तारीख 2 अक्टूबर 2015. राजस्थान के अखबारों में एक खबर छपी. खबर थी कि एक आईएएस ने बचाई दो घायलों की जान. कैसे. कि दो भाई बहन स्कूटी पर कहीं जा रहे थे. सामने से आ रहे ट्रक से उनका संतुलन बिगड़ गया. दोनों सड़क पर गिर कर घायल हो गए. पास से ही एक आईएएस अधिकारी निकल रहे थे. उन्होंने भीड़ जमा देखी. गाड़ी से उतर कर उन्होंने घायलों को अपनी गाड़ी में लिया. अस्पताल लेकर गए और एडमिट करवाया.
एक IAS जिसकी गिरफ्तारी से सन्न रह गया था राजस्थान
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से अवार्ड पा चुके इस सुपर आईएएस के हीरो से विलेन बनने की कहानी

अस्पताल में उन्होंने एक आम आदमी की तरह अपनी पहचान बताए बिना घायलों को भर्ती करवाया. जिससे वो सिस्टम की कमियों को समझ सकें. लेकिन अस्पताल में मौजूद लोग उन्हें पहचान गए. ये आईएएस थे राजस्थान में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के उपनिदेशक नीरज कुमार पवन.
ये दुर्घटना की खबर थी राजस्थान के भरतपुर जिले की. उस दिन नीरज भरतपुर में एनआरएचएम की मीटिंग लेकर भरतपुर से जयपुर के लिए निकल रहे थे. लेकिन अस्पताल में मौजूद आम लोग उन्हें इतनी आसानी से कैसे पहचान गए थे? वजह थी कि नीरज दो साल पहले तक भरतपुर के कलेक्टर रहे थे. वो 2003 बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस हैं और राजस्थान के झालावाड़ के ही रहने वाले हैं. इससे पहले नीरज ने क्लीनिकल साइकोलॉजी में मास्टर्स की पढ़ाई की हुई है. नीरज के. पवन के पिता पुलिस में और मां टीचर थीं. उन्होंने पूरी पढ़ाई सरकारी स्कूलों से की थी. पहले ही बार में सिविल सर्विस का पेपर निकाल आईएएस बन गए थे.
लेकिन कलेक्टर तो आते जाते रहते हैं लेकिन फिर भी लोग नीरज को भूले क्यों नहीं थे. वजह थी उनकी कार्यशैली. उन्हें राजस्थान के सबसे बेहतरीन आईएएस अधिकारियों में से माना जाता था. उनकी कार्यशैली को आम लोग बहुत पसंद करते थे. लोगों के बीच नीरज का ऐसा क्रेज हो गया था कि नीरज का भरतपुर से ट्रांसफर होने पर बाजार बंद रख इस फैसले का विरोध किया था. जिस जिले में वो कलेक्टर रहते थे उस जिले के लोग नीरज के फैन हो जाते थे. उनके काम से आम लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता थी. सोशल मीडिया पर नीरज के. पवन फैन क्लब जैसे पेज बन जाया करते थे.

वोट डालने के लिए जागरुकता रैली निकालते नीरज.
नीरज के काम करने की शैली क्या है इसका एक दिलचस्प वाकया सुनाते हैं रामस्वरुप. रामस्वरुप पाली जिले के देसुरी तहसील के रहने वाले हैं और किसानी का काम करते हैं. यह 2011 की बात है. रामस्वरूप की पत्नी पुष्पा कई दिन से बीमार थीं. वो याद करते हैं-
"मेरी घरवाली को काफी दिन से बुखार की शिकायत थी. कुछ दिन तो गांव में रह कर दवा ली लेकिन ठीक नहीं हुआ. बाद में पता चला कि उसका मलेरिया बिगड़ गया है. लोकल डॉक्टर ने मुझे कहा कि मैं पाली के बड़े अस्पताल में ले जाकर इलाज करवाऊं. मैं यहां पाली आ तो गया लेकिन मेरे पास बहुत पैसे नहीं थे. किसी ने कहा कि सरकारी अस्पताल चले जाओ वहां दवाई के पैसे नहीं लगते. मैं अपनी बीवी को लेकर सरकारी अस्पताल चला आया.
सरकारी अस्पताल में डॉक्टर तो मिल गया लेकिन उसकी लिखी दवाईयों में से कुछ दवाईयां स्टोर में नहीं थीं. स्टोर कीपर से थोड़ी बहस भी की लेकिन दवाइयां नहीं हैं कहते हुए उसने भी पल्ला झाड़ लिया. मैं परेशान था तो किसी ने बताया कि कलेक्टर साहब ने नए मेडिकल खुलवाए हैं जहां दवा फ्री मिलती है. मैं अस्पताल से पैदल-पैदल कलेक्ट्री गया. वहां के मेडिकल स्टोर में मुझे वो दवाई मिल गईं जो अस्पताल में नहीं थी. अगर ये मेडिकल स्टोर नहीं होता तो मेरे लिए पत्नी का इलाज करवाना बहुत मुश्किल हो जाता. "

स्पेशल पुलिस टीम के साथ नीरज के. पवन.
नीरज को राजस्थान में ट्रबलशूटर ब्यूरोक्रेट की तरह जाना जाता था. 2015 में विशेष वर्ग में आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर एक बार फिर से उग्र आंदोलन पर उतर आए थे. सूबे की सत्ता पर काबिज वसुंधरा यह बात भूली नहीं थीं कि 2008 में इसी आंदोलन के चलते उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था. छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीने की तर्ज पर वसुंधरा ने आंदोलन के शुरू होते ही बातचीत की पेशकश कर दी. आंदोलन शुरू होने के सात दिन बाद गुर्जर नेता किरोड़ी लाल बैंसला एक टेबल पर बैठकर वसुंधरा राजे के साथ चाय पी रहे थे. बैंसला को बातचीत की टेबल तक लाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई नीरज के. पवन ने.
नीरज का काम करने का तरीका ही ऐसा था जिससे वो जनता के हीरो बने रहते थे. करौली में कलेक्टर रहते हुए वो एक दिन सादे कपडों मे एक गांव के स्कूल का औचक निरीक्षण करने पहुंच गए. वो भी एक स्थानीय ग्रामीण की तरह. वो स्कूल की व्यवस्थाएं देखते रहे. कुछ देर बाद स्टाफ के एक कर्मचारी ने उन्हें पहचाना. लेकिन तब तक नीरज ने स्कूल की पूरी व्यवस्था का जायजा ले लिया था. और उसी हिसाब से कार्यवाही के आदेश दे दिए थे.
नीरज ऐसे अधिकारी थे जो ना सिर्फ कलेक्टर ऑफिस में रहते थे पर गांव में रात को जाकर रात्रि चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं सुनते और उनका वहीं समाधान करते थे. चाहे वो पेंशन की समस्या हो चाहे किसी बडे़ सरकारी काम की.
जब वो स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण विभाग के मिशन निदेशक थे तो उनके बिना अपनी पहचान बताए अस्पतालों का निरीक्षण करने के किस्से आम थे. वो वहां भर्ती मरीजों से मिलते और उनसे इलाज के दौरान होने वाली समस्याओं की जानकारी लेकर उनका तुरंत समाधान करते थे. राजस्थान के झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ नीरज ने बड़ा अभियान चलाया और काफी हद तक सफलता पाई. साथ ही प्रसूताओं के लिए चलाई 'हेल्पलाईन 104' की भी सीधी मॉनीटरिंग वही करते थे. यही नीरज के काम करने का स्टाईल था. जिसकी वजह से वो जनता के चहेते बने हुए थे.
नीरज को 2009 में मनरेगा के अच्छे से क्रियान्वयन के लिए प्रधानमंत्री से पुरुस्कार मिला था. 2010 और 2011 में परिवार नियोजन के सबसे अच्छे तरीके से क्रियान्वयन के लिए मुख्यमंत्री से पुरुस्कार मिला था. इसके अलावा उनको ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिए भी केंद्र और राज्य सरकार से बहुत बार सम्मान मिला था. कृषि आयुक्त रहते हुए नीरज ने एक विशेष कोबरा टीम का गठन किया था. जो नकली खाद बीज के ऊपर कार्यवाही करती थी. इस टीम की कार्यवाही से राज्य के किसान बहुत खुश रहते थे.

बहुत सारे अवॉर्ड पा चुके थे नीरज.
नीरज को राजनीतिक रूप से भी दोनों मुख्यमंत्रियों वसुंधरा और गहलोत का करीबी माना जाता था. लोग कहते थे कि आईएएस लॉबी में सबसे अच्छा बैलेंस नीरज का था. ये जितने करीबी गहलोत के थे उतने ही करीबी वसुंधरा के थे.
कैसे बदला पूरा खेल जिससे ये सुपर आईएएस सलाखों के पीछे पहुंच गया 2015-16 में राजस्थान में भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा कसा जा रहा था. एसीबी रोज कार्यवाही कर रही थी. पिछले कुछ दिनों में तीन बड़े आईएएस अफसर भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जा चुके थे. तभी एक रोज तारीख थी 30 मई 2016. अखबारों की सुर्खियों में आज फिर राजस्थान के अफलातून आईएएस और तत्कालीन एनआरएचएम उपनिदेशक नीरज के पवन ही थे. लेकिन इस बार खबरें उनके अच्छे कामों की नहीं उनके दामन को दागदार करने वाली थीं.
राजस्थान की एंटी करप्शन यूनिट ने एक लंबी पूछताछ के बाद पदेन शासन सचिव एवं कृषि और उद्यानिकी आयुक्त नीरज के पवन को गिरफ्तार कर लिया था. उनके साथ चार और लोग भी पकड़े गए थे. मामला था कि एनआरएचएम के एक टेंडर को पास करने के लिए नीरज ने रिश्वत ली थी. यह टेंडर सात करोड़ का था. जिसको पास करने के लि़ए नीरज और कुछ अन्य अधिकारियों ने कथित रूप से डेढ़ करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी थी.

नीरज को गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में पेश करती एसीबी.
यह खबर सुनने के बाद लोग सन्न रह गये. नीरज जहां-जहां कलेक्टर रहे थे वहां के लोग कभी सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा कुछ भी कभी हो सकता है. राजनीतिक और ब्यूरोक्रैसी में चर्चा ये थी कि इतने पॉलीटिकल बैलेंस वाला आदमी फंस कैसे गया.
क्या था पूरा मामला जिसमें फंसें राजस्थान के सुपर आईएएस?
इस केस को समझने के लिए आपको पहले साथ पकड़े गए चार लोगों के बारे में जानना होगा. इन चार के नाम थे अजीत सोनी, अनिल अग्रवाल, दीपा गुप्ता और जोजी वर्गीज.
इनमें से नीरज के पवन के लिए दलाल की भूमिका निभाता था अजीत सोनी. इस कांड का सबसे बड़ा अभियुक्त भी यही था. अजीत मेपल नाम की एक इवेंट कंपनी चलाता था जो वूमन ऑफ फीचर नाम से एक अवार्ड समारोह का आयोजन भी करती थी. सोनी अपने काम के साथ-साथ रिश्वत के मामलों को अंजाम देने के लिए कंसल्टेंसी की भूमिका में रहता था.
उसको कंसल्टेंसी की भूमिका में रहने का यह 'अमूल्य' सुझाव दिया था अनिल अग्रवाल ने. अनिल अग्रवाल राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस के अधिकारी थे और आईईसी (इंफोर्मेशन, एजुकेशन एण्ड कम्युनिकेशन) में एडीशनल डायरेक्टर थे. अग्रवाल ने सोनी को सुझाव दिया कि वह ऐसे कंसल्टेंसी का काम करेगा तो उसका एनएचएम में आसानी से आ जा सकेगा और रिश्वत की दलाली का काम भी आसानी से कर सकेगा.
अगली सरगना थी एनएचएम में चीफ अकाउंट ऑफिसर दीपा गुप्ता. किसी भी टेंडर में छेड़छाड़ करना, कोई भी बिल अटका देना फिर उस बिल के लिए रिश्वत मांगना इसका काम था.
और इस मामले में गिरफ्तार आखिरी आदमी था जोजी वर्गीज जो इनके डिपार्टमेंट में स्टोर कीपर था. ये रिश्वत की राशि लेकर आने की मुख्य जिम्मेदारी निभाता था. इनमें अजीत सोनी ऐसा आदमी था जिसके इन सभी से कॉमन लिंक थे. जबकि अनिल अग्रवाल और दीपा कभी किसी कंपनी से साथ-साथ मिलते थे तो कभी अलग-अलग अनजान की तरह. जिससे वो कंपनी की अच्छे से पड़ताल कर सकें.

इस रिश्वत केस में बुरे फंसे थे सुपर आईएएस नीरज के. पवन.
कैसे खुला पूरा मामला?
नीरज के पवन 13 जनवरी, 2014 से 12 फरवरी 2016 तक नेशनल हेल्थ मिशन के एडिशनल डायरेक्टर और मेडिकल हेल्थ के संयुक्त सचिव पद पर कार्यरत रहे थे.
28 अक्टूबर 2015 को आईईसी में फ्लैक्स व अन्य सामग्री प्रिंटिंग कर सप्लाई करने वाले एक कारोबारी फर्म के मालिक ने नीरज के पवन के खिलाफ एक टेंडर को पास करने के लिए डेढ़ करोड़ की रिश्वत मांगने के लिए भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज कराई थी.
शिकायत थी कि दलाल अजीत सोनी अपनी फर्म मेपल प्रोडक्शन के जरिए विभाग में काम करवाने के ठेके लेता है.
लगभग सात महीने बाद 17 मई 2016 को एसीबी ने मामला दर्ज किया.
अगले दिन 18 मई 2016 को एसीबी ने कुल 19 जगह छापेमारी की जिसमें 18 ठिकाने जयपुर और 1 भरतपुर में था और तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया.
19 मई को नोटिस भेजकर नीरज के पवन और अनिल अग्रवाल को एसीबी ने पूछताछ के लिए बुलाया.
20 मई को नीरज एसीबी के सामने पेश हो गए और अनिल ने पेश होने के लिए सात दिन का समय मांगा.
21 मई से 29 मई तक नीरज के पवन से लगातार पूछताछ की गई.
30 मई को नीरज के. पवन और अनिल अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया गया.
इस छापेमारी के बाद एसीबी ने नीरज के घर से भारी मात्रा में शराब भी बरामद की. इसके अलावा एक होंडा सिटी कार जो कथित रूप से दलाल अजीत सोनी के किसी रिश्तेदार के नाम पर रजिस्टर्ड थी, एक स्कूटी, 4100 यूएस डॉलर, लाखों रुपये के गहने बरामद किए थे.
कहा यह भी गया कि नीरज ने दलाल के जरिए नियमित रूप से कैश ही नहीं चैक से भी रिश्वत की राशि ली थी.
नीरज की गिरफ्तारी के बाद उनकी पोस्टिंग वाली अन्य जगहों से बहुत सारे लोगों ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई. एसीबी ने नीरज और अन्य चार के खिलाफ 7,000 पन्ने की चार्जशीट दाखिल की.
आठ महीने के बाद जनवरी 2017 में नीरज के पवन को जमानत मिल गई. कोर्ट ने एसीबी से पुख्ता सबूत पेश करने और रिश्वत का पैसा रिकवर करने को कहा. जमानत मिलने के बाद नीरज के पवन ने फिर से नौकरी जॉइन कर ली है. और अभी कार्मिक विभाग में पोस्टेड हैं.
नीरज को पसंद करने वाले लोगों का कहना है कि उनको किसी साजिश के तहत फंसाया गया है. अभी मामला न्यायालय में विचाराधीन है.

अब फैसला आने तक दागदार रहेगा नीरज का दामन.
अब वो और उनके बहुत से चाहने वाले इस मामले के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. अब देखना ये है कि राजस्थान का ये हीरो आईएएस अपनी पुरानी छवि पा सकेगा या एक विलेन के रूप में याद किया जाएगा.
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