2007 में 29 अक्टूबर के दिन ही शैल चतुर्वेदी ने दुनिया छोड़ी थी. शैल चतुर्वेदी हिंदी के पोएट थे. हास्य कविताएं लिखने में बहुत आगे थे. इन्होंने गीत भी लिखे, और एक्टिंग भी की. वह श्रीमान-श्रीमती सीरियल में दिखे, काकाजी कहिन में नेताजी बने. कई फिल्मों में भी काम किया. https://www.youtube.com/watch?v=pL0lWvJf59M
उन्हें याद करते हुए हास्य कवि प्रवीण शुक्ल, क्या बताते हैं पढ़िए. शैल चतुर्वेदी जी हास्य रस के उन कवियों में थे, जिनकी प्रतिभा बहुआयामी थी. बहुत अच्छे कवि, बहुत अच्छे अभिनेता. उन्हें संगीत का भी बढ़िया ज्ञान था. हास्य रस में हर रंग की कविताओं के साथ उन्होंने ग़ज़लें भी लिखीं.
व्यक्तित्व उनका ऐसा था कि उन्हें हिम्मत न हारने की आदत थी. वो डायबिटीज के पेशेंट हो गए थे. पैर में जख्म हो गया था. पीड़ा रहती थी, लेकिन पीड़ा को अपने हृदय तक रखते थे और श्रोताओं में मुस्कान बांटते थे. उन्होंने दुख रखा अपने लिए और बाकी सबको खुशियां बांटीं.
जब कभी उनकी पीड़ा नुमायां हो जाती थी और कोई पूछ लेता था कि आपको क्या परेशानी है, तो वह कहते थे कि इस जन्म में तो मैंने सबको हंसाया है. पिछले जन्म की ही कोई कमी रही होगी. लेकिन इस बार भी मैं इस पीड़ा को हंसी में बदल दूंगा. पक्के यारबाज़ थे. दोस्ती करने और निभाने, दोनों में महारत हासिल थी. कई बार हुआ कि कलकत्ता के मित्र ने कवि सम्मेलन के लिए बुलाया तो बिना पारिश्रमिक के चले गए, सिर्फ दोस्ती निभाने के लिए.
मुझे उनके साथ अनेक बार मंच साझा करने को मिला. पहली बार 1988 में शाहदरा के एक कवि सम्मेलन से मैंने मंच पर औपचारिक तौर पर कविता पाठ शुरू किया था. वहां भी शैल जी मौजूद थे. उन दिनों उनकी एक कविता बड़ी लोकप्रिय थी, जिसका शीर्षक था, 'चल गई.' वो हर जगह सुनाते थे और लोग भी सुने बिना छोड़ते नहीं थे.
कई जगहों पर हम लोग आठ-आठ दिन साथ रुककर कविताएं सुनाते रहे. हमेशा एक बात वो कहते थे कि कविता के जरिये अपने पांव पर खड़े होने में अगर 20 साल लगते हैं, तो खत्म होने में 40 साल लगते हैं. मतलब ये कि जो अपने पैरों पर खुद खड़ा होगा, वो लंबे समय तक याद रखा जाएगा. हम जैसे नए बच्चों से कहते थे, (तब तो हम नए ही थे) कि किसी भी स्थिति में नंबर वन की दौड़ में शामिल नहीं होना है. वरना तनावग्रस्त हो जाओगे. सिर्फ काम पर नजर रखो और लिखते रहो. नंबर लगाना दूसरों का काम है.
चलते-चलते पढ़िए उनकी कविता 'चल गई'
वैसे तो एक शरीफ इंसान हूं
आप ही की तरह श्रीमान हूं
मगर अपनी आंख से
बहुत परेशान हूं
अपने आप चलती है
लोग समझते हैं चलाई गई है
जान-बूझकर मिलाई गई है.
एक बार बचपन में
शायद सन पचपन में
क्लास में
एक लड़की बैठी थी पास में
नाम था सुरेखा
उसने हमें देखा
और बांई चल गई
लड़की हाय-हाय
क्लास छोड़ बाहर निकल गई.
थोड़ी देर बाद
हमें है याद
प्रिंसिपल ने बुलाया
लंबा-चौड़ा लेक्चर पिलाया
हमने कहा कि जी भूल हो गई
वो बोले- ऐसा भी होता है भूल में
शर्म नहीं आती
ऐसी गंदी हरकतें करते हो,
स्कूल में?
और इससे पहले कि
हकीकत बयान करते
कि फिर चल गई
प्रिंसिपल को खल गई.
हुआ यह परिणाम
कट गया नाम
बमुश्किल तमाम
मिला एक काम.
इंटरव्यू में, खड़े थे क्यू में
एक लड़की थी सामने अड़ी
अचानक मुड़ी
नजर उसकी हम पर पड़ी
और आंख चल गई
लड़की उछल गई
दूसरे उम्मीदवार चौंके
उस लडकी की साइड लेकर
हम पर भौंके
फिर क्या था
मार-मार जूते-चप्पल
फोड़ दिया बक्कल
सिर पर पांव रखकर भागे
लोग-बाग पीछे, हम आगे
घबराहट में घुस गये एक घर में
भयंकर पीड़ा थी सिर में
बुरी तरह हांफ रहे थे
मारे डर के कांप रहे थे
तभी पूछा उस गृहणी ने
कौन ?
हम खड़े रहे मौन
वो बोली
बताते हो या किसी को बुलाऊं ?
और उससे पहले
कि जबान हिलाऊं
चल गई
वह मारे गुस्से के
जल गई
साक्षात दुर्गा-सी दीखी
बुरी तरह चीखी
बात की बात में जुड़ गये अड़ोसी-पड़ोसी
मौसा-मौसी
भतीजे-मामा
मच गया हंगामा
चड्डी बना दिया हमारा पजामा
बनियान बन गया कुर्ता
मार-मार बना दिया भुरता
हम चीखते रहे
और पीटने वाले
हमें पीटते रहे
भगवान जाने कब तक
निकालते रहे रोष
और जब हमें आया होश
तो देखा अस्पताल में पड़े थे
डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे
हमने अपनी एक आंख खोली
तो एक नर्स बोली
दर्द कहां है?
हम कहां कहां बताते
और इससे पहले कि कुछ कह पाते
चल गई
नर्स कुछ नहीं बोली
बाइ गॉड ! (चल गई)
मगर डाक्टर को खल गई
बोला
इतने सीरियस हो
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो
इस हाल में शर्म नहीं आती
मोहब्बत करते हुए
अस्पताल में?
उन सबके जाते ही आया वार्ड-बॉय
देने लगा अपनी राय
भाग जाएं चुपचाप
नहीं जानते आप
बढ़ गई है बात
डाक्टर को गड़ गई है
केस आपका बिगड़वा देगा
न हुआ तो मरा बताकर
जिंदा ही गड़वा देगा.
तब अंधेरे में आंखें मूंदकर
खिड़की से कूदकर भाग आए
जान बची तो लाखों पाये.
एक दिन सकारे
बाप जी हमारे
बोले हमसे
अब क्या कहें तुमसे ?
कुछ नहीं कर सकते
तो शादी कर लो
लड़की देख लो.
मैंने देख ली है
जरा हेल्थ की कच्ची है
बच्ची है, फिर भी अच्छी है
जैसी भी, आखिर लड़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहां भी तो कड़की है.
हमने कहा
जी अभी क्या जल्दी है?
वे बोले
गधे हो
ढाई मन के हो गये
मगर बाप के सीने पर लदे हो
वह घर फंस गया तो संभल जाओगे.
तब एक दिन भगवान से मिल के
धड़कता दिल ले
पहुंच गए रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली
यात्रा में तकलीफ तो नहीं हुई
और आंख मुई चल गई
वे समझी कि मचल गई
बोली
लड़की तो अंदर है
मैं लड़की की मां हूं
लड़की को बुलाऊं
और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊं
आंख चल गई दुबारा
उन्होंने किसी का नाम ले पुकारा
झटके से खड़ी हो गईं
हम जैसे गए थे लौट आए
घर पहुंचे मुंह लटकाए
पिता जी बोले
अब क्या फायदा
मुंह लटकाने से
आग लगे ऐसी जवानी में
डूब मरो चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब सकते तो आंखें फोड़ लो
नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो
जब भी कहीं जाते हो
पिटकर ही आते हो
भगवान जाने कैसे चलाते हो?
अब आप ही बताइये
क्या करूं?
कहां जाऊं?
कहां तक गुन गांऊं अपनी इस आंख के
कमबख्त जूते खिलवाएगी
लाख-दो-लाख के.
अब आप ही संभालिये
मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिये
जवान हो या वृद्धा पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की
जिसकी एक आंख चलती हो
पता लगाइये
और मिल जाये तो
हमारे आदरणीय 'काका' जी को बताइये.