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'रायबरेली राहुल की, प्रियंका का वायनाड'- कांग्रेस का ये 'गेम-प्लान' बहुत सोचा-समझा है

Congress पार्टी ने 17 जून को दो बड़े एलान किए. Rahul Gandhi रायबरेली लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करेंगे और Priyanka Gandhi वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगी. इन दोनों घोषणाओं के पीछे कांग्रेस पार्टी की एक सोची-समझी रणनीति है.

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उत्तर प्रदेश के रायबरेली में एक कार्यक्रम के दौरान Rahul Gandhi और Priyanka Gandhi. (फाइल फोटो: PTI)

कांग्रेस पार्टी ने 17 जून को दो बड़ी घोषणाएं कीं. पहली, पार्टी के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने केरल की वायनाड लोकसभा सीट छोड़कर उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से प्रतिनिधित्व करने का एलान किया. दूसरी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के पहली बार चुनाव लड़ने की घोषणा की. पार्टी ने एलान किया कि प्रियंका गांधी वायनाड सीट से लोकसभा का उपचुनाव लड़ेंगी.

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने वायनाड और रायबरेली, दोनों सीटों से बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि पार्टी के लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा था कि आखिर राहुल गांधी कौन सी सीट चुनें. हालांकि, बाद में पार्टी ने फैसला ले ही लिया. विश्लेषक बताते हैं कि राहुल गांधी के रायबरेली सीट को चुनने और प्रियंका गांधी के वायनाड सीट से उपचुनाव लड़ने के पीछे पार्टी की सोची समझी रणनीति है.

कांग्रेस पार्टी को लंबे समय से कवर कर रहे पत्रकार आदेश रावल ने दी लल्लनटॉप के साप्ताहिक राजनीतिक कार्यक्रम ‘नेता-नगरी’ में 15 जून को बताया था कि पार्टी ने हफ्ते भर पहले ही फैसला लिया कि राहुल गांधी वायनाड सीट छोड़ेंगे और प्रियंका गांधी वहां से उपचुनाव लड़ेंगी. रावल ने बताया था,

"पहले बात चल रही थी कि किसी स्थानीय कार्यकर्ता को वायनाड सीट से चुनाव लड़ाया जाए. लेकिन फिर गांधी परिवार ने तय कि जब 2019 में राहुल गांधी अमेठी से हारे थे, तब इतने मुश्किल समय में वायनाड ने आपका साथ दिया. तो आप उस सीट को ऐसे ही नहीं छोड़ सकते. किसी ना किसी गांधी को ही वहां से चुनाव लड़ना पड़ेगा. इसीलिए गांधी परिवार ने फैसला लिया कि प्रियंका गांधी वायनाड से चुनाव लड़ेंगी. गांधी परिवार के हिस्से में जो पहले दो सीटें होती थीं, वो अब तीन हो गई हैं- अमेठी, रायरबरेली और वायनाड."

संसद में प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी पहली बार चुनाव लड़ने जा रही हैं. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि उनके पास कुशल नेतृत्व क्षमता है. वो अपनी बातों को बड़े अच्छे तरीके से आम लोगों तक पहुंचा लेती हैं. बीते लोकसभा चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वो मंगलसूत्र तक छीन लेगी तब प्रियंका गांधी ने उन्हें जवाब दिया था,

"इस देश में 55 साल तक कांग्रेस का शासन रहा. क्या इस दौरान कांग्रेस ने किसी का सोना या मंगलसूत्र छीना? मेरी मां का मंगलसूत्र इस देश के लिए कुर्बान हुआ. प्रधानमंत्री जी बताएं जब नोटबंदी के चलते मेरी बहनों को अपने मंगलसूत्र गिरवी रखने पड़े तब वो कहां थे? प्रधानमंत्री जी तब कहां हैं जब कर्ज तले दबे किसान की पत्नी को अपना मंगलसूत्र बेचना पड़ता है. प्रधानमंत्री जी ने मणिपुर की उस महिला के बारे में क्यों कुछ नहीं बोला जिसे निर्वस्त्र करके घुमाया गया. महंगाई ने आज कितनी सारी महिलाओं के मंगलसूत्र गिरवी रखवा दिए हैं."

कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने हमें बताया कि प्रियंका गांधी की संसद में एंट्री से ना केवल कांग्रेस पार्टी को धार मिलेगी, बल्कि विपक्ष को भी मजबूती मिलेगी. साथ ही पार्टी केरल विधानसभा चुनाव के लिए भी अपनी रणनीति तैयार कर रही है. केरल में पार्टी का सीधा मुकाबला CPM के नेतृत्व वाले LDF से है. पिछले विधानसभा चुनाव में हर पांच साल में केरल में सरकार बदलने का ट्रेंड टूट गया था. LDF ने अपनी सरकार दोहराई थी. ऐसे में पार्टी चाहती है कि राहुल गांधी हिंदी पट्टी के राज्यों पर फोकस करें और केरल विधानसभा चुनाव की रणनीति प्रियंका गांधी के नेतृत्व में बनाई जाए.

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हिंदी पट्टी में राहुल गांधी

इधर, राहुल गांधी के रायबरेली सीट को चुनने के राजनीतिक मायने बहुत बड़े हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ठीक 6 महीने पहले जिस कांग्रेस पार्टी को मृत समझ लिया गया था, उसने दिखाया है कि वो एक बार फिर से खड़ी हो गई है. पार्टी ने हिंदी पट्टी के राज्यों में बेहतर प्रदर्शन किया है. पार्टी की वापसी में एक प्रमुख भूमिका उत्तर प्रदेश ने निभाई है. यहां से 6 सीटें जीती हैं और उसका मत प्रतिशत भी बढ़ा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार लोकसभा में राहुल गांधी विपक्ष के नेता की भूमिका में भी नजर आ सकते हैं और पार्टी हिंदी पट्टी में उनकी ज्यादा से ज्यादा मौजूदगी सुनिश्चित करना चाहती है. इस बारे में कांग्रेस को कवर करने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने हमें बताया,

"चुनाव के बाद CSDS का एक सर्वे आया. इसमें बताया गया कि उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की लोकप्रियता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा है. इसके साथ ही इस बार कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपना प्रदर्शन बेहतर किया है. ऐसे में पार्टी के नेताओं ने यह तय किया कि हिंदी पट्टी में राहुल गांधी की मौजूदगी जरूरी है. राहुल गांधी की छवि बदली है. पार्टी इसका फायदा उठाना चाहती है. उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पार्टी ने राजस्थान और हरियाणा में भी बेहतर प्रदर्शन किया है. ऐसे में पार्टी चाहती है कि राहुल गांधी को और सक्रिय रखकर वो हिंदी पट्टी के दूसरे राज्यों में भी फिर से उठ खड़ी हो. क्योंकि अगर पार्टी को सत्ता में आना है तो उसे हिंदी पट्टी में BJP को धूल चटानी होगी."

रशीद किदवई कहते हैं कि इस बार केंद्र में गठबंधन की सरकार है. ऐसा हो सकता है कि कुछ समय बाद इस सरकार में कुछ दरारें देखने को मिलें या फिर मध्यावधि चुनाव कराने की नौबत आ जाए. ऐसे में कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के नेतृत्व में इस राजनीतिक उथल-पुथल का फायदा उठाना चाहेगी. और इस राजनीतिक उथल-पुथल का फायदा उठाने के लिए जरूरी है कि राहुल गांधी एक्टिव रहें. इसके साथ ही पार्टी 2029 के चुनाव से पहले मिले समय का अच्छा उपयोग करना चाहती है और राहुल गांधी को एक मजबूत नेता के तौर पर स्थापित करना चाहती है. किदवई बताते हैं,

"कांग्रेस पार्टी ने सोचा-समझा फैसला लिया है. वो अब एक आक्रामक रणनीति अपना रही है. पार्टी अब किसी भी तरह से बैकफुट पर नजर नहीं आना चाहती. BJP को सीधी चुनौती देने के लिए जरूरी है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने पुराने प्रदर्शनों को दोहराए. राहुल गांधी ने इस चुनाव में पार्टी के चुनाव प्रचार का नेतृत्व किया. उत्तर प्रदेश में पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ा. पार्टी इस समर्थन आधार को ना केवल बरकरार रखना चाहती है, बल्कि इसमें बढ़ोतरी भी करना चाहती है. ऐसे में उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी को आगे बढ़ाया जा रहा है. पार्टी आने वाले समय में उत्तर प्रदेश के जरिए हिंदी पट्टी के दूसरे राज्यों में भी असर डाल सकती है और खुद को एक मजबूत विकल्प के तौर पर पेश कर सकती है. अगर BJP में आंतरिक कलह बढ़ती है, तो मजबूत स्थिति में होने से कांग्रेस पार्टी को इसका फायदा भी मिल सकता है."

इस बीच सवाल ये भी है कि क्या राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश के सक्रिय में होने गठबंधन के उनके सहयोगी और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को किसी तरह की असुरक्षा हो सकती है? इसके जवाब में किदवई कहते हैं कि राजनीति में गठबंधन सहयोगियों के बीच महत्वकांक्षी होना और प्रतिस्पर्धा होना काफी आम है, लेकिन राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच इस प्रतिस्पर्धा के असुरक्षा में बदलने की आशंका बहुत कम है क्योंकि दोनों को पता है कि गठबंधन टूटने की स्थिति में दोनों का नुकसान ही होगा, दोनों को इसका अंदाजा भी है कि भले ही गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में बेहतरीन प्रदर्शन किया है लेकिन सूबे में अभी भी BJP से अकेले दम पर नहीं टकराया जा सकता है.

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