मुझे इतना पता था कि आतिफ असलम नाम का कोई नया सिंगर है. 'तेरे बिन यूं मैं कैसे जिया...' और 'रेस' में 'पहली नजर में...' गा चुका है. आप दिमाग पर थोड़ा सा जोर डालेंगे तो पाएंगे कि 2009 के आस-पास पीली स्क्रीन वाला नोकिया का एक मोबाइल आया करता था. उसमें कुल जमा तीन गाने पहले से डले होते. एक तो रंग दे बसंती, दूसरा याद नहीं और तीसरा 'तेरे बिन' थोड़ा अलग होने के कारण ज्यादातर लोग इसी को रिंगटोन बनाते.
मुद्दे पर लौटें साल चल रहा था 2009. टू जी जिंदगियों में घुस चुका था. इंटरनेट से ये पता चल चुका था कि आतिफ असलम कोई पाकिस्तानी सिंगर है. गाता अच्छा है. फिर
जल बैंड के गाने सुनने को मिले, 'आदत' भी सुना, भले थोड़ा लेट सुना. बस इसी के साथ वो कालजयी किस्सा सुनाई पड़ा.
आतिफ असलम को कैंसर है. साथ में जोड़ने वालों ने ये भी जोड़ दिया कि आतिफ असलम की गर्लफ्रेंड को भी कैंसर था. इसी रोग से वो मर गई तो आतिफ असलम उसकी याद में गाने बनाता-गाता है. हम तो भले इम्प्रेस हुए. फिर एक दोस्त ने इसके आगे की हवा फूंकी, बताया. आतिफ को ब्लड कैंसर है. उसकी गर्लफ्रेंड को भी ब्लड कैंसर था. दोनों सेम बीमारी से मर रहे हैं, इसलिए आतिफ बहुत खुश है.
कुछ कहते थे आतिफ को थ्रोट कैंसर हुआ है. वो 90 दिन में मरने वाला है. अब वो कभी गा नहीं पाएगा. वो गले से इतना अच्छा गाता था, भगवान ने उसे गले में ही कैंसर दे दिया. कुछ ने तो बाकायदा फेसबुक पेज भी बना दिए थे. पेज आज भी दिख रहे हैं.

तो उस समय हमने ये मान ही लिया था कि बस वो मरने को ही है. बाद में कई दिनों तक वो किसी अवॉर्ड शो में नजर आता,रहा. किसी फिल्म के गाने में दिखता और पूछने वाले पूछते इसका इलाज चल कहां रहा था जो ये अब तक बचा है. ये भी लगता कि मरने वाला आदमी तो मरने के बारे में बातें करता है, इससे कोई इलाज के सवाल क्यों नहीं करता. जब भी मैं आतिफ असलम को देखता और उसके गाने सुनता, मुझे दुःख में डूबा एक आदमी दिखता. जिसके कलेजे पर बहुत बोझ है. जिसका प्यार उससे छीन लिया गया है. उसकी जिंदगी के कुछ ही दिन बचे हैं. फिर भी वो काम कर रहा है. गा रहा है, भले उसके गले में कैंसर है. ये सब सोच उसके गाने और कनसोहत के लगने लगते. स्क्रीन पर दिखता तो मैं ये अंदाजा लगाता कि पिछली बार की तुलना में इस बार ये कितना कमजोर है, और मौत के कितना पास चला गया है. फिर एक रोज़ बुद्धि खुली और ये पता चला कि ऐसा कुछ होना-जाना नहीं है. ऐसा हुआ कब? साल था 2010. अगस्त का महीना चल रहा था.
एक खबर आई कि आतिफ असलम नहीं रहे. कराची में किसी स्टेज शो में परफॉर्म कर रहे थे. पीठ के बल गिरे और अस्पताल में मौत हो गई. बात फ़ैल गई. फेसबुक तक आई. इतनी ज्यादा फ़ैली कि खुद आतिफ असलम के भाई को कहना पड़ा. नहीं, उसे कुछ नहीं हुआ वो जिंदा है. कैंसर-वैंसर सब अफवाह है. वो भला-चंगा है.
ल्यो, हमने सिर पीट लिया. आतिफ असलम की आवाज में अब दर्द कम फील होता. जाने इसके पीछे वजह क्या थी. उनकी कहानी झूठी निकल गई ये, या ये कि वो प्रिंस जैसी फिल्मों में चार-चार गाने, गाने लगे. फिर वो हीरो भी बन गए, बोल फिल्म में. आगे हम ये भूल-भाल गए.

कुछ साल बाद 2013 में आतिफ की शादी की खबर आई. हमने कान खड़े किए लड़की कौन थी? उनकी जमाने भर पुरानी गर्लफ्रेंड सारा भारवाना. तब ये भी बताया गया कि इनका रिलेशनशिप 12 साल पुराना है. कायदे से ये वही वक़्त था जब अफवाहों के हिसाब से उनकी गर्लफ्रेंड को बीमार होना था. फिर बाद में ये भी हुआ कि आतिफ ने 12 साल के रिलेशनशिप की बात को भी अफवाह बताया.