क्रिकेट. अंग्रेजों का शुरू किया खेल, जिसे 'जेंटलमेंस गेम' कहा गया. लेकिन जब सदी अंगड़ाई ले रही थी. तब कुछ ऐसा हुआ, जिसने क्रिकेट को हमेशा के लिए एक शक की चादर ओढ़ा दी. साल था 2000. वही साल, जब गुड़गांव मिलेनियम सिटी में बदल रहा था. दिल्ली पुलिस ने इसी साल मैच फिक्सिंग का खुलासा किया, जिसने क्रिकेट के सज्जनों का खेल होने के दावों की बखिया उधेड़ दी. इन सबके पीछे एक नाम था संजीव चावला.
वह नाम, जिसने क्रिकेट के सितारों का जमीन पर ला पटका. इनमें दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोन्ये, भारत के मोहम्मद अजहरुद्दीन, अजय जडेजा और अजय शर्मा के नाम थे. इन सबको बैन कर दिया गया था. अजहर पर आजीवन बैन लगा था. मैच फिक्सिंग मामले में नाम आने के बाद इन सबका करियर खत्म हो गया था.लेकिन अभी यह सब बातें क्यों? क्योंकि साल 2000 के मैच फिक्सिंग मामले के आरोपी संजीव चावला को भारत ले आया गया है. उसे भारत लाने में 20 साल लग गए. प्रत्यर्पण संधि के तहत उसे लंदन से भारत लाया गया.
संजीव चावला पर कई मैचों को फिक्स करने का आरोप है. इनमें साल 2000 में भारत-दक्षिण अफ्रीका के बीच वनडे सीरीज भी शामिल है. मैच फिक्सिंग में नाम आने के बाद वह ब्रिटेन भाग गया था और उसने वहां की नागरिकता ले ली थी. लेकिन भारत उसे वापस लाने के लिए लगा रहा. अब जाकर कामयाबी मिली. दिल्ली पुलिस ने 2013 में उसके खिलाफ चार्जशीट दायर की थी. इसमें हैंसी क्रोन्ये, मनमोहन खट्टर, दिल्ली के राजेश कालरा और सुनील दारा सहित टी सीरीज के मालिक के भाई कृष्ण कुमार को आरोपी बनाया गया था. जून 2016 में भारत के कहने पर संजीव को ब्रिटेन की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद से पुलिस संजीव को भारत लाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मानवाधिकारों का हवाला देकर चावला खुद को बचाता रहा. चावला को भारत-ब्रिटेन प्रत्यर्पण संधि 1992 के तहत लाया गया है.
संजीव चावला साल 2000 में ब्रिटेन गया था और तब से वहीं था. (File Photo)
कौन है संजीव चावला
संजीव चावला मूल रूप से कारोबारी है. उसका जन्म दिल्ली में हुआ और परिवार दिल्ली में ही रहता है. परिवार का नोएडा में कपड़े एक्सपोर्ट करने का कारोबार है. संजीव चावला लंदन के शेडवेल में रेस्तरां चलाता है. बताया जाता है कि वसंत विहार मार्केट में दो रेस्टॉरेंट में उसकी हिस्सेदारी है. पुलिस ने जांच में बताया कि उसे क्रिकेट का काफी शौक है.
संजीव चावला (मास्क में) को लाने में कई जतन करने पड़े हैं.
अब फिक्सिंग की कहानी
क्रिकेट में फिक्सिंग की बातें शुरू होती है 1980 और 1990 के दशक से. उस समय शारजाह में क्रिकेट होता था. कहा जाता था कि वहां मैच फिक्स होते हैं. दाऊद इब्राहिम भी मैच देखने के लिए जाता था. वह टीमों के ड्रेसिंग रूम में भी घुस जाया करता था. कहा जाता है कि वह भारत की जीत पर पैसा लगाया करता था. एक किस्सा है कि कपिल देव ने दाऊद को ड्रेसिंग रूम से डांटकर बाहर निकाल दिया था. कहा जाता है कि 1986 में शारजाह में सीरीज थी. भारत फाइनल में पहुंच गया था. दाऊद टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में गया. वहां जाकर उसने कहा कि अगर आप लोग जीत गए, तो सबको टोयोटा कोरोला कार मिलेगी. उस समय यह गाड़ी भारत में मिलती नहीं थी. लेकिन कप्तान कपिल देव ने दाऊद को वहां से भगा दिया. साल 2013 में दिलीप वेंगसरकर ने इस घटना की पुष्टि की थी.
प्रभाकर का धमाका और रो दिए कपिल
कुछ साल बाद मनोज प्रभाकर ने बड़ा बम फोड़ा. उन्होंने 'आउटलुक' मैगजीन में लिखा कि 1994-95 में श्रीलंका दौरे पर एक साथी ने खराब खेलने के लिए 25 लाख रुपए का ऑफर दिया था. लेकिन उन्होंने प्लेयर का नाम नहीं लिखा. इसके बाद बीसीसीआई ने 1997 में जस्टिस चंद्रचूड़ कमिटी बनाई. जांच हुई, लेकिन कमिटी ने कहा कि भारतीय क्रिकेट में फिक्सिंग नहीं है. मामला रफा-दफा हो गया.
कपिल देव मैच फीक्सिंग के आरोपों को नकारते हुए फूट-फूटकर रोए थे. (Screenshot)
साल 2000 में दिल्ली पुलिस ने जब मैच फिक्सिंग का खुलासा किया, तो मनोज प्रभाकर ने फिर धमाका किया. उन्होंने बताया कि जिस खिलाड़ी ने पैसे ऑफर किए, वो कपिल देव थे. कपिल देव इस आरोप पर आग-बबूला हो गए. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर प्रभाकर के आरोप को नकार दिया. कपिल काफी गुस्से में थे. कहा जाता है कि प्रेस कांफ्रेंस में बीबीसी के पत्रकार ने अंग्रेजी में जवाब देने को कहा तो कपिल उस पर बरस पड़े. उन्होंने कहा, 'नहीं बोलूंगा इंग्लिश. मैं पंजाबी और हिंदी में बात करूंगा.' बाद में एक इंटरव्यू में वे खुद को बेकसूर बताते हुए रो पड़े थे. उन्होंने इस आरोप के बाद भारतीय क्रिकेट टीम का कोच पद भी छोड़ दिया.
बीसीसीआई करती रही कवरअप
खैर, फिर से थोड़ा पीछे चलते हैं. 1997 में ही खेल पत्रकार प्रदीप मैगजीन ने मैच फिक्सिंग पर एक खबर की. वे भारत के दौरे को कवर करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे. यहां पर एक बुकी उनके संपर्क में आया. उसने मैगजीन से किसी भारतीय खिलाड़ी से संपर्क कराने को कहा. उसे केवल मौसम, पिच और प्लेइंग इलेवन की जानकारी चाहिए थी. और कहा कि अगर ऐसे करा देते हैं, तो उन्हें दिल्ली में कहीं पर भी एक फ्लैट मिलेगा. बाद में प्रदीप मैगजीन ने यह खबर भी छापी थी, लेकिन हुआ कुछ नहीं. पहले की तरह सब चलता रहा. बीसीसीआई फिक्सिंग से इनकार करती रही. कहा कि सब कुछ साफ है. कोई दिक्कत नहीं है.
हैंसी क्रोन्ये दक्षिण अफ्रीका के गोल्डन बॉय कहलाते थे.
दुबई से धमकी और...
साल 2000 में फिर से फिक्सिंग के जिन्न ने सिर उठाया. इस साल फरवरी में हैंसी क्रोन्ये की कप्तानी में दक्षिण अफ्रीकी टीम भारत आई. दो टेस्ट की सीरीज दक्षिण अफ्रीका ने जीती. टेस्ट सीरीज हारने के बाद सचिन तेंदुलकर ने कप्तानी छोड़ दी. सौरव गांगुली नए कप्तान बने. पांच वनडे की सीरीज भारत के नाम रही. मार्च में यह सीरीज पूरी हुई. दो महीने बाद दिल्ली पुलिस ने मैच फिक्सिंग का खुलासा किया. ये खुलासा भी दिलचस्प अंदाज में हुआ. साल 2000 में मार्च के महीने में दिल्ली पुलिस को एक कारोबारी ने शिकायत दी. इसमें कहा कि दुबई से धमकी भरे फोन आ रहे हैं और पैसे मांगे जा रहे हैं. क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर ईश्वर सिंह को जांच करने को कहा गया. सरकार से अनुमति लेने के बाद फोन टैपिंग शुरू की गई. पता चला कि शाहीन हाथले नाम का व्यक्ति फोन कर रहा था.
'कप्तान मेरे कमरे में आएगा'
वह तीन लोगों को फोन करता था. इनमें एक नंबर टी सीरीज के मालिक गुलशन कुमार के भाई कृष्ण कुमार का था. आगे पता किया, तो सामने आया कि यह नंबर संजीव चावला इस्तेमाल कर रहा था. एक बातचीत में चावला कह रहा था, 'कप्तान मेरे कमरे में आएगा.' लेकिन इससे कुछ समझ नहीं आया कि किस कप्तान की बात हो रही है. लेकिन दूसरे कॉल में खुलासा हो गया. चावला ने कहा, 'हाय हैंसी.' बातचीत में पैसों का ज़िक्र हुआ. हैन्सी ने अपने पैसे तय किये. इससे दिल्ली पुलिस को पता चल गया कि मामला कुछ और ही है. इस तरह से क्रिकेट में फिक्सिंग का राज फाश हो गया.
मई 2000 में पुलिस ने मैच फिक्सिंग मामले को सार्वजनिक किया. इसमें हैंसी क्रोन्ये के साथ ही निकी बोए और हर्शल गिब्स का नाम था. क्रोन्ये ने पहले तो फिक्सिंग के आरोपों से इनकार किया. दो दिन बाद उन्होंने दोष मान लिया. उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी बोर्ड के मैनेजिंग डायरेक्टर अली बाकर को सबसे पहले इस बारे में बताया. बाकर को रात तीन बजे उठाकर क्रोन्ये ने कहा कि उन्होंने पैसे लेकर मैच की जानकारी लीक की. पुलिस ने भी ऐसा ही कहा. लेकिन क्रोन्ये पहले ही फिक्सिंग में रंग चुके थे. उन्होंने जनवरी 2000 में इंग्लैंड के खिलाफ सेंचुरियन टेस्ट के लिए पैसे लिए थे. ये टेस्ट काफी सुर्खियों में रहा.
हैंसी क्रोन्ये के लिए सचिन तेंदुलकर ने कहा था कि उसकी गेंदों को खेलने में सबसे ज्यादा दिक्कत होती थी. (File)
लेदर जेकेट में टेस्ट का फैसला!
दक्षिण अफ्रीका पहले बल्लेबाजी कर रहा था. पहले दिन 6 विकेट पर 155 रन उसका स्कोर था. लेकिन अगले तीन दिन बारिश से धुल गए. लग रहा था कि नतीजा नहीं आएगा. आखिरी दिन मेजबान ने 8 विकेट पर 248 रन पर पारी घोषित कर दी. इसके बाद हैंसी क्रोन्ये ने इंग्लैंड के कप्तान नासिर हुसैन से बात की. और इंग्लैंड ने पहली और दक्षिण अफ्रीका ने दूसरी पारी खेले बिना कुर्बान कर दी. टेस्ट क्रिकेट के 123 साल के इतिहास में पहली बार पारी कुर्बान की गई थी. यह काफी अजीब था, लेकिन इसे 'खेल भावना' कहकर ज्यादा हवा नहीं दी गई. इंग्लैंड को जीत के लिए 249 रन का लक्ष्य मिला. अंग्रेजों ने आठ विकेट खोकर 251 रन बनाए और मैच जीत लिया. बाद में सामने आया कि हैंसी क्रोन्ये ने सटोरिए से करीब पांच लाख रुपए और लेदर जेकेट लिया. इसके बदले में मैच का नतीजा निकालने का फैसला किया.
दक्षिण अफ्रीका के 'गोल्डन ब्वॉय' का तिलिस्म टूट गया
इसके बाद दक्षिण अफ्रीका का ये 'गोल्डन ब्वॉय' कामयाबी की बुलंदियों से लुढ़ककर बदनामी के गर्त में पहुंच गया था. उस समय तक क्रोन्ये दक्षिण अफ्रीका में बेहद लोकप्रिय थे. उस समय के दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के बाद क्रोन्ये का ही नाम आता था. साल 2002 में प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई. लेकिन मैच फिक्सिंग के बाद भी क्रोन्ये का असर कम नहीं हुआ. साल 2004 में हुए एक सर्वे में क्रोन्ये को दक्षिण अफ्रीका के महानतम शख्सियतों की सूची में 11वां स्थान मिला था.
हैंसी क्रोन्ये और मोहम्मद अजहरुद्दीन दोनों का करियर मैच फिक्सिंग मामले के बाद खत्म हो गया था. (India Today)
अजहर का नाम
मैच फिक्सिंग के हल्ले पर भारत सरकार ने भी दखल दी थी और अप्रैल, 2000 में सीबीआई से जांच करने को कहा. यह चल ही रहा था कि क्रोन्ये ने मोहम्मद अजहरुद्दीन का नाम लिया. कहा कि अजहर ने उन्हें एक सटोरिए से मिलाया था. अजहर ने आरोपों को नकार दिया. 31 अक्टूबर, 2000 को सीबीआई रिपोर्ट में कई दिग्गजों के नाम थे. इनमें ब्रायन लारा, डीन जोंस, अर्जुन रणातुंगा शामिल थे. लेकिन इनमें से किसी के खिलाफ सबूत नहीं मिला. सब बरी हो गए. सीबीआई रिपोर्ट में कहा गया कि अजहर ने मैच फिक्स करने की बात कबूली है और उन्होंने यह काम अजय जडेजा और नयन मोंगिया के साथ मिलकर किया. आगे की जांच में मोंगिया को बरी कर दिया गया. लेकिन अजहर, जडेजा और मनोज प्रभाकर को दोषी पाया. लेकिन आगे चलकर कोर्ट ने जडेजा और अजहर को बरी कर दिया.
अब कहा जा रहा है कि संजीव चावला के भारत आने से कई खुलासे होंगे. कई खिलाड़ियों के नाम सामने आ सकते हैं. साथ ही 2000 मैच फिक्सिंग मामले की नई परतें भी सामने आ सकती हैं.
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