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तीस्ता सीतलवाड़: सुप्रीम कोर्ट कैसे तय करता है किस मामले में रात को सुनवाई होगी, किसमें नहीं?

छुट्टी के दिन सुप्रीम कोर्ट ने दो बार सुनवाई की. रात में आए फैसले में तीस्ता को राहत मिली. ऐसे में पूछा जा रहा है कि SC में त्वरित सुनवाई का फैसला लेते वक्त किन चीज़ों को देखा जाता है?

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गुजरात हाईकोर्ट से तत्काल सरेंडर के आदेश के खिलाफ तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था (फोटो सोर्स- आज तक)

शनिवार, 1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ को एक सप्ताह की अंतरिम राहत दे दी. और गुजरात हाईकोर्ट के उस निर्णय पर रोक लगा दी, जिसमें तीस्ता की जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें 'तत्काल सरेंडर' करने को कहा गया था. तीस्ता सीतलवाड़ पर 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से जुड़े मामलों में सबूत गढ़ने और गवाहों को भटकाने का आरोप है. ख़ास बात ये है कि हाईकोर्ट का आदेश और फिर तीस्ता की सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर दो बार सुनवाई, एक ही दिन यानी 1 जुलाई को हुई. सुप्रीम कोर्ट बेहद ज़रूरी मामलों में ही रात में सुनवाई करता है. ऊपर से तीस्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई छुट्टी के दिन की. ऐसे में कई लोगों ने सवाल किया कि लाखों मामले पेंडिंग हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट कुछ चुनिंदा मामलों में ही तेजी क्यों और कैसे दिखाती है?

इस बारे में जानकार क्या कहते हैं, समझेंगे लेकिन पहले संक्षेप में पूरा केस.

तीस्ता सीतलवाड़ के परिचय के साथ दो चीजें ख़ास तौर पर जुड़ती हैं- एक कि वो वकालत के लिए मशहूर परिवार से आती हैं और सामजिक कार्यकर्ता हैं. और दूसरा, कि उन पर 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से जुड़े मामलों में सबूत गढ़ने और गवाहों को भटकाने का आरोप है. आरोप कैसे लगा? सिलसिलेवार समझते हैं-

-तीस्ता सीतलवाड़ ने गुजरात दंगों में बड़ी साजिश का आरोप लगाया था. उन्होंने मामले में SIT की क्लोजर रिपोर्ट को जकिया जाफरी के साथ चुनौती दी थी. वही जकिया जाफरी, जिनके पति एहसान जाफरी (जो कांग्रेस के पूर्व सांसद भी थे) 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्गा सोसायटी पर हुए हमले के दौरान मारे गए थे. SIT की रिपोर्ट में गुजरात के आला अफसरों और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई लोगों को क्लीन चिट दी गई थी.

-SIT की ओर से दी गई क्लीन चिट को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून, 2022 को खारिज कर दिया था. याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि इस मामले को ‘जानबूझकर खींचा’ गया.

-इसके अगले दिन ही तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ FIR दर्ज की गई. इसमें सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को ही आधार बनाया गया था. तीस्ता सीतलवाड़ पर जालसाजी, नकली दस्तावेज पेश करने और बेगुनाह को फंसाने का आरोप लगाया गया था. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक तीस्ता को गुजरात पुलिस ने 25 जून, 2022 को मुंबई से कस्टडी में लिया था.

-30 जुलाई, 2022 को अहमदाबाद की एक निचली अदालत ने तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने जुलाई 2022 में गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था.

-03 अगस्त 2022 को जमानत मामले में हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस भेजा और सुनवाई की तारीख 19 सितंबर तय की.

 - लेकिन इसी बीच तीस्ता सीतलवाड़ जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं. 2 सितंबर, 2022 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में अंतरिम जमानत मिली. अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनकी रेगुलर बेल पर हाई कोर्ट फैसला सुना सकता है. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक हाई कोर्ट से तीस्ता को रेगुलर बेल नहीं मिल जाती, वे देश के बाहर नहीं जा सकती हैं.

-1 जून 2023 को गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता की रेगुलर बेल एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी. और उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने को कहा था.

-लेकिन 1 जून को ही तीस्ता ने गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

सुप्रीम कोर्ट ने राहत दे दी-

1 जून को शाम 6:30 बजे सुप्रीम कोर्ट में दो जजों - जस्टिस एएस ओक और प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने मामले पर सुनवाई की. आज तक से जुड़े, संजय शर्मा, कनु सारदा और सृष्टि ओझा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों जजों की राय अलग थी, इसलिए मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया. चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (CJI) ने मामले की सुनवाई के लिए जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में तीन जजों की एक पीठ का गठन किया. बेंच में उनके अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता शामिल थे.

तीस्ता के वकील सीयू सिंह ने अंतरिम राहत देने का आग्रह किया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तीस्ता को राहत देने के विरोध में दलीलें दीं. उन्होंने कहा कि तीस्ता ने पूरे देश को बदनाम करने की कोशिश है. इस पर सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि किसी को भी देश को बदनाम करने की इजाजत नहीं है, लेकिन अगर उन्हें अंतरिम राहत दे दी गई तो क्या आसमान गिर जाएगा?

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के निर्णय पर एक सप्ताह तक के लिए रोक लगा दी है. कोर्ट ने ये भी कहा है कि मामले को उचित पीठ के सामने रखा जाएगा.

अब मुख्य सवाल पर आते हैं, सुप्रीम कोर्ट किसी मामले पर सुनवाई कैसे करता है?

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई की प्रक्रिया-

इस बारे में हमने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आशीष कुमार पांडेय से बात की.

आशीष बताते हैं,

“सुप्रीम कोर्ट में दो तरह के मामले जाते हैं- पहले मामले वो होते हैं जिन्हें पहली बार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लिस्ट किया जा रहा हो और दूसरे वो, जो पहले से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे होते हैं (विचाराधीन मामले). ऐसे मामले जिनकी पहले ही सुनवाई हो चुकी होती है, उनमें सुनवाई की अगली तारीख क्या होगी, इसे लेकर अभी कई विवाद हैं. इसमें एक केस मेंशनिंग ऑफिसर होता है. वकील को उसके सामने केस को मेंशन करना होता है, केस को तत्काल क्यों सुना जाए, ये बताना होता है. उसके बाद बेंच एक तारीख तय करती है. ये एक बड़ी जटिल प्रक्रिया थी. केस की सुनवाई कब होगी इसकी कोई तय मियाद नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कुछ दिन पहले ही पारदर्शिता लाने के लिए एक नया सर्कुलर आया है, जिसके मुताबिक, सप्ताह के कुछ निश्चित दिनों में नए केस फाइल होंगे तो स्वतः ही अगले सोमवार को उनकी लिस्टिंग हो जाएगी. यानी सुनवाई कब होगी ये तय हो जाएगा. ये प्रक्रिया आज, 3 जुलाई से ही शुरू हुई है.”

छुट्टी के दिन, रात में सुनवाई संभव है?

सुप्रीम कोर्ट में शनिवार और रविवार को छुट्टी रहती है. और सामान्य रूप से मामलों की सुनवाई 4 बजे तक होती है. तीस्ता सीतलवाड़ के मामले में छुट्टी के दिन सुनवाई हुई, वो भी शाम 4 बजे के बाद. इस पर आशीष कहते हैं,

“सामान्य प्रक्रिया के तहत आप कंसर्न्ड रजिस्ट्रार के सामने किसी भी केस को मेंशन कर सकते हैं, अगर अर्जेंसी (तत्काल सुनवाई की जरूरत) है तो रजिस्ट्रार के घर पर भी केस को मेंशन कर सकते हैं, फिर अगर रजिस्ट्रार को ठीक लगता है तो वो मामले से जुड़े जज को मेंशन करता है. और अगर जज को ठीक लगता है तो वो कभी भी बेंच का गठन कर केस की सुनवाई तय कर सकता है, उसमें कोई लीगल बार (कानूनी रुकावट) नहीं है कि छुट्टी वाले दिन या देर रात बेंच नहीं बैठ सकती. CJI के पास डिस्क्रीशनरी पावर (विवेकाधीन शक्ति) है कि अगर उन्हें ठीक लगता है तो वो रविवार की रात को भी केस के लिए बेंच का गठन कर सकते हैं. इसके बाद केस की सुनवाई जज के घर पर या सुप्रीम कोर्ट के परिसर - कहीं भी हो सकती है. क्योंकि जहां जज है, कोर्ट वहीं पर है.”

फलां केस अर्जेंट है, इसे आज ही सुना जाना चाहिए या फलां केस सामान्य कामकाज के दिनों में सुना जाएगा, ये जजों की विवेकाधीन शक्ति पर निर्भर होता है. लेकिन जज इस पावर को न्यायिक आधार पर ही इस्तेमाल करते. 

आशीष उदाहरण देते हुए कहते हैं कि याकूब मेनन और निर्भया रेप केस के अभियुक्तों को लेकर सुनवाई रात में हुई. क्योंकि दोनों ही मामलों में सुबह फांसी दी जानी थी. अभियुक्तों के वकीलों का कहना था कि उनके पास कुछ ऐसी दलीलें हैं, जो किसी का जीवन-मरण तय कर सकती हैं. अतः उन्हें तत्काल सुना जाना चाहिए. जजों ने पाया कि अगली सुबह 10 बजने और कोर्ट के खुलने का इंतज़ार नहीं किया जा सकता, क्योंकि फांसी तड़के ही दी जानी थी. इसीलिए बिना देर किए, रात में ही सुनवाई शुरू कर दी गई.  

तीस्ता के मामले में सुनवाई की ये भी एक वजह

तीस्ता के मामले में आशीष कहते हैं कि गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता को 'तत्काल सरेंडर' करने का आदेश दिया था. जबकि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें कुछ मामलों में जमानत मिली हुई है. ऐसे में कोर्ट को ये लगा कि उन्हें तत्काल सुनवाई करनी चाहिए. इसलिए कोर्ट ने दो बार बेंच बैठाई. इसके लिए कोई तय कानूनी नियम नहीं है. ये कोर्ट का विवेकाधिकार है. कोर्ट से इस शक्ति का arbitrarily या मनमाने ढंग से इस्तेमाल न करने की उम्मीद की जाती है.

कोर्ट कुछ मामलों में वापस हाईकोर्ट जाने को क्यों कह देता है?

इस बारे में मनीष कश्यप के मामले का उदाहरण देते हुए आशीष कहते हैं कि जब किसी मामले में हाईकोर्ट का विकल्प बाकी हो, तब सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर सुप्रीम कोर्ट वापस हाईकोर्ट जाने को कह देता है.

हमारा आख़िरी सवाल था कि सुप्रीम कोर्ट में बड़ी तादाद में ऐसे मामले चल रहे हैं, जिन पर सुनवाई नहीं हो पा रही, ऐसे में किसी एक मामले पर तेजी से सुनवाई से क्या संदेश जाता है? इसके जवाब में आशीष कहते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ के मामले के बाद जिस तरह जनता का रिएक्शन आया है, सुनवाई की अर्जेंसी को लेकर जो संदेह की स्थिति बनी है, उसे साफ़ किया जाना चाहिए. CJI को चाहिए कि वो एक ऐसा सिस्टम बनाएं जिसमें पारदर्शिता हो और 'Less Arbitrarily' (कम मनमाने ढंग से/तय प्रक्रिया के तहत) केसों की सुनवाई हो. लेकिन कोर्ट के पास डिस्क्रीश्नरी पावर हमेशा रहनी चाहिए. संभव है सरकार को भी अचानक किसी राजनैतिक मामले में, संवैधानिक संकट की स्थिति में रात के बारह बजे कोर्ट में सुनवाई की जरूरत पड़ जाए!

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