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हवा में मरा दिल्ली यूनिवर्सिटी का लड़का, जिसके नाम से पाकिस्तान थर-थर कांपता था

कहानी सेंट स्टीफेंस में पढ़े जिया की, जिसका प्लेन आज ही के दिन क्रैश हो गया था.

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17 अगस्त, 1988 को पाकिस्तान के बहावलपुर में एक प्लेन क्रैश हुआ. ये प्लेन क्रैश दुनिया के जेहन में नहीं होगा. पर पाकिस्तान के लिए मायने रखता है. इसमें कुल 31 लोगों की मौत हुई थी. इन लोगों में पाकिस्तान का सबसे ज्यादा समय तक रहने वाला प्रेसिडेंट था. जिया उल हक़. वो प्रेसिडेंट, जिसने पाकिस्तान को वो बना दिया, जो वो आज है. उसके प्रभाव से पाकिस्तान आज भी पूरी तरह निकल नहीं पाया है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस से निकल कर पाक के चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बने

जिया उल हक़ दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े थे. ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अफसर थे. बहुत ही मामूली बैकग्राउंड से आते थे. जब इनके साथी अफसर दारू पीते और मजे करते, तब जिया नमाज पढ़ते. शांत रहते. अच्छे अफसर थे. बेहद मेधावी.
हिंदुस्तान के आज़ाद होने के बाद इन्होंने पाकिस्तान चुना. दिल लगाकर काम किया. जैसे-जैसे रैंक बढ़ी, धर्म में रुझान बढ़ता गया. इसके साथ ही पाकिस्तान में तनाव भी बढ़ता गया. 70 के दशक में इनको जॉर्डन भेजा गया था. वहां पर बढ़िया काम किया. लौट के आये तो प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इनको चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बना दिया.
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जिया उल हक़

फिर किया पाक आर्मी का पसंदीदा काम: तख्तापलट

5 जुलाई 1977 को जिया ने तख्तापलट कर दिया. जुल्फिकार को जेल में डाल दिया. जुल्फिकार को पाकिस्तान का नेहरू समझा जाता था. दुनिया सदमे में आ गई थी. जिया ने इसकी वजह दी थी: पाकिस्तान में जुल्फिकार के चलते स्थिति बहुत खराब हो गई है. इस गैरकानूनी तख्तापलट के खिलाफ जब जुल्फिकार की बीवी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी, तो कोर्ट ने बड़ा ही विचित्र किस्म का निर्णय दिया. कहा कि ये Principle of Necessity के तहत सही है! मतलब ये तख्तापलट पकिस्तान की जरूरत थी!
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जुल्फिकार अली भुट्टो

फिर जुल्फिकार को फांसी दे दी गई. एक सामान्य अपराधी की तरह. चुने हुए प्रधानमन्त्री को मिलिट्री शासक ने टांग दिया. ये कह के कि जुल्फिकार ने विपक्ष के एक नेता का खून करवाया है. भारत के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने इस फांसी से जुड़ा एक वाकया लिखा है. कुलदीप जुल्फिकार की फांसी के ठीक पहले पाकिस्तान गए थे. वहां पहले वो जिया से मिले थे. जिया ने साफ़-साफ़ कुछ बताया नहीं था. पर ये जरूर जता दिया था कि जुल्फिकार को छोड़ा नहीं जायेगा. कुलदीप फांसी को लेकर आश्वस्त थे. इसके बाद वो जुल्फिकार से मिले. जुल्फिकार ने उनसे कहा कि मुझे पूरा यकीन है कि जिया मुझे फांसी तो नहीं देंगे. कुलदीप भारत आये और जुल्फिकार को फांसी हो गई.

पाकिस्तानी कानून को ले गए डेढ़ हज़ार साल पहले के शरिया में

अब जिया मिलिट्री शासक थे. जनता को बताना था कि क्यों हैं. क्योंकि जनता के चुने नेता को टांग के आये थे. इन्होंने ड्रामा शुरू किया इस्लाम के नाम पर. देश का कानून ही बदल दिया. पूरा शरिया के हिसाब से चलाने लगे. एक हुदूद कानून लाये, जिसके तहत हजारों औरतों को 'चरित्रहीनता' के आरोप में जेल में डाल दिया गया. इस कानून में था:
अगर कोई औरत किसी मर्द के ऊपर रेप का इल्जाम लगाती है तो उसको 4 'मुस्लिम' गवाह पेश करने पड़ेंगे.
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यहां दुनिया के सामने कितने उदार हैं! जेंटलमैन.

फिर इस्लाम के अपमान से जुड़े कानून भी खतरनाक किये गए. कितने हिन्दुओं और ईसाइयों को इसी बात के लिए जेल में डाला गया. कुछ को फांसी तक हुई. फिर बलात्कार के आरोपियों और डाकुओं को मृत्युदंड. किसी अपराध में पत्थर से मार-मार के जान लेने का प्रावधान. चोरी में हाथ काट दिए जाने की व्यवस्था. दारू पीने पर 80 कोड़े. फिर कहेंगे कि ग़ालिब हमारे हैं! जिया की इन हरकतों ने पाकिस्तान में बदमाशों को नया जीवन दे दिया. अब वो खुद से कानून के रक्षक बन गए. कितने सारे ग्रुप बन गए. बाद में इन लोगों का असर इतना बढ़ गया कि आज वो पाकिस्तान की राजनीति चला रहे हैं.

अमेरिका खेल रहा था रूस-रूस, जिया बनवा रहे थे एटम बम

ये सब कुछ हो रहा था और दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश अमेरिका जिया के सपोर्ट में था. क्योंकि जिया अमेरिका की मदद कर रहे थे अफगानिस्तान में. रूस के खिलाफ. नतीजा ये हुआ कि जिया ने पाकिस्तान में एटम बम बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी. अमेरिका अपनी यारी में आंख मूंदे रहा.
हालांकि पाकिस्तान की इकॉनमी में जिया ने काफी काम किया. उस समय पाकिस्तान की ग्रोथ अच्छी थी. पर कहने वाले कहते हैं कि वो ग्रोथ क्रोनी कैपिटलिज्म का नमूना थी. अमेरिका के इशारे पर सब हो रहा था.
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मीटिंग में व्यस्त हैं

फिर हुआ प्लेन क्रैश, जिसने उठाए कई देशों पर सवाल, भारत पर भी

फिर आया 17 अगस्त 1988. प्लेन क्रैश हुआ. पर अनसुलझे सवाल छोड़ गया. जिया का मिलिट्री जनरल प्लेन पर नहीं चढ़ा था. जबकि उसको आदेश थे. आखिरी वक़्त में बागी हो गया. फिर शक कई देशों पर जताया गया. अमेरिका, रूस, इंडिया, इजराइल से लेकर जॉर्डन तक पर. कहते हैं कि अमेरिका का काम सध गया था. और जिया की पॉलिसी अब अमेरिका के फायदे के उलटी हो रही थी. अब अमेरिका को पाक में डेमोक्रेसी चाहिए थी. बिजनेस के लिए. रूस का पुराना बैर था. इंडिया का नाम घेरे में आया क्योंकि अफवाह उड़ी थी कि इंडियन एयरफोर्स पाक के न्यूक्लिअर रिएक्टर को उड़ाने वाली थी. फिर इजराइल ने कसम ली थी कि किसी भी 'इस्लामिक' देश में एटम बम नहीं बनने देंगे. सो, वो भी हो सकते थे. शक जुल्फिकार के बेटे मुर्तजा पर भी था. वो पहले से ही एक संगठन चला रहा था जिया के खिलाफ.
जो भी हो, जिया के साथ पाकिस्तान का एक अध्याय ख़त्म हुआ था. पर उस अध्याय के कॉन्सेप्ट आज तक पाक में इस्तेमाल हो रहे हैं. जिया के रूप में एक ऐसा आदमी मिल गया है पाक को कि उस पर किसी की गलती के आरोप मढ़े जा सकते हैं. तख्तापलट के जिया के अंदाज़ को अपनाया था परवेज मुशर्रफ ने. नवाज शरीफ ने ठीक जुल्फिकार की तरह ही परवेज को चुनकर चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बनाया था. और परवेज ने सत्ता ले ली. अंतर यही था कि नवाज शरीफ को फांसी नहीं दी. नवाज देश छोड़कर भाग गए थे, वरना उस जालिम वक़्त में कुछ भी हो सकता था. पर देखिये डेमोक्रेसी को. नवाज वापस प्रधानमंत्री बने. इस बार परवेज़ पर केस चलाया गया और दिसंबर, 2019 में उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई. हालांकि, मुशर्रफ देश से बाहर हैं, उन्हें फांसी नहीं दी जा सकी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुशर्रफ दुबई में हैं और काफ़ी बीमार हैं.
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नवाज शरीफ के साथ


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