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वो विदेशी एक्टर, जिसका जन्म ही शायद हिंदी फिल्मों में हीरो से पिटने के लिए हुआ था

जिसे फिल्मों में कभी अच्छे आदमी का रोल न मिला लेकिन असल ज़िंदगी में जो हीरा आदमी था.

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Bob Christo

सुबह जब ऑफिस में कलीग ने मुझसे पूछा कि मैं क्या कर रहा हूं तो मैंने बता दिया कि बॉब क्रिस्टो पर स्टोरी कर रहा हूं. अगले का पलटकर सवाल आया, "वो कौन है?"

तब मैंने उसे दूसरे ढंग से समझाया. कहा,
"वो अंग्रेज़ आदमी याद करो, जो अपनी हर हिंदी फिल्म में हीरो से पीटता है." 

इतना कहते ही साथी के दिमाग की बत्ती जल गई. उसके 'अच्छा वोओओओओ'
ने मुझे भी यकीन दिला दिया कि उसने सही से पहचान लिया है. बस यही है एक्टर बॉब क्रिस्टो की कहानी.
इस रूप में उन्हें कई बार देखा गया है.
इस रूप में उन्हें कई बार देखा गया है.


इस इंट्रो को दो तरह से देखा जा सकता है. उनके वजूद की मकबूलियत के रूप में भी और बॉलीवुड में 'टाइपकास्ट कल्चर/कर्स' के शिकार के रूप में भी. कोई प्रशंसक ये कह सकता है कि अपने उन छोटे-छोटे किरदारों में भी बॉब क्रिस्टो, महज़ ज़िक्र भर से याद आने लायक काम कर गए हैं. तो कोई आलोचक आलोचना भी कर सकता है. इस बात की कि 200 फ़िल्में करने के बाद भी अगर किसी कलाकार को नाम से जानने वालों की संख्या कम हो, तो ये दुखद दृश्य है. बहरहाल वो जो भी हो, बॉब क्रिस्टो का जीवन दिलचस्प और व्यक्तित्व आकर्षक रहा, इसमें कोई शक नहीं.
इस शख्स़ को हमने जब भी परदे पर देखा, हमेशा कुछ बुरा काम करते ही देखा. कभी सोने की स्मगलिंग कर रहा है, कभी हीरोइन की इज्ज़त लूट रहा है, तो कभी किसी आज़ादी की लड़ाई वाली फिल्म में अंग्रेज़ बनकर भारतीयों पे ज़ुल्म ढा रहा है. हिंदी सिनेमा के इस विलेन के बारे में उसके जानने वाले कहते हैं कि असल ज़िंदगी में ये आदमी बेहद भला था.
अमृता सिंह पर अटैक.
अमृता सिंह पर अटैक.

 

वर्ल्ड वॉर के वक़्त जर्मनी में

1938 में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में पैदा हुए रॉबर्ट जॉन क्रिस्टो उर्फ़ बॉब क्रिस्टो का ज़िंदगीनामा बड़ा बिखरा हुआ है. 1943 में उनके पिता उन्हें जर्मनी ले गए. ताकि वो अपनी दादी और बुआ के साथ रह सकें. जो चीज़ उन्होंने इग्नोर की वो ये कि उस वक़्त जर्मनी दूसरे विश्वयुद्ध से जूझ रहा था. उस वक़्त दोस्त राष्ट्रों की सेनाओं ने जर्मनी में कहर ढा रखा था. ऐसे वक़्त में बॉब जर्मनी में थे.
पढ़ाई के साथ-साथ बॉब ने थिएटर भी सीखा. अपनी पहली पत्नी हेल्गा को वो किसी प्ले के दौरान ही मिले थे. हेल्गा और उनके तीन बच्चे हुए. एक लड़का और दो लडकियां. हेल्गा के एक दर्दनाक कार एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद बॉब ने अपने बच्चों को एक अमेरिकन कपल को सौंपा और एक आर्मी असाइनमेंट पर विएतनाम चले गए. वहां वो सैनिकों को छिपे हुए माइंस खोजकर नष्ट करने में मदद करते.

एक ऑस्ट्रेलियन बंदा कैसे पहुंचा मायानगरी?

विएतनाम के बाद क्रिस्टो ने कई जगहों की खाक छानी. होंगकोंग, सेशेल्स, ओमान, साउथ अफ्रीका. एक बार रोडेशिया में, जो कि आज का ज़िम्बाब्वे है, उन्होंने एक मैगज़ीन के कवर पर इंडियन एक्ट्रेस परवीन बाबी की तस्वीर देखी. वो परवीन के भयानक वाले फैन बन गए. वो ख़ास परवीन से मिलने की तमन्ना लिए इंडिया आ गए. ओमान में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सिविल इंजिनीयर की जॉब उन्हें मिलने ही वाली थी. उसका कॉन्ट्रैक्ट लेटर आना बाकी था बस. उसके आने तक मुंबई एक तुरंत विजिट हो सकती थी. पर एक बार इंडिया आए तो यहीं के हो के रह गए.
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जब परवीन को बोला तुम परवीन नहीं हो

बॉब क्रिस्टो को समंदर से दीवानगी की हद तक प्यार था. इसीलिए जब वो मुंबई पहुंचे तो सबसे पहले उन्होंने जुहू बीच का रुख किया. ये देखने कि तैरने और वॉटर स्पोर्ट्स की क्या सुविधाएं हैं. वहां से निकले तो एक फिल्म यूनिट से टकरा गए. यूनिट चर्चगेट के एक टी-स्टॉल पर चाय पी रही थी. बातों-बातों में पता चला कि कैमरामैन दूसरे ही दिन परवीन बाबी से 'दी बर्निंग ट्रेन' के सेट पर मिलने वाला है. क्रिस्टो उससे पता लेकर दूसरे दिन अल-सुबह पहुंच गए.
परवीन बाबी.
परवीन बाबी.


वो अपने नए दोस्त से वो अभी बात ही कर रहे थे कि उन्हें अपने पीछे परवीन बाबी की आवाज़ सुनाई दी. हडबडाहट में बॉब ने ब्लंडर कर दिया. परवीन बाबी को बोला, "आप परवीन बाबी नहीं हैं. इस मैगज़ीन पर छपी लड़की परवीन बाबी है." परवीन बाबी इस बात पर खूब हंसी. बोली, "मैं शूटिंग के अलावा मेकअप नहीं करती. क्या बिना मेकअप मैं बहुत बुरी दिखती हूं?"
तब जाकर क्रिस्टो ने उन्हें बताया कि कैसे वो उनसे मिलने के तड़प रहे थे. आगे चलकर बॉब और परवीन ने कई फिल्मों में साथ काम किया. दोस्त बने. यहां तक कि काफी अरसा पड़ोसी भी रहे. बॉब को अपने अंतिम दिनों तक लगता रहा कि परवीन बाबी ने ख़ुदकुशी की है.

संजय ख़ान के साथ लंबी दोस्ती

बॉब को फिल्मों में ब्रेक संजय ख़ान ने दिया. राज कपूर, संजय ख़ान और जीनत अमान की फिल्म 'अब्दुल्लाह' में. साल था 1980. इसमें उन्होंने एक जादूगर का रोल किया था, जो डैनी के लिए काम करता है. वहां से शुरू हुआ सिनेमा का सफ़र 200 से ज़्यादा फिल्मों तक चलता ही रहा. गैंगस्टर, ज़ालिम ब्रिटिश ऑफिसर, गली का गुंडा, करप्ट पुलिस अफसर, डकैत, सुपारी किलर जैसे तमाम रोल उन्हें मिलते रहे. किसी ने भी कभी उन्हें किसी पॉजिटिव रोल में लेने का सोचा ही नहीं. एक बार एक अंग्रेज़ ने हिंदी फिल्म बनाने की सोची तो बॉब को एक अच्छे पादरी का रोल देने की बात की. पर फिल्म शूटिंग शुरू होने से पहले ही पचड़ों में फंस गई और यूनिट इंडिया छोड़ गई. फिर कभी ऐसा मौक़ा बना ही नहीं.
अपनी पहली फिल्म अब्दुल्लाह में बॉब.
अपनी पहली फिल्म अब्दुल्लाह में बॉब.


बॉब की दूसरी फिल्म थी फीरोज़ ख़ान की ब्लॉकबस्टर 'क़ुर्बानी'. कुर्बानी हिट होने के बाद उन्हें एक तेलुगु फिल्म का ऑफर मिला. हीरो थे एन टी रामाराव और चिरंजीवी. इसके बाद तो साउथ की फिल्मों में भी उनकी राह खुल गई. कई फिल्मों में उन्होंने काम किया. तमाम बड़े स्टार्स के साथ.

बॉब क्रिस्टो का बाबू कृष्णा

एक बार का किस्सा है. बॉब एक तेलुगु फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. स्टूडियो के बाहर वो अपने सीन की बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे. डायरेक्टर ने उन्हें बुलाने एक असिस्टेंट डायरेक्टर को भेजा. उसने आकर आवाज़ें लगानी शुरू कर दी, "बाबू कृष्णा! बाबू कृष्णा!" 

जब काफी देर तक वो चिल्लाता रहा और किसी ने जवाब न दिया तो बॉब उसके पास गए. पूछा कि किसे और किस काम से बुला रहा है. तब मामला खुला कि उसे उन्हीं की तलाश थी. बॉब ने उसे दुरुस्त किया कि उनका नाम 'बॉब क्रिस्टो' है. वो पूरे कॉन्फिडेंस से बोला तेलुगु में ये बाबू कृष्णा ही है. जब डायरेक्टर को ये बात बताई गई, तो वो खूब हंसा. उसने बॉब को ऑफर भी दी कि वो फिल्म के क्रेडिट्स में चाहे तो ये नाम लिखवा सकते हैं. बॉब ने हाथ जोड़ लिए.
बॉब की तेलुगु फिल्म 'बोब्बिली पुली' जिसमें श्रीदेवी थी.
बॉब की तेलुगु फिल्म 'बोब्बिली पुली' जिसमें श्रीदेवी थी.

 

जब संजय ख़ान ने विधु विनोद चोपड़ा से बॉब को लेकर शर्त लगा ली

एक बार बॉब को स्विट्ज़रलैंड से संजय ख़ान के 50 हज़ार डॉलर ले के आना था. उन्होंने बॉब को अकेले भेज दिया. ये मामला विधु विनोद चोपड़ा के नॉलेज में आया. उन्होंने संजय ख़ान से कहा कि इतनी बड़ी रकम का भरोसा तुमने एक विदेशी पर कैसे कर लिया? तुम्हें कैसे पता कि वो लौट आएगा? 50 हज़ार डॉलर बहुत बड़ी रकम होती थी उन दिनों. विनोद चोपड़ा का कहना था कि इतनी बड़ी रकम काबू में आते ही बॉब फरार हो जाएंगे. संजय चाहकर भी उन्हें ढूंढ नहीं पाएंगे.
जब बॉब वापसी के रास्ते में थे तो लंदन एयरपोर्ट पर उन्हें संजय ख़ान का कॉल आया. संजय ने बताया कि विनोद चोपड़ा ने क्या कहा था. साथ ही ये भी बताया कि चोपड़ा ने सौ पाउंड की शर्त लगाई थी कि बॉब नहीं आएगा. बदले में संजय ने घोषणा की कि वो 500 पाउंड की शर्त लगाने को तैयार हैं. उन्होंने बॉब से कहा कि वो आने में जानबूझकर देर करें. नौ बजे तक लॉबी में न आएं. चोपड़ा को लगेगा कि उन्होंने शर्त जीत ली है. उसके बाद उनका चेहरा देखने में मज़ा आएगा.
ऐसा ही किया गया. वाकई विनोद चोपड़ा की शक्ल उस वक़्त देखने लायक थी.

फ़िल्में, जिनमें वो याद रहे

इस स्टोरी का इंट्रो कोई हवाहवाई वार्तालाप नहीं था. बॉब क्रिस्टो को नाम से जानने वाले लोग बहुत कम हैं. लेकिन उनके कई सारे किरदार लोगों को याद हैं. कालिया में अमिताभ बच्चन के साथ जेल में हुई फाइट कौन भूल सकता है. जहां वो अमिताभ के नाम से हिट हुई वो आइकॉनिक लाइन बोलते हैं.

"जहां हम खड़े होते हैं, लाइन वही से शुरू होती है."

ऐसी ही उनकी कुछ और भूमिकाओं पर नज़र डालते हैं.
 



 

# मर्द (1985)

अमिताभ की ब्लॉकबस्टर फिल्म मर्द में बॉब ने अंग्रेज़ अफसर साइमन का रोल किया था. वो आदमी जो ऐसे क्लब में बैठकर एक भारतीय को पीटता है जिसके बाहर लिखा है, "भारतीयों और कुत्तों को प्रवेश की इजाज़त नहीं है."
 



 

# क़ुर्बानी (1980)

क़ुर्बानी वो फिल्म है जिसके बाद बॉब का साउथ इंडिया का करियर भी स्टार्ट हो गया था. इसमें उन्होंने मार अमजद ख़ान से खाई थी. जो खुद अक्सर फिल्मों में विलेन हुआ करते थे, इसमें इंस्पेक्टर बने थे.
 



 

# मिस्टर इंडिया (1987)

वो अंग्रेज़ एंटिक कलेक्टर जो भारत से हनुमान की सोने की मूर्ति स्मगल करके विदेश ले जाना चाहता है. जिससे अदृश्य मिस्टर इंडिया जय बजरंगबली भी बुलवाते हैं.
 



 

# गुमराह (1993)

होंगकोंग की जेल का वॉर्डन कम गुंडा. वहां बंद श्रीदेवी की इज्ज़त का ग्राहक. जिसे श्रीदेवी की फरारी के दौरान संजय दत्त तबियत से पीटते हैं.
 



 

# रूप की रानी चोरों का राजा

डायमंड स्मगलर डोंसे. डोंसे फैंसी स्टाइल में हेलिकॉप्टर से भारत आया है. वो अनुपम खेर से सौ करोड़ के हीरों सौदा करने आया है. जिसे अंत में कुछ हासिल नहीं होता.
 



 

# दी सोर्ड ऑफ टीपू सुलतान (1990)

संजय ख़ान ने जब टीवी के लिए 'टीपू सुलतान' सीरियल बनाया तो कम से कम एक अंग्रेज़ अफसर के रोल के लिए उन्हें ज़्यादा माथापच्ची नहीं करनी थी. उनका दोस्त बॉब क्रिस्टो हमेशा मौजूद था.
फिल्मों से मुकम्मल दूरी बनाने के बाद वो बेंगलुरु शिफ्ट हो गए. जहां वो योग इंस्ट्रक्टर बन गए. 20 मार्च 2011 को उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई. फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें बड़े आदर के साथ याद किया. अभिषेक बच्चन ने ट्विटर पर लिखा:

"अभी बॉब क्रिस्टो के निधन की बुरी ख़बर सुनी. शॉक में हूं. वो बेहद मीठे और शरीफ इंसान थे. पापा के सेट पर उनके साथ बहुत समय बिताया है. बहुत अच्छी यादें हैं. RIP".


 



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