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कांग्रेस का ये नेता देश के सबसे अमीर स्कूल में पढ़ने वाला सबसे गरीब स्टूडेंट था

पुजारी गैर-हिंदू लड़की से शादी कराने के बदले व्हिस्की मांग रहा था, तो इन्होंने मंदिर में शादी नहीं की.

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मणि शंकर अय्यर

ये 1978 का साल था. भारत का एक 37 साल का डिप्लोमैट इस्लामाबाद के हवाई अड्डे पर उतरा. यहां उतरते ही उसने अपने कॉलेज के दोस्त खुर्शीद महमूद कसूरी को फोन लगाया. खुर्शीद ने उसे सलाह दी कि वो इस्लामाबाद से सीधा कराची जाने के बजाए लाहौर होते हुए कराची जाए. वो डिप्लोमैट एक शर्त पर खुर्शीद की सलाह मानने को तैयार हो गया.

जैसे ही यह डिप्लोमैट लाहौर के हवाई अड्डे से बाहर निकाला, अपने वायदे के मुताबिक खुर्शीद गाड़ी लेकर बाहर खड़े हुए थे. रिंग रोड से कैनाल बैंक रोड होते हुए जैसे ही उनकी गाड़ी निस्बत रोड की तरफ घूमी, उस डिप्लोमैट ने अपने शरीर में अजीब सी झुरझुरी महसूस की. गाड़ी आखिरकार एक ऐसे चौराहे पर रुकी, जहां निस्बत रोड और मैकलॉयड रोड एक-दूसरे को काटती थीं. दोनों लोग गाड़ी से उतरे और उस इमारत की तरफ बढ़ चले, जिसकी वजह से इस चौराहे का नाम लक्ष्मी चौक पड़ा था.


खुर्शीद महमूद कसूरी के साथ मणिशंकर अय्यर
खुर्शीद महमूद कसूरी के साथ मणिशंकर अय्यर

'लक्ष्मी मेंशन'. पिछली बार जब ये डिप्लोमैट यहां से निकला था, तो इसकी उम्र महज़ 6 साल थी. उसने कांपते हाथों से 44 लक्ष्मी मेंशन का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोलने वाले शख्स ने अपना तआर्रुफ डॉ. मालिक के तौर पर करवाया. बाहर खड़े डिप्लोमैट ने उससे सवाल किया, "क्या अपने कभी वैद्यनाथ शंकर अय्यर का नाम सुना है?" डॉ. मालिक ने अपनी गर्दन जिस अंदाज में हिलाई, उसे 'नहीं' के तौर पर लिया गया. इसके बाद उस डिप्लोमैट ने खुद का परिचय देते हुए कहा,


"मुल्क तकसीम होने से पहले 44 लक्ष्मी मेंशन वैद्यनाथ शंकर अय्यर का पता हुआ करता था. वो लाला लाजपत राय की 'लक्ष्मी इंश्यॉरेंस कंपनी' में सीए हुआ करते था. मेरा नाम मणि शंकर अय्यर है. मैं वैद्यनाथ शंकर अय्यर का बेटा हूं. मेरा जन्म इसी घर में हुआ है."

10 अप्रैल 1941 के रोज लाहौर के लक्ष्मी मेंशन में पैदा हुए मणि शंकर अय्यर की ज़िंदगी कम उतार-चढ़ाव भरी नहीं रही. 1947 में देश के बंटवारे के वक्त उनका परिवार दूसरी बार विस्थापित हुआ. पहले विस्थापन की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. उनके पिता वैद्यनाथ शंकर अय्यर तमिलनाडु के तंजोर के रहने वाले थे.

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1916 में तमिलनाडु में बनी जस्टिस पार्टी अपने शुरुआती दौर में सामंतों, बड़े किसानों और व्यापारियों की गोलबंदी हुआ करती थी. जस्टिस पार्टी के टी.एम. नायर और रामास्वामी पेरियार ने तमिलनाडु में 'एंटी ब्राह्मण मूवमेंट' की शुरुआत की. इस आंदोलन का मुख्य लक्ष्य नौकरियों में ब्राह्मणों का एकाधिकार समाप्त करना था. चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई कर चुके वैद्यनाथ उन नौजवानों में से थे, जो इस आंदोलन के चलते नौकरी खोजने में असफल रहे थे. ऐसे हालात में गुस्से से भरे हुए वैद्यनाथ तंजोर के रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ गए. यहां सामने खड़ी पहली गाड़ी पकड़ ली. इस गाड़ी का आखिरी स्टेशन था लाहौर.

वैद्यनाथ लाहौर पहुंच तो गए, लेकिन यहां न तो वो किसी को जानते थे और न ही उन्हें कायदे से हिंदी बोलना आता था. उन्हें किसी से सदानंद अयंगार के बारे पता लगा. अयंगार लक्ष्मी इंश्यॉरेंस कंपनी के मैनेजर थे और तंजोर के रहने वाले थे. अयंगर ने इस गाढ़े वक़्त में अय्यर का साथ दिया और उन्हें नौकरी पर रख लिया.

आज़ादी अय्यर परिवार के लिए किसी त्रासदी की तरह आई. दशकों की मेहनत के बाद वैद्यनाथ लाहौर में खुद को जमाने में कामयाब रहे थे. अचानक से उन्हें अपना सबकुछ छोड़कर भारत आना पड़ा. वो दिल्ली आकर अपने लिए नया काम देख ही रहे थे कि 1953 में विमान हादसे में वैद्यनाथ की मौत हो गई. एक बीमा पॉलिसी ने अय्यर परिवार को पूरी तरह बिखरने से बचा लिया. वैद्यनाथ ने अपने नाम पर लंदन की 'लंकाशायर इंश्यॉरेंस कंपनी' से तीन लाख का बीमा कराया था. उनके जाने के बाद बीमा की यह रकम उनके परिवार को मिली, जिससे परिवार और बच्चों की पढ़ाई का खर्च चलता रहा.


लंकाशायर इंश्यॉरेंस कंपनी
लंकाशायर इंश्यॉरेंस कंपनी

मणि शंकर अय्यर की मां भाग्यलक्ष्मी अपने पति की मौत के बाद दिल्ली से देहरादून शिफ्ट हो गईं. उस समय मणि शंकर और उनके भाई स्वामीनाथन फेमस दून स्कूल में पढ़ा करते थे. अपनी परिस्थिति का हवाला देने हुए भाग्यलक्ष्मी ने स्कूल से फीस में कटौती की मांग की. भाग्यलक्ष्मी का तर्क था कि उनके देहरादून आने के बाद उनके बच्चे उन्हीं के साथ रहेंगे, ऐसे में उनसे हॉस्टल की फीस नहीं ली जानी चाहिए. स्कूल इसके लिए तैयार नहीं हुआ. इसका आखरी रास्ता यह निकाला गया कि भाग्यलक्ष्मी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दें और इसके बदले उनके बच्चों की फीस का एक हिस्सा माफ़ कर दिया जाएगा.

दून स्कूल का अपना चरित्र है. देशभर के रईसजादे इस स्कूल में पढ़ने आते हैं. मणि शंकर रातों-रात स्कूल के सबसे गरीब छात्र बन गए थे. वो अपने इस अनुभव के बारे में बताते हैं,


"मैं देश के सबसे रईस स्कूल का सबसे गरीब छात्र था. इस बात ने मेरे दिमाग पर गहरा असर डाला. शायद यही वजह थी कि मैं धीरे-धीरे कम्युनिस्ट होता चला गया."

दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद मणि शंकर अय्यर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध सेंट स्टीफन कॉलेज आ गए. यहां उन्होंने इकॉनमिक्स में बी.ए. किया. आगे की पढ़ाई के लिए वो कैंब्रिज के ट्रिनिटी हॉल चले गए. यहां पढ़ाई के दौरान वो पहली बार मार्क्सवादी छात्र आंदोलन के संपर्क में आए. उन्होंने यहां से छात्रसंघ के अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए. इस चुनाव के प्रचार के दौरान राजीव गांधी ने उनकी काफी मदद की. राजीव दून स्कूल से उनके जूनियर थे. दोनों एक-दूसरे को जानते थे. यह दोस्ती बाद में राजीव की मौत तक जस की तस बनी रही.


राजीव गांधी के साथ मणि शंकर अय्यर
राजीव गांधी के साथ मणि शंकर अय्यर

भारतीय विदेश सेवा में मणि शंकर अय्यर

1905 में मैडम बीकाजी कम के साथ मिलकर श्यामजी कृष्ण वर्मा ने नॉर्थ लंदन के हाईगेट के पास भारतीय छात्रों के लिए एक छात्रावास खोला था. इसे नाम दिया गया 'इंडिया हाउस'. आजादी से पहले यह जगह भारत के समाजवादी धारा के नेताओं और छात्रों का गढ़ हुआ करती थी.

30 अक्टूबर 1962. भारत और चीन का युद्ध जोरों पर था. अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाला तवांग भारत के हाथ से जाता रहा. रेडियो पर पंडित नेहरू ने बड़े ही बुझे हुए शब्दों से इस बाबत जानकारी दी थी. ठीक इसी दिन मणि शंकर अय्यर लंदन के इंडिया हाउस में भारतीय सिविल सर्विसेज़ का एग्जाम दे रहे थे. थोड़े दिन बाद एग्जाम का नतीजा आया और वो मेरिट में सातवें नंबर पर थे. अब उन्हें अपनी नियुक्ति का इंतजार था.

नतीजा आने के करीब तीन महीने बाद उनके पास UPSC की तरफ से एक खत आया. खत में लिखा हुआ था कि किन्हीं कारणों की वजह से उनका चयन निरस्त किया जाता है. परेशान मणि शंकर ने पंडित नेहरू को इस बारे में जानकारी दी. नेहरू ने मणि शंकर की सिफारिश करते हुए एक खत लिखा, जिसमें लिखा हुआ था, "मैंने मणि शंकर के बारे में अच्छी रिपोर्ट्स सुनी हैं. उन्हें सेवा में ले लिया जाना चाहिए."
इस तरह मणि शंकर अय्यर भारतीय विदेश सेवा में बहाल हुए.


अय्यर
अय्यर

14 साल का इंतेज़ार

ये साल 1959 का नवंबर था. 16 साल की सुनीत वीर सिंह एक इंटर कॉलेज डेक्लमेशन कॉन्टेस्ट में लेडी इरविन कॉलेज का प्रतिनिधित्व कर रही थीं. इसी प्रतियोगिता के दौरान 18 साल के मणि शंकर अय्यर ने उन्हें पहली बार देखा. इसके बाद वो पढ़ाई के लिए कैंब्रिज चले गए. 1963 में जब वो पढ़ाई खत्म करके भारत लौटे, तब उनकी एक छोटी सी मुलाकात सुनीत के साथ हुई. इसके बाद दोनों के बीच कोई संपर्क नहीं रहा.

सुनीत मणि शंकर की जिंदगी में किसी पहेलीनुमा रास्ते से आईं. मणि के सबसे छोटे भाई मुकुंद आल इंडिया रेडियो में काम किया करते थे. उनकी मदद से सुनीत आल इंडिया रेडियो में नौकरी पा गईं. यहां उनकी दोस्ती गीतांजलि नाम की एक लड़की से हुई. गीतांजलि और मणि के दूसरे भाई स्वामीनाथन एक-दूसरे से प्यार करते थे. उनकी शादी के दौरान सुनीत और मणि की फिर से मुलाकात हुई. इसके बाद दोनों एक-दूसरे से मिलने-जुलने लगे. आखिरकार 14 जनवरी 1973 के रोज़ दोनों ने शादी कर ली.


पत्नी सुनीत के साथ मणि शंकर
पत्नी सुनीत के साथ मणि शंकर

मणि अपनी शादी का किस्सा सुनाते हैं,


"सुनीत एक सिख परिवार से आती हैं और मैं तमिल ब्राह्मण था. दोनों परिवारों के बीच इस बात को लेकर काफी तनाव रहा. मेरी मां इस बात को लेकर जितना बखेड़ा खड़ा कर सकती थीं, उन्होंने किया. आखिरकार हमने तय किया कि हम मंदिर में जाकर शादी कर लेंगे.

बाबा खड्ग सिंह मार्ग पर मेरे पिता ने किसी दौर में एक छोटा सा मंदिर बनवाया था. मैं सुनीत को लेकर उस मंदिर में गया. वहां के पुजारी ने मुझसे पुछा कि लड़की ब्राह्मण ही है न. मैंने उससे कहा कि लड़की ब्राह्मण क्या, हिंदू भी नहीं है. इसके बाद उसने शादी करवाने से मना कर दिया. काफी हुज्जत के बाद उसने कहा कि अगर मैं उसे व्हिस्की की एक बोतल लाकर दे दूं, तो वो हमारी शादी करवा देगा. ये बात सुनकर मुझे भयंकर गुस्सा आ गया. मैंने तय किया कि मैं हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक शादी ही नहीं करूंगा. इसके बाद सिविल मैरिज ऐक्ट के तहत मैंने और सुनीत ने शादी कर ली. एक-दूसरे से पहली बार मिलने के 14 साल बाद हम आखिरकार पति-पत्नी थे."


पत्नी के साथ मणि शंकर अय्यर
पत्नी के साथ मणि शंकर अय्यर

प्रधानमंत्री के बगलगीर

मणि 1963 में भारतीय विदेश सेवा में ले लिए गए. इसके बाद उनकी पोस्टिंग कई देशों में रही. 1978 से 1982 के बीच वो पकिस्तान में भारतीय दूतावास में काम करते रहे. 1985 में राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने, तो मणि को भारत बुला लिया गया. उन्हें सूचना विभाग में जॉइंट सेक्रेटरी का जिम्मा सौंपा गया. वो चार साल तक इस पद पर रहे. खुद मणि के शब्दों में, इस दौरान उन्होंने राजीव के लिए तकरीबन 1000 भाषण लिखे.

राजीव गांधी मणि शंकर अय्यर के राजनीति में आने के पक्ष में नहीं थे. एक टीवी इंटरव्यू में मणि याद करते हैं,


"राजीव को मेरा राजनीति में आना पसंद नहीं था. उन्होंने मुझे इससे रोकने का प्रयास भी किया. राजीव मुझसे कहा करते थे कि मैं इस सिस्टम के लिए फिट नहीं हूं. आखिरकार मेरे ज़ोर देने पर वो इस बात के लिए राजी हो गए."

राजीव गांधी के साथ मणि शंकर अय्यर
राजीव गांधी के साथ मणि शंकर अय्यर

1991 चुनाव और एक दोस्त का जाना

1989 में मणि ने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और कांग्रेस जॉइन कर ली. 1991 के चुनाव में तमिलनाडु की मयिलादुतुरई लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. मई के तीसरे सप्ताह में राजीव गांधी दक्षिण भारत में चुनाव प्रचार रहे थे. तय कार्यक्रम के मुताबिक उन्हें 22 मई को मयिलादुतुरई में जनसभा को संबोधित करना था.

21 मई को देर रात मणि शंकर अय्यर अपने जनसंपर्क अभियान निपटाकर मयिलादुतुरई लौटे थे. वो अगले दिन की सभा की तैयारी में लगे हुए थे. राजीव गांधी का हेलीकॉप्टर उतरने के लिए हेलिपैड बनाया जा चुका था. शामियाने ताने जा रहे थे. माइक और स्पीकर चेक किए जा रहे थे. अपने दफ्तर में बैठे मणि शंकर सभी तैयारियों का जायज़ा ले ही रहे थे कि एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने उनके कान में फुसफुसाकर कुछ कहा. उसकी बात सुनते ही मणि शंकर का चेहरा उतर गया. एक टीवी इंटरव्यू में मणि याद करते हैं,


"आधी रात का समय था. मैं अपने संसदीय कार्यालय में बैठा हुआ दिन के आखरी काम निपटा रहा था. तभी एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने आकर मुझे कहा, "राजीव गांधी की श्रीपेरम्बदूर में हत्या कर दी गई है. उसकी बात सुनकर मैं अवाक रह गया. मुझे उसकी बात पर भरोसा ही नहीं हुआ."

राजीव के साथ मणि शंकर अय्यर
राजीव के साथ मणि शंकर अय्यर

2008-09 में खेलमंत्री रहने के दौरान उन्होंने मयिलादुतुरई के उस मैदान पर जहां राजीव गांधी की सभा होनी थी, एक भव्य स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनवाकर उनकी याद को स्थाई रूप दे दिया. राजीव चले गए थे, लेकिन चुनाव बाकी था. DMK के कलियानम कुट्टालम पी. के खिलाफ मणि शंकर 1,61,937 के बड़े मार्जिन से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.

यहां से शुरू हुआ उनका राजनीतिक करियर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा. वो 1991 और 1999 का चुनाव जीत गए, लेकिन 1996, 1998, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. वो यूपीए-1 के दौरान केंद्रीय सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर भी रहे. 2004 से 2006 के बीच वो पंचायतीराज मंत्री रहे. 2006 से 2008 के बीच पेट्रोलियम मंत्रालय उनके पास रहा. 2008 से 2009 के बीच वो खेलमंत्री रहे. यूपीए-2 के दौरान उन्हें नॉर्थ-ईस्ट डेवलपमेंट मिनिस्ट्री सौंपी गई. यूपीए-2 के दौरान वो कांग्रेस के भीतर तेजी से साइड लाइन किए जाने लगे.

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लुटियंस दिल्ली की जूतम-पैजार

यह साल 2000 की बात है. पूर्व प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल के भाई और प्रसिद्ध चित्रकार सतीश गुजराल ने एक पार्टी रखी. मणि शंकर अय्यर और अमर सिंह भी इसी पार्टी का हिस्सा थे. फिर इस पार्टी में कुछ ऐसा हुआ कि बाद के दौर में इस पार्टी के किस्से बड़े चटखारे ले-लेकर सुनाए जाने लगे. हालांकि, मणि शंकर अय्यर की जानिब से इस मामले पर कोई बयान मौजूद नहीं है. जो किस्सा हम आपको सुनाने जा रहे हैं, वो महज़ अमर सिंह के हिस्से की कहानी है. जैसा कि अमर सिंह मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहते हुए पाए गए,


"गुजराल साहब के निवास पर एक भोज था. मद्यपान करके, नशे में चूर मदमस्त आधे घंटे तक वो ऐसी बातें कर रहे थे कि मेरी और उनकी ऐतिहासिक झड़प हो गई. इस झड़प ने पूरे राष्ट्र में प्रसिद्धि पाई. मणि शंकर अय्यर जब संसद के प्रांगण में किसी को बेइज्जत करने के लिए खड़े होते हैं, तो बीजेपी के सदस्य कहते हैं, "मणि बैठ जा, नहीं तो अमर सिंह आ जाएगा."

सपा के मुलायम काल में महासचिव रहे अमर सिंह
सपा के मुलायम काल में महासचिव रहे अमर सिंह

आखिर उस पार्टी में हुआ क्या था? बकौल अमर सिंह, पार्टी में पर्याप्त शराब पीने के बाद मणि शंकर अय्यर उनके पास आए और अनर्गल बातें करने लगे. सबसे पहले उन्होंने अमर सिंह पर आरोप लगाया कि वो नस्लवादी हैं. उनकी वजह से सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया, क्योंकि वो विदेशी मूल की हैं. मणि शंकर ने उन्हें उद्योगपतियों का दलाल और अंबानी का कुत्ता तक कहा. इसके बाद दोनों में बहस चालू हो गई. इस बहस के दौरान उन्होंने अमर सिंह को ताना देते हुए कहा कि वो किस किस्म के ठाकुर हैं.

अमर सिंह का दावा है कि मणि शंकर के इतना अनाप-शनाप बोलने के बावजूद वो उनके उकसावे में नहीं आए. उन्होंने मणि को जवाब में बस इतना कहा कि ये तुम नहीं, तुम्हारी शराब बोल रही है. इसके बावजूद मणि शंकर रुके नहीं. अमर सिंह को नीचा दिखाने के चक्कर में वो एक जगह पर भाषा की मर्यादा को लांघ गए. उन्होंने बड़ी हल्की भाषा में कहा कि मुलायम सिंह बिल्कुल मेरे जैसे दिखते हैं. शायद इसकी वजह ये हो कि मेरे पिता किसी दौर में यूपी गए हों. तुम मुलायम सिंह की मां से इस बारे में क्यों नहीं पूछते?"

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अमर सिंह सत्ता प्रतिष्ठानों में जो कुछ भी रहे हों, लेकिन यह बात बिलाशक कही जा सकती है कि मुलयम सिंह के हनुमान हुआ करते थे. इस बार मणि ने उनके साथ-साथ उनके आका के अहम को भी ठेस पहुंचाई थी. अमर सिंह के लिए ये असहनीय था. उन्होंने मणि को ज़मीन पर गिरा दिया. लुटियंस दिल्ली की एक ऐसी पार्टी, जहां सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े तमाम लोग मौजूद थे, ये दोनों लोग सड़कछाप शोहदों की तरह एक दूसरे से हाथापाई में उलझे हुए थे.

सेल्फ गोल

मणि शंकर अय्यर अपने आप को फंडामेंटलिस्ट सेक्युलर कहते हैं. वो भारत और पाकिस्तान की दोस्ती के गाने गाते हैं. अल्पसंख्यकों के पक्ष में स्टैंड लेने वाले बेबाक नेता हैं. इस वजह उनकी संघ परिवार और नरेंद्र मोदी से अदावत होना लाज़िमी है. दो अलग-अलग चुनावों से पहले उनके दो अलग-अलग बयान उनकी ही पार्टी के लिए सेल्फ गोल साबित हुए हैं. पहला मौका 2014 का है.

17 जनवरी 2014. लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान जोरों पर था. चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं को गियर में डालने के किए ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की बैठक चल रही थी. इस बीच मणि शंकर अय्यर मीडिया से मुखातिब हुए. इस दौरान जोश से लबरेज अय्यर ने कहा,


"मैं आपसे वायदा करता हूं कि 21वीं सदी में मोदी इस देश का प्रधामंत्री नहीं बन सकता. अगर उन्हें चाय ही बेचनी है, तो उनके लिए जगह हम खोज देंगे."

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नरेंद्र मोदी पूरे चुनाव अभियान में अपने अंबल बैकग्राउंड की दुहाई दे रहे थे. वो कहते आ रहे थे कि केंद्र में ऐसे लोग बैठे हुए हैं, जिनका पूरी ज़िंदगी में गरीबी से कभी साबका नहीं पड़ा, जबकि उन्होंने गरीबी भुगती है. मणि के बयान ने मोदी को कांग्रेस पर तीखा हमला बोलने का मौका दे दिया. मोदी ने इसे जमकर भुनाया. हमला बढ़ते देख कांग्रेस ने भी मणि के बयान से पल्ला झाड़ लिया.

दूसरा वाकया ज़्यादा पुराना नहीं है. गुजरात चुनाव अपने चरम पर था. पहले दौर के प्रचार का आखिरी दिन था. इस बीच मणि शंकर अय्यर का एक बयान फिर से मीडिया की सुर्ख़ियों में था. एक सवाल के जवाब में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच और असभ्य कह दिया था. तमाम न्यूज़ चैनल पर उनकी यह बाइट बीप लगाकर चलाई गई. नरेंद्र मोदी ने मणि के बयान को हाथों-हाथ लिया. सूरत की रैली में मणि के बयान का हवाला देते हुए उन्होंने इसे गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया. जहां पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस बीजेपी पर हमलावर दिख रही थी, यही वो टर्निंग पॉइंट था, जहां से बीजेपी को पूरे मुकाबले में लीड मिलना शुरू हुई. यह मणि का दूसरा बड़ा सेल्फ गोल था.


नरेंद्र मोदी और मणि शंकर अय्यर
नरेंद्र मोदी और मणि शंकर अय्यर

इतना सब होने के बावजूद मणि शंकर अय्यर की छवि एक ज़हीन आदमी की है. Confessions of a Secular Fundamentalist, Pakistan Papers और Remembering Rajiv जैसी कई किताबों के वो लेखक हैं. उनकी लिखी गईं कुल किताबों का 75 फीसदी हिस्सा राजीव गांधी को समर्पित है. फिलहाल वो उस कांग्रेस से निलंबित हैं, जिसे राजीव के बेटे चला रहे हैं. उनके खुद के शब्दों में राजीव गांधी उनकी सबसे बड़ी सियासी पूंजी हैं. राजीव के शब्दों में ही वो खुद का मूल्यांकन करने हुए कहते हैं,

"राजीव कहा करते थे कि यह सिस्टम मुझे नहीं अपनाएगा. सियासत में लगभग तीन दशक बिताने के बाद मुझे लगता हैं कि इस सिस्टम ने न तो मुझे पूरी तरह से स्वीकार किया और न ही पूरी तरह से रिजेक्ट किया."

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