चुनावी मौसम में दी लल्लनटॉप आपके लिए लेकर आया है पॉलिटिकल किस्सों की ख़ास सीरीज़- मुख्यमंत्री. इस कड़ी में बात उस डॉक्टर की, जिसे लोग शनिचर डॉक्टर कहते थे. एक नेता ने पैसे को खुदा बता दिया और इस डॉक्टर की किस्मत का ताला खुल गया. और ऐसा कि जब वो छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बना तो लोग उसे चाउर वाले बाबा कहने लगे. जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा, तो अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल पूरा किया और अब भी वो उसी कुर्सी पर बैठा हुआ है. नाम है डॉक्टर रमन सिंह.
रमन सिंह: एक डॉक्टर, जो एक हार और एक स्टिंग के सहारे बना छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री
छत्तीसगढ़ में बीजेपी का पहला मुख्यमंत्री, जो कुर्सी पर बैठा तो 15 साल से सीएम है.

रमन सिंह: जब वो कुर्सी पर बैठे तो ऐसा बैठे कि कोई उन्हें कुर्सी से हिला भी नहीं पाया
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में एक मंत्री अपने पर्सनल सेक्रेटरी के साथ सोफे पर बैठे हैं. पार्श्व से टीवी की आवाज़ आ रही है. जिसमें रंगकर्मी सफदर हाशमी हत्याकांड के मुकदमे का ज़िक्र हो रहा है. माने ये है नवंबर 2003 के पहले हफ्ते की बात. एक चुप्पी के बाद कमरे में एक तीसरे आदमी की आवाज़ होती है. उसकी एक गुज़ारिश है. और एक ऑफर. कि मंत्री जी ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी का काम करवा दें. छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में. सेक्रेटरी तीसरे आदमी को विश्वास दिलाते हैं - चिंता मत करो. काम हो जाएगा. क्योंकि 'पब्लिक डिक्लेयर कर चुकी है' कि नेताजी महीने के आखिर में होने वाले चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ के सीएम बन जाएंगे. इसके बाद वहां एक आदमी नोटों की गड्डियां रख जाता है. मंत्री जी एक गड्डी उठाकर माथे से लगाते हैं और कहते हैं -

दिलीप सिंह जूदेव, जिन्होंने कहा था कि पैसा खुदा तो नहीं, लेकिन खुदा से कम भी नहीं है.
'पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा कसम, खुदा से कम भी नहीं.'
नवंबर 2003 के आखिर में छत्तीसगढ़ में सूबा बनने के बाद पहले विधानसभा चुनाव होने थे. चुनाव से ऐन पहले इंडियन एक्सप्रेस ने छापा कि उस रात कमरे में पैसे को खुदा के बराबर बताने वाले नेता थे अटल कैबिनेट में जंगल महकमे के राज्यमंत्री दिलिप सिंह जूदेव थे. फिर वीडियो जारी कर दिया.
छत्तीसगढ़ में भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी. और जूदेव सीएम पद को लेकर. थैंक्स टू भाजपाज़ लक्ष्मण प्रमोद महाजन. लेकिन इस स्टिंग के बाद सब चौपट हो गया. सवाल पैदा हुआ - जूदेव के बाद अब कौन? तब एक डॉक्टर का नाम सामने आया. जो अपनी किस्मत हर हफ्ते के शनिवार को लिखता था.

उस नेता की कहानी जो भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में सबसे लंबे समय तक लगातार एक सूबे का सीएम रहने का रिकॉर्ड बना चुका है. नाम - रमन सिंह.
अंक 1 - शनिचर डॉक्टर
15 अक्टूबर, 1952 को कवर्धा में पैदा हुए रमन सिंह. पिता विघ्नहरण सिंह वकील थे, लेकिन रमन सिंह ने डॉक्टरी की. पीएमटी माने प्री मेडिकल टेस्ट दिया. क्वॉलिफाई भी कर लिया, मगर एमबीबीएस की डिग्री के रास्ते में आड़े आ गई उम्र. रमन सिंह ने बहुत कम उम्र में पेपर निकाल लिया था. तो रमन ने बीएएमएस करके कवर्धा में क्लीनिक खोल लिया. मन सिर्फ डॉक्टरी में नहीं लगता था. नेतागिरी का चस्का लगा. 1976 में जनसंघ जॉइन कर लिया. जनसंघ युवा मोर्चा के कवर्धा अध्यक्ष हो गए. जनता के बीच पैठ बनाने के लिए हर शनिवार क्लीनिक पर मुफ्त चेकअप कैंप लगाते. और इसका फायदा भी मिला.

रमन सिंह हर शनिवार को आदिवासी जनता का मुफ्त में इलाज करते थे और इसलिए लोग उन्हें कहने लगे शनिचर डॉक्टर.
इलाके की गरीब आदिवासी जनता ने रमन से खुश होकर नया नाम रख दिया - शनिचर डॉक्टर. अब बारी थी इस काम और नाम को भुनाने की. 1983 में डॉक्टर साहब कवर्धा में पार्षदी जीते. 1990 के विधानसभा चुनाव आए तो बीजेपी के युवा मोर्चा अध्यक्ष थे अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह. उन्होंने ज़ोर दिया युवाओं को चुनाव लड़वाने पर. अपनी टीम के 22 लोगों को टिकट भी दिलवाया. रमन सिंह इस टीम में नहीं थे, लेकिन युवा थे, पढ़े-लिखे थे और साफ छवि वाले थे. मध्यप्रदेश में भाजपा के बड़े नेता लखीराम अग्रवाल ने रमन सिंह को तैयार कर ही रखा था. सुंदरलाल पटवा ने बस्तर से झाबुआ तक जो पदयात्रा निकाली थी, उसमें रमन सिंह सक्रिय रहे थे. तो टिकट मिल गया. और जिस कवर्धा में पार्षद हुए थे, वहीं विधायक हो गए.
अंक 2 - जो हारा वो सिकंदर

दिग्विजय सिंह के एक फैसले की वजह से रमन सिंह 1998 का विधानसभा चुनाव हार गए थे.
1993 में बाबरी मस्जिद गिरी. बीजेपी सरकार बर्खास्त हुई. फिर चुनाव हुए तो सरकार नहीं बची, मगर रमन की विधायकी बची रही. रमन ने विपक्ष में रहते हुए एक पढ़ने-लिखने वाले विपक्षी विधायक की छवि बनाई. विधानसभा की पत्रिका विधायनी का संपादन किया. फिर भी दिग्विजय सिंह के एक फैसले ने रमन सिंह को 1998 का विधानसभा चुनाव हरवा दिया. दिग्विजय ने मध्यप्रदेश के 45 जिलों से काटकर 16 नए जिले बनाए थे. राजनंदगांव में पड़ने वाली रमन की विधानसभा सीट कवर्धा को भी जिला बना दिया था. फिर कवर्धा राजपरिवार के योगेश्वर राज सिंह कांग्रेस से खड़े हो गए. रमन सिंह हार गए. हार के बाद रमन सिंह ने खुद को समेट लिया. थोड़ी बहुत राजनीति, बाकी फोकस डिस्पेंसरी पर. एक दिन वो ऐसे ही डिस्पेंसरी पर बैठे थे कि उनका फोन बजा. दूसरी तरफ लाइन पर बोल रहे आदमी ने कहा -
'तुम्हें राजनंदगांव से सांसदी का चुनाव लड़ना है. तैयारी शुरू करो.'

रमन सिंह ने मोतीलाल वोरा के खिलाफ राजानांदगांव से सांसदी का चुनाव लड़ा और जीतकर वाजपेयी सरकार में मंत्री बने.
रमन सिंह हक्का-बक्का. कारण - राजनंदगांव की सीट से चुनाव लड़ रहा कांग्रेस प्रत्याशी. कभी चुनाव न हारने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा. उनके खिलाफ भाजपा का कोई नेता खड़ा नहीं होना चाहता था. रमन सिंह को लगा कि उनकी बलि दी जा रही है. लेकिन रमन के मेंटर लखीराम अग्रवाल ने उनसे चुनाव लड़ने को कहा. उस दिन रमन ने अगर अग्रवाल की ये सलाह ना मानी होती तो वो आज अपने कवर्धा के क्लीनिक में मरीज देख रहे होते. रमन ने चुनाव लड़ा और हैवीवेट मोतीलाल वोरा को करीब 28000 वोटों के अंतर से हरा दिया. जाएंट किलर बन गए. केंद्र में अटल की सरकार बनी तो मंत्रिमंडल में सबसे चौंकाने वाला नाम था डॉ. रमन सिंह का. सबके मन में सवाल कि ये कैसे हुआ. जवाब आने वाले दिनों में मिला.
अंक-3 दया कर दान विद्या का

बीजेपी को जूदेव की वजह से जो नुकसान हुआ था, उसे विद्याचरण शुक्ल ने पूरा कर दिया. विद्याचरण ने सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और बीजेपी के पाले में 50 सीटें आ गईं.
2000 में छत्तीसगढ़ बना तो भाजपा की तरफ से सीएम पद पर दावा था दिलीप सिंह जूदेव का. जूदेव ने आदिवासी इलाकों में घूम-घूम के वनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम किया था. मिशनरीज के कथित धर्म परिवर्तन को रोका था. लेकिन जूदेव ने गड्डी माथे से लगाई और हिट विकेट हो गए. केंद्र में मंत्रिपद तक चला गया. इससे भाजपा के पास न सिर्फ चहरे का संकट पैदा हुआ. दिल भी बैठ गया. कि कहीं ये घटना चुनाव में मुसीबत न बन जाए.
लेकिन भाजपा को विद्या का आसरा था. सीएम ऑफ रायपुर विद्या चरण शुक्ल का. उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस छोड़ एनसीपी जाइन की, बल्कि सभी 90 सीटों पर कैंडिडेट भी लड़ाए. नतीजे आए तो सूबे में शुक्ल के पास थे 7 फीसदी वोट. लेकिन ये गए थे कांग्रेस के खाते से. भाजपा 90 में से 50 सीटें जीती. कांग्रेस 37 पर अटक गई. अब सीएम कौन बने. तब नाम आया प्रदेश अध्यक्ष रमन सिंह का. जो सालभर से छत्तीसगढ़ में मेहनत कर रहे थे.

दिलीप सिंह जूदेव का पत्ता कटा और फिर नाम सामने आया बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर रमन सिंह का.
छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल, नंदकुमार साई और रमेश बैंस जैसे बड़े नेता भी थे. मगर रमन सिंह को उनके विवेक, साफ छवि और चुनावों के वक्त उनकी मेहनत का तोहफा दिया. 7 दिसंबर, 2003 को पार्षदी से शुरुआत करने वाले रमन सिंह छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित सीएम बन गए.
अंक 4 - साम दाम दंड भेद
रमन 2008 में फिर सीएम बने. 2013 में. डेढ़ दशक तक सीएम रह चुके हैं. सवाल उठता है आखिर ऐसा क्या तिलिस्म है डॉक्टर साहब का जो टूट ही नहीं रहा. इसका जवाब चुनाव दर चुनाव समझा जा सकता है -
1. 2008
छत्तीसगढ़ में अपना पहला इम्तेहान रमन सिंह ने अपने काम और मिस्टर क्लीन वाली छवि के बल पर जीता. बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया. सड़कें. बिजली. 2-3 रुपये किलो चावल बांटा. इसने रमन को एक नया नाम दिया - चाउर वाले बाबा. माने चावल वाले बाबा. पब्लिक कनेक्ट बनाए रखने के लिए जनता दरबार लगाया. जोगी ने नए रायपुर का शिलान्यास सोनिया गांधी से करवा लिया था. रमन ने दोबारा शिलान्यास करवाया. पिछली जगह से 1 किलोमीटर की दूरी पर. उस पर ब्रांड रमन का ठप्पा लगाने के लिए. और फिर शुरू हुआ काम.

पांच साल के अंदर ही रमन सिंह ने अपनी छवि विकास पुरुष वाली बना ली थी.
इसने परसेप्शन बनाया कि रमन विकास पुरुष हैं. कुछ मदद रमन को कांग्रेस में चल रही भयानक गुटबाजी से मिली. कहते हैं कि अजीत जोगी से कह दिया गया था कि आप सीएम नहीं बनेंगे. इसलिए वो ढीले पड़ गए थे. नतीजा - बीजेपी 2008 में 90 में 50 सीटें जीतीं.
2. 2013
2008 से 2013 के बीच रमन को फली पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम स्कीम. ये लागू हुई 2012 में. 35 रुपये में 35 किलो चावल मिलना शुरू हुआ. पीडीएस चल पड़ा. जयललिता तक ने इसकी तारीफ की. रमन सिंह गरीब और आदिवासी जनता के बीच मजबूत हो गए. लेकिन इसी दौरान रमन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हुए. खदानों को कौड़ियों के भाव बांटने का इल्ज़ाम. अखबारों ने इसकी खबर छापी तो एक और खबर बन गई. कि रमन सिंह अखबारों की बिजली काट देते हैं.

दरभा घाटी में नक्सली हमला हुआ. कांग्रेस के 25 बड़े नेता मारे गए. कहा जाता है कि बीजेपी ने ये बात फैला दी कि हमला अजीत जोगी ने करवाया था और ये ट्रिक काम कर गई.
चुनाव से कुछ समय पहले 25 मई 2013 को दरभा घाटी में नक्सल हमला हो गया. पूरी की पूरी कांग्रेस लीडरशिप का सफाया हो गया. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ला, महेंद्र कर्मा और उदय मदलियार जैसे 25 नेता नहीं रहे. बस्तर समेत पूरे आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति लहर दौड़ गई है. बीजेपी जानती थी कि यहां हारे तो प्रदेश हारे. जानकार कहते हैं कि इस संकट से बचने के लिए बीजेपी ने ये बात फैलाई कि इस हमले के पीछे अजीत जोगी हैं. बात चली कि सुकमा रैली के बाद बाकी कांग्रेस नेता गाड़ियों से गए और अजीत जोगी ने हवाई रास्ता लिया. यदि ये ट्रिक थी, तो कुछ कामयाब रही. 12 में से 4 सीटें भाजपा ने बचा लीं. पर यहां से खोई हुईं 7 सीटों की भी भरपाई करना बाकी थी. ये भरपाई हुई एक दूसरी सेटिंग से.

रमन सिंह ने सतनामी समाज का आरक्षण कम कर दिया. इससे नाराज सतनामी गुरु बालदास ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. सतनामी समाज ने कांग्रेस के वोटों का नुकसान किया और नतीजा आया तो बीजेपी को प्रदेश में कुल 49 सीटें मिली थीं.
रमन सरकार ने छत्तीसगढ़ में अच्छा प्रभाव रखने वाले सतनामी समाज का आरक्षण 16 से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया था. इससे सतनामी नाराज़ थे. कांग्रेस इसका फायदा उठाती, इससे पहले ही सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास सामने आ गए और ऐलान कर दिया. कि 'सतनाम सेना' बना रहा हूं, हम चुनाव लड़ेंगे. इसने आघात किया अजीत जोगी पर. जो खुद इसी समाज से आते हैं. चुनाव नतीजे आए तो साफ दिखा कि इस दल ने बीजेपी का काम बना दिया. कहते हैं कि ये पार्टी भी रमन सिंह का फेंका पत्ता ही था.
माने 2008 से 2013 के बीच रमन सिंह एक कुटिल राजनीतिज्ञ हो चुके थे. उन्हें समझ आ गया था कि मुसीबतों को मौकों में कैसे बदला जाता है. 2013 के इस चुनाव में रही सही कसर पूरी की तब तक तैयार हो चुकी मोदी लहर ने. भाजपा 49 सीटें जीत गई. कांग्रेस 39 पर रह गई.
अंक - 5 कितने क्लीन मिस्टर क्लीन?

2013 से 2018 के बीच रमन सिंह की मिस्टर क्लीन वाली छवि पर कई दाग लगे हैं.
2013 से लेकर 2018 का वक्त रमन के लिए चुनौती वाला था. तमाम घोटाले सामने आए. पीडीएस योजना में घोटाले की बात सामने आई, जिसका डंका रमन हमेशा पीटते रहते हैं. फरवरी 2015 में आपूर्ति निगम के दफ्तर में इकोनॉमिक ऑफेंस विंग का छापा पड़ गया. यहां अफसरों की अलमारियों से ही करोड़ों रुपये बरामद हुए. एक डायरी भी मिली. इसमें कथित तौर पर रमन सिंह की पत्नी और उनकी एक रिश्तेदार का नाम था. मामले में फूड सेक्रेटरी समेत 26 लोगों के नाम आए. 15 जेल भी गए. कांग्रेस ने कहा, 36,000 करोड़ का घोटाला है.

डॉक्टर रमन सिंह के सांसद बेटे अभिषेक सिंह पर आरोप लगे कि उनका भी नाम पनामा पेपर्स की लिस्ट में शामिल है.
पीडीएस कांड ठंडा हुआ नहीं कि 2016 में रमन सिंह के सांसद बेटे अभिषेक सिंह पर इल्ज़ाम लगे. कहा गया कि दुनियाभर में आर्थिक घोटाले का खुलासा करने वाले पनामा पेपर्स में इनका नाम भी है. बाप-बेटे ने कहा कि विदेश में कोई पैसा नहीं जमा है. ये सब राजनीतिक साजिश है. पर इसने बैठे-बिठाए कांग्रेस को मुद्दा दे दिया. राहुल गांधी ने कहना शुरू किया - पाकिस्तान में पनामा पेपर से नवाज शरीफ की कुर्सी चली गई, पर यहां पीएम मोदी कुछ नहीं कर रहे हैं. माने रमन सिंह का इस्तीफा नहीं करवा रहे हैं.
एक बात और है. कांग्रेस और भाजपा का वोट शेयर में अंतर लगातार घट रहा है. 2013 में ये था एक फीसदी से भी कम. और फिर हर सत्ताधारी पार्टी को डराने वाली एंटी इंकम्बेंसी नाम की चिड़िया भी है ही. इसीलिए रमन सिंह जैसे-जैसे कार्यकाल पूरा होने को आ रहा था, सतनामी जैसा एक और चमत्कार होने की उम्मीद करने लगे. और ये दो चरणों में हुआ. पहले 2016 में अजीत जोगी ने कांगेस छोड़ दी. फिर मायावती ने ऐलान कर दिया कि वो कांग्रेस के साथ नहीं, जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ मिलकर लड़ेंगी.

अजीत जोगी ने मायावती से गठबंधन किया है. मायावती ने भी कहा है कि अगर पार्टी जीतती है तो मुख्यमंत्री अजीत सिंह ही बनेंगे.
कुर्सी बचाने के लिए रमन सिंह चावल वाले बाबा से मोबाइल वाले बाबा बन गए. 55 लाख महिलाओं को स्मार्टफोन बांटने का ऐलान कर दिया. इनमें सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी होगी. ऐसी ही एक बाड़ी बांस योजना की चर्चा ट्राइबल बेल्ट में काफी है. इसके तहत आदिवासी गरीब परिवारों के घरों में सब्जियों की बाड़ी और बांस के पेड़ लगवाए गए.
अंक - 6 डॉ साहब जिस बीमारी का इलाज नहीं कर पाए

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अब भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है.
लेकिन एक चीज़ जिसपर रमन सिंह बेहद औसत नतीजे ही दे पाए हैं, वो है नक्सलवाद. 2008, 2013 और 2018 के प्रचार अभियान वाले भाषण सुनिए. रमन सिंह कहते हैं कि नक्सल समस्या 5 साल में खत्म कर दूंगा. 2005 में सलवा जुडूम आया. अगुआ थे कांग्रेस नेता और 'बस्तर का शेर' नाम से मशहूर महेंद्र कर्मा. जिन्हें रमन सिंह का सोलहवां मंत्री कहा जाता था. इस कार्यक्रम के तहत पूर्व नक्सलियों और आदिवासियों को ही नक्सलियों के खिलाफ उतारा गया. दोनों तरफ से खूब खून खराबा हुआ. रेप और लूट के इल्ज़ाम भी लगे. सरकार इसके बचाव में नक्सल समस्या के कंट्रोल में आने की बात कहती. विरोधी पार्टियां और मानवाधिकार संगठन इसको मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते.
2010 के अप्रैल में दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के एक कैंप को हज़ारों नक्सलियों ने घेरा और तबाह कर दिया. 76 जवानों की जान गई. नक्सल समस्या पर पूरे देश में चर्चा छिड़ गई. कहा गया कि रमन सिंह और पी चिदंबरम (जो तब गृहमंत्री थे) कहीं तो चूक रहे हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बयान देकर कह दिया कि छत्तीसगढ़ सरकार को नक्सलियों से बात करनी चाहिए. सख्त कार्रवाई की बात करने वाले रमन सिंह को तब कहना पड़ा था कि उनके और मोदी के विचार एक ही हैं. कार्रवाई भी की जाएगी. बात भी. 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुड़ूम पर रोक लगा दी.

रमन सिंह का दावा है कि विकास के जरिए नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है. लेकिन नक्सलवाद खत्म नहीं हुआ है. जाहिर है विकास उतना नहीं हुआ है कि नक्सलवाद खत्म हो सके.
रमन सिंह का दावा है कि सरकार विकास से नक्सल समस्या को खत्म कर सकती है. लेकिन विकास बड़ी धीमी रफ्तार से उन इलाकों की ओर बढ़ा है जहां नक्सलियों ने एक वक्त अपना राज कायम कर लिया था. फिर रमन सिंह वैसा जादू भी नहीं कर पाए हैं, जैसा आंध्र ने ग्रे हाउंड फोर्स बनाकर किया था. इसी फोर्स के खौफ ने नक्सलियों को छत्तीसगढ़ के जंगलों में छिपने को मजबूर किया. रमन सिंह ने कई ऐसी चीज़ें की हैं जो रोज़ देखने को नहीं मिलती. वो डॉक्टर हुए. नेता हुए. सीएम हुए. और हुए अंगद का पांव. कुछ उनकी किस्मत रही और कुछ उनका तिलिस्म. वो रहता है कि टूटता है. छत्तीसगढ़ बताएगा. और हम बताएंगे मुख्यमंत्री की आने वाली किस्तों में ऐसी ही ढेर सारी और कहानियां.
वीडियो- कलेक्टर से सूबे के पहले आदिवासी CM तक अजीत जोगी की कहानी