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PoK में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शन, राजनाथ सिंह की कौन सी बात याद दिलाई जा रही?

पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में महंगाई के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं. ये प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं. कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की PoK पर पकड़ कमज़ोर हो रही है. असलियत क्या है?

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PoK में प्रदर्शन की तस्वीर. (एजेंसी फ़ोटो)

पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) में ज़बरदस्त बवाल चल रहा है. सरकार ने बिजली बिल पर टैक्स लगाया कि लोग प्रोटेस्ट करने लगे. कई इलाक़ों में प्रोटेस्ट हिंसक हो गया. हिंसा में एक पुलिसवाले की मौत हो गई, 100 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं. हंगामे के बाद पाकिस्तान सरकार ने पाक रेंजर्स को PoK रवाना कर दिया. सोशल मीडिया और इंटरनेट पर पाबंदी लगाने की बात चल रही है. और, सरकार क्या कर रही? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने 13 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाई. आनन-फानन में PoK के लिए लगभग 23 अरब पाकिस्तानी रुपये का एलान करना पड़ा. ये रकम भारतीय रुपये में लगभग सात सौ करोड़ होगी.

PoK में हो रही हिंसा के परिदृष्य में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की एक बात याद दिलाई जा रही है. बीती 5 मई को उन्होंने कहा था, कि जिस तरह से जम्मू-कश्मीर में ज़मीनी हालात बदले हैं, जिस तरह से क्षेत्र में आर्थिक प्रगति हो रही है और जिस तरह से वहां शांति लौटी है, PoK के लोग ख़ुद ये मांग करेंगे कि उन्हें भारत में विलय कर लेना चाहिए. फिर 13 मई को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा था कि PoK भारत का अंग था, है और हमेशा रहेगा.

ज़मीन पर हो रही हिंसा और ये बयान एक बड़ा सवाल छोड़ रहे हैं - क्या PoK पर पाकिस्तान की पकड़ कमज़ोर पड़ रही है?

इस सवाल का जवाब खोजने के लिए PoK का इतिहास और वर्तमान ठीक से जान लेना होगा.

PoK का पूरा इतिहास

1839 में महाराजा रणजीत सिंह दुनिया से रुख़सत हुए और उत्तर-पश्चिम भारत में सिखों का साम्राज्य सिमटता चला गया. 1845 में पहला एंग्लो-सिख युद्ध हुआ. अंग्रेज़ जीते और 1846 में 'लाहौर समझौते' पर दस्तख़त हुए. इसके तहत, कश्मीर अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े में चला गया. लेकिन अंग्रेज़ इस पहाड़ी और ठंडे इलाक़े में अपने क़ीमती समय और पैसा नहीं खपाना चाहते थे. लिहाज़ा 75 लाख रुपए लेकर कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान का इलाक़ा महाराजा गुलाब सिंह के हवाले कर दिया. हालांकि, अपने पॉलिटिकल एजेंट्स की मदद से उन्होंने इस इलाक़े पर बाहर से कंट्रोल बनाए रखा.

कट टू 1947. 15 अगस्त को भारत आज़ाद मुल्क बन गया. आज़ादी के साथ विभाजन भी हुआ. पाकिस्तान नाम से नया देश अस्तित्व में आया. उस वक़्त भारत 560 से ज़्यादा रियासतों में बंटा था. उन्हें भारत और पाकिस्तान में से चुनने की छूट मिली. अधिकतर ने भारत के साथ विलय का विकल्प चुना. मगर कुछ रियासतों पर बात अटक गई. इनमें कश्मीर भी था. उस समय कश्मीर के राजा महाराजा हरी सिंह थे. उनका कहना था कि न वो पाकिस्तान के साथ जाएंगे, न भारत के. एक स्वतंत्र रियासत के रहेंगे. भारत चाहता तो था कि कश्मीर अपने साथ आए, लेकिन ज़बरदस्ती नहीं की.

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उधर, पाकिस्तान ने कश्मीर पर क़ब्ज़े की क़सम खाई हुई थी. इसी बाबत सितंबर 1947 में लाहौर में एक सीक्रेट मीटिंग हुई. मीटिंग की अध्यक्षता पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली ख़ान कर रहे थे. एजेंडा था - हरी सिंह को पाकिस्तान में विलय के लिए कैसे राज़ी किया जाए. उस वक़्त तक हरी सिंह पाकिस्तान के साथ स्टैंड-स्टिल एग्रीमेंट कर चुके थे. भारत से भी करना चाहते थे. लेकिन भारत तैयार नहीं हुआ. हरी सिंह चाहते थे येन केन प्रकरेण उनकी रियासत अलग रहे, भारत-पाक किसी में विलय न हो. लेकिन इसे प्रैक्टिकल नहीं समझा गया. भारत ने संयम बरता गया, मगर पाकिस्तान हर हाल में कश्मीर चाहता था.

इतिहासकार एक दिलचस्प वाक़या सुनाते हैं: पाकिस्तान की स्थापना के बाद गवर्नर-जनरल बने मुहम्मद अली जिन्ना की तबीयत ख़राब थी. डॉक्टरों ने सलाह दी, साफ़ हवा के लिए छुट्टियों पर जाइए. जिन्ना की पहली पसंद थी कश्मीर. जिन्ना माने बैठे थे कि कश्मीर उनका है. उन्होंने एक कर्नल दौड़ाया. कर्नल कश्मीर गया. लौटा, तो साथ में हरी सिंह का जवाब लेकर आया - “जिन्ना को कश्मीर में घुसने की इजाज़त नहीं है”. इस जवाब से जिन्ना झल्ला उठे. उन्हें अब कश्मीर किसी भी हालत में चाहिए था.

लियाकत अली ने मीटिंग में विचार दिया कि हमला कर दिया जाए. मगर वो विचार ख़ारिज कर दिया गया. फिर लियाकत अली ने अपनी दूसरी चाल चली. कबायलियों को भेजने की. लैरी कॉलिंस और डोमिनिक लेपियर अपनी किताब, 'फ़्रीडम ऐट मिडनाइट' में लिखते हैं, लियाकत अली का प्लान था कि कबायली कश्मीर में ख़ूब मारकाट मचाएंगे, जिससे हरी सिंह घबराकर पाकिस्तान से मदद मांगने को मजबूर हो जाएंगे.

इस साज़िश को नाम दिया गया, 'ऑपरेशन गुलमर्ग'. इसकी शुरुआत 22 अक्टूबर को हुई. कबायलियों ने सबसे पहले उस पावरहाउस को उड़ाया, जो श्रीनगर में बिजली पहुंचाता था. महाराजा हरी सिंह के महल की बिजली गई तो उन्हें भारत की याद आई. भारत ने अब तक कश्मीर में सीधा दखल नहीं दिया था.

सरदार वल्लभाई पटेल के साथ महाराजा हरि सिंह (फ़ोटो - विकी कॉमन्स)

24 अक्टूबर की रात. महाराजा हरी सिंह अपने महल में थे. अचानक पूरे श्रीनगर की लाइट चली गई. महाराज को अंदाज़ा हो गया कि जान ख़तरे में हैं. वो बहुत प्रेशर में थे, क्योंकि गिलगित बलटिस्तान में भी पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया गया था. हरी सिंह के प्रतिनिधि गवर्नर को क़ैद करके वहां प्रोविज़नल सरकार बना दी गई. महाराजा को लगा, कि पाकिस्तान श्रीनगर पर भी क़ब्ज़ा कर लेगा. इसलिए उन्होंने तुरंत भारत की मदद के लिए एक ख़त लिखा.

महाराजा से मिलने के लिए वीपी मेनन को भेजा गया. मेनन अपने साथ फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को भी ले गए. मानेकशॉ तब लेफ़्टिनेंट कर्नल हुआ करते थे. मेनन ने महाराजा को सबसे पहले सलाह दी कि वो जम्मू चले जाएं और वो लौटकर दिल्ली आ गए. 26 अक्टूबर को एक हाई-लेवल मीटिंग बुलाई गई, जिसमें नेहरू, पटेल और माउंटबेटन थे. माउंटबेटन ने सलाह दी कि भारत को हरी सिंह के शामिल होने के बाद ही सैन्य हस्तक्षेप करना चाहिए. तय किया गया कि मेनन एक बार दोबारा जाएंगे और विलय पत्र में साइन करवाकर लौटेंगे. मेनन ने वही किया. जब वो दिल्ली लौटे, सरदार पटेल उनका इंतज़ार कर रहे थे. विलय-पत्र देखकर उन्होंने तुरंत डिफ़ेंस कमिटी की मीटिंग बुलाई और तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर का विलय पत्र स्वीकार किया जाता है. अगले ही दिन भारत ने श्रीनगर के लिए हवाई मार्ग और गुरदासपुर के रास्ते फ़ौज रवाना कर दी.

श्रीनगर की आम जनता से भारतीय फ़ौज का कोई झगड़ा नहीं हुआ. बाक़ायदा सबसे बड़े राजनैतिक गुट - नेशनल कॉन्फ़्रेन्स - के लोगों ने सेना की मदद की. भारतीय फ़ौज ने न केवल लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि हमलावरों को पूरे कश्मीर से खदेड़ दिया. कबायलियों को पीछे हटता देख पाकिस्तान फ़ौज ने पूरी ताक़त से हमला कर दिया. जंग छिड़ गई. फिर भारत ने आधिकारिक तौर पर इस मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र में अपील कर दी. UN में बहस के बाद एक प्रस्ताव पास हुआ और इसके बाद युद्धविराम की घोषणा हो गई. अप्रैल 1948 में प्रस्ताव संख्या 47 में जनमत संग्रह पर सहमति बनी. कहा गया कि भारत और पाकिस्तान दोनों जम्मू-कश्मीर पर नियंत्रण का मुद्दा जनमत संग्रह के स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रित तरीक़े से तय होना चाहिए. इसके लिए शर्त तय की गई थी कि कश्मीर में लड़ने के लिए जो पाकिस्तानी नागरिक या कबायली आए थे, वे वापस चले जाएं. लेकिन 1950 के दशक में भारत ने कहा कि पाकिस्तानी सेना पूरी तरह कभी नहीं हटी.

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ख़ैर... 1 जनवरी, 1949 को युद्धविराम लागू हो गया. इस संघर्ष के बाद जम्मू-कश्मीर का दो-तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा. इसमें जम्मू, लद्दाख और कश्मीर घाटी शामिल थे. एक-तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के पास गया. जो हिस्सा पाकिस्तान के पास गया, उसको पाकिस्तान आज़ाद जम्मू-कश्मीर (AJK) बुलाता है. वहीं, भारत इसे पाकिस्तान-ऑक्युपाइड कश्मीर (PoK) का नाम देता है. पाकिस्तान ने PoK में से कुछ हिस्सा चीन को सौंप रखा है. भारत की नीति पूरे PoK को वापस लेने की है.

22 फ़रवरी 1994 को भारत की संसद ने एक प्रस्ताव पास किया था. इसमें कहा गया था, कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और हमेशा रहेगा. पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के जिन इलाकों पर अवैध क़ब्ज़ा किया है, उसको खाली कर देना चाहिए. मगर पाकिस्तान इसके लिए तैयार नहीं है. उलटा वो पूरे जम्मू-कश्मीर को अपने में मिलाने की कोशिश करता रहता है. इसके लिए वो आतंकवाद को भी शह देता है.

PoK का स्टेटस क्या है?

पाकिस्तान में कुल चार प्रांत हैं - पंजाब, सिंध, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वाह और बलोचिस्तान. पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक़, PoK उसका प्रांत नहीं है. बल्कि कश्मीर का मुक्त कराया गया हिस्सा है. प्रांत घोषित नहीं किया है, मगर कई मामलों में स्वायत्तता भी मिली है. उनका अपना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री है. अपना संविधान भी है. ख़ुद का हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट है. इसके बावजूद PoK से जुड़े सभी मसलों पर अंतिम फ़ैसला पाक फ़ौज लेती है.

PoK का संविधान पाकिस्तान में विलय की मुख़ालफ़त करने वाले लोगों और पार्टियों को काम करने से रोकता है. असेम्बली के सदस्यों को पाकिस्तान के प्रति वफ़ादारी की क़सम खानी पड़ती है.

The day Kashmir acceded to India in 1947 | Commons
जिस दिन 1947 में कश्मीर भारत में शामिल हुआ था. (फ़ोटो - विकी कॉमन्स)

PoK पर पाकिस्तान सरकार इनडायरेक्ट कंट्रोल रखती है. कश्मीर काउंसिल के ज़रिए. इस काउंसिल में 14 मेंबर हैं. इनकी नियुक्ति पाकिस्तान के प्रधानमंत्री करते हैं. 14 में से छह को पाकिस्तान सरकार ख़ुद चुनती है. बाकी के आठ सदस्य PoK की असेम्बली से आते हैं.

आज PoK की चर्चा क्यों?

जैसा ऊपर बताया, PoK में महंगाई और बिजली की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं. इसको जम्मू-कश्मीर जॉइंट आवामी एक्शन कमिटी (JAAC) कर रही है. उनकी तीन मुख्य मांगें हैं:

  • सरकार आटे की क़ीमत में सब्सिडी दे. ताकि सस्ते दामों में आटा मिले, और ग़रीबों को आसानी से खाना मिले.
  • सरकार सस्ते दामों पर बिजली दे. POK, पाकिस्तान को 3500 मेगावाट बिजली देता है. POK को मात्र 400 मेगावाट बिजली की ज़रूरत होती है. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि बिजली की दर सस्ती होनी चाहिए.
  • POK के एलीट क्लास को जो अतिरिक्त सुविधाएं मिलीं है, उन्हें ख़त्म किया जाए.

JAAC पिछले 11 महीनों से महंगाई के ख़िलाफ़ छिटपुट प्रोटेस्ट कर रहे थे. बीती 9 मई को उन्होंने राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद तक मार्च करने का एलान किया. पुलिस ने उनको रोकने के लिए गिरफ़्तारी शुरू की. फिर 11 मई को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प बढ़ी. इसमें एक पुलिसवाले की मौत हो गई. जबकि 90 से अधिक लोग घायल हो गए.

12 मई को JAAC और PoK सरकार के बीच बातचीत बेनतीजा रही. प्रदर्शनकारी आगे बढ़ने लगे. इसके चलते इस्लामाबाद में हलचल हुई. फ़ौज ने पाक रेंजर्स और फ़्रंटियर कोर के जवानों को PoK रवाना किया. पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने डिप्लोमेटिक मोर्चा संभाला. वे किसी तरह प्रदर्शनकारियों को शांत कराना चाहते थे. शुरुआत से ही उन्होंने कहा, कि जेनुइन मांगों पर विचार किया जाएगा.

महिलाएं मानव श्रंखला बना कर प्रदर्शन कर रही हैं. (फ़ोटो - रॉयटर्स)

13 मई को शहबाज़ शरीफ़ ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई. फिर सात सौ करोड़ के पैकेज का एलान किया. इसके बावजूद प्रदर्शनकारी पीछे नहीं हटे. बाद में PoK के प्रधानमंत्री चौधरी अनवारुल हक़ ने घोषणा की, कि सरकार ने प्रदर्शनकारियों की सभी मांगें मान लीं है. इस वीडियो के शूट होने तक प्रदर्शनकारी पीछे नहीं हटे थे.

इस मामले से जुड़े अपडेट्स आपको लल्लनटॉप पर मिलते रहेंगे.

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