कैथलिक चर्च के सबसे बड़े धर्मगुरू पोप फ्रांसिस (Pope Francis Died) का 88 साल की उम्र में निधन हो गया. पोप फ्रांसिस 266वें पोप थे. पोप लंबे समय से डबल न्यूमोनिया की बीमारी से जूझ रहे थे. वेटिकन के कार्डिनल केविन फेरेल ने इसकी आधिकारिक सूचना दी. बता दें कि कार्डिनल केविन फेरेल पवित्र रोमन चर्च के कैमरलेंगो हैं. फेरेल ने कहा रोम के पोप फ्रांसिस, फादर (ईश्वर) के घर लौट आए. उन्होंने कहा कि उनका पूरा जीवन प्रभु और उनके चर्च की सेवा के लिए समर्पित था.
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद कैसे चुना जाएगा अगला पोप? इन 5 नामों पर हो रही है चर्चा
Pope के चुनाव की प्रक्रिया काफी दिलचस्प होती है. Pope Francis की मौत के बाद इस प्रक्रिया को दोहराया जाएगा. अगर किसी एक व्यक्ति के नाम पर सहमति बनती है, तो Vatican Palace से सफेद धुंआ निकलता है.

पोप फ़्रांसिस पिछले काफी दिनों से अस्पताल में भर्ती थे. 14 फरवरी को उन्हें रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था. शुरुआती जांच में पता चला कि उनके ‘ब्रोंकाइटिस’ के लक्षण बढ़ गए थे. डीटेल्ड जांच में पता चला कि उनके दोनों फेफड़ों में निमोनिया था. इस कंडीशन को डबल निमोनिया कहा जाता है. सर्दी के मौसम में पोप को ब्रोंकाइटिस होने का ख़तरा बना रहता था. इससे पहले भी मार्च 2023 में भी उन्हें ब्रोंकाइटिस की समस्या के चलते तीन दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था. 23 रवरी को वेटिकन से एक बयान आया जिसमें कहा गया कि पोप की हालत गंभीर बनी हुई है. और, ब्लड टेस्ट में किडनी फेल्योर के लक्षण भी मिले हैं.
कैथलिक ईसाइयों के बीच पोप का खासा महत्व है. Britannica के मुताबिक, पिछले तकरीबन 2,000 सालों में 260 से ज्यादा पोप बनाए गए हैं. पोप रोम के बिशप होते हैं और पूरे रोमन कैथलिक चर्च का नेतृत्व करते हैं. हालांकि, ठीक-ठीक यह बताना मुश्किल है कि अब तक कितने लोग इस पद पर रह चुके हैं, क्योंकि इतिहास में कई बार ये पद विवादों में रहा है. कुछ समय तो ऐसा भी हुआ जब एक साथ दो या तीन पोप थे. एक को असली माना जाता था, जबकि बाकी को ‘एंटी-पोप’ कहा जाता था. एंटी-पोप वह व्यक्ति होता है जो वैध रूप से चुने गए पोप के विरोध में रोमन कैथलिक चर्च का नेता होने का दावा करता है. हालांकि, कुछ अन्य ईसाई ग्रुप, जैसे कि प्रोटेस्टेंट, पोप की सत्ता को नहीं मानते.

पोप कैसे चुने जाते हैं?
कुछ रिसर्च के मुताबिक, कैथलिक चर्च के शुरुआती दौर में पोप का चुनाव आमतौर पर सम्राट करते थे, जैसे कि सम्राट कॉन्स्टेंटाइन और हेनरी थर्ड . ब्रिटानिका के मुताबिक, कुछ शुरुआती पोप, जिनमें संभवतः पहले पोप माने जाने वाले सेंट पीटर भी शामिल थे, अपना उत्तराधिकारी खुद तय कर देते थे. लेकिन ये तरीके काफी विवादित रहे. इसलिए, 11वीं शताब्दी से इस प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के लिए कई सुधार किए गए.
कुछ रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र मिलता है कि, पोप निकोलस द्वितीय ने तय किया कि केवल कार्डिनल बिशप, कार्डिनल प्रीस्ट और कार्डिनल डीकन ही पोप के चुनाव में भाग लेंगे. फिर, 1179 में, एक काउंसिल ने यह नियम बना दिया कि केवल कार्डिनल ही पोप का चुनाव कर सकते हैं. कैथलिक चर्च के वरिष्ठ पादरी को कार्डिनल कहते हैं. कार्डिनल, पोप के सलाहकार भी होते हैं. यही कार्डिनल मिलकर "पैपल कॉन्क्लेव" बनाते हैं, जो पोप के चुनाव के लिए वेटिकन में एक गुप्त बैठक करता है.
अब चलते साल 1268 में, जब दो वर्षों तक नए पोप का चुनाव नहीं हो पाया. इस साल अधिकारियों ने कॉन्क्लेव के सदस्यों को एक कमरे में बंद कर दिया और छत तक हटा दी, ताकि वे जल्द से जल्द फैसला लें. इसके बाद ग्रेगरी X को पोप चुना गया. 1904 में, पोप पायस X ने इस पूरी प्रक्रिया को एक आधिकारिक संविधान में दर्ज किया.
पोप का चुनाव जीवनभर के लिए होता है. जब एक पोप का निधन होता है, तो सबसे पहले ‘कार्डिनल कैमरलेंगो’ उनकी मृत्यु की पुष्टि करता है और उनकी ‘फिशरमैन रिंग’ जो उनकी पहचान का प्रतीक होती है, उसे तोड़ देता है. इसके बाद से उनके शासन का अंत होता है. इसके कुछ हफ्तों बाद वेटिकन में कॉन्क्लेव बुलाया जाता है.

Encyclopaedia Britannica के मुताबिक, पोप के चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह सीक्रेट होती है. सिर्फ कार्डिनल और उनके सहायक ही इसमें शामिल हो सकते हैं. मतदान के दौरान उन्हें बाहरी दुनिया से पूरी तरह काट दिया जाता है. मसलन न कोई फोन, न इंटरनेट, न समाचार. पहले दिन, एक बार और फिर हर अगले दिन चार बार वोटिंग होती है, जब तक कि किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिल जाता.
वोटिंग के बाद बैलेट पेपर जला दिए जाते हैं और सिस्टिन चैपल से निकलने वाले धुएं के रंग से लोगों को चुनाव का नतीजा बताया जाता है. सिस्टिन चैपल इटली के रोम में वेटिकन पैलेस के अंदर स्थित एक चैपल है. अगर काला धुआं निकलता है, तो इसका मतलब है कि सहमति नहीं बनी. अगर सफेद धुआं निकलता है, तो समझा जाता है कि नया पोप चुन लिया गया है. पहले यह धुआं बनाने के लिए गीली और सूखी घास जलाते थे, लेकिन अब इसके लिए केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है.

जब किसी को पोप के तौर पर चुना जाता है, तो उससे पूछा जाता है कि क्या वो इस पद को स्वीकार करेंगे और कौन-सा नाम अपनाएंगे. अगर वो हामी भरता है, तो सबसे वरिष्ठ कार्डिनल बालकनी पर आकर घोषणा करता है. इसके बाद नया पोप लोगों को आशीर्वाद देता है और औपचारिक रूप से कॉन्क्लेव को समाप्त करता है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में ईसाई आबादी लगभग 2.8 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का करीब 2.3% है. वहीं Pew Research centre के मुताबिक, पिछले 100 सालों में दुनिया में ईसाइयों की संख्या करीब चार गुना तक बढ़ी है. 1910 में ये संख्या लगभग 60 करोड़ थी, जो 2010 तक 2 अरब से ज्यादा हो गई. लेकिन इस दौरान दुनिया की कुल जनसंख्या भी तेजी से बढ़ी है. ईसाई धर्म मुख्य रूप से तीन शाखाओं में बंटा हुआ है. जिसमें कैथलिक, प्रोटेस्टेंट और (ईस्टर्न) ऑर्थोडॉक्स शामिल हैं. द ग्लोबलिस्ट के हिसाब से, दुनिया की कुल आबादी में ईसाइयों की हिस्सेदारी लगभग 31.6% है, और माना जा रहा है कि, साल 2050 तक ईसाई आबादी बढ़कर 2.9 अरब हो जाएगी.
पोप फ्रांसिस कैथलिक चर्च के 266वें पोप और वेटिकन सिटी के शासक भी थे. उनके निधन के बाद अगला पोप कौन होगा, ये अभी तक साफ नहीं है. हालांकि कुछ नाम सामने आए हैं जो अगले पोप हो सकते हैं. उनके बारे में भी जान लेते हैं.
लुइस एंटोनियो टैगले (फिलीपींस)
• 67 वर्षीय कार्डिनल लुइस एंटोनियो टैगले को पोप फ्रांसिस के एजेंडे को जारी रखने के लिए एक मजबूत दावेदार माना जाता है. टैगले, प्रचार के समर्थक हैं और उन्हें प्रचार के लिए ग्रुप का नेतृत्व करने का महत्वपूर्ण अनुभव है. वे पोप फ्रांसिस के करीबी लोगों में एक विश्वसनीय व्यक्ति थे.
• टैगले का एशियाई मूल का होना भी उन्हें इस रेस में आगे करता है, क्योंकि कैथलिक धर्म एशिया में तेजी से बढ़ रहा है, खासकर फिलीपींस में.
पिएत्रो पारोलिन (इटली)
• 70 वर्षीय कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन, वेटिकन के सबसे अनुभवी अधिकारियों में से एक हैं. 2013 से वो वेटिकन के राज्य सचिव के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने चीन और मध्य पूर्वी सरकारों के साथ बातचीत सहित राजनयिक मामलों में भी एक प्रमुख भूमिका निभाई है.
• पारोलिन को एक उदारवादी उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है. पारोलिन फ्रांसिस द्वारा किए गए सुधारों को बनाए रखते हुए वेटिकन को स्थिरता प्रदान कर सकते हैं. वेटिकन नौकरशाही के साथ भी उनके गहरे संबंध हैं.
पीटर तुर्कसन (घाना)
• 76 वर्षीय कार्डिनल पीटर तुर्कसन चर्च के सामाजिक न्याय वोले हलकों में एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं. इंटीग्रल ह्यूमन डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए डिकास्टरी के पूर्व प्रमुख के रूप में, तुर्कसन जलवायु परिवर्तन, गरीबी और आर्थिक न्याय जैसे मुद्दों पर मुखर राय रखते रहे हैं.
• अगर तुर्कसन का चुनाव होता है तो ये सदियों में पहले अफ़्रीकी पोप के रूप में एक ऐतिहासिक क्षण होगा. सबसे हालिया अफ़्रीकी पोप, पोप गेलैसियस थे, जिन्होंने 492 से 496 ईस्वी तक सेवा की. रोम में अफ़्रीकी माता-पिता के घर जन्मे, गेलैसियस अपने धार्मिक लेखन और गरीबों के लिए दान और न्याय की मजबूत वकालत के लिए जाने जाते थे.
पीटर एर्डो (हंगरी)
• पीटर एर्डो एक प्रमुख रूढ़िवादी उम्मीदवार हैं. 72 वर्षीय कार्डिनल एर्डो एक सम्मानित कैनन कानून (Cannon Law) विद्वान हैं. एर्डो पारंपरिक कैथलिक शिक्षाओं और सिद्धांतों के एक मजबूत समर्थक रहे हैं. उन्होंने पहले यूरोपीय बिशप सम्मेलनों की परिषद के प्रमुख के रूप में कार्य किया और हमेशा से धार्मिक रूढ़िवाद पर जोर दिया है.
• जो लोग जॉन पॉल द्वितीय और बेनेडिक्ट XVI के रूढ़िवाद की वापसी की मांग करते हैं, उनके लिए एर्डो का चुना जाना एक बड़ा बदलाव होगा.
एंजेलो स्कोला (इटली)
• 82 वर्षीय कार्डिनल एंजेलो स्कोला, लंबे समय से पोप के दावेदार है. वे 2013 के कॉन्क्लेव में पसंदीदा लोगों में से एक थे. लेकिन तब पोप फ्रांसिस को चुना गया. मिलान (इटली) के पूर्व आर्कबिशप रहे स्कोला की धार्मिक जड़ें काफी गहरी मानी जाती हैं. स्कोला उन लोगों की पहली पसंद हैं जो अधिक केंद्रीकृत (Centralised) और पदानुक्रमित (Hierarchical) चर्च का समर्थन करते हैं.
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