माननीय विधायक श्री पिनारायी विजयन.विपक्षी दल से 32 साल का युवा विधायक खड़ा होता है. इकहरा बदन. भावशून्य चेहरा. किसी सख़्त हेडमास्टर जैसा. लेकिन ये उसके हाथ में क्या है? एक कमीज़. आधी बांही की सफेद कमीज़, जिस पर ख़ून के थक्के जमे हुए हैं. गाढ़े, सुर्ख लाल थक्के. मानो बरसों पुराने हों. ये विधायक इस कमीज़ को विधानसभा में लहराता है. केरल के राजनीतिक इतिहास के सबसे थर्राते भाषण से हुज़ूर गुंजा देता है. जब बैठता है, तब तक नई-नई बनी सरकार की नींव दरकने सी लगी होती है. और असर ये कि 30 रोज़ का वक्फ़ा पूरा होने से पहले केरल के मुख्यमंत्री का इस्तीफा राज्यपाल की मेज पर होता है.
पॉलिटिकल किस्से में आज बात केरल के इसी नेता की, जो आज की तारीख में वहां मुख्यमंत्री है. बात पिनारायी विजयन की.
20 मई 2021 को केरल के मुख्यमंत्री के तौर पर लगातार दूसरी बार शपथ ली पिनारायी विजयन ने. (फोटो- PTI)
केरल का वाम केरल राज्य के मुहाने पर स्थित है कन्नूर जिला. अरब सागर का तटवर्ती जिला है. करीब ढाई लाख की आबादी है. कन्नूर में नारियल के पेड़ों से ताड़ी उतारने वालों की ख़ासी संख्या रही है. ताड़ी एक तरह की देसी शराब होती है. लोकल मज़दूर प्लास्टिक के कंटेनर लेकर ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर चढ़ते हैं और ताड़ी निकालते हैं. ये यहां पर लोगों के रोजगार का ज़रिया है. वे इसे नशा नहीं, नुस्ख़ा मानते हैं.
1945 की बात है. कन्नूर के पिनारायी गांव में रहने वाले कोरन भी ताड़ी उतारने का काम करते थे. पत्नी कल्याणी खेतों में काम करती थीं. घर में 14 बच्चे हुए. इनमें से 11 बचपन में ही मर गए. कोरन और कल्याणी की जो 3 संतानें बचीं, उनमें से सबसे छोटी संतान का नाम रखा गया – विजयन. यहां पर बच्चों के नाम में गांव के नाम को शामिल करने का एक पुराना रिवाज रहा है. इस नाते पूरा नाम पड़ा पिनारायी विजयन.
कट-2. 3 साल पीछे. 1942 का साल. दुनिया में दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था. ब्रिटिश आर्मी इस समय सोवियत संघ के साथ मिलकर फासीवादी ताकतों के ख़िलाफ़ लड़ रही थी. महात्मा गांधी ने इस समय को सही जान ग़ुलाम भारत में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन छेड़ रखा था. आंदोलन चढ़ रहा था.
इसी बीच कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, जिसका जन्म 26 दिसंबर 1925 को ही कानपुर के एक छोटे से कमरे में हो चुका था, उसके दफ्तर में एक चिट्ठी आती है. चिट्ठी सोवियत संघ से थी. वहां के कम्युनिस्ट संगठन ने भारत के कम्युनिस्ट संगठन से कहा था कि वह फासीवादी ताकतों को रोकने की इस निर्णायक जंग में ब्रिटिशर्स का साथ दें. भारत में जन्म के बाद से ही CPI पर रूस का, वहां के कम्युनिस्ट इतिहास का गहरा असर रहा था. भारत में कम्युनिस्ट पार्टी को लगातार विदेश से मदद भी मिलती रही थी. ऐसे में सोवियत संघ की चिट्ठी ने भारत में CPI के लिए धर्मसंकट की स्थिति पैदा कर दी.
कम्युनिस्ट पार्टी ने जैसे-तैसे ये संकट टाला लेकिन तय कर लिया कि भविष्य में इस तरह का बाहरी दबाव पैदा नहीं होने देंगे. लेकिन इसके लिए क्या ज़रूरी था? इसके लिए ज़रूरी था कि पार्टी देश के भीतर मजबूत हो. और इस मजबूती का रास्ता राजनीतिक गलियारों से जाता था. 1945 आते-आते कम्युनिस्ट पार्टी ने तय कर लिया था कि अब वे चुनावों में सक्रिय हिस्सा लेंगे.
45 के इसी बरस में कम्युनिस्ट पार्टी और विजयन का सफर साथ-साथ शुरू हुआ. दुनिया की पहली चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार 1946 में CPI ने प्रांतों के चुनावों में हिस्सा लिया. हार मिली. अगले साल देश आज़ाद हुआ. 1952 में पहले चुनाव हुए. अजय घोष के नेतृत्व में CPI को 16 सीट मिलीं और वो कांग्रेस के सामने विपक्ष में बैठने की हकदार हुई. लेकिन असली इतिहास तो 57 में रचा गया. केरल में हुए विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सरकार बनी. दुनिया में पहली बार कहीं पर 'चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार' बनी. Democratically elected communist government. EMS नंबूदरीपाद मुख्यमंत्री बने. ये भारत ही नहीं, दुनिया की राजनीति में एक अहम घटना थी.
इस समय विजयन क्या कर रहे थे? परिवार के विषम हालातों के बीच भी विजयन पढ़-लिख गए. तलैसरी के सरकारी कॉलेज से बीए-इकॉनमिक्स की डिग्री हासिल की और धीरे-धीरे स्थानीय राजनीति में सक्रिय होने लगे. विजयन कन्नूर के OBC समुदाय एझवा से आते हैं. यहां एझवा आबादी करीब-करीब 22 फीसदी की है. और ये आबादी एकमुश्त वोट करती है. इस लिहाज से कन्नूर के जातिगत समीकरणों ने भी विजयन का साथ दिया.
केरल और वाम दलों की राजनीति को करीब से समझने वाले सीनियर जर्नलिस्ट वी कृष्णा अनंत बताते हैं –
“50 और 60 के दशक की बात है. एक वाम नेता हुए थे. एके गोपालन. पॉपुलर नाम- AKG. युवाओं में गजब के लोकप्रिय. केरल से सांसद रहे. CPI (M) के फाउंडिंग मेंबर्स में से भी रहे. उस दौर के युवा, AKG के स्टाइल से ख़ासे प्रभावित रहते थे और इन्हीं में शामिल थे पिनारायी विजयन भी.”आपने इंडियन कॉफी हाउस का नाम सुना होगा! इंडियन कॉफी हाउस की शुरुआत 1958 में AKG ने ही की थी. उन्होंने अलग-अलग कॉफी हाउस के ऐसे कामगारों को जमा किया, जो रोजगार खो चुके थे. को-ऑपरेटिव सोसायटी बनाई और पहली कॉफी शॉप 8 मार्च 1958 को त्रिशूर में खोली गई. आज देश में करीब 400 ICH हैं. इसे भारत के पॉलिटिकल इतिहास की एक धरोहर माना जाता है. AKG के ऐसे ही पॉलिटिकल मॉडल्स से युवा पिनारायी विजयन ख़ासे प्रभावित रहे.
AKG. (बीच में). (फोटो- @vijayanpinarayi ट्विटर)
कम्युनिस्ट विजयन 1945 के साल से शुरू करके हम आपको एक साथ दो-दो कहानियां सुनाते आ रहे हैं. एक कम्युनिस्ट पार्टी के भारतीय राजनीति में आगे बढ़ने की कहानी. और दूसरी पिनारायी गांव के विजयन की कहानी. अब समय है इन दोनों कहानियों को एक सार कर देने का.
1964 में कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हुआ. CPI और CPI (Marxist). और इसी साल पिनारायी विजयन ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (M) जॉइन की. यहां से उनका पॉलिटिकल ग्राफ बढ़ा. केरल स्टूडेंट फेडरेशन (KSF) में वे जिला सचिव बने. बाद में KSF ही बदलकर स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी SFI हुई. फिर विजयन केरल स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के प्रेज़िडेंट बने. फिर आया साल 1970. केरल में विधानसभा चुनाव होने थे. विजयन को कुतुपरंब सीट से टिकट मिल गया. कुतुपरंब सीट, कन्नूर जिले में ही आती है. चुनाव हुए. विजयन पहली बार विधायक बने. महज 26 साल की उम्र में विधायक.
सिर्फ 26 साल की उम्र में विधायक बन गए थे पिनारायी विजयन. (फाइल फोटो- pinarayivijayan.in)
केरल का पहला पॉलिटिकल मर्डर लेकिन यही वो समय था, जब विजयन का नाम एक बड़े विवाद से भी जुड़ा. राज्य के पहले पॉलिटिकल मर्डर से.
कन्नूर बीड़ी उत्पादन के लिए एक समय बड़ा प्रसिद्ध रहा है. यहां के कारीगरों की बनाई बीड़ी की देश भर में तूती बोलती थी. मार्च 1967 में जब केरल के पहले मुख्यमंत्री EMS नम्बूदरीपाद की सत्ता में वापसी हुई, तो वे बीड़ी श्रमिकों के हित में कुछ कानून लाए. मसलन उनसे 8 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकेगा. ज़्यादा काम कराया गया तो ओवरटाइम देना होगा वगैरह. बीड़ी टाइकून्स इस कानून के विरोध में लामबंद हो गए और नतीजा ये रहा कि कन्नूर की एक बड़ी बीड़ी कंपनी गणेश बीड़ी ने मार्च 1968 में अपनी यहां की इकाई बंद कर दी. करीब 12 हज़ार लोग बेरोजगार हो गए.
अब इस कंपनी ने क्या किया, कि श्रमिकों को उनके घर में ही रॉ मटेरियल देकर उनसे बीड़ी बनवाना शुरू कर दिया. कंपनी को कन्नूर के कारीगरों की बनाई बीड़ी मिलने लगी. चूंकि ये कर्मचारी कंपनी के साथ नौकरीशुदा तो थे नहीं. इसलिए कंपनी को उन्हें राज्य सरकार के कानून का लाभ भी नहीं देना पड़ रहा था. यानी कन्नूर की इकाई बंद करने के बाद भी कंपनी के दोनों हाथ में लड्डू. यहां पर एक बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि गणेश बीड़ी को जनसंघ और RSS के कुछ नेताओं से ख़ास बैकिंग मानी जाती थी.
गणेश बीड़ी के इस नए बिज़नेस मॉडल की बात CPI (M) को पता चली तो उन्होंने फंडिंग का जुगाड़ करके एक को-ऑपरेटिव सोसायटी के ज़रिये बीड़ी का नया ब्रैंड लॉन्च करा दिया – दिनेश बीड़ी.
यहां से कन्नूर में जनसंघ, RSS और CPI(M) के बीच बीड़ी से उपजा विवाद बढ़ता गया. दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे को जहां पाते, पीटते. हिंसा बढ़ती जा रही थी. यहां RSS के एक कार्यकर्ता थे वड़िक्कल रामकृष्णन. 1969 में उनकी एक मामूली से विवाद में हत्या कर दी गई. कहा जाता है कि रामकृष्णन ने एक 16 साल के बच्चे को पीटा था. जवाब में CPI (M) के समर्थकों ने पलटकर हमला किया. रामकृष्णन पर कुल्हाड़ी से वार किए गए. उनकी मौत हो गई. आरोपियों में CPI (M) के तमाम नेताओं के साथ नाम आया उनके लोकल स्तर पर सबसे मजबूत युवा नेता पिनारायी विजयन का.
RSS नेताओं ने विजयन का नाम ले-लेकर उन पर आरोप लगाए. हालांकि कानूनी कार्रवाई में विजयन का नाम नहीं आया. लेफ्ट नेताओं द्वारा इसे संघ की राजनीतिक साज़िश क़रार दिया जाता रहा है. लेकिन इस कांड को आज भी केरल का पहला पॉलिटिकल मर्डर माना जाता है. और जब भी इसका ज़िक्र होता है, तो कहीं न कहीं से विजयन का ज़िक्र भी आ ही जाता है. इमरजेंसी का दौर, विजयन का भाषण विजयन का पॉलिटिकल किस्सा इमरजेंसी के ज़िक्र के बिना अधूरा रहेगा. द हिंदू
और एशियानेट न्यूज़ पर इस बारे में विस्तार से जानकारी है. 26 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगी. केरल में उस समय CPI के नेतृत्व में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी. मुख्यमंत्री थे सी अच्युत मेनन. विजयन CPI (M) से विधायक थे. वे ख़ुद और तमाम अन्य नेता लगातार सरकार के ख़िलाफ़ मुखर थे. 28 सितंबर 1975 की देर रात लंबी-चौड़ी पुलिस पार्टी विधायक विजयन के घर पहुंची. इसमें विजयन की विधानसभा कुतुपरंब के सर्किल इंस्पेक्टर बलरामन भी शामिल थे. बलरामन ने विजयन से कहा- आपकी गिरफ्तारी का आदेश है. विजयन ने कारण पूछा तो जवाब मिला – एसपी के निर्देश हैं. विजयन पुलिस की गाड़ी में बैठे. थाने पहुंचे. उन्हें लॉकअप में बंद किया गया.
लेकिन इसके बाद उस रात लॉकअप में क्या हुआ, ये विजयन ने करीब डेढ़ बरस बाद 30 मार्च 1977 को केरल विधानसभा में बताया. 77 के चुनाव में केरल में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार की वापसी हुई थी. हालांकि विजयन जीतकर फिर वे विधायक बने थे. विधानसभा में उस रोज़ उनके हाथ में एक कमीज़ थी. ख़ून से लथपथ. ये ख़ून 28 सितंबर 1975 की रात उस कमीज़ पर लगा था और अब तक इसके गाढ़े लाल थक्के कमीज़ पर जम चुके थे. शर्ट हाथ में थामे विजयन ने विधानसभा में बोलना शुरू किया –
“28 सितंबर की रात मुझे लॉकअप में बंद करने के बाद पुलिस वाले वहां से चले गए. उनके जाने के बाद अचानक लॉकअप के सामने वाली बत्ती बंद कर दी गई. कुछ लोग अंदर आए. ये संभवतः पुलिस विभाग से नहीं थे. उन्होंने नाम पूछा. मैंने कहा- विजयन. बोले पूरा नाम? मैंने कहा – पिनारायी विजयन. मेरा इतना कहना भर था कि वे मुझ पर टूट पड़े. बेरहमी से पीटा. रात भर पीटा. मैं गिर गया तो उठाकर पीटा गया. बाद में पुलिस वालों ने भी पीटा. मैं बेहोश हो गया. अगले दिन जब होश आया तो बदन पर सिर्फ अंडरवियर था. मैं खड़ा तक नहीं हो पा रहा था.”मुख्यमंत्री करुणाकरण को संबोधित करते हुए विजयन ने कहा था –
“तब जो केरल के गृह मंत्री थे, आज वो मुख्यमंत्री हैं. वो जवाब दें कि क्या तब जो हुआ था, वो तरीका था? क्या इस तरह से राजनीति होती है? जवाब दें कि उस सर्किल इंस्पेक्टर को किसकी शरण प्राप्त थी?”सभा सन्न थी. विजयन को करीब से जानने वालों ने भी उन्हें पहली बार इस तरह गरजते देखा था. विजयन के इस भाषण ने केरल में इमरजेंसी के दौर में हुई पुलिसिया हिंसा और इसको सरकार की कथित शह को एक बड़ा मुद्दा बना दिया. इतना बड़ा मुद्दा कि ठीक एक महीने बाद 25 अप्रैल को इन्हीं मुद्दों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणाकरण का इस्तीफा हो गया. मंत्री पद और इस्तीफा विधानसभा के भाषण के बाद विजयन की लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी थी. 71 और 77 के बाद उन्होंने 1991 में चुनाव लड़ा. इस बार विजयन को उनकी अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली. करीब 13 हज़ार वोट से. लेकिन इस बार भी उनको विपक्ष में बैठना पड़ा. ये कसक भी 5 साल बाद दूर हुई.
1996 में पिनारायी विजयन एक बार फिर जीते और इस बार राज्य में CPI(M) के नेतृत्व में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार भी बनी. EK नयनर मुख्यमंत्री बने और 20 मई 1996 को एक बार फिर नाम पुकारा गया – पिनारायी विजयन.
लेकिन इस बार नाम विधानसभा अध्यक्ष ने नहीं, बल्कि राज्यपाल खुर्शीद आलम खान ने पुकारा था. माननीय विधायक जी, माननीय मंत्री जी हो चुके थे. पिनारायी विजयन पहली बार मंत्री बने. उन्हें ऊर्जा मंत्रालय मिला.
लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई नेता अपनी पार्टी के भीतर एक पद के लिए राज्य का मंत्री पद छोड़ सकता है? विजयन ने 2 साल बाद ही 1998 में मंत्री पद छोड़ दिया. सी गोविंदन के निधन के बाद CPI (M) के राज्य सचिव का पद खाली हो गया था. कम्युनिस्ट पार्टी के प्रोटोकॉल के मुताबिक विजयन मंत्री पद पर रहकर पार्टी के भीतर ये पद नहीं हासिल कर सकते थे. कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट का मसला. विजयन ने मंत्री पद छोड़ दिया और पार्टी के राज्य सचिव बने.
विजयन वो ग़लती नहीं करना चाहते थे, जो ज्योति बसु ने बंगाल में की थी. ज्योति बसु CPI(M) के ही नेता थे. 1977 से लेकर 2000 तक लगातार 5 बार पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री बने. इस बीच 1996 में ज्योति बसु के पास एक मौका था भारत का प्रधानमंत्री बनने का. ये ऐतिहासिक होता. दिल्ली से न्योता था. ज्योति बसु भी मन बना चुके थे. लेकिन पार्टी के भीतर से कमज़ोर पड़ गए. पार्टी की सेंट्रल कमेटी ने कहा कि CPI(M) के सिर्फ 32 सांसद हैं, ऐसे में भले ही पार्टी का कोई नेता PM बन जाए, लेकिन वो उस पद से कम्युनिस्ट विचारधारा को आगे नहीं बढ़ा पाएगा. सेंट्रल कमेटी में उस वक्त हरकिशन सिंह सुरजीत का ज्योति बसु को साथ मिला था, लेकिन सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, नयनर जैसे नेताओं के आगे उनकी नहीं चली. बसु प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए.
कहा जाता है कि इस उदाहरण को सामने रखकर ही विजयन ने 1998 में मंत्री पद छोड़कर पार्टी के राज्य सचिव का पद संभाला, ताकि वो पार्टी के भीतर अपनी स्थिति मजबूत कर सकें. उन्हें इस बात का इल्म था कि राज्य सचिव का पद केरल CPM में उनकी स्थिति को मजबूत करने के लिए कितना अहम साबित हो सकता है. विजयन 2015 तक इस पद पर रहे. 17 साल. बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए कि विजयन की पार्टी के भीतर स्थिति मजबूत होती गई.
नयनार (बाएं) के साथ पिनारायी विजयन (दाएं). नयनार की सरकार में विजयन मंत्री भी रहे. (फोटो- @vijayanpinarayi ट्विटर)
मालाबार-त्रावणकोर गुट और अच्युतानंद से खटपट अब यहां पर आपका परिचय एक और किरदार से कराते हैं. वीएस अच्युतानंदन. केरल CPI(M) के वरिष्ठ नेता. 2006 से 2011 तक राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे. 70 के दशक से ही अच्युतानंदन का पार्टी पर और केरल की राजनीति पर गहरा असर रहा है. इस बीच विजयन 4 बार जीतकर विधानसभा पहुंचे. विजयन की राजनीति के लगातार उत्थान की एक वजह ये भी थी कि उन्हें अच्युतानंदन का भरोसा प्राप्त था. ये सिलसिला काफी समय तक चलता रहा. विजयन और अच्युतानंदन साथ-साथ केरल की राजनीति मे बढ़ते रहे. लेकिन 96 में नयनर की सरकार में विजयन मंत्री बने और इसके बाद से उनकी अच्युतानंदन से खटक गई.
मंत्री पद या सरकार में दबदबे को लेकर नहीं, बल्कि केरल की वाम राजनीति में दबदबे को लेकर. वीके अनंत बताते हैं कि –
“केरल की वाम राजनीति में हमेशा से दो गुट रहे हैं. मालाबार गुट और त्रावणकोर गुट. 1990 के अल्ले-पल्ले मालाबार गुट की अगुवाई कर रहे थे ईके नयनर, जो 1980 में एक साल, दस महीने के लिए मुख्यमंत्री भी रहे थे. त्रावणकोर गुट की अगुवाई कर रही थीं केआर गौरी उर्फ गौरी अम्मा, जिनका अभी 11 मई 2021 को ही निधन हुआ है. दोनों गुटों के बीच CPI(M) के अंदर ही एक पावर टसल चलता था. नयनर के गुट में थे पिनारायी विजयन और गौरी अम्मा के गुट में थे अच्युतानंदन. इसी गुटबाजी का असर विजयन और अच्युतानंदन के संबंधों पर भी पड़ा. 96 की सरकार में नयनर ने विजयन को मंत्री पद भी दिया, जिसके बाद विजयन का कद पार्टी के अंदर भी बढ़ा. फिर विजयन पार्टी के राज्य सचिव बने. हालांकि अच्युतानंदन कहीं ज़्यादा बड़े जननेता थे, लेकिन विजयन के इस उत्थान और पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी के बीच दोनों की खटक गई.”पोलित ब्यूरो से बेदख़ल विजयन और अच्युतानंदन के मतभेद धीरे-धीरे सार्वजनिक होते गए. दोनों एक-दूसरे की काट ढूंढने लगे. मीडिया में बयानबाजियां करने लगे. दरअसल 2004 में ईके नयनर के निधन के साथ ही विजयन और अच्युतानंद आमने-सामने आ गए थे. विजयन को लगता था कि पार्टी के भीतर उनकी स्थिति मजबूत हो चुकी है, इसलिए 2006 में उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार होना चाहिए. लेकिन सच ये था कि जनता के बीच अच्युतानंदन का रौला टाइट था. इस बीच 2005 में ये बात सामने आई कि विजयन और उनके समर्थक लोगों के बीच अच्युतानंदन को ऐसा कम्युनिस्ट नेता बता रहे हैं, जो समय के साथ नहीं चल पा रहा. बदले में अच्युतानंदन के समर्थकों ने विजयन को ऐसा नेता बताना शुरू कर दिया, जो कम्युनिस्ट विचारधारा को तार-तार कर रहा. बात अब तक भी दबी जुबान ही चल रही थीं.
लेकिन 2006 के चुनाव हुए और अच्युतानंदन मुख्यमंत्री बने. इसके बाद विजयन ने एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा –
“पिछले कुछ समय में ये साबित करने की कोशिश की गई है कि पार्टी के भीतर जो कुछ भी अच्छा हो रहा है, वो एक ही व्यक्ति की वजह से हो रहा है. पार्टी का सारा प्रतिनिधित्व वही व्यक्ति कर रहे हैं. और पार्टी में जो कुछ बुरा हो रहा है, वो भी एक दूसरे व्यक्ति की वजह से ही हो रहा है. इस तरह की छवि गढ़ने की कोशिश की जा रही है और इसके लिए पूरा ‘मीडिया सिंडिकेट’ एक व्यक्ति के साथ काम कर रहा है.”अच्युतानंदन की तरफ से भी जवाब आया –
“जो लोग ‘मीडिया सिंडिकेट’ जैसे टर्म उछाल रहे हैं, वो ख़ुद अपनी बात रखने के लिए भी मीडिया पर ही निर्भर हैं.”ग़ौर करिएगा, ये सारी बातें सार्वजनिक माध्यमों से चल रही थीं. अगले ही दिन विजयन का जवाब आया –
“अच्युतानंदन को मेरी तरफ इशारा करके ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए थी. एक पोलित ब्यूरो मेंबर को दूसरे पोलित ब्यूरो मेंबर के बारे में ऐसी बात बोलना शोभा नहीं देता. कुछ तो नैतिकता रखते.”अच्युतानंदन का जवाब – “नैतिकता तो पिनारायी विजयन को भी रखनी चाहिए थी.”
बात बढ़ती ही जा रही थी. पार्टी की भद्द पिट रही थी. CPI(M) ने कहा बाल बिलोकी बहुत मैं बांचा. 26 मई 2007 को पिनारायी विजयन और अच्युतानंदन, दोनों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई. दोनों को पार्टी के पोलित ब्यूरो से निष्कासित कर दिया. बल्कि अच्युतानंदन तो उस समय राज्य के मुख्यमंत्री भी थे, फिर भी पोलित ब्यूरो से बाहर हो गए. पोलित ब्यूरो यानी कम्युनिस्ट पार्टी की एग्ज़क्यूटिव कमेटी, जिसका सदस्य बनना सभी कम्युनिस्टों के लिए गर्व की बात होती थी. विजयन को इस सम्मानित जगह से निकाल दिया गया था.
पोलित ब्यूरो से बाहर होने पर दोनों नेताओं को धक्का लगा. अच्युतानंदन के सम्मान को ठेस पहुंची. वे CM ज़रूर थे, लेकिन धीरे-धीरे राजनीति से उनकी सक्रियता कम होने लगी. वहीं विजयन ने इसके ठीक उलट काम किया. उन्होंने दोगुनी ताकत से अपनी स्थिति मजबूत करने पर काम किया. केरल की राजनीति का श्राप ख़त्म किया 2011 में केरल में विधानसभा चुनाव हुए. केरल में चुनावों का एक ट्रेंड रहा है. यहां सरकारें दो पूर्ण कार्यकाल नहीं ले पातीं. यानी हर बार एंटी-इनकम्बेंसी का फैक्टर हावी रहता है. इस बार भी यही हुआ. CPI (M) की अगुवाई वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की हार हुई. कांग्रेस की अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की जीत हुई. ओमान चांडी मुख्यमंत्री बने और इसी के साथ ये तय हो गया कि अब अच्युतानंदन का राजनीतिक करिअर उत्तरार्ध पर है. अब विजयन की नज़र 2016 के चुनाव पर टिकी थी. 2015 में उन्होंने राज्य सचिव का पद छोड़ा और 20 साल बाद चुनाव लड़ने का फैसला किया.
2016 चुनाव का पूरा जिम्मा टीम विजयन ने संभाला. केरल की एंटी-इनकम्बेंसी का फैक्टर इस बार भी हावी रहा और CPI(M) के नेतृत्व में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की जीत हुई.
25 मई 2016 को केरल में एक बार फिर नाम पुकारा गया – पिनारायी विजयन.
इस बार भी नाम राज्यपाल ने पुकारा था. जस्टिस (रिटायर्ड) पी सतासिवम ने. लेकिन इस बार माननीय मंत्री जी, माननीय मुख्यमंत्री जी बन चुके थे.
पिनरायी विजयन की ताजपोशी हुई. उन्होंने न सिर्फ 5 साल सरकार चलाई, बल्कि 2021 में केरल के बरसों पुराने मिथक को भी तोड़ दिया. विजयन केरल के इतिहास के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने एक पूर्ण कार्यकाल लेने के बाद हुए चुनाव भी जीते.
लेकिन इन दोनों जीत के बीच में पिनारायी विजयन का नाम तमाम विवादों से भी जुड़ा. विजयन के विवाद केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर आप 5 जुलाई 2020 को जाते तो आपको ये दिन भी बाकी दिनों की तरह ही लगता. लेकिन भीतरखाने ये एक सामान्य दिन नहीं था. वजह- दो दिन पहले मिला एक इनपुट. इनपुट कि यहां भारी मात्रा में सोना पहुंचने वाला है. आख़िरकार 5 जुलाई को एक उड़ान यूएई से तिरुवनंतपुरम आती है और ये इनपुट सच साबित होता है. एयरपोर्ट पर भारी मात्रा में सोना पकड़ा जाता है. पता चलता है कि कार्गो फ्लाइट के जरिये ये सोना यहां पहुंचा था. पैकेट पर जो पता लिखा था, वो यूएई के वाणिज्य दूतावास का था. कस्टम विभाग इस पैकेट को जब्त कर लेता है. विएना संधि के मुताबिक इस बैग को दूतावास के प्रतिनिधि के सामने खोला गया. पैकेट में करीब 30 करोड़ रुपये की कीमत का सोना निकलता है.
इस बीच एक नाम सामने आया – स्वप्न सुरेश. जो कभी टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट में सलाहकार रही थीं और पिनरायी विजयन के सचिव एम शिवशंकर की करीबी बताई जा रही थीं. इन दोनों के नाम सामने आने के बाद मुख्यमंत्री विजयन और उनकी सरकार बुरी तरह घिर गई. एम शिवशंकर को पद से हटा दिया गया.
10 जुलाई 2020 को NIA ने इस मामले की जांच संभाली. स्वप्न सुरेश समेत कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई. अक्टूबर तक सबको जमानत मिल गई. 2021 के चुनाव में विजयन के ख़िलाफ इसे बड़ा मुद्दा बनाया गया लेकिन कोविड काल में विजयन के किए बाकी कामों के आगे ये मुद्दा फिलहाल दब गया.
इसके अलावा विजयन का नाम केरल इंफ्रास्ट्रक्चर बोर्ड विवाद से भी जुड़ा. अभी हाल ही में 4 मार्च 2021 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) के CEO केएम अब्राहम और डिप्टी CEO को नोटिस भेजकर पूछताछ में शामिल होने के लिए बुलाया. दरअसल KIIFB की स्थापना 1999 में की गई थी. इसे बनाया गया था, ताकि पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स यानी सरकारी उपक्रमों को इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश के लिए वित्तीय सहायता दी जा सके. 2016 में विजयन सरकार ने अपने पहले बजट में KIIFB को इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए फंड जुटाने वाली संस्था में बदल दिया. कहा गया कि बजट में घोषित इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को पूरा होने में कई साल लग जाते हैं. ऐसे में काम में फुर्ती आए और प्रोजेक्ट को समय पर पैसा मिले, इसके लिए KIIFB के जरिए लोन की प्रक्रिया का प्लान तैयार किया गया. मुख्यमंत्री विजयन KIIFB के इसके चेयरमैन बने और वित्तमंत्री थॉमस इसाक वाइस बने चेयरमैन. और इसी काम में गड़बड़ी के आरोप हैं.
दरअसल, 18 जनवरी को CAG की केरल राज्य की रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किया गया. रिपोर्ट में CAG ने कहा कि KIIFB के लिए पैसा असंवैधानिक तरीके से जुटाया गया है. रिपोर्ट में कहा गया था कि KIIFB की ‘मसाला बॉन्ड’ के ज़रिये जुटाई गई राशि संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं है और इसमें विधायी मंजूरी भी नहीं ली गई.
मुख्यमंत्री विजयन ने KIIFB पर CAG की सभी आलोचनात्मक टिप्पणियों को खारिज करते हुए 23 जनवरी को CAG की रिपोर्ट के खिलाफ़ एक रेजॉल्यूशन पास किया. कहा कि ‘CAG की रिपोर्ट राज्य के विकास के हितों के खिलाफ़ है और राजनीति से प्रेरित है. इसका रवैया पेशेवर नहीं है.’
चुनाव से ठीक पहले इसी संबंध में ED का नोटिस मिलने पर CM विजयन ने चुनाव आयोग को पत्र भी लिखा था और इसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन बताया था. हालांकि विजयन के ख़िलाफ UDF से लेकर BJP तक ने इस मुद्दे को लगातार उछाला.
2021 के विधानसभा चुनाव से पहले पिनारायी विजयन पर बड़े आरोप लगे. हालांकि इसका असर चुनाव के नतीजों पर नहीं रहा. विजयन ने अपनी सीट धर्मादम भी करीब 80 हज़ार वोट से जीती. (फाइल फोटो- PTI)
मुंडु उड़ुथ मोदी पिनरायी विजयन को केरल में मुंडु उड़ुथ मोदी कहा जाता है. यानी लुंगी वाला मोदी. उनमें लोगों को नरेंद्र मोदी की छवि क्यों दिखती है? इसका जवाब संभवतः विजयन स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स में छिपा है. 11 मार्च 2021 को CPI(M) ने चुनाव के लिए लिस्ट जारी की. इसमें 33 सिटिंग विधायकों के टिकट कट गए. कारण था पार्टी की ‘टू टर्म पॉलिसी’. यानी किसी भी विधायक ने अगर लगातार दो कार्यकाल पूरे कर लिए हैं तो वो तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकता. ये एक किस्म का कूलिंग पीरियड रहेगा. इस गैप के बाद वो फिर से चुनाव लड़ सकेगा.
पिनरायी विजयन की राजनीति को करीब से देखने वाले लोग कहते हैं कि वो जल्दा-जल्दी अपने समानांतर किसी नेता को उठने नहीं देते. ‘टू टर्म पॉलिसी’ भी उनकी इसी स्ट्रैटजी का नतीजा थी.
बल्कि चुनाव जीतने के बाद भी इसकी झलक मिली, जब केके शैलजा को कैबिनेट से हटा दिया गया. केके शैलजा पिछली कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री थीं और कोविड काल में उनके मैनेजमेंट की देश भर में चर्चा हुई थी. कोरोना वायरस की पहली लहर में केरल बाकी राज्यों की तुलना में काफी महफूज़ रहा था और इसका बड़ा श्रेय केके शैलजा को गया था. उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी. भीतरखाने ये बात भी होने लगी थी कि क्या केके शैलजा 2026 में मुख्यमंत्री पद की दावेदार हो सकती हैं. लेकिन उन्हें कैबिनेट से हटाकर एक तरह से इन संभावनाओं पर पर विराम सा लगा दिया गया है. विजयन का ये फैसला इतना अप्रत्याशित रहा कि CPI(M) महासचिव सीताराम येचुरी ने तो पल्ला ही झाड़ लिया. साफ कह दिया कि- ये राज्य का अपना मसला है.
विजयन के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में सीताराम येचुरी (बाएं) भी पहुंचे. हालांकि के.के. शैलजा को मंत्रिमंडल से हटाने के विजयन के फैसले से येचुरी सहमत नहीं दिख रहे हैं. (फोटो- PTI)
इसके अलावा विजयन अपनी वामपंथी छवि और मैनेजर की छवि के बीच बराबर संतुलन रखने की कोशिश करते रहते हैं. कैसे? केरल का पद्मनाभ स्वामी मंदिर देश के सबसे बड़े, सबसे अमीर मंदिरों में से है. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन कभी इस मंदिर नहीं जाते. एक तरफ आप विजयन का ये अप्रोच देख रहे हैं, जो पूरी तरह उनकी कम्युनिस्ट छवि स्थापित कर रहा है. दूसरी तरफ यही पिनरायी विजयन हैं, जो 2016 में इकॉनमिस्ट गीता गोपीनाथ को सरकार की फाइनेंशियल अडवाइज़र के तौर पर नियुक्त करते हैं. इसे सरकार की ज़्यादा से ज़्यादा प्राइवेट सेक्टर निवेश पाने की कोशिश के तौर पर देखा गया था.
हफिंगटन पोस्ट
में पिनरायी विजयन पर एक विस्तृत आर्टिकल है. इसमें लिखा है कि प्रभात पटनायक, जो अच्युतानंदन सरकार में केरल प्लानिंग बोर्ड के उपाध्यक्ष थे, वो गीता गोपीनाथ को लाने के विजयन के फैसले के ख़िलाफ थे. उन्होंने कहा भी कि सरकारी तंत्र का उपयोग कर प्राइवेट सेक्टर निवेश को आकर्षित करने की ये कोशिश ठीक नहीं है. साफ है कि ये वाम नेता विजयन का एक नॉन-लेफ्ट निर्णय रहा. दोनों उदाहरण से आप विजयन के पॉलिटिकल कॉन्ट्रास्ट को समझ सकते हैं.
पिनारायी विजयन के स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स की तुलना क्यों नरेंद्र मोदी से की जा रही है? आगे पढ़िए.. (फाइल फोटो- PTI)
यही विजयन हैं, जिन्होंने ओपन मैग्ज़ीन
से बात करते हुए कहा था –
“बेशक हम मार्क्सवादी हैं. लेकिन अगर बात युवाओं के लिए नौकरियां बढ़ाने की है, तो प्राइवेट सेक्टर निवेश पाने की कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं है. आख़िर हमें केरल का विकास भी तो देखना है.”चीन के एक मार्क्सवादी नेता हुए थे- डैंग. डैंग ने एक बार कहा था –
“एक बिल्ली जब तक चूहा पकड़ने का काम कर रही है, तब तक इससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता कि बिल्ली काली है या सफेद.”उनका इशारा कैपिटलिज़्म के साथ सामंजस्य बिठाने की एक अलहदा विचारधारा की तरफ था. विजयन भी ‘डैंग स्कूल ऑफ मार्क्सवाद’ की इसी शाखा से निकले जान पड़ते हैं. साथ ही पिछड़े तबके से कनेक्ट बना रहे, इसके लिए वो गाहे-बगाहे अपने ‘ताड़ी वाले का बेटा’ होने का रेफरेंस छेड़ने से भी नहीं चूकते. 2019 में ही एक चुनावी रैली में विजयन ने कहा था –
“मैं एक ताड़ी उतारने वाले का बेटा हूं. कुछ लोग हमेशा मुझे मेरी जाति याद दिलाते रहते हैं. वो ये नहीं देख पा रहे कि ताड़ी उतारने वाले का बेटा कैसे मुख्यमंत्री बन गया!”तब भी राजनीतिक पंडितों ने अपना हिसाब बिठा लिया था. कि ये संदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए था. कैसे? क्योंकि अपने अतीत को इस तरह से मंच पर उतारने का काम नरेंद्र मोदी बख़ूबी करते आए हैं. और शायद यही कुछ कथित समानताएं हैं, जो पिनारायी विजयन को मुंडु उड़ुथ मोदी बनाती हैं.