4 सितंबर, 1987. राजस्थान का सीकर जिला. दिवराला में 18 साल की एक लड़की, अपने पति के शव के साथ जल गई. या ‘सती’ हो गई. ये जानकारी आसपास के इलाकों में आग की तरह फैली. साधु-संत से लेकर इलाके के आम लोग भी वहां पहुंचे. उस लड़की की तुलना देवी के अवतार से की गई. मंदिर बना दिया गया. गांव में खुशियां मनाई गईं. लेकिन दूसरी तरफ इस पर विवाद हो गया. राज्य सरकार और केंद्र सरकार की खूब आलोचना हुई. दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी. राजीव गांधी सरकार पर सवाल उठाए गए कि उन्होंने इस घटना की निंदा नहीं की और समय रहते कोई कार्रवाई भी नहीं की. इसे देश का आखिरी सती कांड (Roop Kanwar Sati) भी कहा जाता है. इस कांड ने देशभर का ध्यान खींचा क्योंकि साल 1829 में अंग्रेजी हुकुमत के दौरान ही इस प्रथा को बैन कर दिया गया था.
रूप कंवर सती कांड के आरोपी बरी तो हो गए, लेकिन ये दर्दनाक कहानी आप पढ़ नहीं पाएंगे!
Roop Kanwar Sati: कई लोगों पर सती प्रथा के महिमामंडन का आरोप लगा. सवाल ये भी उठा कि क्या लड़की अपनी मर्जी से सती हुई थी. आलोचनाओं और दबाव के बाद मामला दर्ज हुआ था. अब जयपुर की सती निवारण विशेष अदालत ने 8 लोगों को बरी कर दिया है.
कई लोगों पर सती प्रथा के महिमामंडन का आरोप लगा. सवाल ये भी उठा कि क्या लड़की अपनी मर्जी से सती हुई थी? आलोचनाओं और दबाव के बाद मामला दर्ज हुआ. अब जयपुर की सती निवारण विशेष अदालत ने 8 लोगों को बरी कर दिया है. 37 साल बाद रिहा हुए लोगों के नाम हैं- श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, नारायण सिंह, भंवर सिंह और दशरथ सिंह. इन सबको संदेह का लाभ देते हुए कोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया. दरअसल, पुलिसकर्मियों और गवाहों ने आरोपियों की पहचान नहीं की.
सती हुई या कराई गई?हुआ यूं कि जयपुर की रहने वाली 18 साल की रूप कंवर की शादी दिवराला के माल सिंह शेखावत से हुई थी. शादी के सात महीने ही बीते थे कि 2 सितंबर, 1987 की रात को माल सिंह के पेट में दर्द हुआ, फिर उल्टी हुई. अगले दिन उनके माता-पिता, रूप कंवर और उनके भाई मंगेज सिंह उन्हें सीकर के एक अस्पताल ले गए. ऐसा लगा कि उनकी हालत में सुधार हो रहा है, इसलिए पत्नी और मां उसी रात गांव लौट आईं. लेकिन 4 सितंबर की सुबह 8 बजे माल सिंह की मौत हो गई और करीब दो घंटे बाद उनका शव दिवराला पहुंचा.
ये भी पढ़ें: कैसे शुरू हुई सती प्रथा? जवाब मिलेगा श्रीमद्भगवत पुराण की इस कहानी में.
कहा गया कि रूप कंवर ने पति के साथ सती होने की इच्छा जताई. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब इस मामले की जांच की गई तो पता चला कि वो अपनी मर्जी से सती नहीं हुई थी. तब राजस्थान के मुख्यमंत्री हरदेव जोशी थे. 39 लोगों के खिलाफ हाई कोर्ट में मामला दर्ज हुआ. उन पर आरोप था कि उन्होंने सती प्रथा का महिमामंडन किया. और रूप कंवर को सती के लिए मजबूर कर दिया.
Roop Kanwar जिंदा जली तो उत्सव मनाया गयारूप कंवर जब जिंदा जली तो गांव में इसका उत्सव मनाया गया. माल सिंह की मौत के बाद ही ये खबर फैल गई थी कंवर सती होने वाली है. इसके बाद साधु-संत ये देखने वहां पहुंचे थे कि क्या उनके अंदर कोई देवी है? 15 अक्टूबर, 1987 को इंडिया टुडे से जुड़े इंद्रजीत बधवार ने इसे ग्राउंड से रिपोर्ट किया था. उन्होंने लिखा कि रूप कंवर के ससुराल वालों ने आशीर्वाद देकर उसे आगे बढ़ाया. कंवर को शादी की पोशाक पहनाई गई और फिर हाथ में नारियल लेकर कंवर से गांव का दौरा करवाया गया.
‘राजपूत श्मशान घाट’ पर सैकड़ों लोग पहले से ही जमा हो गए थे. गांव वालों ने बताया था कि उसने 15 मिनट तक चिता की परिक्रमा की. घटनास्थल पर मौजूद तेज सिंह शेखावत ने बताया था कि जब कंवर काफी देर तक परिक्रमा करती रही तो वहां मौजूद लोगों ने कहा, “जल्दी करो, पुलिस आ सकती है”. इसके बाद कंवर को चिता पर बिठा दिया गया. कंवर के मृत पति का सिर उसकी गोद में था.
चिता से गिरी तो फिर से चढ़ायामाल सिंह के छोटे भाई पुष्पेंद्र सिंह की उम्र तब 15 साल थी. उसने बताया कि उसने चिता को आग लगाई थी लेकिन आग लगी नहीं. उसने कहा कि आग अपने आप लग गई थी. एक ग्रामीण ने इंद्रजीत बधवार को बताया कि जलने के दौरान रूप कंवर चिता से गिर गई थी. उसके पैर झुलस गए थे. इसके बाद दर्द से चीखती कंवर को वापस से चिता पर चढ़ा दिया गया. इस बीच, गांव के राजपूत इलाके के लगभग हर घर से घी की बाल्टी लाई गई. और धुंआ उगलती लकड़ियों पर तब तक घी डाला गया, जब तक कि उनमें आग नहीं लग गई. इंडिया टुडे की रिपोर्ट में इसे ऐसे लिखा गया-
उस दिन दोपहर 1.30 बजे तक सब कुछ खत्म हो गया. 70 साल बाद गांव में दूसरी सफल 'सती'
गांव के लोगों ने कंवर को सती देवी का रूप दे दिया और मंदिर बनवा दिया. वहां एक बड़ा ‘चुनरी महोत्सव’ भी किया गया.
चुनरी महोत्सवमीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजपूत समाज के लोगों ने 16 सितंबर 1987 को गांव में चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी. बहुत ही कम समय में चारो ओर इसकी चर्चा होने लगी. कई संगठन ने इस महोत्सव का विरोध किया. सोशल वर्कर्स और वकीलों ने राजस्थान हाईकोर्ट के तब के मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा को चिट्ठी लिखी. इसके बाद 15 सितंबर को जस्टिस वर्मा ने इस चिट्ठी को जनहित याचिका माना. और समारोह पर रोक लगा दी. उन्होने माना कि ये सती प्रथा का महिमामंडन है. उन्होंने सरकार को आदेश दिया कि किसी भी हाल में ये समारोह नहीं होना चाहिए.
हाई कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दियाहालांकि, इस रोक के बावजूद 15 सितंबर की रात से ही लोग वहां जमा होने लगे. कहा जाता है कि 10 हजार की जनसंख्या वाले उस गांव में 1 लाख से ज्यादा लोग पहुंचे थे. इस दौरान पुलिस गांव से दूर ही रही. एक दिन बाद ही लोगों ने हाई कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए महोत्सव मना लिया. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इसमें कई दलों के विधायक भी शामिल हुए थे.
एक साल बाद इस घटना की बरसी भी मनाई गई. 22 सितंबर, 1988 को राजपूत समाज के लोगों ने दिवराला से अजीतगढ़ तक एक जुलूस निकाला. पुलिस ने कहा कि लोगों ने ट्रक में सवार होकर रूप कंवर के जयकारे लगाए. उन्होंने ट्रक पर कंवर की फोटो लगा रखी थी. सती मामलों की जल्दी सुनावई के लिए जयपुर में स्पेशल कोर्ट बनाई गई. इससे पहले कोर्ट ने 31 जनवरी, 2004 को मामले के 25 आरोपियों को बरी कर दिया था.
वीडियो: राजस्थान के डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा के बेटे की गाड़ी का कटा चालान, खुली जीप में बनाई थी रील