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QUAD: ऐसा ग्रुप जिसका जन्म ही चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हुआ है?

QUAD का उद्देश्य क्या है और क्वाड देशों के प्रतिनिधि क्यों मिल रहे हैं?

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बाएं से दाएं- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन , पीएम नरेंद्र मोदी, जापान के पीएम योशिहिदे सुगा और ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन. (तस्वीर: एपी)
जेन सॉकी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रेस सेक्रेटरी हैं. 10 मार्च को उन्होंने बताया कि 12 मार्च को क्वाड देशों के शीर्ष नेता वर्चुअली मुलाक़ात करेंगे. वाइट हाउस नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के एक वीडियो ट्वीट में जेन ने बताया कि बाइडन प्रशासन इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में शांति को सुरक्षित करने, साझा मूल्यों की रक्षा करने और हमारी (क्वाड देशों की) समृद्धि को आगे बढ़ाने को प्रतिबद्ध हैं.
इस वर्चुअल कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन, जापान के पीएम योशिहिदे सुगा और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन शामिल हो रहे हैं. लेकिन ये क्वाड है क्या? कब बना? क्यों बना? इसका उद्देश्य क्या है और 12 मार्च को क्वाड देशों के प्रतिनिधि क्यों मिल रहे हैं? इस सबके बारे में इस स्टोरी में विस्तार से बात करेंगे. सबसे पहले क्वाड के बारे में जान लेते हैं. जहां 4 यार मिल जाएं? क्रिसमस 2004 के अगले दिन, माने 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में जोरदार सुनामी आई. इतनी ख़तरनाक की करीब 2,30,000 लोगों की मौत हो गई और लाखों लोग घायल हो गए. श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने भारतीय राजदूत निरुपमा राव को कॉल किया और तत्कालीन मानवीय सहायता की मदद मांगी. इसके साथ ही अमेरिका में भारतीय राजदूत रोनेन सेन से अमेरिकी सरकार पूछ रही थी, कि भारत इस सुनामी के बाद चीज़ों को संभालने में किस तरह और कितनी मदद कर सकता है, क्योंकि सुनामी ने दक्षिण-पूर्व एशिया को भारी नुकसान पहुंचाया था.
Tsunami 2004
इस सुनामी में करीब 2,30,000 लोगों की मौत हो गई. (तस्वीर: एपी)


ये वो वक़्त था, जब भारत को दिखाना था कि हिंद महासागर में उसका अपर हैंड है और भारत इस पूरे क्षेत्र में किसी भी इमरजेंसी हालात से निपटने को सक्षम है. भारत ने अपना सबकुछ झोंक दिया. राजपक्षे के कॉल के 12 घंटे के भीतर भारतीय नेवी के हेलिकॉप्टर्स राहत सामग्री के साथ श्रीलंका में थे. इसके बाद दो भारतीय नौसैनिक जहाज श्रीलंका के गाले, ट्रिनकोमाली पहुंचे और 3 माले पहुंचे. आईएनएस खुखरी और आईएनएस निरूपक को हॉस्पिटल में बदल दिया गया और करीब 24 घंटे में इंडोनेशिया भेजा गया. सुनामी का सबसे बुरा प्रभाव इंडोनेशिया पर पड़ा था. द हिंदू की एक रिपोर्ट मुताबिक़, इस हालात का मुकाबला करने के लिए 32 भारतीय जहाज़ और करीब 5500 सैनिक शामिल थे.
भारत में जारी राहत ऑपरेशन के इतर. तत्कालीन विदेश सचिव श्याम शरण उन दिनों को याद करके द हिंदू से बात करते हुए बताते हैं कि भारत की क्षमता दुनिया के लिए एक आश्चर्य के रूप में सामने आई थी. उन्होंने बताया था कि अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस का उन्हें कॉल आया था और उन्होंने कहा था कि इंतज़ार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में भारत सहित इंडो-पेसिफिक क्षेत्र के उन देशों को सामने आना चाहिए, जिनकी नौसैनिक क्षमता बढ़िया है.
इसके बाद 29 दिसंबर 2004 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने घोषणा कि की भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाएंगे. एक कोर ग्रुप जिसका उद्देश्य सुनामी में पानी में फंसे लोगों को बचाने, राहत पहुंचाने, बेघर लोगों के पुनर्वास, बिजली, कनेक्टिविटी और बंदरगाहों को बहाल करने के लिए काम करेगी. मिशन खत्म हुआ तो इस गठबंधन का एक नया ढांचा, QUAD सामने आया. जिसका अर्थ है क्वाडिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग, यानी चार देशों के बीच सुरक्षा को लेकर संवाद.
George Bush
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश. (तस्वीर: एपी)


जापान के तत्कालीन पीएम शिंजो अबे ने इस बाबत जोर दिया कि भारत को साथ लेकर जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समुद्र में अच्छे और मजबूत दोस्त बन सकते हैं. 2006 में जब पीएम मनमोहन सिंह टोक्यो पहुंचे, तो मामले को लेकर क्वाड की बैठक भी हुई और चीज़ों का विस्तार होना शुरू हुआ. लेकिन इसके साथ-साथ चीन का प्रभाव भी बढ़ रहा था और चीन को लेकर कई देशों की चिंताएं भी बढ़ रही थी. 2007 मई में हुई बैठक के बाद चीजों को लेकर क्वाड देशों में समानताएं नहीं थी. सबके अपने पॉइंट्स थे और वो उन पॉइंट्स के साथ आगे बढ़ना चाहते थे. 2008 आते-आते ऑस्ट्रेलिया, चीन के दवाब में पीछे हटने लगा. अमेरिका को लगा कि चीन को नाराज़ करने से यूनाइटेड नेशंस में ईरान के खिलाफ़ प्रतिबंध लगाने और नार्थ कोरिया पर छह देशों के जारी वार्ता सहित कई बड़े रणनीतिक प्रयासों में दिक्कत आ सकती है. ऐसे में मामला चला गया ठंडे बस्ते में.
ये कहलाता है क्वाड का फेज़ 1. दिसंबर 2012 में फिर से शिंजो आगे आए सुनामी के बाद अमेरिका और भारत सहित कुछ देशों ने मिलकर सोमालिया के समुद्री लुटेरों के खिलाफ़ ऑपरेशन किए. इसका सकारात्मक असर रहा. इसके बाद इन देशों को लगा वे और मामलों में भी साझेदार हो सकते हैं.
जापानी पीएम ने 2012 में एक बार फिर से चारों देशों को साथ आने की अपील की. उन्होंने 'डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड' के कांसेप्ट पर बात की. बताया कि ऑस्ट्रेलिया, भारत, अमेरिका और जापान मिलकर समुद्री सुरक्षा को लेकर साथ काम करें. उनका जोर था कि चारों देशों हिंद महासागर से लेकर पश्चिमी प्रशांत महासागर तक समुद्र की सुरक्षा करें, लेकिन बात अबकी भी नहीं बनी.
Shinzo Abe
जापान के पूर्व पीएम शिंजो अबे. (तस्वीर: एपी)

फिर आया नवंबर 2017 फेज़ 2 की शुरुआत होती है यहां से. चारों देश फिर से आए. अबकी इन देशों का मोटिव एक था. चीन के प्रभुत्व को कम करना. चीन की विस्तारवादी नीतियों के काट के लिए सब मिले. एजेंडा था कि हिंद-प्रशांत महासागर के रूट्स पर किसी भी देश के प्रभाव को मुक्त किया जाए. ख़ासकर चीन के. सालों से चल रहे इस हां-ना, ना-हां गठबंधन का नाम QUAD ही रहा. पेइचिंग इसे नाटो का एशियन वर्शन कहता है. चीन के उप विदेश मंत्री, लुओ झाओहुई ने एक दफ़ा मीडिया से बात करते हुए क्वाड को 'चीन विरोधी फ्रंटलाइन' या "मिनी-नाटो" के रूप में बताया था. नाटो एक सैन्य गठबंधन है, जिसमें 30 यूरोपियन और नॉर्थ अमेरिकी देश शामिल हैं.
हालांकि भारत कहता रहा है कि क्वाड कोई सैन्य गठबंधन नहीं है, लेकिन एक सच यह भी है कि भारत, जापान और अमेरिका के साथ मिलकर सालों से मालाबार में नौसेना अभ्यास करती आई है.
2017 से लेकर अब तक कम से कम 8 दफ़ा क्वाड देशों की बैठक हुई है. मनीला, सिंगापोर, बैंकाक, न्यूयॉर्क आदि जगहों पर. इसमें अक्टूबर 2020 में टोक्यो में हुई बैठक को सबसे अहम माना जाता है.
Malabar Naval Exercise
भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और जापान मालाबार में हाल ही में नौसेना अभ्यास करते हुए. (तस्वीर: एपी)

अभी क्यों मिल रहे ये देश? अभी मिलने की मूल वजह है कोरोना वायरस की वैक्सीन. चारों देश कोरोना वायरस टीके की मैनुफैक्चरिंग क्षमता में बढ़ोतरी को लेकर मिल रहे हैं, जिसमें फाइनेंशियल अग्रीमेंट भी संभव है. इस मीटिंग का प्रमुख फोकस भारत पर रहने वाला है, क्योंकि भारत दुनिया में सबसे अधिक वैक्सीन बना रहा है.
न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए एक सीनियर अमेरिकी अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि विचार यह है कि हम जितनी जल्दी टीकाकरण कर सकते हैं, कर लें और इसी से कोरोनो वायरस म्यूटेशन को भी हरा सकते हैं. ऐसी क्षमता इस साल के आख़िर तक हो सकती है और हम समूह के रूप में अपनी क्षमता में बढ़ोतरी कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि भारत में बन रही वैक्सीन का इस्तेमाल दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में किया जाएगा.
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रेस सेक्रेटरी जेन सॉकी ने बताया था कि मीटिंग में कई मसलों में बात होने वाली है जिसमें कोरोना वायरस, इकॉनोमिक कारपोरेशन, जलवायु संकट आदि प्रमुख हैं. जिस बारे में बात नहीं की गई! क्वाड देश चीन से निर्भरता कम करना चाहते हैं. मौजूदा वक्त में चीन दुनिया के दुर्लभ पदार्थों का 60 फीसद उत्पादन करता है. इनका इस्तेमाल स्मार्टफोन की हाई-परफॉरमेंस बैट्रीज़ से लेकर ईवी बैट्रीज़ तक में होता है. 12 मार्च को होने वाली मुलाकात में इस बाबत भी बात की जा सकती है और कुछ ठोस निर्णय लिए जा सकते हैं. क्वाड प्लस क्या है? साउथ चाइना शी में चीन अपनी दादागिरी दिखा रहा था. चीन का करीब-करीब हर पड़ोसी देश से मनमुटाव चल रहा था. चीन कई जगह कृत्रिम आइलैंड बना रहा था. खुद के विरोध में आ रहे अंतर्राष्ट्रीय फैसलों को मानने से चीन इंकार कर रहा था. वह साउथ चाइना सी को अपनी बपौती समझ रहा था. जबकि भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के कारोबार का बहुत बड़ा हिस्सा इन समुद्री रास्तों के जरिए होता था. ऐसे में चारों देश फिर से सामने आ रहे थे, लेकिन अब तक इनका विजन बहुत साफ़ नहीं था. कई एक्सपर्ट्स अब भी क्वाड के विजन को लेकर सवाल उठाते हैं.
हाल में क्वाड प्लस की भी बात हुई और अमेरिका ने पहल कर न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से बात की. क्वाड प्लस अभी बेहद शुरुआती चरण में ही है. क्वाड में भारत के होने से रूस नाराज़? पब्लिकली तो आजतक रूस ने क्वाड में भारत के होने को लेकर कुछ नहीं कहा है, लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भारत का अमेरिका के पास जाने का मतलब रूस से दूर जाना है. रूस और चीन के आपस में बेहतर संबंध हैं. ऐसे में भारत को चीन को टारगेट करना और अमेरिका के साथ होना, रूस को कहीं न कहीं ज़रूर खटकता है. रूस का एक डर यह भी है कि भविष्य में यह गठबंधन रूस के खिलाफ़ भी हो सकता है. रूस और अमेरिका के बीच का झगड़ा जगजाहिर है, ऐसे में रूस को लगता है कि क्वाड में शामिल होकर भारत भी रूसी विरोधी खेमे में जा रहा.
भारत और रूस के बीच सालों से सालाना सम्मलेन होता रहा है. लेकिन 2020 में नहीं हुआ. मीडिया के एक सेक्शन में रिपोर्ट्स आईं कि रूस क्वाड गठबंधन को लेकर परेशान और चिंतित है और इसी कारण से अबकी सालाना सम्मेलन नहीं हुआ है.
भारत में रूसी राजदूत हैं निकोले कुदाशेव. इस मामले पर उनका जवाब आया था. उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि यह वास्तविकता से कोसों दूर है. भारत और रूस के संबंध विशेष हैं. कोरोना वायरस महामारी के बावजूद दोनों देशों के बीच की स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप बेहतर कर रही है. क्वाड की आलोचना? जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट्स क्वाड को लेकर दो धड़े में बंटे हुए हैं. एक धड़ा कहता है कि क्वाड कोई जॉइंट स्टेटमेंट नहीं देता, मिलिट्री अभ्यास नहीं करता. क्वाड उद्देशहीन है. दूसरा धड़ा मानता है कि यह NATO का एशियन वर्जन है. यह चीन को परेशान कर सकता है. ये धड़ा यह भी मानता है कि ये क्वाड वाले भरोसेमंद साथी नहीं हैं.
यह सच है कि जियोपॉलिटिक्स, देशों की विदेश नीति और कूटनीति बड़ी दीर्घकालिक चीजें हैं. ऐसे में क्वाड का भविष्य क्या होगा, यह दूर की कौड़ी है. लेकिन हाल के सालों में क्वाड देश साथ में बढ़ रहे हैं, यह एक सच्चाई है.