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कांग्रेस से ज्यादा सपा को क्यों टेंशन देगा संभल का कल्कि मंदिर, लोकसभा चुनाव के लिए मोदी का 'सुपर सिक्स' दांव

यूपी के मुरादाबाद में Pasmanda Muslims सम्मेलन और संभल में प्रधानमंत्री Narendra Modi के हाथों कल्कि मंदिर का शिलान्यास, West UP में सपा-बसपा और कांग्रेस को एक साथ मात देने के लिए BJP ने 'Super Six' प्लान बनाया है. अगर भाजपा का ये तीर निशाने पर लगा तो Lok Sabha Election के साथ-साथ यूपी की 31 विधानसभा सीटों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा.

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कल्कि धाम के बहाने बीजेपी ने सपा-कांग्रेस दोनों को टेंशन में डाल दिया (सांकेतिक फोटो)

यूपी के संभल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने जब कल्कि मंदिर (Kalki Dham) का शिलान्यास किया तो उनके साथ आचार्य प्रमोद कृष्णम भी मौजूद थे. वही प्रमोद कृष्णम (Acharya Pramod Krishnam) जो कांग्रेस के टिकट पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) को 2019 लोकसभा चुनावों में लखनऊ सीट पर चुनौती दे चुके हैं. ऐसे में पीएम मोदी (PM Modi) के साथ उनकी मौजूदगी से दर्द कांग्रेस (Congress) को तो हुआ ही, मगर यूपी की राजनीति में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने वाली समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) भी कुछ कम  बेचैन नहीं हुई. वो शोले में क्या बोला था गब्बर ने...हां, "बहुत याराना लगता है..." है ना? अरे काहे का याराना, सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)  की परेशानी का असली कनेक्शन तो संभल और आसपास की 6 लोकसभा सीटों से जुड़ा है. जहां बरसों से M-Y Formula यानी कि मुसलमान और यादव वोटर चुनाव नतीजों को तय करते आ रहे हैं. मगर अब BJP ने साइकिल पर उसी के गढ़ में घुसकर हल्ला बोलने का एलान कर दिया है.

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले समाचार एजेंसी रॉयटर्स (Reuters report on UP Caste politics) ने यूपी के जातिगत वोट बैंक की राजनीति पर एक रिपोर्ट निकाली थी. उस रिपोर्ट के मुताबिक पूरी यूपी में 19 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. जबकि 41 प्रतिशत OBC और 21 फीसदी SC-ST वोटर हैं. अपर कास्ट वोटरों का अनुपात 19 फीसदी है. उसी रिपोर्ट में OBC और दलित वोटरों का भी वर्गीकरण किया गया. आसान शब्दों में कहें तो यूपी के कुल मतदाताओं में से 9 फीसदी यादव, 12 फीसदी गैर यादव पिछड़ा वोटर और 20 प्रतिशत अति पिछड़ा वोटर शामिल हैं. इसी तरह यूपी के कुल वोटरों में 13 फीसदी जाटव और 8 फीसदी अति दलित वोटर आते हैं.

Reuters की उस रिपोर्ट में यूं तो अपर कास्ट वोटरों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है, मगर उन पर बात फिर किसी दिन. इस आर्टिकल में हम अब चलते हैं संभल-मुरादाबाद इलाके की 6 लोकसभा सीटों पर, जहां मुस्लिम आबादी करीब पचास फीसदी है. 6 लोकसभा सीटें बोले तो- संभल, मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, बिजनौर और नगीना. बीजेपी की नज़र इन्हीं 6 लोकसभा सीटों पर सपा को पटखनी देने पर टिकी है. आंकड़े बताते हैं कि इन सभी 6 सीटों पर समाजवादी पार्टी सबसे ज्यादा समय तक राज कर चुकी है. लल्लनटॉप की इस रिपोर्ट में एक-एक करके इन सभी सीटों का सियासी पंचनामा कर लेते हैं. सबसे पहले बाद संभल की, जहां पर आचार्य कृष्णम, भाजपा और कल्कि पुराण (कुछ जगहों पर इसे उपपुराण भी कहा गया है) के अनुसार भगवान विष्णु के बारहवें अवतार यानी कल्कि को जन्म लेना हैं.

संभल लोकसभा सीट जहां मौजूद है कल्कि धाम
1977 में पहली बार संभल लोकसभा सीट पर चुनाव हुए, तब से लेकर 1984 के चुनावों तक कांग्रेस ने इस सीट पर जीत की हैट्रिक बनाई. 1989 में 'बोफोर्स घोटाले' की आंधी में कांग्रेस यहां से विदा हुई तो अब तक घर वापसी नहीं कर पाई है. बाहुबली डीपी यादव (D P Yadav) ने 1996 में पहली बार संभल में समाजवादी झंडा फहराया, फिर 1998 और 1999 के चुनावों में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने इस सीट की नुमाइंदगी की. 2004 में नेताजी के छोटे भाई रामगोपाल यादव (Ram Gopal Yadav) संभल के सांसद बने. 2009 में हाथी ने साइकिल को रौंदा डाला. बसपा के टिकट पर शफीकुर्रहमान बर्क ने सपा का किला ध्वस्त किया. और फिर 2014 में मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने पहली बार यहां भगवा फहराया. 2019 में शफीकुर्रहमान बर्क एक बार फिर संभल के सांसद बनें मगर अबकी बार वो हाथी पर नहीं बल्कि साइकिल पर सवार थे.

1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में मुलायम सिंह यादव संभल सीट पर जीत दर्ज कर चुके हैं. (फोटो पीटीआई)

संभल का वोट बैंक
2019 में जारी चुनाव आयोग आंकड़ों के अनुसार संभल में करीब 16 लाख से अधिक वोटर हैं. इसमें करीब नौ लाख पुरुष और सात लाख महिला वोटर हैं. 2014 में यहां 62.4 फीसदी मतदान हुआ था. यहां करीब 40 प्रतिशत हिंदू और 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है. मुस्लिम वोटरों की बात करें तो करीब साढ़े आठ लाख मुस्लिम वोटर हैं. जबकि अनुसूचित जाति के करीब 2.75 लाख, डेढ़ लाख यादव और 5.25 लाख में पिछड़ा और सामान्य वोटर रहते हैं. संभल लोकसभा सीट में 5 विधानसभा आती हैं...चंदौसी, असमौली, संभल, कुदरकी और बिलारी. इनमें से 4 सीटों पर सपा का कब्जा है, जबकि चंदौसी सुरक्षित सीट BJP के पास है.

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पसमांदा मुसलमानों का गढ़ मुरादाबाद लोकसभा सीट
1952 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनावों के दौरान ही मुरादाबाद सीट का गठन हो चुका था. पहले दो चुनावों में कांग्रेस का यहां कब्जा रहा, मगर 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी सैयद मुज्जफर हुसैन ने ये बता दिया कि कांग्रेस को हराया जा सकता है. 1967 में भारतीय जनसंघ के ओम प्रकाश त्यागी ने ये सीट जीती और यहां भगवा लहराया. तब से लेकर अब तक सिर्फ दो ही बार कांग्रेस वापस यहां से जीत पाई है. एक बार 1984 में जब इंदिरा गांधी की मौत के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस पार्टी 400 के पार जा पहुंची थी. दूसरी बार 2009 में जब कांग्रेस ने क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन (Mohammad Azharuddin) को अपना उम्मीदवार बनाया था. 2014 के मोदी लहर में बीजेपी ने ये सीट जीती थी, मगर 2019 में एस.टी.हुसैन ने यहां सपा का परचम लहरा दिया. 1952 से लेकर 2019 तक इस सीट पर अब तक 4 बार कांग्रेस, 3 बार बीजेपी (जनसंघ को मिलाकर), 3-3 बार सपा और जनता दल ने जीत हासिल की है. जबकि दो बार ये सीट निर्दलीय और अन्य के खाते में गई है.

मुस्लिम बहुल मुरादाबाद लोकसभा सीट
2019 के चुनाव के आंकड़ों के अनुसार मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र में करीब 1941200 वोटर हैं। इसमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 880000 है. जो कुल मतों का 45 फीसदी से अधिक है.  अनुसूचित जाति के जाटव मतदाताओं की संख्या करीब 180000 और वाल्मीकि वोटर 43000 है. ये संख्या कुल मतों का करीब 10 प्रतिशत है. इनमें करीब 29000 वोटर यादव जाति से ताल्लुक रखते हैं, इन्हें सपा का वोटर कहा जाता है. इसके अलावा 150000 ठाकुर, 149000 सैनी, 74000 वैश्य, 71000 कश्यप, 5000 जाट, 55000 प्रजापति, 48000 पाल, 45000 ब्राह्मण, 42000 पंजाबी, 15000 विश्नोई वोटर हैं. इन सभी वोटों को साधने के लिए भाजपा ने अभी से ताकत झोंक दी है. पसमांदा मुसलमानों को साधने के लिए पार्टी यहां पसमांदा मुस्लिम सम्मेलन कर चुकी है. जबकि रालोद मुखिया जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) के NDA में आ जाने के बाद जाटों की नाराजगी भी काफी हद तक दूर होने की उम्मीद की जा रही है.

क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन ने 2009 में कांग्रेस को लंबे समय बाद मुरादाबाद सीट पर जीत दिलाई (फोटो- इंडिया टुडे)

मुरादाबाद लोकसभा सीट में कुल 6 विधानसभा सीटें आती हैं. कांठ, ठाकुरद्वारा, बिलारी, मुरादाबाद ग्रामीण, मुरादाबाद नगर और कुंदरकी . मौजूदा समय में सिर्फ मुरादाबाद नगर सीट पर ही बीजेपी का कब्जा है, बाकी जगह सपा के विधायक हैं.

एक्शन से भरपूर रामपुर लोकसभा सीट
1952 में पहले लोकसभा चुनावों से लेकर 1971 तक रामपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. 1977 की जनता लहर में यहां कांग्रेस की पहली बार हार हुई और जीत मिली भारतीय लोक दल को. 1980 में दोबारा ये सीट कांग्रेस के पास आई और 1989 तक बनी रही. 1991 की राम मंदिर लहर में भाजपा ने रामपुर में पहली बार जीत हासिल की. उसके बाद 1996 में कांग्रेस की बेगम नूर बानो, 1998 में बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी और 1999 में फिर से कांग्रेस की बेगम नूर बानो ने जीत दर्ज की. 2004 और 2009 में सपा की जयाप्रदा ने इस सीट पर जीत हासिल की. 2014 में बीजेपी के डॉ नायपाल सिंह ने रामपुर सीट जीती तो 2019 में सपा के आजम खान को जीत मिली. आजम खान की सदस्यता रद्द हो जाने के बाद हुए 2022 में हए उपचुनावों में बीजेपी के घनश्याम लाल लोधी ने ये सीट वापस जीत ली.

बॉलीवुड अदाकारा जयाप्रदा ने दो बार रामपुर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया है (फोटो- आजतक)

मुस्लिम बहुल रामपुर का चुनावी गणित
रामपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब 16 लाख से अधिक मतदाता हैं. 2019 के आंकड़ों की बात करें तो इनमें करीब 872084 वोटर पुरुष हैं, जबकि 744900 महिला वोटर हैं. 2014 में यहां कुल 59.2 फीसदी वोट पड़े थे. इनमें से भी 6905 नोटा को गए थे. 2011 की गणना के अनुसार रामपुर क्षेत्र में कुल 50.57 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है, जबकि 45.97 प्रतिशत से अधिक हिंदुओं की जनसंख्या है. आंकड़ों पर नजर डालें तो पूरे यूपी में सबसे अधिक रामपुर में मुस्लिम जनसंख्या है. इस सीट की एक खासियत ये भी है कि देश के पहले शिक्षामंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आजाद भी इसी सीट से सांसद थे. रामपुर में विधासभा की 5 सीटें हैं. स्वार, चमरउआ, बिलासपुर, रामपुर और मिलक. इनमें से 3 सीटों पर बीजेपी और एक-एक पर सपा और अपनादल (सोनेलाल गुट) का कब्जा है.

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यूपी में लाल सलाम का पहला गढ़ अमरोहा
1952 से लेकर 1962 तक के लोकसभा चुनावों में अमरोहा सीट पर कांग्रेस पार्टी काबिज रही. 1967 में इस सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानि CPI का कब्जा हो गया जो कि 1972 तक बना रहा. 1977 में जनता पार्टी ने यहां जीत दर्ज की. 1984 में इंदिरा गांधी हत्या के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस ने सहानुभूति की लहर पर सवार होकर अमरोहा में वापसी की. मगर 1989 में उसे एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा. 1991 में पहली बार बीजेपी ने यहां जीत का परचम लहराया. तब से लेकर 2014 तक अमरोहा सीट पर सपा-भाजपा और रालोद ही बारी-बारी जीत दर्ज करते रहे. 2019 में पहली बार बसपा के कुंवर दानिश अली ने इस सीट पर अपना कब्जा किया.

2019 के आंकड़ों पर गौर करें तो अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में करीब 16 लाख वोटर हैं, इनमें से 829446 वोटर पुरुष और 714796 महिला वोटर हैं. 2014 में यहां करीब 71 फीसदी मतदान हुआ था. इस सीट पर दलित, सैनी और जाट वोटर अधिक हैं. इसके अलावा मुस्लिम वोटों की संख्या भी 20 प्रतिशत से ऊपर है. गंगा की गोद में बसे इस जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं, इनमें धनौरा, नौगावां सादात, अमरोहा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा सीट शामिल है. इनमें से 3 पर बीजेपी और 2 पर सपा का कब्जा है.

मुस्लिम वोटर के हाथ में बिजनौर के नतीजे!
1952 और 1957 के लोकसभा चुनावों में बिजनौर सीट कांग्रेस के खाते में गई. मगर 1962 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार ने बाजी मारी. 1977 और 1980 के चुनावों में जनता पार्टी का कब्जा रहा तो 1984 में कांग्रेस की वापसी हुई. बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने पहली बार लोकसभा चुनावों में जीत 1989 में बिजनौर सीट पर ही दर्ज की थी. 1991 में पहली बार यहां भाजपा को जीत मिली. 1952 से लेकर 2019 तक कांग्रेस ने कुल 7 बार इस सीट पर जीत दर्ज की है तो वहीं बीजेपी 4 और बसपा दो बार यहां अपना परचम लहराने में कामयाब रही. एक-एक बार ये सीट सपा, रालोद और निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई.

बसपा प्रमुख मायावती ने 1989 में बिजनौर सीट पर जीत दर्ज की थी (फोटो- पीटीआई)

उत्तराखंड से सटे बिजनौर संसदीय सीट के बारे में कहा जाता है कि यहां हिंदू आबादी ज्यादा होने के बावजूद जीत-हार का फैसला मुस्लिम वोटर ही करते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार बिजनौर की कुल आबादी 36 लाख 8 हजार है. मतदाताओं की बात करें तो यहां कुल वोटर 2615368 हैं. इनमें पुरुष वोटर 13 लाख 89 हजार 927 हैं. जबकि महिला वोटरों की संख्या 12 लाख 25 हजार 441 है. बिजनौर में हिंदू आबादी 55 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम आबादी 45 प्रतिशत है. मगर चुनावों में हर बार के चुनाव में हिंदू वोटरों की अपेक्षा मुस्लिम वोटर बढ़ चढ़कर वोट डालते हैं. हिंदुओं में भी यहां दलित आबादी 22 फीसदी के करीब है. यहां जाटों का प्रभाव ज्यादा है. इनके अलावा ठाकुर और त्यागी वोटर भी असर रखते हैं. दलित और मुस्लिम वोट निर्णायक हैं. इन्हीं के गठजोड़ से बसपा यहां काफी दबदबा रखती है.

बिजनौर लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें हैं. पुरकाज़ी, मीरापुर, बिजनौर, चांदपुर और हस्तिनापुर. इनमें से दो-दो सीटें मौजूदा समय में भाजपा और रालोद के पास हैं, जबकि एक सीट पर सपा का कब्जा है.  

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सबसे नई नगीना (सुरक्षित) लोकसभा सीट
नगीना (सुरक्षित) लोकसभा सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद बनीं और 2009 में यहां पहली बार चुनाव हुए. 2009 में सपा, 2014 में भाजपा और 2019 में बसपा ने यहां जीत का परचम लहराया. यूं तो ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, मगर यहां सबसे ज्यादा आबादी मुसलमानों की है. जो कि पचास फीसदी से ज्यादा हैं. इस सीट पर 21 फीसदी SC वोटर भी हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां करीब 1493411 मतदाता हैं, इनमें 795554 पुरुष और 697857 महिला वोटर हैं. नगीना लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें आती हैं- नजीबाबाद, नगीना, धामपुर, नूरपुर और नेथौर. 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनावों में इनमें से तीन पर सपा और दो पर भाजपा का कब्जा है.  

ऐसे में कल्कि धाम के जरिए जातियों में बंटे हिंदू वोट बैंक को एक करना, सामाजिक समरसता के तहत अति पिछड़ा और अति दलित वोटों पर कब्जा और पसमांदा मुसलमानों के जरिए मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की तीहरी रणनीति पर भारतीय जनता पार्टी काम करती नजर आ रही है. अगर ये रणनीति काम कर गई तो 2024 लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election) के नतीजे सपा-बसपा और कांग्रेस तीनों के लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं.
 

वीडियो: मायावती अकेले लड़ेंगी 2024 का लोकसभा चुनाव, कारण क्या है?