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यूक्रेन संकट: यूएन महासभा में रूस के खिलाफ वोटिंग होने से क्या फर्क पड़ेगा?

UNSC ने 28 फरवरी को यूक्रेन संकट पर UNGA का इमरजेंसी स्पेशल सेशन बुलाया है.

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रूस और यूक्रेन के बीच वार्ता की मेज पर आने की बात चल रही है, और दूसरी तरफ़ संयुक्त राष्ट्र महासभा का आपातकालीन सत्र बुलाया गया है, जिसमें यूक्रेन पर रूसी एक्शन के खिलाफ़ लाए गए प्रस्ताव पर 193 देशों की वोटिंग कराई जानी है (फोटो साभार आज तक और AFP)
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने सोमवार 28 फरवरी को यूक्रेन संकट (Ukraine Under Attack) के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) का इमरजेंसी स्पेशल सेशन बुलाया है. इसमें 193 देश हिस्सा लेंगे. 1950 से अब तक ऐसे सिर्फ दस सत्र आयोजित हुए हैं. सेशन के आखिर में रूस (Russia) के खिलाफ़ प्रस्ताव पर सदस्य देशों की वोटिंग कराई जाएगी. इसे अमेरिका (USA) और बाकी पश्चिमी देशों की रूस को अलग-थलग करने की कूटनीतिक कवायद के रूप में देखा जा रहा है. गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र रूस-यूक्रेन मुद्दे पर पिछले एक हफ्ते में पांच बैठकें कर चुका है. इनमें आखिरकार 193 देशों की महासभा का आपातकालीन सत्र बुलाने का रास्ता साफ़ हुआ है. समझने की कोशिश करेंगे कि महासभा के इस सत्र में होने वाली वोटिंग से रूस पर कोई फर्क पड़ेगा या नहीं और उसकी वीटो पावर इस पर क्या फर्क डाल सकती है. क्या है UNGA? संयुक्त राष्ट्र के 6 अंग हैं. UNGA और UNSC के अलावा इनमें इकनॉमिक एंड सोशल काउंसिल (ECOSOC), संयुक्त राष्ट्र सचिवालय, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (ICJ) और ट्रस्टीशिप काउंसिल शामिल हैं. UNGA में 193 देश बतौर सदस्य शामिल हैं, जबकि UNSC में कुल 15 देश हैं. इनमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य हैं. चीन, फ़्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका UNSC के स्थायी सदस्य हैं. इन्हीं के पास वीटो पावर होती है. इसी तरह ECOSOC में 54 सदस्य देश शामिल हैं. भारत भी 2024 तक के लिए इसका सदस्य बन गया है. जहां UNSC मुख्य रूप से सदस्य देशों की शान्ति और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता है, वहीं UNGA का काम सभी देशों के लिए संयुक्त रूप से पॉलिसीज़ बनाना है. इसे एक उदाहरण से यूं समझिए कि जिस तरह हमारे देश की संसद है, उसी तरह UN दुनियाभर के देशों के प्रतिनिधियों की संसद. जैसे हमारे यहां संसद का एक सदन लोकसभा है, उसी तरह यूनाइटेड नेशंस का एक सदन UNGA है. और जैसे हमारे यहां लोकसभा के कुछ सदस्य सरकार के कैबिनेट मंत्री होते हैं, उसी तरह UNSC के 15 सदस्यों को UNGA में कैबिनेट मंत्री माना जा सकता है. UNGA  का गठन 1945 में हुआ था. रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में इसकी भूमिका कितनी प्रासंगिक हो सकती है, इसे 1950 में जारी एक प्रस्ताव से समझिए. इसमें लिखा है,
'अगर सिक्योरिटी काउंसिल अंतरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को आपस में एकमत न हो पाने के चलते पूरा नहीं कर पाती है, तो महासभा ऐसे किसी मामले पर सदस्य देशों को सम्मिलित रूप से कोई कदम उठाने की सिफारिश कर सकती है. इन सिफारिशों में अंतरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की बहाली के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र बलों का प्रयोग भी शामिल है. जिसके लिए सुरक्षा परिषद् के 7 सदस्यों के वोट पर या संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बहुमत से अनुरोध किए जाने के चौबीस घंटों के अंदर आपातकालीन विशेष सत्र बुलाया जा सकता है.'
बुधवार को बुलाए गए इमरजेंसी सेशन के प्रस्ताव पर UNSC के 15 सदस्यों में से 11 ने पक्ष में वोट किया था, जबकि रूस ने विपक्ष में और चीन, UAE और भारत ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. इसके पहले बीते शुक्रवार को भी वोटिंग प्रक्रिया हुई थी जिसमें रूस की निंदा की गई थी और उससे यूक्रेन से बिना शर्त अपने सैनिक वापस बुलाने के लिए कहा गया था. रूस ने इस प्रस्ताव के खिलाफ़ वीटो पावर का इस्तेमाल किया था, जिसके चलते ये पारित नहीं हो सका. लेकिन इमरजेंसी सेशन के मामले में वोटिंग प्रतिक्रियात्मक थी, इसलिए रूस वीटो का इस्तेमाल नहीं कर सका. अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इसे लेकर UN में ब्रिटेन के राजदूत बारबरा वुडवर्ड ने कहा,
‘काउंसिल के सदस्यों ने रूस का कूटनीतिक निकम्मापन उजागर कर दिया है. रूस दुनिया को यूक्रेन पर किए गए उसके हमले की निंदा करने से नहीं रोक सकता है.’
वहीं अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने कहा है कि जनरल असेम्बली की मीटिंग में बुधवार तक इस प्रपोजल पर वोटिंग पूरी होने की उम्मीद है, जिसमें किसी भी सदस्य देश को वीटो के इस्तेमाल का अधिकार नहीं होगा. थॉमस ग्रीनफील्ड ने कहा,
‘रूस हमारी आवाज़ और UN चार्टर को वीटो नहीं कर सकता. रूस यूक्रेन के लोगों को वीटो नहीं कर सकता और न ही अपनी जवाबदेही को वीटो कर सकता है.’
हालांकि संयुक्त महासभा की सिफारिशें किसी निर्णय के लिए बाध्य नहीं कर सकतीं, लेकिन इन प्रस्तावों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक महत्व होता है. जानकारों के मुताबिक अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की कोशिश है कि UNGA की इस मीटिंग और इसके प्रस्ताव के जरिये रूस को आईसोलेट कर दिया जाए. यहां बता दें कि साल 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद संयुक्त राष्ट्र के 100 सदस्य देश रूस के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आए थे. उन्होंने बैठक कर रूस के खिलाफ़ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया था. हालांकि ये देखा गया कि व्यावहारिक तौर पर इसका कोई ख़ास असर रूस पर नहीं पड़ा था. इस बार अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों की कोशिश होगी कि ज्यादा से ज्यादा देश इस वोटिंग में हिस्सा लें. रूस का पक्ष महासभा का स्पेशल इमरजेंसी सेशन बुलाने के लिए बीते शुक्रवार और रविवार को वोटिंग हुई थी. तब UN में रूसी राजदूत वसीली नेबेंजिया ने कहा था,
'रूसी फेडरेशन की अवमानना करने या हमारी स्थिति को दरकिनार करने का कोई भी प्रयास UN चार्टर के बेस को कमजोर करता है.’
वहीं भारत के वोटिंग प्रक्रिया में शामिल न होने पर तर्क देते हुए UN में भारतीय राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने कहा था,
'काउंसिल की पिछली बैठक से अब तक यूक्रेन में स्थिति और खराब हो गई है. हम हिंसा और सभी शत्रुताओं को समाप्त करने की अपील दोहरा रहे हैं. कूटनीति और बातचीत के रास्ते पर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं है. हमारे प्रधानमंत्री ने रूसी संघ और यूक्रेन की लीडरशिप के साथ हुई बातचीत में इसकी वकालत की है. इस संबंध में हम बेलारूस सीमा पर दोनों पक्षों के बीच बातचीत की घोषणा का स्वागत करते हैं. वैश्विक व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय कानून, UN चार्टर और सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान पर टिकी हुई है. परिस्थितियों की समग्रता को ध्यान में रखते हुए हमने वोटिंग से दूर रहने का निर्णय लिया है.'
UN चार्टर क्या कहता है? यूएन चार्टर जिसका बेस कमजोर होने की बात रूस कह रहा है, उसे भी समझ लीजिए, ताकि रूस का तर्क समझ सकें. UN चार्टर को संयुक्त राष्ट्र का संविधान कहा जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को इसकी शर्तें औएर आर्टिकल्स को मानना होता है. UN चार्टर में कुल 19 चैप्टर और 111 आर्टिकल्स हैं. इनमें से युद्ध की स्थितियों के लिए ख़ास तौर पर सातवें चैप्टर के 39वें से लेकर 51वें आर्टिकल का ख़ास महत्व है. इन सभी आर्टिकल्स में किसी देश की संप्रभुता और शान्ति को ख़तरा होने या उस पर सशस्त्र हमले की आशंका जैसी स्थितियों में अपनी आत्म रक्षा का अधिकार है. आर्टिकल 51 के मुताबिक़ कोई भी सदस्य देश या व्यक्ति खुद पर हमला होने की स्थिति में आत्मरक्षा में तब तक कार्रवाई कर सकता है, जब तक शान्ति और सुरक्षा की बहाली के लिए UNSC कोई कदम नहीं उठाता. जब रूस ने यूक्रेन पर कथित स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया था, तब का रूसी प्रतिनिधि का UN में दिया स्टेटमेंट याद करिए. वसीली नेबेंजिया ने रूसी एक्शन को चार्टर के आर्टिकल 51 के तहत न्यायसंगत बताते हुए कहा था,
‘इस ऑपरेशन का उद्देश्य उन लोगों को प्रोटेक्ट करना है जो आठ सालों से यूक्रेनी शासन के नरसंहार से पीड़ित हैं.’
UN चार्टर के 51वें आर्टिकल का इस्तेमाल कहिए या बद-इस्तेमाली, देश इस आर्टिकल का हवाला देकर एक-दूसरे पर हमला करते हैं. ईरान और अमेरिका के बीच हुई जंग में भी ईरान की तरफ़ से मिसाइलें दागे जाने पर UN चार्टर के इसी आर्टिकल का हवाला दिया गया था. बहरहाल, ताजा संकट पर UN में पलड़ा किसका भारी रहेगा ये महासभा के इस इमरजेंसी सेशन और उसके सदस्य देशों की वोटिंग के आंकड़ों से तय होगा.