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बांग्लादेश के इन हालात से भारत को क्या खतरा है? बॉर्डर पर सुरक्षा क्यों बढ़ाई गई?

India की सबसे लंबी सीमा China या Pakistan से नहीं, Bangladesh से लगती है. 4 हजार 96 किलोमीटर लंबी ये सीमा, दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है. इस Border का स्ट्रक्चर BSF के लिए बड़ी समस्या पैदा करता है. कुछ और भी ऐसी चीजें हैं, जिन्होंने भारत को सतर्क कर दिया है.

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भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर अभी भी 915 किलोमीटर तक फेंसिंग नहीं है. (फोटो- PTI )

भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की रखवाली करता है सीमा सुरक्षा बल (BSF). 2 अगस्त 2024 को इसके महानिदेशक नितिन अग्रवाल को हटाकर फोर्स का अतिरिक्त चार्ज दिया गया सशस्त्र सीमा बल के महानिदेशक दलजीत सिंह चौधरी को. इस घटना के सिर्फ तीन दिन बाद दलजीत सिंह चौधरी के जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा उनके सामने थी. 5 अगस्त 2024 को वो आनन फानन में दिल्ली से कोलकाता के लिए निकले. उनका विमान कोलकाता में उतरता, उससे पहले ही पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मिज़ोरम, असम और मेघालय स्थित सभी फ्रंटियर हेडक्वार्टर्स को मिल चुका था. ये आदेश 4000 किलोमीटर लंबी भारत बांग्लादेश सीमा पर लागू हो चुका था - बॉर्डर सील कर दी गई थी और फोर्स की हर बटालियन को हाई अलर्ट पर डाल दिया गया था.

ये सब इसलिए हुआ, क्योंकि बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ आंदोलन ने हिंसक क्रांति का रूप ले लिया. शेख हसीना इस्तीफा देकर भागीं तो ऐसी जल्दी में, कि देश के नाम संदेश भी रिकॉर्ड नहीं कर पाईं. क्योंकि फौज ने निकलने के लिए सिर्फ 45 मिनट दिए थे. इसके बाद प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास में घुस गए. कोई बतख लूटकर ले गया, तो कोई मछली तो कोई रिक्शे पर रखकर कुर्सियां ले गया.

अराजकता ऐसी है कि सिर्फ हसीना की पार्टी अवामी लीग के लोगों पर हमले नहीं हुए, भीड़ पुलिस वालों पर भी हमला कर रही है. भीड़ ने शेरपुर जेल तोड़कर 500 कैदियों को भी छुड़वा लिया है. ये सब स्वतः स्फूर्त था या फिर वाकई उन कॉन्सपिरेसी थ्योरी में दम है कि ये तख्तापलट CIA ने करवाया, ये अभी तय होना बाकी है. लेकिन इतना तय है कि ये घड़ी अगर बांग्लादेश के लिए मुश्किल भरी है, तो हिंदुस्तान के लिए भी नाज़ुक है. BSF के डीजी को कोलकाता भेज दिया गया है, तो दिल्ली में भी प्रधानमंत्री ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक बुला ली. ऐसे में ये लाज़मी है कि हम दो सवालों के जवाब तलाशें -

  • आखिर बांग्लादेश जैसे ऑल वेदर फ्रेंड की वजह से भारत के सीमावर्ती इलाकों में चुनौतियां क्यों पैदा हो रही हैं?
  • और अतीत में ऐसी घटनाओं की कैसी मिसालें मिलती हैं

भारत की सबसे लंबी सीमा चीन या पाकिस्तान से नहीं, बांग्लादेश से लगती है. 4 हजार 96 किलोमीटर लंबी ये सीमा, दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है. पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम से लगने वाली ये सीमा नक्शे पर भले सपाट दिखे, लेकिन असल में बेहद जटिल है. इसके पीछे दो वजहें हैं.

  • पहली है 1947 में हुआ बंटवारा, जिसमें अंग्रेज ऐसी हड़बड़ी में थे कि उन्होंने नक्शे पर लकीर खींचने से पहले मैदानी सर्वे किया ही नहीं. बस हवाई जहाज़ से एक उड़ान भरकर इतिश्री कर ली गई थी.
  • दूसरी वजह कुदरत है. पहाड़ों, नदियों और जंगलों के चलते बॉर्डर मैनेजमेंट एक पहेली की तरह हो जाता है.
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बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाले भारतीय राज्य.(ग्राफिक- दी लल्लनटॉप)
बंटवारे से होने वाली समस्या

औपनिवेशिक ताकतों के किए बंटवारों ने दुनियाभर में समस्याएं खड़ी की थीं, लेकिन जैसा रायता अंग्रेज़ भारत और पूर्वी पाकिस्तान के बीच छोड़ गए थे, उसकी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलती. भारत और पूर्वी पाकिस्तान के बीच एक, नहीं, दो नहीं, सैकड़ों एन्क्लेव थे. एन्क्लेव माने क्या? सादी भाषा में - भारत की जमीन के भीतर बांग्लादेश और बांग्लादेश के भीतर फिर भारत. आपको ऐसे समझ नहीं आएगा, इस उदाहरण पर गौर कीजिए.

मान लीजिये भारत के दो गांव हैं. A और B. अब B है तो भारत में. लेकिन बंटवारे के दौरान सीमा रेखा कुछ ऐसी बनी कि B चारों ओर से बांग्लादेश से घिरा हुआ है. तस्वीर देखेंगे तो आपको समझ आएगा. ये ऐसा मामला है मानो समंदर के बीचों बीच एक आइलैंड हो. ये आइलैंड है तो भारत का. लेकिन इसकी एक इंच ज़मीन भी भारत से जुड़ी नहीं है. तो अब अगर B से किसी को A तक जाना हो. तो उसे समंदर में उतरना पड़ेगा. मतलब B से A तक पहुँचने के लिए बांग्लादेश से गुजरना पड़ेगा.

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 बंटवारे के दौरान सीमा रेखा कुछ ऐसी बनी कि B भारत का होकर भी चारों ओर से बांग्लादेश से घिरा है. (ग्राफिक- दी लल्लनटॉप)

जो इलाके किसी एक देश के होते हुए किसी दूसरे देश की सीमा के अंदर हों उन्हें एन्क्लेव कहा जाता है. भारत और बांग्लादेश के बीच ऐसे एन्क्लेव भी थे, कि भारत के भीतर बांग्लादेश और उस बांग्लादेश के भीतर फिर भारत.

आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि रोज़मर्रा के काम के लिए अगर आपको दो या तीन बार किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार करना पड़े, तो कैसी दिक्कत होगी. कितनी बार दस्तावेज़ दिखाएंगे, कितनी बार तलाशी होगी. ऊपर से भारत-बांग्लादेश के बीच प्रवासियों और घुसपैठियों की समस्या भी रही हैं. आधुनिक बॉर्डर मैनेजमेंट के लिए एन्क्लेव किसी बुरे सपने की तरह होते हैं. आप जितनी भी कोशिश करें, इन्हें पूरी तरह सील नहीं कर सकते.

ये एन्क्लेव अस्तित्व में कैसे आए, इसका कोई सटीक उत्तर नहीं है. लेकिन कुछ थ्योरी हैं, कुछ कहानियां भी हैं. एक कहानी यूं है कि आजादी से पहले रंगपुर रियासत के राजा और कूचबिहार रियासत के राजा के बीच शतरंज की बाजी लगती थी. और ज़मीन के हिस्सों को उसमें दांव पर लगाया जाता था. इस वजह से कई छोटे-छोटे हिस्से, दोनों राज्यों के पार्ट बन गए. फिर आया आज़ादी का समय. रंगपुर का राज्य पूर्वी पाकिस्तान से मिल गया और कूच बिहार भारत से.

लेकिन कूच बिहार के कुछ हिस्से ईस्ट पाकिस्तान और रंगपुर के कुछ हिस्से भारत में रह गए. बंटवारा करते हुए अंग्रेज़ अफसर रेडक्लिफ ने एन्क्लेव्स जैसी जटिल चीजों का ध्यान नहीं रखा. लिहाजा आजादी के बाद ये एन्क्लेव्स परेशानी का सबब बन गए.

इस समस्या का हल निकालने के लिए 1947 से प्रयास होते रहे. कई बार शुरुआती सफलता भी मिली. लेकिन जब जब ज़मीन और आबादी की अदला-बदली का प्रश्न आता, बात फंसकर रह जाती. 1971 में बांग्लादेश भारत की मदद से ही बना. शेख मुजीब उर रहमान बांग्लादेश के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने. 16 मई 1974 को शेख मुजीब और इंदिरा गांधी के बीच एन्क्लेव्स को लेकर एक समझौता हुआ, जिसे कहा गया इंडिया बांग्लादेश अग्रीमेंट. लेकिन अगले ही साल शेख मुजीब की हत्या हो गई और फिर लंबे वक्त तक बांग्लादेश में सैनिक शासन रहा. इसीलिए ये समझौता लागू नहीं हो पाया.

1991 में बांग्लादेश में लोकतंत्र फिर बहाल हुआ और तब जाकर एन्क्लेव्स पर फिर बात शुरू हो पाई. जब सत्ता शेख हसीना के हाथ में आई, तो बातचीत को एक बेहतर माहौल मिला. मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में बातचीत में तेज़ी आई. और 6 सितंबर 2011 को एक नए प्रोटोकॉल पर सहमति बनी, जिसके तहत 1974 के समझौते में सुधार किए गए और मैदानी काम शुरू हुआ.

चूंकि इस समझौते के तहत भारत के नक्शे में बदलाव होना था, इसलिए संविधान संशोधन की ज़रूरत पड़ी. इसके लिए 2013 में संविधान संशोधन विधेयक लाया गया, जो कुछ बदलावों के बाद 2015 में कानून बना. तब जाकर दोनों देशों के बीच ज़मीन की अदला-बदली हो पाई. भारत ने अपने 111 एन्क्लेव बांग्लादेश को दे दिए, जिनका कुल एरिया था 17 हज़ार 161 एकड़. बांग्लादेश ने भी भारत को 51 एन्क्लेव सौंपे, जिनका एरिया था करीब 7000 एकड़. यहां रह रहे लोगों को दोनों देशों में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया गया था.

इस ऐतिहासिक समझौते को कहा जाता है India-Bangladesh land boundary agreement 2015. हालांकि आज भी भारत और बांग्लादेश के बीच एन्क्लेव मौजूद हैं. पश्चिम बंगाल के कूच बिहार ज़िले में अंतरराष्ट्रीय सीमा से 200 मीटर भीतर दहाग्राम-अंगारपोटा एन्क्लेव है. बांग्लादेश का ये एन्क्लेव चारों तरफ से भारत से घिरा है. और यहां तक पहुंचने के लिए भारत ने 2011 में तीन बीघा कॉरिडोर बांग्लादेश को लीज पर दिया था. ऐसे ही इलाकों की निगरानी BSF के लिए एक बड़ी चुनौती है, खास तौर पर ऐसी स्थिति में, जब बांग्लादेश अस्थिर है. कई जगहें ऐसी हैं, जहां एन्क्लेव नहीं हैं, लेकिन सीमा ऐसी घनी आबादी से निकलती है, कि तय करना असंभव हो जाता है कि कौन नागरिक है और कौन विदेशी.

प्राकृतिक कारण

बंटवारे से इतर, भारत बांग्लादेश बॉर्डर पर कुछ चुनौतियां प्रकृति के चलते भी हैं. सपाट मैदान से इतर, भारत बांग्लादेश सीमा पहाड़ों और सुंदरबन डेल्टा से होकर गुज़रती है. ज्यादातर पहाड़ मेघालय सीमा पर हैं. और सुंदरबन हैं पश्चिम बंगाल में. ये दुनिया में किसी नदी का सबसे बड़ा मुंहाना है. पानी की असंख्य धाराएं ज़मीन को बेहिसाब टुकड़ों में बांटते हुए बहती हैं. और ज़मीन भी कभी ठोस होती है, तो कभी दलदल.

ये सब BSF के लिए समस्या खड़ी कर देते हैं. ऐसी सिचुएशन में बॉर्डर सिक्योरिटी को मैनेज करना काफी चैलेंजिंग हो जाता है. हालांकि भारत सरकार ने बड़े पैमाने पर फेंसिंग की है. लेकिन नवंबर में आए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी भी 915 किलोमीटर के बॉर्डर पर फेंसिंग नहीं है. बॉर्डर के इलाकों में टेरेन और फेंसिंग न होने की वजह से ड्रग की स्मगलिंग, घुसपैठ और मानव तस्करी की खबरें लगातार आती हैं.

खैर, ये तो हुई मौजूदा समस्याओं की बात. अब समझते हैं कैसे बांग्लादेश में होने वाले बदलाव भारत के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकते हैं.

अब India को क्या समस्या हो सकती है?

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में बांग्लादेश में इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने वाले युवाओं में बेरोजगारी दर 8.1% थी. जबकि एडवांस पढ़ाई करने वाले युवाओं में बेरोजगारी दर 12% थी. इसी वजह से युवाओं में रोष की स्थिति थी. अगर ये युवा अपने देश में काम नहीं खोज पाए, तो उनके पास एक ही रास्ता बचेगा, भारत में किसी तरह दाखिल होना.

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दूसरी समस्या है अल्पसंख्यकों के मामले में बांग्लादेश का ट्रैक रिकॉर्ड. बांग्लादेश में छोटी से छोटी घटना के बाद अल्पसंख्यक, खासकर हिंदू निशाने पर आ जाते हैं. अब तो वहां से एक ऐसी प्रधानमंत्री को भागना पड़ा है, जिन्हें भारत समर्थक माना जाता था. प्रदर्शनकारियों का एक धड़ा कट्टरपंथी ताकतों का भी है. ऐसे में यदि वहां अल्पसंख्यकों पर दबाव बढ़ता है, तो वो भारत का रुख कर सकते हैं. पूर्व में इसके चलते पूर्वोत्तर के राज्यों में भारी उथल-पुथल रही है. इसलिए इस बार भारत सतर्कता से काम करना चाहेगा. 

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