दिल्ली के तख्त पर काबिज छठवें मुगल बादशाह औरंगजेब को दक्कन को लेकर एक जुनून सवार था. ऐसा जुनून कि औरंगजेब ने अपने 49 साल के शासनकाल में तकरीबन 20 साल दक्कन फतेह करने में लगा दिए. जंग में मसरूफ औरंगजेब महीनों महीनों दिल्ली से बाहर रहते थे. इधर शाही खजाना खाली हो रहा था. नहले पर दहला तब हुआ जब उनकी गैरहाजिरी में सल्तनत का कुछ हिस्सा डांवाडोल होने लगा. मसलन, कई मनबढ़ सूबेदारों ने राजस्व भेजना बंद कर दिया. शाही और जंगी खर्चे उठाने के लिए औरंगजेब की नजरें बंगाल पर जा ठहरीं जो उस दौर में सबसे समृद्ध सूबा था. बंगाल में आज का ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार भी शामिल थे. लेकिन बंगाल ही क्यों? इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि औरंगजेब के शासनकाल में बंगाल को 'भारत का स्वर्ग' घोषित किया गया था. मुगल फरमान हो या सरकारी दस्तावेज इनमें बंगाल को 'भारत का स्वर्ग' लिखा जाता था. तब बंगाल की राजधानी थी मुर्शिदाबाद (Murshidabad). वो शहर जिसमें नवाबों का दिल बसता था. शहर जो मुगलों के बुरे दौर में आर्थिक रीढ़ साबित हुआ. मुर्शिदाबाद की तुलना अंग्रेजों ने लंदन से की थी. और यही शहर आज हिंसा की आग में जल रहा है. तो समझते हैं, क्या है मुर्शिदाबाद का इतिहास.
'मुर्शिदाबाद'; शहर जो आज दंगों की आग में जल रहा है, कभी लंदन को टक्कर देता था
Aurangzeb के शासनकाल में बंगाल को 'भारत का स्वर्ग' घोषित किया गया था. तब बंगाल की राजधानी थी Murshidabad. वो शहर जिसमें नवाबों का दिल बसता था. शहर जो मुगलों के बुरे दौर में आर्थिक रीढ़ साबित हुआ. मुर्शिदाबाद की तुलना अंग्रेजों ने London से की थी.

साल 1697 में बंगाल के सूबेदार थे औरंगजेब के पोते अज़ीम-उश-शान. तब बंगाल की राजधानी हुआ करती थी ढाका. जो अब बांग्लादेश की कैपिटल है. यहीं से सारा कामकाज चलता था. पर बादशाह के इस पोते में वो डिप्लोमैसी नहीं थी जो बंगाल जैसे सूबे को संभालने वाले में होनी चाहिए थी. ऐसे में औरंगजेब ने सन् 1700 में मोहम्मद हादी को दीवान बनाकर बंगाल भेजा. इतिहासकार यदुनाथ सरकार अपनी किताब हिस्ट्री ऑफ बंगाल में लिखते हैं कि,
मोहम्मद हादी जाति से ब्राह्मण थे. नाम था सूर्य नारायण मिश्रा. एक मुस्लिम शख्स ने उन्हें गोद लिया और पाला पोसा. मुगल दरबार में एक फारसी अधिकारी ने उन्हें राजस्व मामलों की ट्रेनिंग दी.
मोहम्मद हादी टैक्स कलेक्शन के काम में माहिर थे. बंगाल पहुंचते ही उन्होंने ये साबित भी किया. उस दौर में हर साल बंगाल से कुल 1 करोड़ राजस्व दिल्ली जा रहा था. ये उस समय के हिसाब से बड़ी रकम थी. इस बात से औरंगजेब ने खुश होकर 1702 में मोहम्मद हादी को मुर्शिद कुली खां की उपाधि दी. लेकिन अब एक म्यान में दो तलवारें तो रह नहीं सकती थी. अज़ीम-उश-शान बंगाल के गवर्नर थे. लेकिन रेवन्यू सिस्टम के मामले में उनका हाथ ढीला हो रहा था. बात इतनी बढ़ गई कि अजीम ने मोहम्मद हादी पर हमला तक करवा दिया.

किसी समझदार शख्स की तरह मोहम्मद हादी ने लड़ने के बजाय किनारा करना मुफीद समझा. वो ढाका से चले आए मक्सूदाबाद. गंगा किनारे ये शहर कनेक्टिविटी के लिहाज से बेहतर भी साबित हुआ.अब दीवानी ऑफिस के साथ कई बैंकर्स और व्यापारी भी मक्सूदाबाद आ चुके थे. इनमें जगत सेठ और भारतीय बैंकिंग प्रणाली (अनाधिकारिक) के संस्थापक माणिकचंद भी शामिल थे. ये वो बैंकर थे जिनसे मुगल और अंग्रेज तक कर्ज लिया करते थे.

औरंगजेब को जब इस बात की खबर मिली तो उन्होंने अपने पोते अज़ीम-उश-शान को चेतावनी दी कि अगर मुर्शिद कुली खां को कोई भी नुकसान पहुंचाता है तो उसे इस बात का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इतना ही नहीं औरंगजेब ने उसे बाद में बिहार भेज दिया. इधर मुर्शिद कुली खां ने औरंगजेब की इजाजत से मक्सूदाबाद का नाम बदलकर अपने नाम मुर्शिदाबाद पर रख लिया. तो कुछ इस तरह मुर्शिदाबाद का नाम पड़ा.
मुर्शिद कुली खां की सूबेदारी औरंगजेब के कार्यकाल तक ही सुरक्षित रही, 1707 में औरंगजेब की मौत के बाद तख्त पर आए बहादुर शाह प्रथम. जो अजीम-उस-शान के पिता थे. बेटे को तरजीह देते हुए उन्होंने मुर्शिद कुली खां को दक्कन शिफ्ट कर दिया. काम ढीला पड़ने लगा तो 1710 में उन्हें डिप्टी सूबेदार बनाकर बंगाल वापस बुलाया गया. यहां ये भी क्लियर कर दें कि अब भारत में मुगलों की पकड़ ढीली पड़ने लगी थी.
1717 में तख्त पर आए फर्रुखसियर. उन्होंने मुर्शिद कुली खां को मुर्शिदाबाद का नवाब बनाया. जहां मुगल कमज़ोर हो रहे थे, वहीं बंगाल में नवाबों का काल शुरू हो रहा था. माने मुर्शिद कुली खां बंगाल के पहले नवाब बने फिर इसी कड़ी में आगे कई नवाब हुए. हालांकि वे दिल्ली को राजस्व तो भेजते थे लेकिन कई फैसले लेने को स्वतंत्र थे. मुर्शिद कुली खां ने मुर्शिदाबाद को अपनी राजधानी बनाई. बंगाल अब सबसे समृद्ध प्रांत था, और मुर्शिदाबाद इसका सबसे चर्चित शहर.

बंगाल में नवाबों की फेहरिस्त लंबी है. पर नवाब सिराजुद्दौला को आखिरी आजाद नवाब कहा जाता है. क्योंकि उनकी हत्या के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेजी शासन की नींव रखी जा चुकी थी. दरअसल, बंगाल में दुनियाभर से डच, पुर्तगाली, फ्रेंच, ब्रिटिश, अरमेनियाई व्यापारियों की आमद हो रही थी. मुर्शिदाबाद में कासिमबाजार इलाका था, जो सिल्क और कॉटन का हब कहलाता था. साथ ही ये व्यापारियों का स्टे प्वॉइंट भी. यहां अंग्रेजों ने अपना कब्जा जमा रखा था.
अंग्रेज आगे अपनी जमीन पक्की करने के फिराक में लगे थे. साल 1757 में उन्होंने नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ जंग छेड़ दी. मुर्शिदाबाद से 20 मील दक्षिण और कलकत्ते से 100 मील दूर गंगा नदी के किनारे पलाश के पेड़ों का एक छोटा सा जंगल था. यहीं पर भीषण युद्ध हुआ. जगह थी प्लासी. नवाब सिराजुद्दौला के करीबी मीर जाफर ने नवाब बनने के लालच और आपसी दुश्मनी में ऐन मौके पर अंग्रेजों से हाथ मिला लिया. आखिरकार नवाब ये जंग हार गए.

इतिहास में इसी जंग को Battle of Plassey नाम दिया गया. मुर्शिदाबाद के लागबाग एरिया में मीर जाफर की हवेली है. यही पर नवाब सिराजुद्दौला को फांसी पर लटकाया गया था. अगली सुबह, उनकी लाश को हाथी पर चढ़ाकर पूरे मुर्शिदाबाद शहर में परेड कराई गई. इतिहास ने मीर जाफर से कुछ ऐसा बदला लिया कि आज उसकी ये हवेली नमक हराम ड्योढ़ी के नाम से जानी जाती है. इस जंग के बाद जब ब्रिटिश गवर्नर जर्नल रॉबर्ट क्लाइव ने मुर्शिदाबाद का दौरा किया, उन्होंने लिखा कि,
मुर्शिदाबाद शहर लंदन शहर की तरह ही बड़ा, ज्यादा आबादी वाला और समृद्ध है. अंतर सिर्फ इतना है कि मुर्शिदाबाद में ऐसे लोग हैं, जिनके पास पूरे लोम्बार्ड स्ट्रीट की कुल संपत्ति से भी अधिक धन है.
यहां जिस लोम्बार्ड स्ट्रीट का जिक्र हुआ है वो कभी लंदन का बैंकिंग हब हुआ करता था. बंगाल में नवाब सिराजुद्दौला के बाद भी कई नवाब हुए लेकिन नाम मात्र के. असल में वो सब अंग्रेजों की कठपुतली की तरह काम कर रहे थे. ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे बंगाल सूबे की राजधानी को मुर्शिदाबाद से कलकत्ता शिफ्ट कर दिया.

कभी बंगाल के नवाबों की राजधानी रही मुर्शिदाबाद आज भी अपने अतीत को संजोए हुए है. अजीमगंज और जियागंज में 14 जैन मंदिर हैं. कई टेराकोटा मंदिर आज भी अपनी शिल्पकला से समय की मार को चुनौती दे रहे हैं. मुर्शिदाबाद का फेमस हज़ारदुआरी महल जिसे बनाने में 12 साल लगे थे. जैसा इसका नाम है, वैसी ही सूरत. खास ये है कि इसमें 1,000 दरवाज़ें हैं जिनमें 100 नकली हैं ताकि दुश्मनों को चकमा दिया जा सके. इस महल में कभी अंग्रेज अधिकारी रहा करते थे. आज अंदर एक म्यूजियम है जिसमें कई चीजों को संजोकर रखा गया है.

इसके अलावा कासिमबाजार का काठगोला महल और राज बाड़ी, आर्मेनियाई चर्च और डच कब्रिस्तान यहां कभी यूरोपियन्स के होने की याद दिलाते हैं. कटरा मस्जिद शान से खड़ी है जिसे खुद पहले नवाब मुर्शिद कुली खां ने बनावाया था. 1897 के भूकंप में मस्जिद को नुकसान पहुंचा जिसके बाद केवल दो मीनारें ही बचीं हैं. इसकी देखभाल अब ASI के जिम्मे है. मस्जिद के ऊपरी तल पर जाने वाली सीढ़ियों के नीचे मुर्शिदाबाद शहर को आकार देने वाले और बंगाल के पहले नवाब मुर्शिद कुली खां बरसों से आराम फरमा रहे हैं.
वीडियो: तारीख: कहानी मुर्शिदाबाद की जो एक समय बंगाल की राजधानी था, और अब वहां 'वक़्फ़' को लेकर बवाल हो रहा है