एक दिन की बात है. वाजपेयी की वहां के विदेश मंत्री से बात हो रही थी. बातचीत के दौरान एकाएक वाजपेयी ने उनसे गजनी के बारे में पूछा. गजनी एक जगह है अफगानिस्तान में. वाजपेयी ने कहा कि वो गजनी देखना चाहते हैं. अफगान विदेश मंत्री बड़े हैरान हुए. बोले- गजनी तो कोई टूरिस्ट स्पॉट भी नहीं. आप भला क्यों जाना चाहते हैं वहां?
गजनी जाने की ख्वाहिश नई नहीं थी वाजपेयी की. वो बचपन से ही वहां जाना चाहते थे. अपने अपने एक भाषण में उन्होंने ये बताया था. भाषण का मौका था सावरकर जयंती. 1996 में इस मौके पर वाजपेयी पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे थे. यहीं पर उन्होंने बताया:
अफगानिस्तान के अपने मेजबानों से मैंने कहा. मैं गजनी जाना चाहता हूं, गजनी. पहले मेरी बात उनकी समझ में नहीं आई. कहने लगे, गजनी तो कई टूरिस्ट स्पॉट नहीं है. गजनी में कोई फाइव-स्टार होटल भी नहीं है. गजनी में जाकर आप क्या करेंगे? गजनी में जाकर आप क्या देखेंगे? मैं उन्हें पूरी बात नहीं बता सकता था. मेरे हृदय में गजनी कहीं कांटे की तरह चुभ रहा है. जब से मैंने गजनी से आए एक लुटेरे की कथा पढ़ी है, और किशोरावस्था में पढ़ी है, मैं देखना चाहता था कि वो गजनी कैसा है.
वाजपेयी और आडवाणी की जोड़ी स्याह और सफेद के कॉन्ट्रास्ट जैसी थी. वाजपेयी जहां पार्टी का लिबरल चेहरा थे, वहीं आडवाणी सख्त और कट्टर हिंदुत्ववादी खांचे में फिट होते थे.
जिस महमूद गजनवी ने बरसों पहले सोमनाथ मंदिर तोड़ा था, वो गजनी का ही रहने वाला था. वाजपेयी ने छुटपन में ही गजनवी के हमले का इतिहास पढ़ा था. वो तब से ही उस जगह को देखना चाहते थे. ताकि जान सकें कि गजनवी कितना ताकतवर था जो इतनी दूर गुजरात तक पहुंचकर सोमनाथ मंदिर को लूट पाया. सबसे बड़ी बात कि उसने इतना किया, लेकिन हिंदुस्तान में कोई भी उसे चुनौती तक नहीं दे पाया. वहां जाकर कैसा महसूस किया, इसको बताते हुए वाजपेयी के शब्द थे-
आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि अफगानिस्तान के इतिहास में गजनी की कोई जगह नहीं. गजनी छोटी सी जगह है. छोटा सा गांव है. कल्पना कीजिए. सैकड़ों साल पहले वहां धूल उड़ती थी. झोपड़ियां थीं. मगर एक लुटेरा लुटेरों को इकट्ठा करता हुआ सोने की चिड़िया को लूटने के लिए चला आया. वो लुटेरा सोमनाथ के मंदिर तक चला गया. पुजारी देखते रहे.
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