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रांची कोर्ट का क़ुरान बांटने वाला फैसला याद है? कोर्ट ने उसे पलट दिया

पंद्रह दिन में पांच क़ुरान नहीं बंट सकते थे?

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ऋचा भारती के मामले में झारखंड के रांची कोर्ट ने अपनी वह शर्त वापिस ले ली है, जिसके तहत ऋचा भारती को पांच क़ुरान बांटने का आदेश दिया गया था. न्यायिक दंडाधिकारी मनीष सिंह की अदालत ने महज़ कुछ देर पहले अपनी वह शर्त वापिस ले ली.
पिठोरिया के थाना प्रभारी और इस केस के जांच अधिकारी ने यह अनुरोध किया था कि क़ुरान बांटने की शर्त का पालन कराने में दिक्कतें आ रही हैं. राज्य ने अपने सरकारी वकील के माध्यम से अपील की थी कि कोर्ट 15 जुलाई को दिए गए जमानत के अपने आदेश में बदलाव करे. इस अनुरोध को देखते हुए अदालत अपने पुराने आदेश को बदलते हुए क़ुरान बांटे जाने की शर्त को हटा रही है.अदालत ने बाकी शर्तों में कोई बदलाव नहीं किया है.
मामला जान लीजिए
12 जुलाई को ऋचा की गिरफ्तारी हुई थी. भारतीय दंड संहिता, जिसको Indian Penal Code कहते हैं, की धाराओं 153(A) और 295(A) के तहत ऋचा पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का मुकदमा दर्ज हुआ था. मुकदमा सदर अंजुमन इस्लामिया कमिटी ने दायर किया था. ऋचा ने एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी, जिसके बाद सारा मामला उठा था. पोस्ट झारखंड में ही हुई तबरेज़ अंसारी की लिंचिंग से संबंधित थी. वही तबरेज़ अंसारी, जिसे भीड़ ने जब पीटा तो उसे कहा कि बोलो "जय श्री राम", और "जय श्री राम" की लड़ाई में तबरेज़ अंसारी की मौत हो गयी.
ऋचा भारती
ऋचा भारती

बहरहाल 19 साल की ऋचा की गिरफ्तारी हो गयी. गिरफ्तारी के तीन दिनों बाद ऋचा की जमानत पर सुनवाई होनी थी. रांची के जिला न्यायालय में जिला न्यायाधीश मनीष सिंह मुकदमा सुन रहे थे. मनीष सिंह ने ऋचा भारती को आदेश दिया कि चूंकि उन्होंने धार्मिक भावनाएं आहत की हैं तो उन्हें क़ुरान की पांच प्रतियां बांटनी चाहिए. एक प्रति सदर अंजुमन इस्लामिया कमिटी को, और बाकी चार स्कूलों की लाइब्रेरियों को. इस काम को पूरा करने के लिए कोर्ट ने ऋचा को 15 दिनों की मोहलत दी.
इसके साथ ज़मानत की राशि भी तय हुई. 7 हज़ार की ज़मानत और पांच क़ुरान की प्रतियों पर ऋचा की ज़मानत तय कर दी गयी.
कोर्ट रूम में जो था, सो था. लेकिन बाहर आते ही ऋचा भारती के सुर बदल गए. ऋचा भारती, जो तीन दिन से जेल में थीं और ज़मानत चाह रही थीं, उन्हें ज़मानत की शर्त में क़ुरान की मौजूदगी नागवार गुज़री. उन्होंने मीडिया में बयान दिया कि कोर्ट ये सजा दूसरे धर्म के लोगों को क्यों नहीं देती? इस मामले की शुचिता पर बहस होने लगी. कहा जाने लगा कि क्या ये फैसला सही है?
और फिर हुआ विरोध
रांची बार एसोसिएशन ने न्यायिक दंडाधिकारी मनीष सिह का विरोध करना शुरू कर दिया. वकीलों ने कहा कि साहब! हम जज साहब की अदालत में 48 घंटों तक नहीं जाएंगे. पूरे दिन किसी वकील ने कोर्ट में हाजिरी नहीं लगाईं. और पूरे दिन कोर्ट में प्रदर्शन होते रहे.
रांची बार एसोसिएशन के महासचिव कुंदन प्रकाशन ने मीडिया से कहा कि जज को यह अधिकार है कि वे किसी मामले की सुनवाई कर फैसला सुनाएं. लेकिन, किसी हिंदू लड़की को क़ुरान बांटने की शर्त पर ज़मानत देना तो समाज के सदभाव को और बिगाड़ेगा.
कुंदन प्रकाश मीडिया में प्रकाशित खबरों में कहते पाए गए कि मनीष कुमार सिंह का व्यवहार पहले से अच्छा नहीं रहा है. उनके तबादले की मांग की भी बात कर डाली.
स्वामी का नया खुलासा किसके बारे में है, ये अभी तक साफ नहीं हो पाया है.
स्वामी भी शायद इस मामले में रुचि लेने लगे थे.

मामला ने इतना तूल पकड़ा कि भाजपा ऋचा शर्मा के समर्थन में उतर आई. उनके घर पर भीड़ जमा हो गयी, छोटे-बड़े भाजपा नेता आने लगे, मिलने लगे. वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी किन लोग यह देखना भूल गए कि किस नीयत के तहत ये आदेश जारी किया गया था. मनीष सिंह ने अपने आदेश में लिखा है "to neutralize the situation", यानी स्थिति को सम्हालने की नीयत से दिया गया फैसला.
इस फैसले का झारखंड के महाधिवक्ता यानी एडवोकेट जनरल अजीत कुमार ने भी समर्थन दिया है. उन्होंने बीबीसी से अपनी बातचीत में कहा है कि उन्हें कोर्ट की शर्त में कुछ भी अनुचित नहीं लगता है. क़ुरान बांटने की शर्त लगाते समय न्यायिक मजिस्ट्रेट की यह मंशा रही होगी कि लोग सभी धर्मों का आदर करें. इसे तूल नहीं दिया जाना चाहिए.
तो क्या राज्य सरकार ने इस मामले में सीधी रुचि ली?
ऐसा कहा तो जा रहा है. पंद्रह दिन में पांच क़ुरान बांटना कुछ बड़ा काम नहीं है, जिसका पालन न करवाया जा सके. और जांच अधिकारी ने कहा है कि फैसले का पालन करवाने में दिक्कत हो रही है. और इस बात को कोर्ट में राज्य सरकार के सरकारी वकील ने पेश की. ऐसे में ये भी चर्चाएं हो रही हैं - जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए - कि झारखण्ड की भाजपा सरकार ने इस मामले में सीधा दखल दिया है, हो सकता है कि बात कुछ अलग या और हो.


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