साल 1949. 22-23 दिसंबर की दरमियानी रात. कहा गया कि भगवान राम स्वयं अपने जन्मस्थान पर प्रकट हुए हैं. तब से ‘रामलला’ अपने जन्मस्थान पर ‘विराजमान’ हैं. ये वही ‘रामलला विराजमान’ हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने विवादित कही जाने वाली जमीन सौंप दी और बाकी सभी पक्षों के दावे खारिज कर दिए. आज हम बात करेंगे इन्हीं रामलला विराजमान की. क्या कहानी है मूर्ति के प्रकट होने की? नई मूर्ति के आ जाने के बाद क्या होगा 74 साल पुरानी मूर्ति का?
'रामलला विराजमान': जिनके लिए कहा गया कि खुद 'प्रकट' हुए, अपना केस लड़ा और जीता भी
Ayodhya Ram Mandir: गर्भगृह में तो अब नई मूर्ति की स्थापना होगी. तो वो पुरानी मूर्ति अब कहां रहेगी, जिसकी बरसों टेंट में पूजा की गई?

23 दिसंबर 1949 की सुबह अयोध्या के ही एक संत अभय राम दास ने घोषणा की कि जन्मभूमि (जिसे उस समय विवादित भूमि कहा जा रहा था) पर रामलला ‘अवतरित’ हुए हैं. उन्होंने स्वयं ही अपनी जन्मभूमि पर कब्जा ले लिया है. ये खबर आग की तरह देशभर में फैल गई. एक तरफ हिंदुओं में आस्था उमड़ रही थी, जश्न का माहौल था. दूसरी तरफ मुसलमानों में रोष पनप रहा था. अगली सुबह मुस्लिम लोग यहां नमाज़ पढ़ने आए तो प्रशासन ने कुछ दिन की मोहलत मांगकर उन्हें वापस कर दिया.
6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद रिटायर्ड जस्टिस एमएस लिब्राहन आयोग गठित किया गया. 2009 में लिब्राहन आयोग ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस रिपोर्ट में 22-23 दिसंबर की घटना का विस्तृत ब्योरा दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना की सूचना कॉन्स्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुबे को दी. थाना इंचार्ज ने FIR में लिखा
“भगवान का फाटक खोल दो”50-60 लोगों का एक समूह परिसर का ताला तोड़कर, दीवारों और सीढ़ियों को फांदकर अंदर घुस आया और राम प्रतिमा स्थापित कर दी. साथ ही उन्होंने पीले और गेरुआ रंग में श्रीराम लिख दिया. कॉन्स्टेबल हंस राज उस समय ड्यूटी पर थे. उन्होंने इस कृत्य को रोकने की कोशिश की, लेकिन रोक न सके. PAC फोर्स वहां तैनात थी. उसे बुलाया गया लेकिन तब तक वो मस्जिद के भीतर घुस चुके थे.
उस समय प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे गोविंद वल्लभ पंत. नेहरू ने पंत को चिट्ठी लिखकर मूर्तियां हटवाने को कहा. यूपी सरकार की तरफ से जिला प्रशासन को आदेश दिया गया कि मूर्तियों को हटाया जाए. उस दौरान फैजाबाद जिले के DM थे केके नायर. उन्होंने 27 दिसंबर 1949 को प्रदेश के मुख्य सचिव को इस विषय पर एक पत्र लिखा. नायर ने कहा-
मस्जिद में मूर्तियों को लेकर यहां के लोगों का व्यापक उत्साह है और प्रशासन के कुछ लोग मिलकर उन्हें रोक नहीं सकते. मूर्तियां हटाने से दंगा हो सकता है. ऐसी जानकारी है कि पुलिस के खिलाफ हथियारों का इस्तेमाल हो सकता है. यहां हिंदू समाज के लोग नारा लगाते है - “नायर अन्याय करना छोड़ दो, नायर भगवान का फाटक खोल दो.”
नायर ने यह भी कह दिया था कि वह मूर्ति हटाने से बिल्कुल सहमत नहीं हैं और अगर सरकार ऐसा करना ही चाहती है तो पहले उन्हें वहां से हटाकर दूसरा अफ़सर भेज दे.
अयोध्या पर कई किताबें लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब 'युद्ध में अयोध्या' में लिखते हैं-
'जब नेहरू ने दोबारा मूर्तियां हटाने को कहा तो नायर ने सरकार को लिखा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए. देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई. डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) ले ली. चौथी लोकसभा के लिए वो उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे. इस इलाके में नायर हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचीं. बाद में उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना.'
इसके बाद एक-एक करके कई सिविल और क्रिमिनल मुकदमे दर्ज हुए. विवादित ढांचे को कुर्क कर दिया गया. 19 जनवरी, 1950 को मूर्तियों को हटाने पर रोक लगा दी गई. जिस पर 26 अप्रैल, 1955 को हाई कोर्ट ने मुहर लगा दी. और मूर्तियों की पूजा करने की भी इजाज़त दे दी गई.
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मुस्लिम कॉन्स्टेबल ने कहा- मूर्तियां प्रकट हुईं22 दिसंबर की रात की घटना के बाद से हिंदू पक्ष इस बात का दावा करता आया है कि मस्जिद के भीतर मूर्तियां तो ‘प्रकट’ हुई थीं. लेकिन इस दावे को एक मुस्लिम पुलिस कॉन्टेबल ने भी दोहरा दिया. इस पूरे प्रकरण पर टीवी9 हिंदी की वेबसाइट ने एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है. रिपोर्ट के मुताबिक लक्ष्मण किले घाट के पास पांच साधुओं ने सरयू में डुबकी लगाई. सरयू स्नान करने वाले एक साधु के सिर पर बांस की टोकरी थी. टोकरी में भगवान राम के बाल्यावस्था की अष्टधातु की मूर्ति थी. हाड़ कंपाने वाली सर्दी में पांचों साधु रात के अंधेरे को लालटेन की रोशनी से चीरते हुए अज्ञात स्थान की तरफ बढ़ रहे थे और भगवान राम का नाम जप रहे थे. गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजय नाथ, देवरिया के बाबा राघवदास, निर्मोही अखाड़े के बाबा अभिरामदास, दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचंद्र दास और गीताप्रेस गोरखपुर के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार शामिल थे.
उस रात विवादित परिसर पर हवलदार अब्दुल बरकत की ड्यूटी थी. उनकी ड्यूटी 12 बजे से थी लेकिन वो पहुंचे डेढ़ बजे. जब तक वो पहुंचे तब तक मस्जिद के अंदर मूर्तियों को रखा जा चुका था. देर से आने की वजह से कॉन्स्टेबल को ड्यूटी जाने का डर था. उसे ड्यूटी से लापरवाही भी छिपानी थी और नौकरी भी बचानी थी. बरकत ने FIR में बताया कि रात 12 बजे अलौकिक रोशनी हुई. रोशनी कम होने पर उसने जो देखा उसपर भरोसा नहीं हुआ. वहां भगवान की मूर्ति विराजमान हो गई थी.
‘रामलला विराजमान’ ने केस लड़ा और जीताराम मंदिर मामले में नया मोड़ तब आया जब ‘रामलला विराजमान’ खुद ही कोर्ट केस में वादी बन गए. साल 1989 में कोर्ट में याचिका दायर की गई कि रामलला विराजमान को उनकी जन्मस्थली सौंपी जाए. और यही मुकदमा मील का पत्थर साबित हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को भी खारिज कर दिया.और रामलला विराजमान को जन्मस्थली सौंप दी.
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BBC से बात करते हुए राम मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास कहते हैं-
इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील देवकी नंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान के सखा की हैसियत से मुक़दमा दायर किया कि बालक रूप में रामलला वहां पर विराजमान हैं. कोर्ट को इसका सबूत दिया गया. कोर्ट ने इन्हीं रामलला विराजमान के आधार पर फ़ैसला दिया कि यही राम जन्मभूमि है. इसी के बाद मंदिर बनना शुरू हुआ.
महंत सत्येंद्र दास 1992 से रामलला की पूजा करते आ रहे हैं. वो कहते हैं कि 6 दिसंबर, 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया उसके बाद से रामलला टेंट में थे. अब उनका मंदिर बन गया है.
उस पुरानी मूर्ति का क्या होगा?राम मंदिर में नई मूर्ति आने की चर्चा जब से शुरू हुई तब से ये सवाल उठने लगे थे कि अब उस पुरानी मूर्ति का क्या होगा, जो अब तक टेंट में रखी थी. इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी सवाल उठाए थे. महंत सत्येंद्र दास ने 19 जनवरी को न्यूज़ एजेंसी ANI से बात करते हुए बताया है कि नई मूर्ति के साथ पुरानी मूर्ति भी राम मंदिर में ही स्थान दिया जाएगा. उनकी भी वहीं पूजा की जाएगी.
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इससे पहले राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बताया था कि राम की नई मूर्ति 'अचल मूर्ति' होगी और 8-9 इंज की जो पुरानी मूर्ति है वो 'चल मूर्ति' होगी. पुरानी मूर्ति को 'उत्सव मूर्ति' भी कहा जाएगा. महंत सत्येंद्र दास ने BBC से बातचीत में कहते हैं-
रामलला विराजमान जो एक चल मूर्ति है, उसे किसी उत्सव में ले जाया जा सकेगा और उत्सव में जाकर वो वापस चले आएंगे. जैसे अयोध्या में मणि पर्वत पर एक झूला उत्सव होता है तो रामलला को वहां ले जाते हैं. अगर कुछ लोग अपना अनुष्ठान करते हैं और अगर चाहते हैं कि रामलला की प्रतिमा वहां जाए तो उस अनुष्ठान में भी रामलला विराजमान की प्रतिमा जा सकती है. वहीं उनकी पूजा-अर्चना होगी और फिर मूर्तियां वापस चली आएंगी.
राम की नई मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है. 51 इंच की मूर्ति को 18 जनवरी को मंदिर के गर्भगृह में राम लला की नई मूर्ति को स्थापित कर दिया है.
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