आज़ादी के कॉन्सेप्ट तो बचपन से ही क्लियर थे
8 फ़रवरी 1883 को अमृतसर में पैदा हुए मदन लाल धींगरा. पिताजी सिविल सर्जन थे. नामी आदमी थे. इतने कि अंग्रेज अफसर कर्जन वायली इनके दोस्त हुआ करते थे. मदन 6 भाई थे. सारे लन्दन गए थे पढ़ने के लिए. पर उसके पहले ही मदन लाल धींगरा ने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. लाहौर में MA करते हुए मदन स्वदेशी आन्दोलन के मूड में आ गए. कॉलेज में इंग्लैंड से आये कपड़ों के खिलाफ धरना दे दिया. कॉलेज से निकाल दिए गए. मदन का कॉन्सेप्ट एकदम क्लियर था. गरीबी, अकाल सब पर अच्छा-खासा पढ़ा था इन्होंने. पता था कि भारत की 'भलाई' का दंभ भरता अंग्रेजी राज ही इसकी वजह है. और स्वराज उपाय. कॉलेज छूटने के बाद मदन ने कालका में क्लर्क का काम करना शुरू कर दिया. पर वहां भी काम करने वालों की यूनियन बनाने लगे. तो छोड़ना पड़ा. फिर बम्बई चले गए. कुछ-कुछ करते रहे. बड़े भाई ने सलाह दी कि लंदन चले आओ तुम. सारे भाई यही हैं. 1906 में मदन लाल ने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लन्दन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया.लन्दन में मिले सावरकर और श्यामजी से
लन्दन में मदन लाल की मुलाकात हुई विनायक सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा से. वही वर्मा जी जिनकी अस्थियाँ नरेन्द्र मोदी लन्दन से लाये थे. दोनों लोगों को मदन लाल की स्पष्ट सोच और हिम्मत पसंद आई. सावरकर क्रांति में भरोसा रखते थे. उनका मानना था कि क्रांति लानी है, चाहे जैसे आये. ऐसा कहा जाता है कि सावरकर ने ही मदन लाल को बन्दूक चलानी सिखाई. और अपने अभिनव भारत मंडल में जगह दी. इसी दौरान बंगाल का विभाजन हो गया. इस विभाजन ने देश के लोगों में काफी गुस्सा भर दिया था. क्योंकि बिलावजह लोग एक-दूसरे से अलग होने लगे थे. मदन लाल ने इस विभाजन के खिलाफ कुछ करने का मन बना लिया.और फिर भरे हॉल में कर्जन वायली को गोली मार दी
1 जुलाई 1909 को इम्पीरियल इंस्टिट्यूट, लन्दन में एक फंक्शन हुआ. इसमें सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट, इंडिया के असिस्टेंट कर्जन वायली भी आये. मदन लाल ने अपने भाई से कह कर वहां जाने का जुगाड़ बना लिया. फंक्शन चलता रहा. मदन लाल मौके का इन्तजार करते रहे. ऐसी चीजें आसान नहीं होती हैं. कितने तरह के मनोभावों से गुजरा होगा वो लड़का. क्या क़त्ल करना सही है? मैं इसे कैसे सही साबित करूंगा? फंक्शन ख़त्म होने के बाद जब वायली घर जा रहा था, मदन लाल धींगरा उसके सामने आ गए. चार फायर किये. सारी गोलियां वायली को लग गईं. इसी बीच एक पारसी डॉक्टर वायली को बचाने सामने आ गया. दो गोलियां उनको भी लग गईं.ट्रायल में लगा दिया मजमा
23 जुलाई को मदन लाल का ट्रायल शुरू हुआ. उन्होंने ब्रिटिश कोर्ट को अथॉरिटी मानने से ही इनकार कर दिया. कहा:मैं अपने डिफेन्स में कुछ नहीं कहना चाहता. मुझे कोई वकील भी नहीं चाहिए. पर मैं अपने इस काम के बारे में जरूर बताऊंगा. पहली बात तो ये कि मैं इस कोर्ट को ही नहीं मानता. इस कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है मुझ पर केस चलाने का. पिछले 50 सालों में 8 करोड़ हिन्दुस्तानियों की हत्याओं के जिम्मेदार ब्रिटिश क्या चलाएंगे केस. मेरे देश के नौजवानों को फांसी दी हैं इन लोगों ने. जब जर्मन तुम पर हमला करेंगे, तो क्या कहोगे अपने लोगों से? लड़ने के लिए ही बोलोगे ना? वही मैं कर रहा हूं. जब तुम्हारे लोग जर्मन को मारेंगे तो देशभक्त हो जायेंगे. तो मैं क्या हूं? मेरी इच्छा है कि तुम लोग मुझे फांसी दो. मेरे देशवासी इसका बढ़िया से बदला लेंगे. मैं फिर कहता हूं कि मैं तुम्हारे कोर्ट को नहीं मानता. तुम अभी ताकतवर हो. जो चाहे, करो. पर हमारा दिन भी आएगा.कोर्ट ने फांसी की सजा दी. वहां से बाहर निकलते हुए मदन लाल ने जज को थैंक यू बोला.
गांधी से लेकर चर्चिल तक सबने बोला धींगरा की बात पर
महात्मा गांधी की अपनी अहिंसा की थ्योरी थी. मदन लाल धींगरा के मामले पर उन्होंने कहा:जर्मनी और ब्रिटेन की मिसाल देना सही नहीं है. लड़ाई में ऐसा होता है. इसका मतलब ये नहीं है कि कोई भी कहीं मिले, उसे मार दो. मदन लाल धींगरा को देश से प्यार था. पर वो प्यार अंधा था.फांसी के बाद The Times ने लिखा: The nonchalance displayed by the assassin was of a character which is happily unusual in such trials in this country. He asked no questions. He maintained a defiance of studied indifference. He walked smiling from the Dock.
ब्रिटेन के भावी प्रधानमन्त्री चर्चिल ने प्राइवेट में किसी से कहा था, मदन लाल धींगरा की कोर्ट स्पीच के बारे में: