साध्वी निरंजन ज्योति को क्यों दिया गया महामंडलेश्वर का पद?

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने साध्वी निरंजन ज्योति को महामंडलेश्वर बनाया है.
निरंजनी अखाड़े के महंत और अखिला भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी के मुताबिक साध्वी निरंजन ज्योति साध्वी पहले हैं और केंद्रीय मंत्री बाद में. साध्वी निरंजन ज्योति निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर परमानंद गिरी की शिष्या हैं. इसलिए उन्हें निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर बालकानंद गिरी की मौजूदगी में महामंडलेश्वर की पदवी दी गई है. इस पदवी को हासिल करने के साथ ही साध्वी निरंजन ज्योति निरंजनी अखाड़े की 16वीं महिला महामंडलेश्वर बन गईं हैं. निरंजनी अखाड़े में महिला महामंडलेश्वर बनने के लिए साध्वी निरंजन ज्योति ने आवेदन किया था. उनके अलावा और भी कई आवेदन आए थे. 13 अखाड़ों ने योग्यता के आधार पर केंद्रीय मंत्री को महामंडलेश्वर बनाने का फैसला लिया. संतोषी गिरि, संतोषानंद सरस्वती, मां अमृतामयी, योग शक्ति समेत कुल 15 महिलाएं निरंजनी अखाड़े से महामंडलेश्वर बन चुकी हैं.
कौन हैं साध्वी निरंजन ज्योति?

साध्वी निरंजन ज्योति केंद्र में खाद्य और प्रसंस्करण राज्य मंत्री हैं.
साध्वी निरंजन ज्योति केंद्र में खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री हैं. वो फतेहपुर से बीजेपी की सांसद हैं और उत्तर प्रदेश में कश्यप के साथ ही निषाद समुदाय की बड़ी नेता हैं. संतोष गंगवार और उमा भारती के बाद साध्वी निरंजन ज्योति तीसरी ऐसी नेता हैं, जो पिछड़े वर्ग से आती हैं और उत्तर प्रदेश में भगवा ब्रिगेड का बड़ा चेहरा हैं. बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के मलिहाताल की रहने वाली साध्वी निरंजन ज्योति ने 14 साल की उम्र में संन्यास लिया था. उस वक्त उन्हें स्वामी अच्युतानंदजी महाराज ने संन्यास की दीक्षा ली थी. स्वामीजी की मौत के बाद साध्वी निरंजन ज्योति स्वामी परमानंद गिरि की शिष्या बन गईं. 12वीं की पढ़ाई करने के बाद निरंजन ज्योति 1987 में विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में आईं. ये दौर राम मंदिर निर्माण का था. साध्वी निरंजन ज्योति भी मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़ गईं और कथावाचन का काम शुरू किया. इस दौरान साध्वी संघ की ओर से चलाए जा रहे आदिवासियों की आध्यात्मिक और भौतिक शिक्षा से जुड़ गई और श्रीहरि सत्संग समिति की संरक्षिका के तौर पर पूरा भारत घूमा.

विश्व हिंदू परिषद से शुरुआत करके साध्वी निरंजन ज्योति ने पहला चुनाव 2002 में बीजेपी के टिकट पर लड़ा और हार गईं.
इसके अलावा साध्वी को विश्व हिंदू परिषद की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी उत्तर प्रदेश की संरक्षिका बना दिया गया. साध्वी शक्ति परिषद की केन्द्रीय पदाधिकारी के साथ ही विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल के सदस्य के रूप में भी रहीं थीं. इस संगठनों से जुड़ाव के बाद साध्वी का स्वाभाविक जुड़ाव बीजेपी के साथ हो गया. 2002 में जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो निरंजन ज्योति हमीरपुर विधानसभा सीट से बीजेपी की प्रत्याशी बनीं. हार गईं. 2007 में भी चुनाव हारीं और उन्हें जीत नसीब हुई 2012 में. तब जब समाजवादी पार्टी की लहर थी. जीत का फायदा ये हुआ कि उन्हें यूपी बीजेपी का उपाध्यक्ष बना दिया गया. 2014 में जब मोदी लहर चली, तो साध्वी निरंजन ज्योति को फतेहपुर से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया गया. साध्वी जीतीं और फिर वो केंद्र में मंत्री बन गईं. और अब उन्हें केंद्र में मंत्री रहते हुए निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया गया है.
साध्वी निरंजन ज्योति को निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया गया है. तो अब बात करते हैं अखाड़ों और उनके इतिहास की.13 अखाड़ों के जिम्मे है हिंदू धर्म

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कुल 13 अखाड़ों को मंजूरी दी है.
अखाड़ा. इसका सीधा सा मतलब है, एक ऐसी जगह जहां पहलवानी का शौक रखने वाले लोग दांव-पेच सीखते हैं. अखाड़े में बदन पर मिट्टी लपेटकर ताकत आजमाते हैं और दुश्मनों को पटखनी देने की नई-नई तकनीक ईजाद करते हैं. ये अखाड़े पहलवानी के काम आते हैं. बाद में कुछ ऐसे अखाड़े सामने आए, जिनमें पहलवानी के बजाय धर्म के दांव-पेच आजमाए जाने लगे. इनकी शुरुआत आदि गुरु कहे जाने वाले शंकराचार्य ने की थी. देश के चार कोनों उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारिका पीठ की स्थापना कर शंकराचार्य ने धर्म को स्थापित करने की कोशिश की. इसी दौरान उन्हें लगा कि जब समाज में धर्म की विरोधी शक्तियां सिर उठा रही हैं, तो सिर्फ आध्यात्मिक शक्ति के जरिए ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है. शंकराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु कसरत करके शरीर को सुदृढ़ बनाएं और कुछ हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें. इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किए गए, जहां कसरत के साथ ही हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा. ऐसे ही मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा. शंकराचार्य ने ये भी सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह अखाड़ों का जन्म हुआ. फिलहाल देश में कुल 13 अखाड़े हैं.
कुंभ और महाकुंभ के आयोजन में है खास हिस्सेदारी

ये सभी 13 अखाड़े हिंदू धर्म से जुड़े रीति-रिवाजों और त्योहारों का आयोजन करते रहते हैं. कुंभ जिसे अब महाकुंभ कहा जा रहा है और अर्धकुंभ जिसे अब कुंभ कहा जा रहा है. इनके आयोजन में इन अखाड़ों की खास भूमिका होती है. महाकुंभ देश में चार जगहों पर लगता है, जिनमें इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन हैं. हर 12 साल में एक जगह पर कुंभ का आयोजन होता है. इलाहाबाद और हरिद्वार में हर छह साल में अर्धकुंभ (जिसे अब कुंभ कहा जाता है) का आयोजन किया जाता है. महाकुंभ और कुंभ में स्नान के दौरान इन सभी अखाड़ों को विशेष सुविधाएं मिलती हैं. नहाने के लिए विशेष प्रबंध होते हैं और इनके नहाने के बाद ही आम श्रद्धालु स्नान कर सकता है. 1954 में इसी तरह इलाहाबाद में कुंभ का आयोजन हुआ था. उसी दौरान भगदड़ मच गई, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. इससे पहले भी आयोजित हुए कुंभ और महाकुंभ के अलावा दूसरे धार्मिक आयोजनों में अखाड़ों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी. इससे बचने के लिए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई. इसके तहत कुल 13 अखाड़े शामिल हैं. इसी बैठक में सभी अखाड़ों के कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान का वक्त और उनकी जिम्मेदारी तय कर दी गई थी, जिसे सभी अखाड़े अब भी मानते हैं.
तीन मतों में बंटे हुए हैं 13 अखाड़े

13 अखाड़े भी तीन मतों में बंटे हुए हैं और सबके कायदे कानून अलग-अलग हैं.
हिंदू धर्म के ये सभी 13 अखाड़े तीन मतों में बंटे हुए हैं.
पहला है शैव संन्यासी संप्रदाय. इसमें कुल सात अखाड़े हैं. उनके नाम हैं श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, श्री पंच अटल अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा.
दूसरा है वैरागी संप्रदाय. इस सम्प्रदाय के लोग विष्णु को ईश्वर मानते हैं. वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं. इनमें बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माधव, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय शामिल हैं. इस संप्रदाय में तीन अखाड़े हैं. श्री दिगंबर अनी अखाड़ा, श्री निर्वानी अनी अखाड़ा, और श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा.
और तीसरा है उदासीन संप्रदाय. इसमें भी तीन अखाड़े हैं. पहला है श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, दूसरा है श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन और तीसरा है श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा. इनके अलावा पिछले साल नासिक में हुए महाकुंभ के दौरान परी अखाड़े और किन्नर अखाड़े ने भी मान्यता मांगी थी, लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने मान्यता देने से इनकार कर दिया था.
अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद होता है सबसे ऊंचा

किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे ऊपर होता है.
किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे ऊंचा होता है. महामंडलेश्वर पद शैव संप्रदाय के दशनामी संन्यासियों ने ईजाद किया था. दशनामी शब्द उन संन्यासियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो शंकराचार्य के अनुयायी हैं. हालांकि ये भी माना जाता है कि दक्षिण भारत के श्रृंगेरी मठ के तीसरे आचार्य सुरेश्वराचार्य ने जिन संन्यासियों का गुट बनाया था, उन्हें दशनामी कहा जाता है. हकीकत जो भी हो, लेकिन अखाड़े में महामंडलेश्वर सबसे ऊंचा ओहदा होता है. दशनामी संन्यासियों ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए महामंडलेश्वर का पद बनाया और उसकी कुछ योग्यताएं तय कर दीं. महामंडलेश्वर ऐसे व्यक्ति को बनाया जाता है, जो साधु चरित्र और शास्त्रीय पांडित्य दोनों के देश-दुनिया में जाना जाता हो. पहले ऐसे लोगों को परमहंस कहा जाता था. 18 वीं शताब्दी में उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई. महामंडलेश्वर की पदवी धारण करने वाले जितने भी लोग होते हैं, उनमें जो सबसे ज्यादा ज्ञानी होता है, उसे आचार्य महामंडलेश्वर कहते हैं. हालांकि कुछ अखाड़ों में महामंडलेश्वर नहीं होते हैं. उनमें आचार्य का पद ही प्रमुख होता है. अब यही पद साध्वी निरंजन ज्योति को दिया गया है.
महामंडलेश्वर को लेकर हो चुके हैं विवाद

जब सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाया गया था, तो खूब विवाद हुआ था.
सनातन धर्म के रक्षक माने जाने वाले अखाड़ों के लिए महामंडलेश्वर धनकुबेर भी साबित होते हैं. शायद यही वजह है कि लगभग सभी अखाड़ों में महामंडलेश्वरों की संख्या बढ़ती जा रही है. और इसके साथ ही विवाद भी बढ़ता जा रहा है. अगस्त 2015 में नोएडा के एक शराब कारोबारी सचिन दत्ता को निरंजनी अखाड़े का 32वां महामंडलेश्वर घोषित कर दिया गया और नाम रखा गया सच्चिदानंद गिरी. जब सचिन के कारनामे का खुलासा हुआ, तो महामंडलेश्वर का पद छीन लिया गया. सचिन दत्ता को जब महामंडलेश्वर पद दिया गया था, तो उस दौरान परी अखाड़े की महामंडलेश्वर त्रिकाल भवंता ने भी माना था कि अखाड़ों में पैसे का वर्चस्व बढ़ गया है. अखाड़ों से जुड़े लोगों की मानें तो संन्यासी संप्रदाय से जुड़े अखाड़ों में महामंडलेश्वर पद के लिए 75 लाख से एक करोड़ रुपये तक खर्च किए जाते हैं. वहीं वैष्णव संप्रदाय से जुड़े अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनने के लिए 40 से 50 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं. अखाड़ा जितना बड़ा है, रकम भी उतनी ही बड़ी होती है. सचिन के महामंडलेश्वर बनने में भी दो करोड़ रुपये खर्च करने की बात सामने आई थी.

किन्नर अखाड़े को लेकर भी खूब विवाद हुआ है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मंजूरी नहीं मिलने के बाद किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान करेगा.
2001 तक उदासीन और संन्यासी अखाड़ों में लगभग 100 महामंडलेश्वर थे. 2013 के प्रयाग अर्धकुंभ में इनकी संख्या 300 से अधिक हो गई थी. 2001 में वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में महामंडलेश्वरों की संख्या 400 से अधिक थी, जो 2013 तक बढ़कर 700 से अधिक पहुंच गई थी. 2016 में उज्जैन में हुए सिंहस्थ कुंभ के दौरान त्रिकाल भवंता ने परी अखाड़े का गठन किया और खुद को उसका महामंडलेश्वर घोषित कर दिया. हालांकि अखाड़ा परिषद ने परी अखाड़े को मान्यता नहीं दी. 2016 में ही सिंहस्थ कुंभ के दौरान एक और नया अखाड़ा सामने आया, जिसका नाम है किन्नर अखाड़ा. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस अखाड़े को भी मान्यता नहीं दी है. किन्नर अखाड़े की लक्ष्मी त्रिपाठी ने कहा था कि उज्जैन शिव की नगरी है और शिव की नगरी में अखाड़े के लिए किसी से मान्यता लेने की जरूरत नहीं है. हालांकि अब प्रयागराज कुंभ में किन्नर अखाड़े ने जूना अखाड़ा के साथ शाही स्नान की मंजूरी दे दी है, क्योंकि उन्हें अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता नहीं मिल पाई है.
विवादित रहा है अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष पद

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का विवाद तो हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है. फिलहाल महंत नरेंद्र गिरी (बाएं) अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हैं. वहीं महंत ज्ञानदास (दाएं) दावा करते थे कि अध्यक्ष वो हैं.
1954 में अखाड़े की स्थापना के वक्त तय किया गया था कि हर अर्धकुंभ से पहले अखाड़े के अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा. परंपरा 2004 तक चलती रही. 2004 में चुनाव हुए और महंत ज्ञान दास को अध्यक्ष चुन लिया गया. वो अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत हैं. 2010 में इलाहाबाद के मठ बाघंबरी गद्दी में परिषद का चुनाव हुआ, जिसमें 13 में से सात अखाड़े शामिल हुए. जूना, आह्वान, अग्नि, दिगंबर , निर्वाणी और निर्मोही ने चुनाव का बहिष्कार किया था. चुनाव में निर्मल अखाड़ा के महंत बलवंत सिंह अध्यक्ष और आनंद अखाड़ा के शंकरानंद सरस्वती महामंत्री चुने गए. महंत ज्ञानदास ने अखाड़े के चुनाव को हाई कोर्ट में चुनौती दी. 2013 में कोर्ट ने चुनाव पर स्टे लगा दिया. 2014 में महंत ज्ञान दास की जगह पर नरेंद्र गिरी को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया. महंत ज्ञान दास ने नरेंद्र गिरी के अध्यक्ष पद को हाई कोर्ट में चुनौती दी. कोर्ट ने स्टे लगा दिया. हालांकि अखाड़े नरेंद्र गिरी को ही अध्यक्ष मानते हैं. सिंहस्थ कुंभ 2016 में भी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर महंत नरेंद्र गिरी को ही मंजूरी मिली थी.