड ऑफ कर दिया है. कहें तो मोटा-मोटा मान लिया है. ठीक ऐसा ही हुआ है साल के साथ. साल यानी सूरज का एक चक्कर पूरा करने में धरती लगने वाला समय. यानी 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक. लेकिन ये साल का समय और कैलेंडर के दिन मैच नहीं करते. इसमें थोड़ा अंतर है. आगे बताते हैं.
कैलेंडर के हिसाब से एक साल में होते हैं, 365 दिन बराबर? लीप वर्ष में होते हैं, 366 दिन बराबर? जो हर 4 साल बाद आता है, ठीक? यानी जिन सालों का 4 से पूरा पूरा भाग दिया जा सके. जिनमें कोई हासिल न बचे वो साल लीप ईयर होने चाहिए जैसे 2024. जी नहीं, लीप वर्ष हर चार साल बाद नहीं आता. साल 1900 में फरवरी 28 की थी. साल 2100 में फरवरी 28 दिन की होगी. ऐसा क्यों?
अभी हमने आपको बताया कि सुविधा के लिए नंबरों को राउंड ऑफ किया गया है. असल में धरती को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में लगता है 365 दिन और 6 घंटे. जी हां, अमेरिकी एस्ट्रोफिजिसिस्ट
अब चार साल बाद ये 6-6 घंटे बचकर हो जाते हैं, पूरे 24 घंटे. अब ये 24 घंटे कहां जाएं? इसका तोड़ निकाला गया कि 4 साल बाद साल के सबसे छोटे महीने यानी फरवरी को 24 घंटे या एक एक्स्ट्रा दिन दे दिया जाए. तो चार साल यानी लीप ईयर वाली फरवरी हो जाती है, 29 दिनों की. बराबर? आसान था न. लेकिन ये सब में एक पेच है.
मामला तब उलझता है, जब ये सामने आता है कि ये जो 6 घंटे एक्स्ट्रा होते हैं. ये दरअसल 6 घंटे से थोड़ा कम होते हैं, इसको भी राउंड ऑफ किया गया है. मतलब फरवरी को हर लीप इयर में कुछ मिनट ज्यादा दे दिए जाते हैं. जो मिलकर 100 साल बाद एक पूरा दिन बना देते हैं. बूंद-बूंद से सागर बनता है और मिनट-मिनट से दिन. हाथ थामे रहिए घबराइये नहीं अभी और भी है.
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मिनट-मिनट मिलकर बने इस एक्सट्रा दिन को बराबर करने के लिए हर 100 साल या सेंचुरी ईयर में फरवरी से 1 दिन घटा लिया जाता है. तभी 1900, 2100, 2200 जैसे सालों में फरवरी 28 की हो जाती है. अभी इसमें मामला और फंसता है. साल 2000 तो सेंचुरी ईयर था. उसकी फरवरी तो 28 की होनी चाहिए थी. तो मामला ये है कि जो एक्स्ट्रा एक दिन हर 100 साल बाद फरवरी से निकाला जाता है. उसमें कुछ मिनट एक्स्ट्रा निकाल लिए जाते हैं. शुरुआत में हमनें आपको बताया था. मिनट-मिनट का खेल है. अब इन मिनटों को बराबर करने के लिए हर 400 साल बाद फरवरी को एक दिन फिर दे दिया जाता है, जिससे फरवरी सेंचुरी ईयर में होते हुए भी 29 की हो जाती है, जैसे साल 2000 वाली.
आसान भाषा में समझें तो फरवरी हर चार साल बाद 29 की होती है लेकिन हर 100 साल बाद 28 की और हर 400 साल बाद वाली 29 की. दिमाग का दही करने वाला कैलेंडर है ये तो. खैर आज के ‘एक्स्ट्रा’ दिन का मजा लीजिए. क्योंकि हर चार साल बाद आने वाली फरवरी 29 की नहीं होगी
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