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75 साल पुरानी इस मोहब्बत के लिए 2019 का हिंदुस्तान क्यों पागल हो रहा है?

एक ज़िंदगी में इश्क़ के इतने आयाम देखकर रश्क होता है.

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अमृता प्रीतम और इमरोज़ ने कभी इज़हार-ए-मोहब्बत नहीं किया.
2019 का हिंदुस्तान आज एक लड़की और उसके प्यार के पीछे पागल हो रहा है. क्यों? जबकि ऐसा माना जाता है कि आज के बच्चे प्यार को लेकर कुछ अलग सोचते हैं, ऐसे में इश्क़ शब्द जबां पर चढ़ कैसे रहा है?
इसके पीछे कुछ किस्से हैं. किस्से जो हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं. कुछ याद दिलाते हैं, कुछ महसूस कराते हैं.
तीन घंटे की फ़िल्म में हीरो-हीरोइन मिलते हैं. उनमें प्यार होता है. कुछ परेशानियां आती हैं. एक सैड टाइप गाना आता है और फिर कुछ भी कर-कराकर दोनों मिल जाते हैं. अमूमन बॉलीवुड फ़िल्मों में ऐसा ही होता है. प्यार, इश्क़, मोहब्बत थिएटर में जितनी आसानी से मिलते-बिछड़ते और फिर मिलते हैं, उसका आधा भी असल ज़िंदगी में नहीं होता. शादी के बाद कोई किसी और से इश्क़ करे, बेशुमार इश्क़, शादी टूटी, इश्क़ मुकम्मल न हुआ और फिर उसे कोई इश्क़ करे आखिरी सांस तक. किसी फ़िल्म की स्क्रिप्ट सी लगती है न ये बात. मगर इसे जिया है किसी ने इसी दुनिया में. समाज की लकीरों से आगे, ख़ुद के बनाए खांचों से अलग, कायदों से दूर. अमृता प्रीतम ने. आइए जानते हैं उनके इश्क़ से जुड़े वो किस्से, जिनसे हमें भी इश्क़ हो जाता है.

इश्क़ से पहली मुलाक़ात

अमृता 31 अगस्त 1929 में गुंजरावाला में पैदा हुईं. अब ये जगह पाकिस्तान में है. सोलह साल में पहला कविता संग्रह ‘अमृत लहरें’ छप गया. इसी उम्र में प्रीतम सिंह से शादी हुई और वो हो गईं अमृता प्रीतम. रिश्ता निभा नहीं और तलाक हो गया. ख़ैर इश्क़ से उनकी पहली मुलाक़ात 1944 में हुई. अमृता एक मुशायरे में शिरकत कर रही थीं. साहिर लुधियानवी से यहीं मिलीं. वहां से लौटने पर बारिश हो रही थी. वो लिखती हैं,
'मुझे नहीं मालूम कि साहिर के लफ्जों की जादूगरी थी या कि उनकी खामोश नज़र का कमाल था लेकिन कुछ तो था जिसने मुझे अपनी तरफ़ खींच लिया. आज जब उस रात को मुड़कर देखती हूं तो ऐसा समझ आता है कि तक़दीर ने मेरे दिल में इश्क़ का बीज डाला जिसे बारिश की फुहारों ने बढ़ा दिया'.
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साहिर, अमृता से लाहौर में मिला करते थे.

सिगरेट की आदी हो गईं

साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे. कुछ नहीं कहते. बस एक के बाद एक सिगरेट पिया करते थे. उनके जाने के बाद अमृता उनकी सिगरेट की बटों को उनके होंठों के निशान के हिसाब से दोबारा पिया करती थीं. इस तरह उन्हें भी सिगरेट पीने की लत लग गई. अमृता साहिर से बेहद प्यार करती थीं. मगर वो साथ न हो सके. उन्होंने लिखा,
यह आग की बात है, तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वही सिगरेट है, जो तूने कभी सुलगाई थी
चिंगारी तूने दे थी, यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर, कोई हिसाब लिखता रहा
ज़िंदगी का अब गम नही, इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूं, अब और सिगरेट जला ले!

जब साहिर की मां से मिलीं अमृता

दिल्ली में एक बार अमृता, साहिर और उनकी मां से मिलने आईं थीं. उनके जाने के बाद दोस्तों के सामने ही साहिर ने अपनी मां से कहा, 'मांजी, ये अमृता थी, जानती हो ना? ये आपकी बहू बन सकती थी'. साहिर ने ताउम्र शादी नहीं की. लोग कहते हैं कि साहिर के लिखे गीत, अमृता के लिए उनकी मोहब्बत बयां करते हैं. अगर अमृता, साहिर की पी हुई सिगरेटों के टुकड़े संभाल कर रखती थीं तो साहिर भी अमृता की पी हुई चाय की प्याली संभाल कर रखते थे. कहा तो ये भी जाता है कि साहिर ने बरसों तक वो प्याला नहीं धोया जिसमें अमृता ने चाय पी थी. हालांकि इतने इश्क़ के बाद भी दोनों अलग हो गए. हर मोहब्बत को साथ का अंजाम मिले, ज़रूरी तो नहीं.

इमरोज़ की एंट्री

अमृता की ज़िंदगी में अभी उनके हिस्से की मोहब्बत बाकी थी. 1958 में उन्हें इमरोज़ मिले. अबकी इमरोज़ को उनसे इश्क़ हो गया. दोनों एक ही छत के नीचे कई साल रहे मगर अलग-अलग कमरों में. लोग उनके रिश्ते को लिव-इन रिलेशनशिप का नाम भी देते हैं. मज़े की बात तो ये है कि दोनों ने कभी एक-दूसरे से नहीं कहा कि वो उनसे प्यार करते हैं. अमृता रात के समय लिखती थीं. जब न कोई आवाज़ हो न टेलीफ़ोन की घंटी. इमरोज़ लगातार चालीस-पचास बरस तक रात के एक बजे उठकर उनके लिए चाय बनाकर चुपचाप उनके आगे रख देते और फिर सो जाया करते. अमृता को इस बात की ख़बर तक न होती थी.
40 साल से ज़्यादा इमरोज़ और अमृता साथ रहे. Photo: Pinterest
40 साल से ज़्यादा इमरोज़ और अमृता साथ रहे. Photo: Pinterest

जब लोगों ने इमरोज़ से सवाल किए

किसी ने इमरोज़ से पूछा कि आप जानते थे कि अमृता जी साहिर से लगाव रखती हैं. आपको यह कैसा लगता है? इस पर इमरोज़ जोर से हंसे और बोले,
'एक बार अमृता ने मुझसे कहा था कि अगर वह साहिर को पा लेतीं, तो मैं उसको नहीं मिलता. तो मैंने उसको जवाब दिया था कि तुम तो मुझे जरूर मिलती चाहे मुझे तुम्हें साहिर के घर से निकाल के लाना पड़ता. जब हम किसी को प्यार करते हैं तो रास्ते की मुश्किल को नहीं गिनते. मुझे मालूम था कि अमृता साहिर को कितना चाहती थीं. लेकिन मुझे यह भी बखूबी मालूम था कि मैं अमृता को कितना चाहता था.

अमृता की शिकायतें, इमरोज़ का दुनिया घूम लेना

इमरोज़ अमृता के जीवन में काफी देर से आए. अमृता इस बात की शिकायत करती थीं. वो इमरोज़ से पूछतीं, 'अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते'. जब इमरोज ने कहा कि वह अमृता के साथ रहना चाहते हैं तो उन्होंने कहा, पूरी दुनिया घूम आओ फिर भी तुम्हें लगे कि साथ रहना है तो मैं यहीं तुम्हारा इंतजार करती मिलूंगी. कहते हैं कि तब कमरे में सात चक्कर लगाने के बाद इमरोज़ ने कहा कि घूम ली दुनिया. मुझे अब भी तुम्हारे ही साथ रहना है.

इमरोज़ की पीठ पर साहिर का नाम

इमरोज़ जब भी उन्हें स्कूटर पर ले जाते थे और अमृता की उंगलियां हमेशा उनकी पीठ पर कुछ न कुछ लिखती रहती थीं. इमरोज़ जानते थे कि लिखा हुआ शब्द साहिर ही है. जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया तो इमरोज़ हर दिन उनके साथ संसद भवन जाते थे और बाहर बैठकर उनका घंटों इंतज़ार करते थे. एक दफ़ा गुरुदत्त ने इमरोज को मनमाफिक शर्तों पर काम करने का ऑफर दिया लेकिन अमृता को छोड़कर इमरोज़ नहीं गए.
फोटो: Youtube
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इमरोज़ का कहना 'मुझे फिर मिलेगी अमृता'

इमरोज़ ने अपने एक लेख 'मुझे फिर मिलेगी अमृता' में लिखा कि कोई भी रिश्ता बांधने से नहीं बंधता. प्रेम का मतलब होता है एक-दूसरे को पूरी तरह जानना, एक-दूसरे के जज़्बात की कद्र करना और एक-दूसरे के लिए फ़ना होने का जज़्बा रखना. किसी बात को लेकर हम कभी एक-दूसरे से नाराज़ तक नहीं हुए. इसके पीछे एक ही वजह रही कि वह भी अपने आप में हर तरह से आज़ाद रहीं और मैं भी हर स्तर पर आज़ाद रहा. चूंकि हम दोनों कभी पति-पत्नी की तरह नहीं रहे, बल्कि दोस्त की तरह रहे. हमारे बीच कभी यह लफ्ज़ भी नहीं आया कि आय लव यू. न तो मैंने कभी अमृता से कहा कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं और न ही अमृता ने कभी मुझसे. जब 2005 में अमृता ने ये दुनिया छोड़ी तो इमरोज़ ने लिखा,
'उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं. वो अब भी मिलती है, कभी तारों की छांव में, कभी बादलों की छांव में, कभी किरणों की रोशनी में कभी ख़्यालों के उजाले में हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप, हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं, हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को अपना अपना कलाम सुनाते हैं उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं...'
साहिर-अमृता-इमरोज़ के किस्से बहुत आम हुए. कहीं कुछ जोड़ा गया कहीं घटाया. मगर जो बना रहा, वो था इश्क़. साहिर और अमृता के रिश्ते को मंच पर भी उतारा गया. अभिनेता शेखर सुमन ने साहिर और अभिनेत्री दीप्ति नवल ने अमृता का किरदार निभाया. खबर है कि संजय लीला भंसाली इरफ़ान ख़ान और प्रियंका चोपड़ा के साथ साहिर-अमृता की दास्तान बड़े पर्दे पर दिखाने वाले हैं. हालांकि एक खामोश इश्क़ की दास्तान तो अमृता और इमरोज़ की भी है.


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